स्वैच्छिक संगठन Hindi Essay – हिंदी में निबंध

स्वैच्छिक संगठन Essay

Voluntary Organization Essay / स्वैच्छिक संगठन Hindi Essay : विकास-प्रक्रिया का ठोस मंच |  स्वैच्छिक संगठन पर निबंध |


आधार बिंदु :

  1. भूमिका :  विकास-प्रक्रिया में स्वैच्छिक संगठनों की दखल के मायने
  2. विकास-प्रक्रिया में राजकीय प्रयत्नों की सीमाएं
  3. विकास-प्रक्रिया में स्वैच्छिक संगठनों की भूमिका
  4. स्वैच्छिक संगठनों की संरचना और कार्य-प्रणाली
  5. भारत में वर्तमान स्वैच्छिक संगठनों का स्वरूप
  6. स्वैच्छिक संगठनों की भूमिका से भावी संभावनाएं
  7. स्वैच्छिक संगठनों के नाम पद छदम स्वैच्छिकता
  8. उपसंहार

  1. भूमिका :  विकास-प्रक्रिया में स्वैच्छिक संगठनों की दखल के मायने : 

आज़ादी के बाद देश की अर्थव्यवस्था को संचालित करने में सरकारी एवं सार्वजनिक क्षेत्र की भूमिका महत्वपूर्ण मानी गई थी किंतु विगत छह दशकों में सार्वजनिक क्षेत्र के बराबर घाटे में जाने तथा राजकीय क्षेत्र के भ्रष्ट और अकर्मण्य होते जाने से जो स्थितियाँ सामने आई हैं उसमें पिछले दो दशकों से आर्थिक सुधारों के नाम पर सरकारी एवं सार्वजनिक क्षेत्र को क्रमश: सीमित किया जाता रहा है, साथ ही सरकार के एवं सार्वजनिक क्षेत्र के विभिन्न कार्यों में स्वैच्छिक संगठनों की भूमिका को महत्व दिया जाने लगा है । इस प्रकार सरकार + समाज + स्वैच्छिक संगठन संयुक्ति अनेक दृष्टियों से उपादेय माने जाने लगी है । इसीलिए 21वीं शताब्दी में स्वैच्छिक संगठनों के विकास एवं दायित्व पर गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है।

  1. विकास-प्रक्रिया में राजकीय प्रयत्नों की सीमाएं : स्वैच्छिक संगठन Hindi Essay

आर्थिक-सामाजिक विकास के क्षेत्र में पिछले छह दशकों में सरकारी एजेंसियों का जाल बिछ गया है । शिक्षा, स्वास्थ्य, महिला एवं बाल विकाससार्वजनिक निर्माण विभाग, पशुपालन कृषि उद्योग आदि के क्षेत्रों में राजकर्मी लोक-विकास के लिए नियुक्त हैं, इसके बावजूद अकर्मण्यता और भ्रष्टाचारों के कारण एक-से-एक उत्कृष्ट योजनाएं क्रियान्वयन में असफल हो रही हैं। राजकर्मियों का जनता को शोषित करने, परेशान करने का संबंध अधिक स्थापित है। राजकीय सेवाओं में मिशन की भावना तो दूर, सहज कार्यसंपादित करने की व्यावसायिक दृष्टि एवं कौशल भी नहीं है। वस्तुत: देश ने आजादी के बाद हमारे प्रशासन-तंत्र के लगातार प्रसार के बावजूद उसके निकम्मा और भ्रष्ट साबित होने की त्रासदी को भोगा है और अब न केवल जनता बल्कि स्वयं सरकार भी तंत्र की भूमिका को लेकर निराश और चिंतित है। ऐसी पृष्ठभूमि में स्वैच्छिक संगठनों की भूमिका सामाजिक विकास के केंद्र में आती जा रही है। देश में कुछ स्वैच्छिक संगठनों ने न केवल भौतिक उपलब्धियों को लेकर बल्कि कार्य-प्रक्रियाओं को लेकर इतना मौलिक और उत्कृष्ट कार्य किया है कि उससे सरकारी क्षेत्र विस्मित है तथा उसका राजकीय सेवाओं में अधिक से अधिक सहयोग लेने का प्रयास किया जा रहा है।

  1. विकास-प्रक्रिया में स्वैच्छिक संगठनों की भूमिका : स्वैच्छिक संगठन Hindi Essay

स्वैच्छिक संगठन मूलत: जनहित में किन्हीं निश्चित लक्ष्यों को लेकर कार्य करते हैं, वे लाभ की प्रवृत्ति से रहित सामाजिक विकास की प्रक्रिया को मजबूत करने हेतु सृजनशीलता और तत्कालीनता के साथ एक संगठन के रूप में कार्य करते हैं। स्वैच्छिक संगठनों में एक ओर सामाजिक समस्याओं के आकलन की शोधपरक दृष्टि होती है तो दूसरी ओर उनके निराकरण की मौलिक, सर्जनात्मक अभिवृत्ति । एक ओर समाज की समस्याओं को दूर करने की ही नहीं समाज में ऐसी समस्याओं के निराकरण की स्थाई सामर्थ्यें विकसित करने की इच्छा होती है तो दूसरी ओर समाज में सहभागिता की प्रक्रिया को समृद्ध करने का संकल्प भी इस प्रकार स्वैच्छिक संगठन ऐसे-ऐसे कार्य संपादित कर देते हैं जिनमें सरकारी तंत्र तो हाथ डाल भी नहीं सकता। अच्छे वैच्छिक संगठन तो समाज में विकास-प्रक्रिया को उत्तेजित करने के साथ-साथ सरकार की कार्य-प्रणाली को भी सकारात्मक रूप से प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं। प्रगतिशील सरकारों एवं नौकरशाही का प्रगतिशील घटक ऐसे स्वैच्छिक संगठन सामाजिक विकास की प्रक्रिया में सृजनशील प्रवृत्तियों को उत्तेजित करते हैं। स्वैच्छिक संगठन के प्रयोगात्मक अनुभवों का बराबर लाभ उठाता है। स्वैच्छिक संगठन समाज और सरकार के बीच सकारात्मक, सर्जनात्मक तालमेल बिठाने की भी कोशिश करते हैं। वस्तुतः अच्छे स्वैच्छिक संगठनों की इसी तरह की भूमिकाओं के बारे में भारत सरकार के योजना आयोग का मानना है कि-उपयुक्त ढंग से संगठित स्वयंसेवी, प्रयास, कमजोर और ज़रूरतमंद लोगों की सहायता हेतु समुदाय में सुलभ सुविधाओं को बढ़ाने में काफ़ी हद तक कारगर हो सकता है।’

  1. स्वैच्छिक संगठनों की संरचना और कार्य-प्रणाली : स्वैच्छिक संगठन Hindi Essay

स्वयंसेवी या स्वैच्छिक संगठन व्यक्तियों का ऐसा समूह होता है जिन्होंने स्वयं को एक विधि-समूह निकाय के रूप में संगठित कर लिया है ताकि वे संगठित कार्यक्रमों के माध्यम से सामाजिक सेवाएं प्रदान कर सकें। लॉर्ड बिवरिज के शब्दों में- ‘ठीक से कहें तो स्वयंसेवी संगठन ऐसा संगठन होता है जिसका कार्य-आरम्भ और संचालन इसके सदस्यों द्वारा बिना बाहरी हस्तक्षेप के होता है, चाहे उसके कार्यकर्ताओं को वेतन दिया जाता हो या नहीं।’ ऐसे संगठनों का एक संगठनात्मक व्यक्तित्व होता है। ये अपनी ही पहल पर अथवा बाहर से प्रेरित होकर लोगों के समूह द्वारा किसी स्थान विशेष में एक स्वावलंबी ढंग से गतिविधियाँ संचालित करते हैं, उनकी ज़रूरतें पूरी करते हैं, सार्वजनिक क्षेत्र की प्रसार-सेवाओं को एक-दूसरे के करीब लाते हैं तथा समाज के कमजोर वर्गों के न्यायोचित और प्रभावी विकास को अंजाम देते हैं।

स्वैच्छिक संगठन समाज के विकास में, विशेष रूप से समाज के वंचित वर्ग में उत्प्रेरक अभिकर्ता के रूप में काम करते हैं। ये संगठन ग़रीब लोगों की समस्याओं के समाधान में प्रभावी होते हैं। सरकार द्वारा उपलब्ध योजनाओं का लाभ गरीब लोगों तक नहीं पहुंच पाता किंतु स्वयंसेवी संगठन इन योजनाओं से संबंधित कर्मचारियों से जुड़कर जनता में जागरूकता पैदा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, ये विकास-प्रक्रिया में साईंय भागीदारी निभाते हैं। प्रत्येक योजनाउसके उद्देश्य, अपेक्षित लाभ, कार्य-प्रणाली आदि के बारे में भली प्रकार समझ सकते हैं। ये लाभार्थियों के सही चुनाव करने में भी भूमिका निभाते हैं।

स्वैच्छिक संगठन Hindi Essay

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  1. भारत में वर्तमान स्वैच्छिक संगठनों का स्वरूप : स्वैच्छिक संगठन Hindi Essay

देश में कई संगठनों से स्वैच्छिक संगठन कार्य कर रहे हैं और राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय पर विकास की भूमिकाएँ निभा रहे हैं । विकासशील देशों में जहाँ सरकारें एवं नौकरशाही योजनाओं को क्रियान्वित करने में असफल रही हैं वहाँ स्वैच्छिक संगठनों की मदद की सर्वत्र बढ़ती जा रही है। भारत में भी शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि उद्योग, महिला एवं बालविकास आदि क्षेत्रों में स्वैच्छिक संगठन केंद्र एवं राज्य सरकारों के साथ मिलकर प्रभावी भूमिका निभा रहे हैं । देश में एक ओर सहकारी संगठन सार्वजनिक क्षेत्रों में सरकार की मदद कर रहे , वहीं अब सहकारी संगठनों के भ्रष्टाचार एवं अकर्मण्यता से भिन्न स्वैच्छिक संगठन सार्वजनिक क्षेत्र के विभिन्न क्षेत्रों में नए-नए प्रयोग और योजना-क्रियान्वयन का कार्य कर रहे हैं। राजस्थान में SWRC (तिलोनिया), विज्ञान आश्रम, (पूना), मरुगप्पा चेतियार रिसर्च सेंटर, (चेन्नई)मित्रनिकेतन, (तिरुअनंतपुरम), हिमालयन इन्वाइनमेंटल स्टडीज एण्ड कंजर्वेशन ऑर्गेनाइजेशन (देहरादून), सारथी, पंचमहल(गुजरात), बोध, दिगंतरसंधान, (जयपुर) भारत सेवक संघ (अलवर) एकलव्य (मध्यप्रदेश) आदि स्वैच्छिक संगठन दशकों से सार्वजनिक क्षेत्र में अपनी पहचान स्थापित कर चुके हैं।

  1. स्वैच्छिक संगठनों की भूमिका से भावी संभावनाएं : स्वैच्छिक संगठन Hindi Essay

सरकारी एजेंसियाँ क्रमशः निष्क्रिय और भ्रष्ट होती जा रही हैं, केंद्र से लेकर राज्यों तक कहीं भी इस सरकारी तंत्र को गतिशीलता और स्वच्छ करने की कोई राजनीतिक इच्छा के संकेत नहीं हैं, ऐसी स्थिति में स्वैच्छिक संगठनों से बहुत उम्मीद है कि वे जनता के विकास की प्रक्रिया में संवेदनशीलता के साथ महत्वपूर्ण भूमिका निभाएँगे। अन्ना हजारे एवं बाबा रामदेव जैसे स्वैच्छिक संगठन जन-जागृति के लिए कड़ा संघर्ष कर रहे हैं। केंद्र सरकार के कई मंत्रालय एवं अनेक राज्य सरकारें सरकारी तंत्र की सीमाओं को समझकर राजकीय योजनाओं को कभी स्वायत्त रूप में तो कभी सहभागिता के रूप में स्वैच्छिक संगठनों के साथ क्रियान्वित कर रही हैं। भारत सरकार की एजेंसी ‘कपाट’ इसमें स्वैच्छिक संगठनों के संयोजन को लेकर महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रही है। इसलिए स्वैच्छिक संगठनों का भविष्य संभावनाओं से युक्त है। स्वैच्छिक संगठनों का सामाजिक विकास की प्रक्रिया को लेकर अनुभव बढ़ता जा रहा है और वे इन निष्कर्ष को प्राप्त किए हुए हैं कि सामाजिक विकास एक सतत सृजनशील प्रक्रिया है । वह राजकीय तंत्र की जड़ता से कुंठित होती है इसलिए समाज की राज्य पर निर्भरता कम-से-कम रहनी चाहिए । इस दृष्टि से स्वैच्छिक संगठनों में सामाजिक विकास को लेकर पहले से अधिक आत्मविश्वास है, उनमें तेजी से संख्यात्मक विस्तार तो हो ही रहा है। उनकी प्रभाविता भी क्रमश: बढ़ती जा रही है।

  1. स्वैच्छिक संगठनों के नाम पद छदम स्वैच्छिकता : स्वैच्छिक संगठन Hindi Essay

सरकारी कर्मचारियों एवं गैर-सरकारी व्यक्तियों की निहित स्वार्थपरता ने विदेशी एवं देशी अर्थस्रोतों का दोहन करने के लिए बहुत बड़ी संख्या में स्वैच्छिक संगठन खड़े हो गए हैं, होते जा रहे हैं जो अपने मूल उद्देश्य में तो निजी स्वार्थ को साध रहे हैं और आडंबर एक स्वैच्छिक संगठन का है। ऐसे छमी संगठन स्वैच्छिक सामाजिक कार्यसंस्कृति को नष्ट कर रहे हैं। सरकार एवं स्वैच्छिक संगठनों को मिलकर ऐसे भ्रष्ट स्वैच्छिक संगठनों के कारनामों को उजागर करते रहना चाहिए ताकि स्वैच्छिक को उजागर करते रहना चाहिए ताकि स्वैच्छिक संगठन के विकास की स्वस्थ प्रक्रिया बाधित न हो।

  1. उपसंहार : You Read This स्वैच्छिक संगठन Hindi Essay on Lokhindi.com

स्वैच्छिक संगठन सामाजिक विकास की माँग के स्वाभाविक प्रतिफल हैं। वे समाज के प्रति अधिक संवेदनशील हैं, समाज की सर्जनात्मक ऊर्जा को बेहतर ढंग से नियोजित कर सकते है, वे सरकार और समुदाय के बीच रचनात्मक कड़ी बन सकते हैं। अब सरकारी तंत्र के बराबर सीमित होते जाने की स्थितियों में स्वैच्छिक संगठनों की जरूरत एवं दायित्व दोनों बढ़ते जा रहे हैं। भारत में स्वैच्छिक संगठन समुदाय के साथ अपनी भागीदारी को अधिक व्यापक, जीवंत एवं सृजनशील बनाएँगे, ऐसी संभावना है।

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Written by lokhindi
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