वैश्विक आतंकवाद Hindi Essay – Full Essay For Upsc in Hindi

वैश्विक आतंकवाद

Global Terrorism Full Nibandh in Hindi 2019 / वैश्विक आतंकवाद Hindi Essay – इक्कीसवीं शताब्दी की पहली गंभीर चुनौती हिंदी में निबंध |


आधार-बिंदु

  1. भूमिका : इक्कीसवीं शताब्दी की बुंदन करती हुई शुरुआत
  2. आतंकवाद : का विश्वव्यापी रूप
  3. आतंकवाद : मनुष्य के भटकाव की दुर्घटना
  4. आतंकवाद के कारण
  5. आतंकवाद से मुक्ति : सांस्कृतिक ‘उन्नयन की ज़रूरत
  6. उपसंहार : विश्व आतंकवाद की दिशा और संभावना

भूमिका : इक्कीसवीं शताब्दी की बुंदन करती हुई शुरुआत

बीसवीं शताब्दी की कब्र पर इक्कीसवीं शताब्दी आतंकवाद को लेकर क्रदन कर रही है। बीसवीं शताब्दी ने राजतंत्र को लोकतंत्र में बदला है, उपनिवेशवाद और साम्राज्यवाद को स्वतंत्र राष्ट्रीयताओं में, मध्यकालीन अंधविश्वास को आधुनिक तर्कशीलता में तब्दील किया है तथा धरती के आदमी को चाँद तक पहुँचाया है किंतु मनुष्य के इस पराक्रम और उल्लास को आतंकवाद लील रहा है। अमेरिका भी 11 सितंबर, 2001 को दुनिया के सबसे सुरक्षित समझे जाने वाले पेंटागन’ को और विश्व व्यापार केंद्र के गगनचुंबी भवन को आतंकवाद के हाथों ध्वस्त होने से न बचा सका। जम्मू एवं कश्मीर की विधानसभा तथा भारतीय संसद परिसर भी रक्त-रंजित हो गए। दुनिया के देश थर्रा गए। इज़रायल और फिलीस्तीन में गोलाबारी श्रीलंका, चेचन्या और इंडोनेशिया, पाकिस्तान, अफगानिस्तान में बमों के धमाके होते रहे हैं। इस प्रकार इक्कीसवीं शताब्दी की शुरुआत ही आतंकवाद के हाथों मनुष्य के हाहाकार से भर्राई हुई है अत: आज आतंकवाद विश्व राजनीति का सर्वाधिक चिंतनीय विषय है ।

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आतंकवाद : का विश्वव्यापी रूप

भारत तो पिछले तीन दशकों से आतंकवाद के हाथों लहुलुहान है ही, भारत में छत्तीसगढ़, जम्मू-कश्मीर, असम, नगालैंड, मिजोरम, तमिलनाडु, बिहार, झारखंड, पश्चिमी बंगाल, आंध्रप्रदेश आदि राज्य आतंकवाद से त्रस्त रहे हैं और अभी भी किंतु आतंकवाद तो आज पूरे विश्व को मधे हुए है। अमेरिका के केन्या-तंजानिया स्थित दूतावासों में बम विस्फोट हो चुके हैं, रूस के दागिस्तान, ताजिकिस्तान, चेचन्या व अजरबेजान को आतंकवादियों ने बमों के धमाकों से चौंका रखा है। चीन का मध्य एशियाई मुस्लिम राज्य सिकियांग आतंकवाद की चपेट में है। श्रीलंका, ईरान, ईराक, अफगानिस्तान एवं पाकिस्तान आतंकवाद से अभिशप्त हैं। वस्तुतः आतंकवाद ने पूरे विश्व को इस तरह कस लिया है कि सभी देशों के राजनेता, नौकरशाह एवं पूंजीपति आज सर्वाधिक असुरक्षित हैं और सांसत में हैं। परिणामस्वरूप सभी देशों का एक बहुत बड़ा बजट आतंकवाद से त्राण पाने के लिए खर्च किया जा रहा है। इसीलिए स्वयं के सुरक्षित समझने वाले अमेरिका ने भी 11 सितम्बर की आतंकवादी घटना के बाद आतंकवाद के विरुद्ध ’21वीं शताब्दी के प्रथम युद्ध’ के रूप में घोषणा की और आतकवाद को ‘लोकतंत्र का दुश्मन’ करार दिया। इसी घटना के बाद अमेरिका के साथ, अमेरिका के आहवान पर यूरोप 2 के सभी देश तथा संयुक्त राष्ट्रसंघ के आहवान पर संपूर्ण विश्व अमेरिका के नेतृत्व में आतंकवाद के विरुद्ध एकजुट हुआ तथा उस संगठित अभियान का पहला परिणाम अफगानिस्तान में आतंकवाद की हिमायती तालिबान सरकार की समाप्ति के रूप में देखा किंतु अमेरिका के इस हित साधन ओसामा बिन लादेन को मार गिराए जाने के बाद अमेरिका सहित यूरोप का वह ज्वार शिथिल हो गया।

आतंकवाद : मनुष्य के भटकाव की दुर्घटना

आतंकवाद के मायने हैं किसी संगठन के द्वारा किसी की निजी अथवा सार्वजनिक संपत्ति के एवं नागरिकों के विरुद्ध किया जाने वाला ऐसा जघन्य, बर्बर, अपराधिक कार्य जो इन व्यक्तियों द्वारा भय पैदा कर अपनी माँगों को पूरा करवाने के लिए किया जाता है। आतंकवादी स्वयं को राजनीतिक परिवर्तन का सिपाही समझता है तथा एक अघोषित और गुरिल्ला युद्ध लड़ता है। वह आतंक फैलाने में ही मूल्य तलाशता है तथा एक हिंसक एवं आतंकवादी राजनीतिक दर्शन के तहत अपनी गतिविधियों को संचालित करता है। कहीं पर आतंकवाद ऐतिहासिक अन्याय की प्रतिक्रियास्वरूप पैदा होता है, जैसे इजरायल में, कहीं पर राज्य की तानाशाही एवं शोषण-दमन की प्रतिक्रिया में उभरता है, जैसे लैटिन अमेरिका एवं अफ्रीकी देशों में होनेवाली तख्तापलट घटनाओं में या भारत में नक्सली’ एवं ‘पीपुल्स वार ग्रुप’ आंदोलन के रूप में, कहीं यह किसी राज्य द्वारा दूसरे राज्य के विरुद्ध अघोषित युद्ध के रूप में होता है जैसे पाकिस्तान द्वारा भारत के विरुद्ध चलाए जाते रहे आतंकवाद , कहीं पर यह संकीर्ण धमधता और जातीयता का रूप धारण कर लेता है, जैसे ‘अल कायदा’ संगठन या कश्मीरी आतंकवादी लश्कर-ए-तय्यबा’ या ‘जैश-ए-मोहम्मद आदि समूहों में।

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आतंकवाद के कारण

आतंकवाद के इन सभी कारणों में कुछ तो लोक-हित को लेकर भी है किंतु सोच का भटकाव सबमें एक-सा है कि किसी भी प्रकार के अन्याय को वैचारिक स्तर पर उठाने और प्रचारित करने के लोकतांत्रिक-अहिंसात्मक रास्ते के बजाय आम निर्दोष आदमी की हत्या करके लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है। इस हिंसात्मक रास्ते में वे दूसरों को भी नष्ट करते हैं और अंततः आत्मविनाश को भी प्राप्त करते हैं। आतंकवादी संगठनों में ऐसे लोगों की संख्या बहुत होती है जो मानव बम बनकर दूसरे को नष्ट करने के लिए भी तैयार हो जाते हैं। आतंकवाद के विविध प्रकारों में राज्य द्वारा फैलाया जानेवाला आतंकवाद भी है जो अपने ही राज्य में लोगों के आधारभूत अधिकारों का दमन करने के लिए राज्य की पुलिस फौज द्वारा हिंसा फैलाकर किया जाता है। राज्य ऐसी गतिविधियाँ दूसरे देशों में भी करता है। भारत में कश्मीरी आतंकवाद पाकिस्तान सरकार द्वारा अघोषित छमयुद्ध के रूप में चलाया जा रहा राज्य द्वारा संचालित आतंकवाद ही है। पाकिस्तान में सेना निर्देशित अलोकतांत्रिक एवं अवैध सरकारें इस्लामपंथी एवं भारत न विरोधी जन-मानस को फुसलाकर ही सत्ता पर काबिज होने की कोशिश करती रही हैं। इसलिए भारत में पंजाब (पूर्व में चल चुका खालिस्तान आंदोलन), जम्मू-कश्मीर, असमनगालैंड, मिज़ोरम आदि प्रदेशों का आतंकवाद, मुंबई के दंगे आदि इस्लामिक जेहाद के विपैले अंकुर ही हैं। यह इतिहास का अभिशाप ही है कि पिछले सात दशक से कश्मीर को लेकर भारत-पाक के बीच तनाव है और युद्ध में चार बार आमने-सामने हो चुके हैं तथा बराबर गुर्राते रहे हैं।

आतंकवाद से मुक्ति : सांस्कृतिक ‘उन्नयन की ज़रूरत

आतंकवाद का तो आर्थिक है, सांस्कृतिक या राजनीतिक। तीनों का ही निवारण व्यक्ति या राज्य के सोच में परिवर्तन से ही संभव है। यदि राज्य ने आम गरीब, शोषित जनता को शोषण से मुक्त नहीं किया तो नक्सलवाद, ‘पीपुल्स वार ग्रुप’ आदि संगठनों का आतंकवाद बढ़ता ही रहेगा, अभी यह देश के 200 ज़िलों फैल चुका है। यदि राज्य की दमनकारी शक्ति बढ़ रही है तो मनुष्य की शोषण के विरुद्ध चेतना भी अधिक पैनी होती जा रही है । शोषितों को संगठित होने और राज्य द्वारा लोकतांत्रिक अनुरोधों की उपेक्षा करने पर राज्यतंत्र के विरुद्ध हिंसात्मक कार्यवाही करने से रोका नहीं जा सकेगा। इसलिए राज्य प्रशासन को मानवाधिकारों के प्रति संवेदनशील होना ही होगा। विकासशील देशों में जहाँ ग़रीबी और शोषण बहुत अधिक, वहाँ राज्य के विरुद्ध ऐसे आतंकवाद को रोकने के लिए उसे जनोन्मुखी कार्य-संस्कृति को अपनाना ही होगा।

जो आतंकवाद धार्मिक जेहाद के नाम पर है वह अब अधिक व्यापक और अधिक ख़तरनाक है तथा तीव्रतर होता जा रहा है। यह आतंकवाद इस भ्रांति पर खड़ा है कि आतंकवादी का धर्म ही श्रेष्ठ है तथा अन्य जब तक धर्म को नहीं अपनाते तब तक शत्रु हैं, अत: समाप्त कर देने योग्य हैं। अल क़ायदा एवं पाकिस्तान के जैश-ए-मोहम्मद तथा लश्कर-ए-तय्यबा जैसे बीसियों इस्लामिक संगठनों ने मलेशिया, सिंगापुरफिलीपींस, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, उत्तरी अफ्रीका, मध्यपूर्वकेंद्रीय, दक्षिणी तथा दक्षिणपूर्व एशिया में अड्डे बना लिए हैं तथा अबोध उम्र में बच्चों को धार्मिक कट्टरवाद का जहर पिलाकर उन्हें मानव बम के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं और इक्कीसवीं शताब्दी में यही सिरफिरापन विश्वव्यापी आतंकवाद का रूप धारण किए हुए है। संयुक्त राष्ट्र के विशेषज्ञ दल की रिपोर्ट के अनुसार ‘अलकायदा के सदस्य और उनके सहयोगी विश्वभर फैले हुए हैं और मौका पड़ने पर उनके धर्मों व सैद्धांतिक विश्वास को मान्यता न देने वाले राष्ट्रों के लोगों की हत्या करने में उन्हें कोई खेद न होगा ।’ और यूरोप के ईसाई समुदाय ने इस आतंकवाद के चेहरे को 11 अक्टूबर, 2001 की घटना बाद पहचाना है और सौभाग्य से मुस्लिम देशों ने भी इस्लामिक धार्मिक कट्टरता को स्वीकार नहीं किया है। अमेरिका के राष्ट्रपति जॉर्ज बुश ने विश्व के सभी देशों को और संयुक्त राष्ट्र संघ को विश्वास में लेकर इस प्रकार के धार्मिक उन्माद पर आधारित आतंकवाद के विरुद्ध जो ‘युद्ध’ छेड़ा था वह इक्कीसवीं शताब्दी के इस मुहाने पर नितांत आवश्यक था, अपरिहार्य था किंतु अफ़गानिस्तान में तालिबानी सत्ता की समाप्ति तथा लादेन की समाप्ति के बाद वह ठंडा पड़ चुका है। इस अभियान में इस्लामिक देशों की चुप्पी विश्व शांति की दृष्टि से अत्यंत सौभाग्य का संकेत है किंतु यदि स्थाई रूप से इस प्रकार के आतंकवाद को समाप्त करना है तो विश्व स्तर पर धार्मिक सहिष्णुता को लेकर समझ स्थापित करने की आवश्यकता होगी विश्व को धार्मिक आधार पर संगठित होने के बजाय धर्मनिरपेक्ष होकर आतंकवाद के विरुद्ध लामबंद होना होगा। साथ ही इस्लामिक देशों के शैक्षिक-आर्थिक विकास की ओर भी ध्यान देना होगा। शिक्षित मुस्लिम राष्ट्रों में धार्मिक कट्टरता कम हुई है। अत: व्यापक सांस्कृतिक उन्नयन ही इस प्रकार के आतंकवाद को समाप्त करेगा। यह रास्ता कितना ही लंबा और कठिन क्यों न हो किंतु धार्मिक कट्टरता गोली से नहीं शिक्षा से ही समाप्त हो सकती है।

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उपसंहार : विश्व आतंकवाद की दिशा और संभावना

वस्तुतः 11 अक्टूबर, 2001 की घटना ने सारे विश्व को पहली बार एक साथ झकझोरा था, इसलिए आतंकवाद अब विश्व के अधिकतर राष्ट्रों का सर्वाधिक चिंतन का विषय बन गया है। संयुक्त राष्ट्र संघ के मंच पर विश्व की प्राथमिक समस्याओं में शुमार कर, लोकतंत्र का शत्रु मानकर, इसके विरुद्ध संगठित रूप से युद्ध घोषित करना होगा। वस्तुत: हम सीमाहीन आतकवाद के अकल्पित रूप के ख़तरे से अभिशप्त हैं अतः वैश्विक स्तर पर गंभीर प्रयत्न करने होंगे। संयुक्त राष्ट्र के मंच पर ऐसे अंतरराष्ट्रीय क़ानून बनाने होंगे जिनमें आतंककारियों का प्रत्यर्पण करने, आतंकवादी अपराधों के लिए अंतरराष्ट्रीय न्यायालय स्थापित करने आतंककारियों के संबंध में अंतरराष्ट्रीय टास्क फोर्स एवं सूचना नेटवर्क गठित करने, आतंकवाद को प्रश्रय देने वाले राष्ट्रों को आर्थिक-राजनीतिक दंड देने एवं धर्मनिरपेक्ष वसुधैव कुटुंबकम् की वैश्विक संस्कृति का प्रसार करने के क़दम उठाने होंगे। यदि आतंकवाद से ग्रस्त देशों ने अपनी अपनी ढपली अपना-अपना राग-अलापा या अमेरिका ने अपनी अहमन्यता दिखाई तो बीसवीं शताब्दी का यह जिन इक्कीसवीं शताब्दी का महादैत्य बन जाएगा और हमें तीसरे विश्वयुद्ध की ओर धकेल देगा। नक्सलवाद जैसे आंतरिक आतंकवाद को केवल और केवल नक्सलवाद क्षेत्रों के वंचितों के विकास के प्रति संवेदनशील होकर, उनको स्वास्थ्य, शिक्षारोजगार दृष्टि से समर्थ बनाकर समाज की मुख्य धारा में शामिल करके ही समाप्त किया जा सकता है, केवल दमन से नहीं।

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Written by lokhindi
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