हमारा विकास और जनसंख्या नियंत्रण – Full Hindi Essay

Full Hindi Essay

Our Development and Population Control / हमारा विकास और जनसंख्या नियंत्रण – Full Hindi Essay | विकास और जनसंख्या नियंत्रण पर निबंध |


आधार बिंदु :

  1. भूमिका जनसंख्या वृद्धि और विकास Full Hindi Essay
  2. भारत में जनसंख्या – वृद्धि की दर एवं उनकी प्रकृति
  3. जनसंख्या – वृद्धि और आर्थिक विकास की सान्तरता
  4. साक्षरता और जनसंख्या – वृद्धि : एक सकारात्मक संबंध
  5. जनसंख्या- वृद्धि को सीमित करने के उपाय Full Hindi Essay
  6. उपसंहार : जनसंख्या-नियंत्रण : एक अभियान की आवश्यकता

“भारत के शयनागार भारत के खेतों की अपेक्षा अधिक उर्वरक है । भारत जनसंख्या की दृष्टि से 1 पंचवर्षीय योजना आगे हैं तथा आर्थिक विकास के क्षेत्र में दो योजनाएं पीछे । भारत में संतानोत्पति एक बड़ा कुटीर उद्योग बन गया है । जनसंख्या के तीव्र गति से बढ़ते रहने पर नियोजित विकास बहुत-कुछ ऐसी भूमि पर मकान खड़ा करने के समान है जिसे पानी बहा ले जा रहा हो ।” – इंदिरा गाँधी

भूमिका : जनसंख्या – वृद्धि और विकास :

हमारा देश केवल जनसंख्या-वृद्धि से ही नहीं बल्कि जनसंख्या-विस्फोट से ग्रस्त है । जनसंख्या विस्फोट के कारण हमारा रहन-सहन का स्तर, हमारी प्रतिस्पर्धा-सब कुछ विकटताओं में उलझे हुए है । हम जी-तोड़ कोशिश करके अपनी विकास-दर को आगे बढ़ाते हैं जनसंख्या की वृद्धि दर हमारे विकास वृद्धि के आंँकड़े को बराबर कर देती हैं । इसलिए यदि हम विकास के प्रति कटिबंध हैं तो हमारी जनसंख्या नियंत्रण के संबंध में हार्वे लेबिन स्टाइन के इस कथन को याद रखने की आवश्यकता है कि- “जब किसी देश में गतिहीनता टूटती है और प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि होती है तो लोग जीवन स्तर में सुधार करने के बजाय परिवार में वृद्धि करने लगते हैं ।” क्या हमने विकास और जनसंख्या के रिश्ते को ऐसे ही नहीं जिया हैं ? You Read This Full Hindi Essay on Lokhindi.com

भारत में जनसंख्या- वृद्धि की दर एवं उसकी प्रकृति :   

जनसंख्या की दृष्टि से भारत विश्व में चीन के बाद दूसरे स्थान पर है । वर्तमान में हम लगभग 1 अरब 20 करोड़ के आस पास है, जनसंख्या घनत्व की दृष्टि से चीन से भी अधिक है । विश्व में भारत का भौगोलिक क्षेत्रफल 2.4% है जबकि जनसंख्या का प्रतिशत 17.5% है तथा वार्षिक वृद्धि दर 1.76% है । हम जिस गति से जनसंख्या बढ़ाते जा रहे हैं उस गति से 2011 में 1.21 अरब हो गए हैं तथा 2041 में 1.7 अरब जनसंख्यावाला देश हो जाएंगे और चीन को भी पीछे छोड़ देंगे । ऊंची जन्म दर के साथ-साथ स्वास्थ्य एवं चिकित्सा सुविधाओं के विकास से मृत्यु-दर कम हो एवं औसत आयु में वृद्धि हो तो समझिए की स्थिति क्रमशः ‘जनसंख्या विस्फोट’ की ओर अग्रसर है । फलस्वरूप रोटी, कपड़ा और मकान जैसी आधारभूत समस्या भी हमारे नियंत्रण से बाहर हो सकती हैं ।

भारत की जनसंख्या-वृद्धि से एक बात यह स्पष्ट होती है कि धीरे-धीरे हमारे नगर महानगरों में बदलते जा रही हैं तथा नगरीकरण की प्रगति तेजी से बढ़ती जा रही है । जनसंख्या की वृद्धि गांवों की तुलना में शहरों में लगभग 3 गुना अधिक है जो रोजगार की तलाश में आए गांँवों के लोगों से बढ़ रही है । लिंग के अनुपात की दृष्टि से पुरुषों की तुलना में महिलाओं की संख्या निरंतर कम होती जा रही है । वहाँ 1901 में भी 1000 पुरुषों पर 972 महिलाएं थी वहांँ 2001में 933 महिलाएं थी । वहां 2011 में भी 940 महिला ही हुई है । भारत में जनसंख्या वृद्धि के कारणों में शिक्षा की कमी, जलवायु, अन्य देशों से भारत में घुसपैठ आदि माने जाते हैं तथा जनसंख्या-वृद्धि से उठने वाली प्रमुख समस्याओं में खादयात्र की समस्या, मुद्रास्फीति और महंगाई, बेरोजगारी, पर्यावरण, आवास, पौष्टिक भोजन एवं भोजन स्तर के नीचे जाने जैसे आम समस्याएं मानी जाती हैं किंतु अब मूल रूप से यह सोचना है कि विकास और जनसंख्या नियंत्रण का समुचित प्रयास कैसे करें ?

जनसंख्या – वृद्धि और आर्थिक विकास की समांतरता :

बहुत से विद्वानों के अनुसार ‘विकास सर्वोत्तम गर्भनिरोधक’ है, अर्थात एक व्यक्ति अपने सम्रग विकास से जनसंख्या पर स्वतः नियंत्रण प्राप्त कर लेगा; किंतु भारतीय संदर्भ मैं यदि हम विचार करें तो यह कथन भी सत्य से परे नजर आता है । भारत में परिवार नियंत्रण कार्यक्रम को प्रारंभ हुए चार दशक के लगभग हो रहे हैं; लेकिन हमारी जनसंख्या- वृद्धि मैं कमी नहीं आई है । खादयात्र उत्पादन 4% बढ़ा है, जीवन-अवधि 32 वर्ष से बढ़कर 65 वर्ष से अधिक हो गई है, औद्योगिक उत्पादन की दृष्टि से हम विश्व के 15 देशों में चले गए हैं, विद्यालयों में साढे छह गुना वृद्धि हुई है । You Read This Full Hindi Essay on Lokhindi.com

इसके बावजूद जनसंख्या- वृद्धि में ह्रास अभी कम ही हुआ है । 1950-51 के वर्ष से 1980-81 की तुलना में भारत में सकल घरेलू उत्पादन में 3.52% की औसत दर से वृद्धि हुई है, जबकि हमारी जनसंख्या में 1.76 प्रतिशत वृद्धि, अर्थात हमारे घरेलू उत्पादन में 1.37 प्रतिशत प्रतिवर्ष वृद्धि हुई है । इसका अर्थ है कि हमारी विकास की गति अत्यंत धीमी है ।

भारत के विकास का दूसरा पहलू यह है की सकल घरेलू उत्पाद तो बढ़ा है किंतु वह काफी असंतुलित है । आज भी कुल जनसंख्या के लगभग 26% तो गरीबी रेखा के नीचे जीवन निर्वाह कर रहे हैं । इसका अर्थ यह है कि विकास की अधिकांश लाभ शेष 74% लोगों में अधिक बंटे हैं । यद्यपि स्वास्थ्य एवं जागरूकता के कारण मृत्यु दर में कमी आई है कुछ अर्थशास्त्री यह सोचते हैं कि विकास की तुलना में हम जनसंख्या के मोर्चे पर अधिक असफल हुए हैं । यदि हमने विकास किया है और फिर भी जनसंख्या वृद्धि में कमी नहीं ला पाए हैं तो इसका कारण उत्पादन वृद्धि की धर का नीचे रहना तथा विकास का लाभ आसमान ढंग से मिलना है अर्थात समाज का जो वर्ग जनसंख्या वृद्धि के लिए अधिक जिम्मेदार है, विकास का लाभ उसी वर्ग को सबसे कम पहुंचा है । इस दृष्टि से जनसंख्या-वृद्धि ने केवल हमारी गरीबी का कारण है बल्कि यह हमारी बेरोजगारी, महंगाई और अंततः आर्थिक विषमता को भी बढ़ानेवाली है । Full Hindi Essay

Full Essay in Hindi – विकास और जनसंख्या नियंत्रण

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साक्षरता और जनसंख्या-वृद्धि: एक सकारात्मक संबंध :

भारत में जनसंख्या-वृद्धि के संदर्भ में यह प्रश्न तो महत्वपूर्ण है ही कि हम विशेष जागरूकता के साथ बच्चों की जन्म दर में कमी लाएँ किंतु यह प्रश्न भी महत्वपूर्ण है कि इस और विकास के सामान्य स्तर को बढ़ाएंँ, अर्थात जनसंख्या वृद्धि की दर 2001 से 2011 में 1.76 प्रतिशत वार्षिक वृद्धि दर से 3-4 गुना विकास की दर रखें और दूसरी और विकास का लाभ उन वर्गों तक पहुंचाए जो जनसंख्या वृद्धि के लिए अधिक जिम्मेदार है । मानव विकास के संदर्भ में यह बात स्पष्ट है कि किसी सख्त कार्यक्रम के द्वारा स्थाई तौर पर परिवर्तन नहीं किया जा सकता, जैसाकि हमने आपातकाल (1975-76) के दौरान परिवार कल्याण कार्यक्रम को सख्ति के साथ लागू करके जनमानस को आतंकित कर दिया था । हम साक्षरता, शिक्षा और आधारभूत सुविधाओं के द्वारा ही जनसंख्या-वृद्धि पर नियंत्रण करने की आशा कर सकते हैं किंतु हमारा गरीब तबका ही निरक्षरता और जनसंख्या- वृद्धि के दुष्चक्र में फंसा हुआ है । यद्यपि आर्थिक विकास जनसंख्या वृद्धि के गर्भनिरोधक के रूप में कारगर साबित हो सकता है, किंतु आर्थिक विकास को चमत्कारी ढंग से उठाया नहीं जा सकता है; जबकि परिवार कल्याण कार्यक्रम को एक व्यापक वास्तविक जन जागरण के अभियान के द्वारा प्रभावी बनाया जा सकता है । यदि राज्य सामयिक सेवाओं पर अधिक ध्यान केंद्रित करता है और माननीय व्यवहार के साथ जन जागरण और स्वास्थ्य संबंधी सेवाओं को नियमित करता है तो लोगों में परिवारों के आकर को छोटा रखने का विवेक पैदा किया जा सकता है । यद्यपि जनसंख्या की अधिकता से उत्पन्न समस्या पर नाभिकीय युद्ध (न्यूक्लियर वार) से भी बढ़कर रोक लगाना अत्यंत आवश्यक है किंतु रोक की प्रक्रिया जन-सहभागिता को उत्तेजित करके ही अपनाई जा सकती है ।

जनसंख्या-वृद्धि को सीमित करने के उपाय (नई जनसंख्या नीति-2000) :

केंद्र सरकार ने 15 फरवरी, 2000 को नई राष्ट्रीय जनसंख्या नीति की घोषणा की जिसमें सन 2045 तक जनसंख्या को स्थिर करने, दो बच्चों का मानदंड जारी रखने, राज्यों पर विशेष ध्यान देने के लिए प्रौद्योगिकी मिशन स्थापित करने, छोटे परिवार की अवधारणा को प्रोत्साहित करने वाली पंचायतों एवं जिला परिषदों को पुरस्कृत करने, बाल विवाह निषेध कानून को कड़ाई से लागू करने, गरीबी रेखा से नीचे जीने वाले दंपतियों के लिए ₹5000 का स्वास्थ्य बीमा करवाने, ग्रामीण क्षेत्रों में एंबुलेंस सेवा उपलब्ध कराने में सहायता देने, गर्भपात सुविधाओं का विस्तार करने, शिशु मृत्यु दर 3% करने, 14 वर्ष तक के बच्चों के लिए शिक्षा निःशुल्क व अनिवार्य करने एड्स को फैलने से रोकने आदि के प्रावधान किए गए हैं और प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में राष्ट्रीय जनसंख्या आयोग गठित किया गया है साथ ही जनसंख्या स्थिरीकरण कोष (100 करोड़ रुपये) भी स्थापित किया गया है । राजस्थान जैसे12 राज्यों के लिए विशेष कार्य योजना तैयार की गई है । नई जनसंख्या नीति में जनसंख्या नियंत्रण के स्वैच्छिक उपायों पर जोर दिया गया है, किंतु चीन की तरह बाध्यकारी कारी उपायों को सम्मिलित नहीं किया गया है, तथा जन जागरण के प्रसार मैं निष्ठ एवं गंभीरता का अभाव है । इसलिए जनसंख्या नियंत्रण की अपेक्षित गति अर्थात 2045 तक जनसंख्या को स्थिर कर देने का लक्ष्य प्राप्त करना संदेहास्पद है । You Read This Full Hindi Essay on Lokhindi.com

जनसंख्या नियंत्रण के संबंध में केरल ने एक विशेष अनुभव लिया है । केरल में साक्षरता दर (94%-2011) सर्वाधिक है तथा साक्षरता-वृद्धि के साथ साथ जनसंख्या-वृद्धि मैं कमी हुई है (प्रतिवर्ष वृद्धि दर 48% 2011) किंतु साक्षरता वृद्धि अन्य प्रदेशों में भी हुई जनसंख्या-वृद्धि मैं उस अनुपात में कमी नहीं आई । (हरियाणा-साक्षरता-77 प्रतिशत एवं जनसंख्या प्रतिवर्ष वृद्धिदर 1.99%) । इसलिए साक्षरता को परिवार नियोजन में बढ़ावा देने के लिए एक प्रभावी नियंत्रक तो माना जा सकता है, किंतु आधारभूत कारक नहीं । साक्षरता और समाज की सामान्य विकास दर दोनों मिलकर जनसंख्या वृद्धि में कमी कर सकते है । जनसंख्या नियंत्रण के लिए राष्ट्रीय विकास परिषद की एक समिति ने अनेक सुझाव दिए हैं, जिसे-सरकारी कर्मचारियों को दो बच्चे के सिद्धांत पर अमल करने संबंधी सेवा नियमों में संशोधन करना । इसी प्रकार राजस्थान में जनप्रतिनिधियों के लिए भी दो बच्चों से अधिक संतान होने पर चुनाव में भाग नहीं ले सकने को आधार माना गया है । जनसंख्या वृद्धि को लेकर पंचायतों को जागरूक करने से, इसमें लोगों की भागीदारी को महत्वपूर्ण माना गया है । Full Hindi Essay

जनसंख्या नियंत्रण : एक अभियान की आवश्यकता :

12वीं पंचवर्षीय योजना का उद्देश्य आबादी रोकना भी है । इसके लिए गर्भनिरोधक सामग्री, स्वास्थ्य सेवाएँ उपलब्ध कराने एवं जन जागरण के द्वारा इसे प्रभावी बनाना आवश्यक है । महिलाओं के स्वास्थ्य के बारे में और जागरूकता बढ़ाकर महिलाओं को सीमित परिवार रखने की समझ विकसित करना भी आवश्यक है । वस्तुतः परिवार नियोजन एक राष्ट्रीय कार्यक्रम है और इसका युद्ध स्तर पर क्रियान्वयन करने से इस राष्ट्रीय समस्या के निवारण में मदद मिल सकती है । लोकतंत्र में कोई भी सरकार जनसंख्या समस्या से सख्ती से नहीं निपट सकती इसलिए सरकारी तंत्र के अलावा गैर सरकारी संगठनों, धार्मिक संगठनों एवं राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय संगठनों को इस क्षेत्र में आगे आकर जन चेतना जागृत करने का सहनीय कार्य करना चाहिए । यदि हमने जनसंख्या वृद्धि पर नियंत्रण नहीं रखा तो पूंजीवाद और निजीकरण /उदारीकरण से ग्रस्त भारतीय समाज का एक बड़ा वर्ग अविकास और आर्थिक विषमता के दलदल में फँसता ही जाएगा । हमें गरीब तबके का विकास करके जनसंख्या को नियंत्रित करने का माहौल बनाना होगा तथा जनसंख्या नियंत्रण के वातावरण से विकास की गति को भी आगे बढ़ाना होगा ।

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Written by lokhindi
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