भारत में बेरोजगारी : जलता-उबलता प्रश्न : Essay Hindi

Essay Hindi – भारत में बेरोजगारी

Unemployment in India: Burns-Boiling Questions / भारत में बेरोजगारी : जलता-उबलता प्रश्न – Full Essay in Hindi | भारत में बेरोजगारी पर निबंध |


आधार-बिंदु :

  1. बेरोजगारी : एक बहुआयामी समस्या
  2. भारत में बेरोज़गारी का स्वरूप
  3. बेरोजगारी के आधारभूत कारण
  4. बेरोजगारी दूर करने के उपाय  You Read This Essay Hindi on Lokhindi.com
  5. बेरोजगारी-निवारण के लिए किए गए प्रयत्न
  6. बेरोजगारी दूर करने की दिशाएँ
  7. उपसंहार : सामाजिक, आर्थिक विडंबना से बचने की जुझारू कोशिश

बेरोजगारी : एक बहुआयामी समस्या : Essay Hindi

यद्यपि बेरोजगारी एक विश्वव्यापी समस्या है किंतु भारत जैसे जनसंख्या-बहुल एवं कम पूंजीवाले देश में इस उदारीकरण के दौर में यह विकराल रूप धारण किए हुए हैं । एक अल्प-विकसित अर्थव्यवस्था में तकनीकी ज्ञान एवं पूंजी का टोटा रहता है, इसलिए अल्प-रोजगार की अवस्था तो बनती ही रहती है जो दिखने में तो रोजगार कर रहे होते हैं किंतु किसी न किसी साधन के अभाव में वे अपनी क्षमता का पूरा उपयोग नहीं कर पाते, वे भी बेरोजगार होते हैं । भारतीय समाज में बेरोज़गार न केवल एक आर्थिक समस्या के रूप में रुप मे उभर रही है बल्कि यह व्यक्ति के सामने आत्मविश्वास, सामाजिक प्रतिष्ठान एवं उसके अपराध रहित सृजनशिल व्यक्तित्व के विकास के बाद के रूप में विद्यमान है । बेरोजगारी से व्यक्ति का सारा व्यक्तित्व नकारात्मक दिशा में चला जाता है तथा उसमें कुंठा, निराशा, विषाद, असुरक्षा और आक्रोश की भावना प्रबल होती जाती है जिसका परिणाम है हम आए दिन होने वाली आत्महत्याओं, चोरी-डकैती, बम-विस्फोट, आंतकवाद एवं अलगाववादी गतिविधियों में देखते हैं । दरअसल बेरोजगारी एक आर्थिक समस्या के साथ-साथ सांस्कृतिक, मनोवैज्ञानिक तथा प्रशासनिक भी है । अतः इस समस्या का व्यापक रूप से सामाजिक विचार करने की आवश्यकता है । Essay Hindi

भारत में बेरोजगारी का स्वरूप : Essay Hindi

पूंजी एवं तकनीकी ज्ञान के अभाव में या रोजगार के साधनों की पर्याप्त उपलब्धता न होने की स्थिति में यदि श्रमिक रोजगार नहीं प्राप्त कर पाता तो वह खुली बेरोजगारी से ग्रस्त होता है । भारत में पूंजी का प्रसाद जिस गति से हो रहा है उससे अधिक गति श्रमिकों की संख्या बढ़ती जा रही है, इसलिए खुली बेरोजगारी भी बहुत है और वह निरंतर बढ़ती जा रही है ।

भारत के रोजगार कार्यालयों में पंजीकृत बेरोज़गार चार करोड़ के लगभग है किंतु वास्तव में यह संख्या 15 करोड़ है । यदि एक व्यक्ति को उसकी योग्यताएं एवं क्षमता के अनुसार काम नहीं मिलता या उसको पर्याप्त समय के लिए काम नहीं मिल पता तो उसे अल्प बेरोजगारी कहते हैं । भारत में खेती से जुड़ा हुआ रोजगार मौसमी होता है, इसके अलावा श्रमिक उपयुक्त रोजगार न मिलने के कारण जो भी मिल जाए वह करता रहता है । इसलिए अल्प बेरोजगारी की समस्या भी बहुत ही व्यापक है । ऊपरी तौर पर तो एक व्यक्ति काम करता हुआ नजर आता है, उसको वेतन मिल जाता है किंतु वास्तव में वह किसी न किसी कारण से उत्पादन नहीं कर रहा होता है । मंदीकाल में अधिक उत्पादन से जुड़े लोगों को कम उत्पादन में धकेलना पड़ता है । इस तरह से प्रच्छन बेरोजगारी के शिकार होते जाते हैं । भारत में प्रच्छन बेरोजगारी भी बहुत हैं । भारत में बेरोजगारी का व्यापक रूप ग्रामीण क्षेत्रों में है । जनसंख्या बढ़ रही है, खेती और ग्रामीण उद्योगों का प्रसार कम हो रहा है, इसके कान प्रच्छन बेरोजगारी बढ़ती जा रही है । 20 वर्ष पहले 10 बीघा जमीन 5 आदमी काम कर रहे थे तो अब 20 वर्ष बाद उसी जमीन पर 8 आदमी काम कर रहे हैं, इस तरह तीन आदमी पर्सन रूप से बेरोजगार हैं गांव में ऐसी स्थिति बहुत है । बेरोजगारी गांँवों में 62% तथा शहरों में 38% है । फसल के दिनों में तो रोजगार मिल जाता है किंतु साल में आधे से अधिक समय में रोजगार नहीं मिलता, इस रूप में भी बेरोजगारी है । ग्रामीण बेरोजगारी में यह प्रच्छन एवं अल्प बेरोजगारी बहुत है । ग्रामीण क्षेत्रों में पर्याप्त रोजगार नहीं मिलने के कारण श्रमिक आसपास के बड़े कस्बों एवं शहरों में आ रहा है । ग्रामीण जनसंख्या के इस स्थानांतरण से शहरों में श्रम-संख्या बढ़ती जा रही है । शिक्षित बेरोजगारी की संख्या शहरों में अधिक है । मध्यम वर्ग में शिक्षित बेरोजगारी की संख्या गंभीर रूप धारण करती जा रही है । इस प्रकार शहरी क्षेत्र में खुली बेरोजगारी एवं अशिक्षितों की बेरोजगारी अधिक है । Essay Hindi

बेरोजगारी के आधारभूत कारण : Essay Hindi

प्रथम, तो भारत में बेरोजगारी का सर्वाधिक प्रमुख कारण बढ़ती हुई जनसंख्या है । जनसंख्या में वृद्धि तो स्वभाविक है, किंतु यदि पूंँजी एवं रोजगार के लिए आवश्यक तकनीकी ज्ञान का विकास जनसंख्या विकास की दर से कम होता है तो फिर जनसंख्या की वृद्धि बेरोजगारी का प्रमुख कारण बन जाती है । हम जिस गति से रोजगार बढ़ाते हैं उसकी दुगनी गति से बेरोजगारी बढ़ रही है । द्वितीय, कृषि क्षेत्र में विकास की गति धीमी होने से भी बेरोजगारी बढ़ती जा रही है । भारत में यद्यपि कृषि क्षेत्र की उत्पादकता अभी भी काफी कम है । भूमि सुधारों की प्रगति धीमी है, भू स्वामियों और कृषि श्रमिकों के संबंधों में सौहार्द नहीं है, साथ ही उन्नत बीजों, उर्वरकों, सिंचाई की सुविधाओं, कृषि यंत्रों आदि की कमी के कारण पर्याप्त रोजगार एवं श्रम की पर्याप्त उपलब्धता नहीं प्राप्त हो पाती है । तृतीय, भारत में कृषि, उद्योग, पूंँजी, तकनीकी ज्ञान का प्रसार एवं श्रम संख्या के बीच परस्पर समन्वय एवं नियोजन के अभाव में भी बेरोजगारी की स्थिति बनी रहती है । किन्हीं व्यवसाय मैं शर्म की बहुलता है, किन्हीं व्यवसायों में श्रमिक मिलते ही नहीं, तकनीकी ज्ञान की कमी है । किन्ही व्यवसायों में पूंजी का अधिक्य है, कहीं पूंँजी की भारी कमी है । डेयरी, मछली पालन, मुर्गी पालन का पर्याप्त विकास नहीं हुआ है । इसके अलावा सड़कों, परिवहन-साधनों, संचार साधनों का भी पर्याप्त विकास नहीं होने से रोजगार को लेकर क्षेत्रीय असंतुलन बहुत हैं । अंतः नियोजन एवं संतुलित विकास की कमी के कारण बेरोजगारी है । चतुर्थ, रोजगार के अनुकूल शिक्षा नहीं होने के कारण, व्यवसाय एवं तकनीकी शिक्षा की कमी के कारण भी शिक्षित बेरोजगारी की बहुतायत है जबकि बहुत से उद्योग अकुशल श्रमिको से चलाने पड़ रहे हैं । पंचम, सरकारों द्वारा बेरोजगारी दूर करने के कार्यक्रमों में भी एक अगंभीरता है एवं लोकप्रियता प्राप्त करने के प्रयास ही अधिक हैं । लोगों में सही रोजगार के प्रति चेतना पैदा करके स्थानीय स्तर पर उनके समाधान ढूंढने के प्रयासों का अभाव है । विभिन्न सरकारी योजनाओं से रोजगार के नाम पर झूठे दस्तावेजों के आधार पर लोगों में और बिचौलियों में पैसा तो बंट जाता है किंतु बेरोजगारी दूर करने में उससे मदद नहीं मिलती । षष्ठ, वैश्विक उदारीकरण तथा विश्व बैंक के दबाव में अर्थव्यवस्था में आ रही गिरावट, मंदी, राज्यों के बढ़ते कर्ज, औद्योगीकरण की दर में कमी बल्कि देसी बड़े उद्योगों एवं कुटीर उद्योगों के बंद या बीमार होते जाने, विनिवेश की नीति तथा सरकारी एवं गैर सरकारी क्षेत्रों में बराबर होती जा रही छँटनी से बेरोजगारी बराबर बढ़ती जा रही है ।

योजना आयोग द्वारा जारी ‘राष्ट्रीय मानव विकास रिपोर्ट’ ने चौंकानेवाले तथ्य प्रस्तुत करते हुए बताया है कि सर्वाधिक साक्षर केरल शिक्षित बेरोजगारी में सर्वोपरि है । कृषि, लघु व कुटीर उद्योगों की हालत खस्ता होने से शहरों की तुलना में गांव में बेरोजगारी अधिक ज्यादा है ।

भारत में बेरोजगारी के ये प्रमुख कारण है जिनको दूर करने के लिए व्यापक तौर पर एवं गंभीरता से प्रयास करने की जरूरत है, नहीं तो इससे जो सामाजिक-आर्थिक नैतिक समस्याएँ उठ खड़ी हो रही है उससे भारतीय समाज का आधारभूत ढांँचा ही नष्ट भ्रष्ट होने की कगार पर है ।

Full Essay Hindi – भारत में बेरोजगारी

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बेरोजगारी निवारण के लिए किए गए प्रयत्न : Essay Hindi

पूंजी निवेश एवं ब्यास देने के नियमों में हमें और अधिक परिवर्तन करने की आवश्यकता है ताकि लघु उद्योगों को कम ब्याज दर पर पूंँजी उपलब्ध हो सके तथा अधिकाधिक आत्मनिर्भरता के साथ श्रमिक रोजगार में संलग्न हो सके । यद्यपि शिक्षित बेरोजगारों को रोजगार के अवसर उपलब्ध कराने हेतु सरकार ने वर्ष 1983-84 में ‘शिक्षित बेरोजगार युवा स्वरोजगार योजना’ प्रारंभ की थी । ‘नेहरू रोजगार योजना’, ‘रोजगार गारंटी कार्यक्रम’ आदि कार्यक्रम भी क्रियान्वित किए गए हैं । इसी तरह राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार कार्यक्रम, ‘ट्रायसेम’ (तकनीकी परीक्षण देने हेतु) योजना, ग्रामीण भूमिहीन रोजगार गारंटी कार्यक्रम, एकीकृत ग्राम विकास कार्यक्रम, नया स्वरोज़गार कार्यक्रम भी चलते रहे हैं । भूमिहीन श्रमिकों तथा सीमांत किसानों को कृषि कार्यों तथा सम्बद्ध व्यवसायियों के लिए रियायती दरों पर ऋण व्यवस्था है । फसल बीमा योजना एवं किसान क्रेडिट कार्ड योजना शुरू गई है । समन्वित ग्रामीण विकास कार्यक्रम के अंतर्गत पशु-पालन, रेशम के कीड़े पालने, हस्तशिल्प, हथकरघा आदि का विकास किया गया है; सड़क निर्माण, बांँध व पुल बनाना, लघु सिंचाई परियोजनाएँ, गोदामों का निर्माण, आवास-गृहों का निर्माण आदि को सम्मिलित किया गया है । राष्ट्रीय निर्माण रोजगार कार्यक्रम 1980 में शुरू किया गया है । देश के बेरोज़गार युवाओं की मदद के लिए ‘व्यवसाय प्रशिक्षण परियोजना’ भी आरंभ की गई है वह इससे काफी बेरोजगारी को लाभ भी प्राप्त हो रहा है किंतु एक तो इन योजनाओं का दुरुपयोग बहुत हो रहा है, दूसरी ये अपर्याप्त भी बहुत है । अंतः इन योजनाओं के उद्देश्य ठीक तरह पूरा नहीं हो रहा है ।

बेरोजगारी दूर करने की दिशाएंँ : Essay Hindi

भारतीय अर्थव्यवस्था के संदर्भ में हमें बेरोजगारी को दूर करने के लिए भिन्न दंग से सोचना होगा । हमें हमारी शिक्षा व्यवस्था को जीवन की समस्याओं का उत्तर तलाशनेवाली बनाना हुआ, उसे व्यवसायिक एवं तकनीकी बनाना होगा जो शिक्षित व्यक्ति को एक सक्षम श्रमिक बनने का हौसला दे सके । हमें दूरगामी उपायों के रूप में जनसंख्या पर नियंत्रण रखना होगा अन्यथा हमारे वर्तमान प्रयत्नों की इतनी स्पष्ट सीमा है कि हम जनसंख्या की वर्तमान गति के रहते बेरोजगारी दूर कर ही नहीं पाएंँगे । हमें अधिक पूंजी की अपेक्षा करनेवाले उद्योगों के साथ-साथ कम पूंजीवाले लघु उद्योगों को प्रोत्साहित करना ही होगा । पश्चिमी उद्योगों का ढांचा श्रम की बचत एवं पूंजी की बहुलायत पर आधारित है इस कारण पश्चिमी देशों में भी बेरोजगारी बढ़ती जा रही है किंतु भारत जैसे श्रम बहुत देशों में ऐसी तकनीक एवं प्रौद्योगिकी कारगर सिद्ध नहीं हो सकती । अंतः उदारीकरण के नाम पर भारतीय प्रौद्योगिकी का जो पश्चिमीकरण हो रहा है वह बेरोजगारी बढ़ाने की दृष्टि से काफी चिंताजनक है ।

भारत में बेरोजगारी विकेंद्रीकृत अर्थव्यवस्था के जरिए ही दूर हो सकती है अर्थात कृषि एवं ग्रामीद्योग मे कम पूंजी वाली स्थानीय तकनीक का विकास करना, रोजगार बढ़ाने वाले आर्थिक ढांचे को विकसित करना; जैसे- सड़क यातायात के साधन, सिंचाई की व्यवस्था, संग्रह- सुविधाओं का निर्माण आदि । दस्तकारी के अधुनातन तकनीक आधारित तरीके खोजने के भी प्रयास होने चाहिए । श्रमिक विकास के लिए शिक्षा के अलावा स्वास्थ्य, आवास आदि की व्यवस्थाओं का विकास श्रमिक कुशलता को बढ़ाने में मदद करेगा । अंतः केंद्र एवं राज्य सरकारों को इस लक्ष्य को प्राथमिकता के साथ लेना चाहिए । भूमिहीन मजदूरों, छोटे किसानों, महिलाओं एवं शहर के गरीब व्यक्तियों को ध्यान में रखकर एवं क्षेत्र विशेष की वास्तविक स्थितियों, संसाधनों का सर्वेक्षण कर उसके अनुरूप ही केंद्रित योजनाएं बनानी चाहिए ।

उदारीकरण की चपेट में आई भारतीय अर्थव्यवस्था को पूंजी बहुल केंद्रिकृत पश्चिमी विकास के मॉडल से उभारना चाहिए तथा तकनीक का सार्वजनिकरण कर नवीनतम तकनीक आधारित चीन-जापान जैसे कुटीर उद्योगों का जाल बिछाकर रोजगार के अवसर बढ़ाने चाहिए । अब रोजगार शिक्षा से कम, किंतु राज्यों के विकास और श्रम कौशल से अधिक जुड़ा हुआ है । देश के विकास की रणनीति पूंँजी आधारित कम और श्रम व उत्पादकता उन्मुख अधिक होनी चाहिए । हमें रोजगार अवसरों में वृद्धि के लिए व्यवसायिक परीक्षण व श्रम कौशल उन्नयन को ध्यान में रखना चाहिए । आज देश में 5% लोग ही व्यवसायिक प्रशिक्षण प्राप्त कर श्रम कुशल है जबकि औद्योगिक देशों में 60 से 80% हैं ।

उपसंहार : सामाजिक, आर्थिक विडंबना से बचाने की जुझारू कोशिश :

उपयुक्त प्रयत्नों के बावजूद सरकारी स्तर पर बेरोजगारी दूर करने के लिए और अधिक एवं ठोस कार्य की आवश्यकता है । दसवीं पंचवर्षीय योजना में बेरोजगारी दूर करने को प्रमुख लक्ष्यों में रखा गया है तथा प्रतिवर्ष 1 करोड़ लोगों को रोजगार देने का संकल्प व्यक्त किया गया है किंतु फिलहाल बेरोजगारी दूर करना केंद्र एवं राज्य सरकारों एवं विरोधी दलों के लिए राजनीतिक गुफा अधिक है, बेरोजगारी को वोट बैंक में बदलने का घोषणापत्रीय नारा अधिक है, गंभीर राजनीतिक इच्छाशक्ति कम किंतु भारतीय झोपड़ियों पर लिखी हुई इस काली इबारत को अच्छी तरह पढ़ लेना चाहिए कि बेरोजगारी से अधिक बड़ा विस्फोटक सामाजिक आर्थिक और राजनीतिक बम भारतीय समाज में कोई नहीं कोई नहीं है । You Read This Essay Hindi on Lokhindi.com

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Written by lokhindi
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