दूसरी पीढ़ी के आर्थिक सुधार – Full Essay Hindi – निबंध

Essay Hindi – आर्थिक सुधार

Second Generation Economic Reform / दूसरी पीढ़ी के आर्थिक सुधार – Full Essay in Hindi | भारत उदारीकरण के बाद आर्थिक सुधार पर निबंध |


आधार बिंदु :
1. भूमिका: उदारीकरण और ‘दूसरी पीढ़ी के आर्थिक सुधार’
2. प्रथम पीढ़ी के आर्थिक सुधार
3. दूसरी पीढ़ी के आर्थिक सुधार का आशय
4. लिए गए आर्थिक निर्णय 
5. आर्थिक सुधारों की समीक्षा
6. उपसंहार- संभावनाएंँ एवं संकाएँ

भूमिकाः उदारीकरण और ‘दूसरी पीढ़ी के आर्थिक सुधार’ : Full Essay Hindi 
नवें दशक के अंत में भारतीय अर्थव्यवस्था पर राजकोषीय घाटे के बढ़ने, विदेशी मुद्रा-भंडार के छीजने तथा सार्वजनिक क्षेत्र के लगातार घाटे में जाते रहने के कारण सन् 1991 में भारत सरकार ने उदारीकरण के नाम पर भारतीय अर्थव्यवस्था को जो नई करवट देने का उपक्रम शुरू किया था | उसको और व्यापकता एवं गति देने के लिए ठीक एक दशक बात कुछ और नए आर्थिक निर्णय लिए गए जिन्हें ‘दूसरी पीढ़ी के आर्थिक सुधार’ के नाम से जाना जाता है । फलस्वरुप भारतीय अर्थव्यवस्था में आत्मविश्वास का नया संचार हुआ है जो कुछ भी पेचीदगियाँ और आशंकाएं भी बढ़ी है । अर्थव्यवस्था के इस नए दौर के परिप्रेक्ष्य में भारतीय अर्थव्यवस्था के इन दूसरी पीढ़ी के सुधारो की समीक्षा करना बहुत महत्वपूर्ण है । You Read This Full Essay Hindi on Lokhindi.com

प्रथम पीढ़ी के आर्थिक सुधार : Full Essay Hindi 
प्रथम पीढ़ी के आर्थिक सुधारों में मिश्रित अर्थव्यवस्था के नियंत्रित चक्र की समाप्ति कर खुली पूंँजीवादी अर्थव्यवस्था को अपनाया गया था, फलस्वरूप पिछले दशक में सकल देशीय उत्पाद प्रो. राजकृष्ण द्वारा प्रसारित ‘हिंदू वृद्धि दर’ (3-4 प्रतिशत) से बढ़कर 6 प्रतिशत (1999-2000) हो गया, विदेशी मुद्रा रिजर्व बहुत बढ़ा है, आयात-निर्यात अनुपात उन्नत हुआ है, थोक कीमत सूचकांक में वृद्धि सीमित हुई है, गरीबी रेखा से नीचे रहने वालों की संख्या 36 प्रतिशत से 29.8 प्रतिशत रह गई है (2009-10) । अंतः पिछले दो दशकों में अर्थव्यवस्था में स्थिरता कायम हुई है और अब देश ‘संकट परिचालित आर्थिक सुधारों’ की अपेक्षा ‘विकास चालित आर्थिक सुधारों’ की ओर बढ़ रहा है । यद्यपि यहां यह भी उल्लेखनीय है की आर्थिक सुधारों के इसी दौर में गरीबों की कुल संख्या में वृद्धि हुई है, आर्थिक विषमता और बेरोजगारी बढ़ी है, स्थानीय भारी एवं लघु उद्योग घाटे, मंदी और तालाबंदी के शिकार हुए है । Full Essay Hindi

दूसरी पीढ़ी के आर्थिक सुधार का आशय : Full Essay Hindi 
प्रथम पीढ़ी के आर्थिक सुधारों के बावजूद गरीबी के अभिशाप से मुक्त होने के लिए हमें 9-10 प्रतिशत विकास-दर चाहिए, चीन में 8-10 प्रतिशत हैं । वार्षिक प्रत्यक्ष निवेश बढ़ना चाहिए, राजकोषीय घाटे में कमी होनी चाहिए । इन सब आर्थिक आकांक्षाओं को मद्देनजर रखते हुए राजकोषीय घाटे में कमी करने, ब्याज दरों एवं सरकारी खर्च में कमी करने, निजीकरण में तेजी, श्रम कानूनों में संशोधन और ऊर्जा क्षेत्र को संकट से उबारने, सरकार के खर्च में कमी करने आदि को लेकर अप्रैल, 2001 से जो आर्थिक सुधार घोषित किए हैं उनका नाम ‘दूसरी पीढ़ी के सुधार’ दिया गया हैं |  You Read This Full Essay Hindi on Lokhindi.com

दूसरी पीढ़ी के आर्थिक सुधारों के अंतर्गत लिए गए आर्थिक निर्णय : Full Essay Hindi 
भारत सरकार ने वर्ष 2001-2002 में राजकोषीय घाटे को 4.7 प्रतिशत (वर्ष 2000 2001 में 5.1 प्रतिशत) तक सीमित रखने का निर्णय लिया था, बजट की ब्याज दरों में कई बार कमी की गई थी, रिजर्व बैंक ने भी ब्याज दरों में कमी की, सरकारी कर्मचारियों में 10 प्रतिशत की कमी करने की घोषणा की गई, स्वैच्छिक सेवा-निवृत्ति की योजना लागू की गई, सरकारी कंपनियों के निजीकरण को गति दी गई, कुछ कंपनियों को निजी क्षेत्र को बेचा गया, सरकार ने 1000 से कम श्रमिकोंवाले कारखानों में ‘ले ऑफ’ और छंटनी आसान कर दी, ठेके पर कर्मचारियों को रखना सुगम बनाया, आगामी वर्षों में अतिरिक्त बिजली पैदा करने का लक्ष्य रखा गया, बिजली क्षेत्र का निजीकरण किया गया । कृषि क्षेत्र के ऋण सुविधा को बढ़ाकर 66,000 करोड़ कर दिया गया, प्रधानमंत्री ग्रामोदय योजना एवं प्रधानमंत्री सड़क योजना की राशि-आवंटन में वृद्धि की है । इस प्रकार पिछले दशक में शुरू किए गए आर्थिक सुधारों को और व्यापक रूप देने की कोशिश की गई ।

Full Essay Hindi – दूसरी पीढ़ी के आर्थिक सुधार

Full Essay Hindiभूमंडलीकरण और भारत : हिंदी निबंध

नए आर्थिक सुधारों की समीक्षा : Full Essay Hindi 
दूसरी पीढ़ी की आर्थिक सुधारों के तो परिणाम धीरे-धीरे सामने आ रहे हैं । वस्तुतः ये आर्थिक सुधार जिस आकांक्षा से शुरू किए गए हैं वह सराहनीय है फिर भी हम विश्व अर्थव्यवस्था से जिस तरह रूबरू हुए हैं उससे हमारी आर्थिक कठिनाइयांँ कुछ सुलझी हैं तो कुछ बढ़ी भी है । यद्यपि हमारा विदेशी मुद्रा भंडार और आर्थिक विकास दर बढ़ी है, मुद्रास्फीति तो 6 से 8 प्रतिशत के बीच है । इसके बावजूद विदेशी इक्विटी की राशि बड़ी है पर विदेशों में भेजा गया लाभांश उससे भी अधिक बड़ा है । कृषि एवं उद्योग क्षेत्र की वृद्धि दर घटी है । 2001 से 2012 में जनसंख्या 17.5 प्रतिशत बढ़ी किंतु रोजगार केवल 7 प्रतिशत बढ़ा है, व्यापार संतुलन का घाटा भी बढ़ा है । रिजर्व बैंक के अनुसार उदारीकरण के बावजूद अपेक्षित निवेश नहीं हुआ, विदेशी कंपनियां आर्थिक क्षेत्र की बजाय उपभोक्ता क्षेत्र में आई, अनेक भारतीय कंपनियों का प्रबंध विदेशी हाथों में चला गया । वस्तुतः उदारीकरण के इस दौर में आर्थिक और राजनीतिक शक्ति का संकेद्रण बढ़ा है, विदेश में बड़ी घरेलू एवं बहुराष्ट्रीय कंपनियों की ताकत बढ़ी है, अर्थात् नियोजित विकास की अवधारणा कमजोर हुई है तथा आर्थिक विषमता एवं क्षेत्रीय असंतुलन बढ़ा है । दूसरी पीढ़ी के सुधारों को इन आर्थिक पेचिदगियों से टकराना है, किंतु फिलहाल दूसरी पीढ़ी के सुधारों की प्रकृति से लगता नहीं कि वह देश की उक्त समस्याओं का समाधान कर सकेंगे । Full Essay Hindi

उपसंहार-संभावनाएंँ एवं शंकाएँ :  
विश्व अर्थव्यवस्था के इसी पूंँजीवादी विस्तार के दौर में भारतीय अर्थव्यवस्था को अलग-थलग तो नहीं रखा जा सकता । दूसरी पीढ़ी के आर्थिक सुधारों से भारतीय अर्थव्यवस्था को कुछ क्षेत्रों में ‘ग्रीसिंग’ का कार्य होगा, हमारी प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी, गुणवत्ता के साथ उत्पादकता भी कुछ बढ़ेगी, आउटसोर्सिंग की गतिविधियों का विस्तार कर हम विश्व अर्थव्यवस्था में अपनी साख भी स्थापित कर रहे हैं, इसे और सुदृढ़ करेंगे किंतु हम बिना नियोजित आर्थिक तैयारी के पहले से विकसित अर्थव्यवस्थाओं के वर्चस्व के आगे झोंक दिए गए हैं अतः अमेरिका, यूरोप, जापान, चीन, कोरिया आदि देशों की अर्थव्यवस्थाओं की चुस्ती हमारी सुस्ती का दोहन करेगी, अभी भी कर रही हैं । हम जनसंख्या बहुल, बेरोजगारी से अभिशप्त, गरीब देश के आर्थिक नियोजन को आम भारतीय नागरिक की जरूरत और क्षमता के परिपेक्ष्य में देखना चाहिए नहीं तो सकल विकास-दर तो बढ़ेगी किंतु आर्थिक विषमता और दरिद्रता भी बढ़ेगी । अतः हमें हर हालत में रोजगार केंद्रित अर्थव्यवस्था को पुनर्रचित करना होगा वरना यह दूसरी पीढ़ी के आर्थिक सुधार बनेंगे संपन्न वर्ग के लिए तो सुधार और शेष के लिए अभिशाप ही साबित होंगे ।

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Written by lokhindi
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