भूमंडलीकरण और भारत : Essay – हिंदी निबंध

भूमंडलीकरण और भारत : Essay

Globalization and India/ भूमंडलीकरण : शोषण का नया आक्रमण | Essay in Hindi, भूमंडलीकरण और भारत – in Hindi | 


आधार-बिंदु
1. भूमंडलीकरण : एक गंभीर प्रश्न
2. भूमंडलीकरण : पूंजीवादी व्यवस्था का प्रसार
3. भूमंडलीकरण और सी.टी.बी.टी : एक दुरभिसंधि
4. भूमंडलीकरण : सभी अर्थव्यवस्थाओं की खुली दौड़
5. भूमंडलीकरण : नए सांस्कृतिक संकट का उद्घोष
6. विकासशील देशों के क्षेत्रीय-संगठनों की सक्रियता की आवश्यकता

भूमंडलीकरण ( वैश्वीकरण- ग्लोबलाइजेशन ) : एक गंभीर प्रश्न
समस्त विश्व एक ‘ ग्लोब विलेज ’ होता जा रहा है | सन 1985 में रूस के तत्कालीन राष्ट्रपति गोर्वाचोव ने कहा था कि विश्व के सभी समाज आर्थिक प्रक्रियाओं के आदान-प्रदान एवं त्वरित सूचना तंत्र की प्रक्रिया के कारण सब इतनी निकटता से जुड़ गए हैं, कि अब संसार की न केवल दूरी कम हो गई है, बल्कि एक-दूसरे को प्रभावित करने की क्षमता भी बढ़ गई है | संचार के साधनों ने संसार को रेडियो और टेलीविजन में बंद करके रख दिया है; किंतु पारस्परिक आदान-प्रदान की संभावनाओं के बढ़ने से सारे समाजों को एक जैसा ही देखना तथा उनकी  सांस्कृतिक, राजनीतिक एवं आर्थिक असीमताओ को पूरी तरह से ढहा देना सामाजिक प्रक्रिया की दृष्टि से जल्दबाजी ही होगी | वस्तुतः पश्चिम के संपन्न राष्ट्रों द्वारा उठाए गए भूमंडलीकरण के इस नारे को विकासशील और अविकसित देशों को बहुत गंभीरता से लेने की आवश्यकता है |

भूमंडलीकरण : पूंजीवादी व्यवस्था का ही  प्रसार
कार्ल मार्क्स ने पूंजीवादी को एक विश्वव्यापी व्यवस्था के रूप में देखा था | किसी एक राष्ट्र की व्यवस्था के रूप में नहीं, इसलिए भूमंडलीकरण पूंजीवादी व्यवस्था का ही स्वाभाविक विकास है | अतः पूंजीवादी व्यवस्था की बढ़ती जा रही सामर्थ्य के साथ-साथ उसके शीघ्र प्रसारी दुष्प्रभाव को देखते हुए भी भूमंडलीकरण पर विचार करना चाहिए | विश्वा में ज्यो-ज्यो तकनीकी विकास बढ़ता जा रहा है | त्यों-त्यों  पूंजीवादी व्यवस्था का प्रसार तथा भूमंडलीकरण की प्रक्रिया तीव्रतर होती जा रही है और यह प्रक्रिया विकसित देशों में इतनी तीव्र और प्रभावी है कि पूंजीवादी व्यवस्था के दुष्प्रभाव से बचने के लिए अब वे अविकसित तथा अल्पविकसित देशों को इसमें शामिल करना चाहते हैं; क्योंकि अविकसित एवं शोषित अर्थव्यवस्थाओं के बिना पूंजीवादी अर्थव्यवस्था का कोई अर्थ नहीं रह जाता | निबंध भूमंडलीकरण और भारत Essay

पूंजीवादी व्यवस्था कमोवेस दुनिया के सभी देशों में फैलती जा रही है तथा वह अपने अगले पड़ाव में सभी देशों को आपस में भी जोड़ती जा रही है | जिस प्रकार पूंजीवादी व्यवस्था में पूंजी एक व्यक्ति के पास संग्रहित होती है तथा अन्य व्यक्ति उस पूंजी से जुड़कर अपने श्रम का निवेश करते हैं; किंतु सबसे अधिक मुनाफा पूंजीपति के पास ही चला जाता है | उसी प्रकार भूमंडलीकरण की व्यवस्था में पूंजी से संपन्न देश उत्पादक के केंद्र होते हैं तथा अन्य देशों को उस उत्पादन प्रक्रिया में कच्चे माल और श्रम के रूप में शामिल किया जाता है और उसका अधिकांश मुनाफा पूंजी संपन्न देशों के पास चला जाता है | इस प्रकार पूंजीवादी व्यवस्था जैसे-जैसे आर्थिक विकास की प्रक्रिया को तेज करती है, वैसे-वैसे गैर-बराबरी, शोषण एवं उपभोक्तावाद को बढ़ाती है | भूमंडलीकरण की प्रक्रिया में अल्पविकसित देशों में तकनीकी विकास की प्रक्रिया तो तेज होती है; किंतु गरीब व अमीर देशों के बीच समानता तथा शोषण की प्रक्रिया भी तेज होती जाती है | जिस प्रकार पूंजीवादी व्यवस्था में विकास के परिप्रेक्षय मैं नीतिगत एवं जन कल्याण का विशेष महत्व नहीं होता | उसी प्रकार भूमंडलीकरण की प्रक्रिया में गरीब देशों को उन्नत करने का भी कोई सोच नहीं होता | भूमंडलीकरण की प्रक्रिया में तकनीकी विकास इतना अधिक विशेषज्ञतामुल्क होता है कि अविकसित देशों के मजदूर प्राय अकुशल श्रमिक के रूप में ही अपना स्थान बना पाते हैं और वह भी बहुत कम संख्या में इस प्रकार अविकसित देशों का वह अर्थतंत्र जो हर व्यक्ति के उत्पादन से, भले सीमित मात्रा में ही सही, जुड़ा हुआ होता है, वह अंततः नष्ट हो जाता है | इस प्रकार भूमंडलीकरण को पूंजीवादी व्यवस्था के विस्तार के रूप में देखना चाहिए तथा इससे विकसित देशों के हित को ध्यान में रखकर नहीं; बल्कि अविकसित देशों के संतुलित विकास को केंद्र में रखकर अपनाया जाना चाहिए | निबंध भूमंडलीकरण और भारत पर 

भूमंडलीकरण और सी.टी.बी.टी : एक दुरभिसंधि
ज्ञान एवं तकनीक का विकास प्रभुत्व का सूचक है | आधुनिक विश्व में तो यह बहुत ही चिलचिलाता -सा सत्य है |  पिछले 300- 400 वर्षों के विश्व इतिहास को देखें तो तकनीकी विकास ने दुनिया के कतिपय आधुनिक देशों को अन्य देशों की तुलना में अधिक संपन्न व शक्तिशाली बनाया है, तो सामरिक सामर्थ्य ने उन्हीं विकसित देशों को शक्ति एवं महाशक्ति के रूप में स्थापित किया है | अमेरिका और रूस के विशेष रूप से महाशक्ति बनाने का मुख्य आधार सामरिक शक्ति का ही विकास है | सामरिक शक्ति के आधार पर अन्य देशों पर वर्चस्व स्थापित किया जा सकता है, और किया जाता है, आधुनिक युग में तो सामरिक हथियार न केवल अन्य देशों पर दबदबा बनाए रखने में, बल्कि अपने आर्थिक व्यापार को बढ़ाने के साधन के रूप में भी इस्तेमाल किए जाते हैं | इस प्रकार विकसित देशों द्वारा हथियारों के व्यापार के लिए एव अपना राजनीति, आर्थिक, सांस्कृतिक वर्चस्व स्थापित करने के लिए कमजोर देशों को आपस में लड़ाने की कूटनीतियों का संचालन किया जाता है, और इस तरह विकसित देशों द्वारा अपना व्यापारिक एवं सामरिक वर्चस्व बनाए रखा जाता है | भूमंडलीकरण की प्रक्रिया में ही सी.टी.बी.टी  जेसी दुरभिसंधि के सामने सारे विश्व को झुका लेने तथा यह सिद्ध करने की कुछ देश तो परमाणु हथियार रख सकते हैं; किंतु अन्य उसमें आगे प्रगति नहीं कर सकते, विश्व के शेष देशों पर कुछ देशों का सामरिक एवं उसके जरिए आर्थिक वर्चस्व रखने तथा निरंतर कमजोर देशों के शोषण की आर्थिक प्रक्रियाओं को जारी रखने का षड्यंत्र है |  भूमंडलीकरण और भारत Essay

 Essay in Hindi :भूमंडलीकरण और भारत

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भूमंडलीकरण : सभी अर्थव्यवस्थाओं की खोली दौड़
तकनीकी का जिस तरह से विकास हुआ है, और होता जा रहा है | उसके आधार पर विकसित देशों द्वारा यह तर्क दिया जाता है जो प्राय: अन्य देशों द्वारा भी सहज ही स्वीकार भी कर लिया जाता है, कि तकनीक विकास के प्रभाव से कोई भी देश बच नहीं सकता  अर्थात यदि सारा विश्व सूचना-प्रसार के माध्यम से टेलीविजन के डिब्बे में बंद हो सकता है, या जुड़ सकता है, तो फिर अर्थव्यवस्थाएं क्यों नहीं; किंतु विश्वा में अर्थव्यवस्थाओं के विविध स्तर है एवं मानव शक्ति तथा पूंजी के सह-संबंधो के इतने विविध संदर्भ है तथा वे आपस में इतने भिन्न है कि उनको समान रूप से देखना और समान रूप से जोड़ देना यह विश्व अर्थव्यवस्था को बहुत सरलीक्रत रूप से समझना है | गरीबी, बेरोजगारी, शिक्षा तथा सांस्कृतिक परंपराओं से भिन्नता है तथा एक देश की भौतिक संपदा और उसके मानवीय संसाधन दूसरे देशों से बहुत भिन्न है | इन बातों को लेकर विकसित देशों और विकासशील देशों में बहुत अधिक अंतर है | विकासशील देशों में जनसंख्या का घनत्व बहुत अधिक है, शिक्षा, स्वास्थ्य एवं तकनीकी विकास बहुत कमजोर है तथा पूंजी की भारी कमी है | पूंजी के अलावा मानव विकास के लिए आवश्यक न्यूनतम आधारभूत सुविधाएं विकासशील देशों की एक बहुत बड़ी जनसंख्या को उपलब्ध नहीं है, इसलिए वे देश ना केवल  पिछड़े हैं बल्कि उनकी विकास की गति भी बहुत धीमी है | ऐसी स्थिति में भूमंडलीकरण के नाम पर बिना किसी रोक-टोक के, विकास के लिए अतिरिक्त प्रयत्नों को ध्यान में रखे बिना सब देशों के, सब लोगों को, समान रूप से, एक आर्थिक प्रक्रिया से जोड़ देना एक खतरनाक दौड़ में सबको शामिल कर देना है | इसलिए हर देश की अपनी स्थितियों का आकलन कर उनके अनुसार आर्थिक विकास की प्रक्रियाओं को विकसित करने के अब तक के मॉडल पर पुनर्विचार करना चाहिए; किंतु उसे भूमंडलीकरण के द्वारा एक साथ, एकदम बदल नहीं देना चाहिए | विकासशील देशों को आर्थिक सहयोग के नाम पर अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष, विश्व बैंक तथा हर विकसित देश द्वारा दी जाने वाली थोड़ी सी आर्थिक सहायता और उसके बदले में उन्हीं देशों का किया जाने वाला जमकर आर्थिक शोषण और इस प्रकार की सहायता करने के ऐसे छलावे से अविकसित देशों का विकास नहीं हो सकता | यह पिछले 50 वर्षों के उदारपूर्वक दिए गए सहयोग से सिद्ध हो चुका है | हर विकासशील देश को अन्य से सहायता लेकर भी, अपने बूते पर, अपनी दृष्टि से, विकास करना होगा, इसलिए भूमंडलीकरण हर देश को अपने विकास के मॉडल में सहायता प्राप्त करने का अवसर देने के लिए न तो उपयुक्त है; किंतु अपनी विकास प्रक्रिया और यहां तक की जीवन प्रक्रिया पर भूमंडलीकरण का रोलर घुमाकर विकसित देशों की अर्थव्यवस्थाओं को ही और अधिक मजबूत करने की दृष्टि से नहीं | विकसित देशों द्वारा विकासशील देशों को दी जाने वाली सहायता बलि के बकरे की अच्छी चराई कराने से भी नहीं है |  भूमंडलीकरण और भारत Essay

भूमंडलीकरण : एक नए सांस्कृतिक का उद्घोष
भारतीय चिंतन में “ वसुधेव कुटुंबकम” ( वसुधा-पृथ्वी, एक कुटुंब ही है ) तथा यत्र विश्व “ भवतयेक-नीडम ” ( यह विश्व घोसले के रूप में है ) कहा गया है तथा इस दुनिया को अलग-अलग संस्कृतियों का एक परिवार और घोंसला ही माना गया है; कितू इस चिंतन में और भूमंडलीकरण में जमीन आसमान का अंतर है | भारतीय चिंतन सभी देशों को एक कुटुंब के सदस्य के रूप में देखता है, जिसका आधार परिवार के एक सदस्य द्वारा दूसरे सदस्य का सहयोग है, जबकि भूमंडलीकरण का परिप्रेक्षय बिना किसी बाधा के सारी दुनिया पर विकसित देशों की अर्थव्यवस्था को   थोपा जाना है | जिसका परिणाम समर्थों द्वारा असमर्थों का शोषण ही है | भूमंडलीकरण के दौर में ही पेटेंट कानून सामने आया है, जिसमें किसी उत्पाद पर एक व्यक्ति व कंपनी विशेष का अधिकार होने लगा है | इस प्रकार ज्ञान एवं तकनीक पर यह जो एक व्यक्ति या व्यक्ति समूह की वर्चस्वता है, यह विकास करने की स्वतंत्रता की प्रक्रिया का सूचक नहीं, बल्कि यह व्यापार और शोषण का प्रतीक है |

भूमंडलीकरण के समर्थक लोग सारे विश्व को एक जैसा देखना चाहते हैं | दुनिया में सब लोगों के खानपान, रहन-सहन, और उपभोग के तरीके एक समान हो जाएं ताकि सारी दुनिया के लोग एक जैसी चीज का उपयोग करने लगे और उनका उत्पादन बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा किया जाकर सारी दुनिया के उत्पादन, वितरण एवं उपभोग को नियंत्रित किया जा सके, और इस तरह न केवल सभी देशों की अर्थव्यवस्था को, बल्कि राजनीति एवं संस्कृति को भी अपने अधीन किया जा सके | इस प्रकार भूमंडलीकरण तो नव-पूंजीवादी व्यवस्था और अंततः नव-साम्राज्यवादी व्यवस्था है | संपन्न इकाइयां तो उत्पादन करें और शेष लोग उपभोग करें | इस व्यवस्था में अधिक उत्पादन कर सकने में सक्षम मशीनें तकनीकी के द्वारा उत्पादन के एवं शोध के अनुभवों को कुछ लोगों तक ही  सीमित रखा जाता है, और शेष लोग उत्पादन के अनुभव से वंचित ही बने रहते हैं | वे न केवल बाजार के वस्तुओं को खरीदने की क्षमता नहीं बढा पाते हैं बल्कि उत्पादन की सहज प्रक्रिया एवं निजी विकास की प्रक्रिया से भी वंचित हो जाते हैं | छोटे उद्योग, कुटीर उद्योगों व्यक्ति की निजी श्रम के समाप्त हो जाने से विश्व की आम लोगों में उत्पादन शीलता, सर्जनशीलता, का शहरी विकास अवरुद्ध हो रहा है, फलसवरूप इस धरती के शोषितो के विकास की संभावनाएं धूमिल होती जा रही हैं | अब जिस प्रकार टी.वी. के सामने अधिकतर लोग कलाओं के मात्र उपभोग बनकर रह गए हैं तथा लोक-कला के सृजन में उनकी खुद की भागीदारी समाप्त होती जा रही है | यह स्थिति अन्य सर्जन एवं उत्पादन के क्षेत्रों में हो रही है | इस प्रकार मानव विकास की जो प्रक्रिया मशीनीकरण एवं पूंजीवाद से प्रभावित हुई थी, वह भूमंडलीकरण के द्वारा और अधिक सर्जन- शून्यता का रूप लेती जा रही है |  स्थानीय कलाओ, संस्कृतियों एवं जीवन-शैलियों के धीरे-धीरे नष्ट होने तथा विविधता के स्थान पर एकरूपता के स्थापित होने की स्थितियां भूमंडलीकरण ने और अधिक ढंग से पैदा कर दी है | अतः भूमंडलीकरण के द्वारा आम आदमी की सर्जनशीलता के नष्ट होते जाने के साथ ही एक नया सांस्कृतिक संकट उपस्थित होने जा रहा है | Essay भूमंडलीकरण और भारत in Hindi 

विकासशील देशों के क्षेत्रीय-संगठनों की सक्रियता की आवश्यकता
भारत न केवल प्राचीन चिंतन एवं सभ्यता का देश रहा है, बल्कि इसकी अर्थव्यवस्था की प्रकृति अन्य विकासशील देशों से बहुत मिलती-जुलती है | इसलिए भारत पर भूमंडलीकरण का जो प्रभाव है वह तो स्पष्ट है ही, बल्कि बाहर जैसे अन्य समानधर्मा देशों पर भी इसका दुष्प्रभाव पड़ना स्वाभाविक है | भारत को तीसरी दुनिया के देशों के हितों को ध्यान में रखकर, भूमंडलीकरण से उत्पन्न चुनौति पर ना केवल राष्ट्रीय स्तर पर बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी नेतृत्वकारी भूमिका निभानी चाहिए | इससे सभी विकासशील देशों की आवाज को बल मिलेगा तथा विकसित देशों द्वारा भूमंडलीकरण से संबंधित लिए जा रहे निर्णयों को थोपे जाने से रोका जा सकेगा | जिस प्रकार दूसरे विश्वयुद्ध के बाद, शीत युद्ध के दौरान, निर्गुट देशों के संगठन की महत्वपूर्ण भूमिका रही है | उसी प्रकार शीत युद्ध के बाद पैदा हुए इस भूमंडलीकरण के दौर में भी विकासशील देशों को एकजुट होकर भूमंडलीकरण के प्रभाव को कमजोर राष्ट्रों के पक्ष में संशोधित करना चाहिए | यदि हमने विश्व स्तर पर ऐसी चेतना जगाकर अगुवाई का कार्य नहीं किया तो फिर हम भूमंडलीकरण के द्वारा विकसित देशों के नव-साम्राज्यवाद को नहीं रोक सकेंगे तथा भारत एवं अन्य विकासशील देशों के हितों को भी सुरक्षित नहीं कर सकेंगे | अतः भारत को भूमंडलीकरण की झोक में बहना नहीं चाहिए, बल्कि नपा-तुला भूमंडलीकरण करना चाहिए | इस दिशा में सिएटल, दोहा और कनकुन में  संपन्न हुये विश्व व्यापार संगठन W.T.O के सम्मेलनों में विकासशील देशों में लामबंदी करके विश्वा व्यापार मे श्रम एवं पर्यावरण के आधार को निरस्त करवाया, विकसित देशों की कृषि सब्सिडी पर गंभीर आपत्ति उठाई | यह इसी प्रकार की चेतना का प्रतीक है | वस्तुतः भारत एवं विकासशील देशों को अब दक्षेस, आसियान तथा एशिया-अफ्रीका संगठनों को मजबूत कर भूमंडलीकरण के नाम पर अमेरिका यूरोपीय वर्चस्वता का प्रतिरोध करते रहना चाहिए तथा विकासशील देशों को अपनी आर्थिक- राजनीतिक- सांस्कृतिक विकास की प्रतिक्रियों को मजबूत बनाते रहना चाहिए |

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Written by lokhindi
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