भारत में आतंकवाद Full Essay – हिंदी में निबंध

भारत में आतंकवाद Full Essay

Terrorism in India Full Essay in Hindi 2019 / भारत में आतंकवाद Full Essay – रिसता-भरता घाव हिंदी में निबंध |


आधार बिंदु

  1. भारत में आतंकवाद : चिंतनीय मुद्दा
  2. आंतकवाद का आशय और स्वरूप
  3. भारत में आतंकवाद का विस्तार
  4. आंतकवाद के कारण
  5. आतंकवाद को रोकने हेतु किए गए प्रयत्न
  6. आंतकवाद के दमन के साथ-साथ उसके कारणों का भी शमन

भारत में आतंकवाद : चिंतनीय मुद्दा

आतंकवाद न केवल हमारे देश में बल्कि दुनिया के सभी देशों किसी-न-किसी रूप में एक चिंता का विषय है। इस समस्या ने भारत में समय-समय पर अनेक घाव दिए हैं तथा इसने हमारी आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक एवं सांस्कृतिक स्थितियों तक डाला है भारत के पंजाब, जम्मूकश्मीर, असम, तमिलनाडु, उत्तरप्रदेश के उत्तराखंड, बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल, आन्ध्रप्रदेश आदि राज्यों में आतंकवाद ने बार-बार जनजीवन को त्रस्त रखा है। मुख्यमंत्रियों पर बमों से वार होते हैं।भारत में आतंकवाद Full Essay पूर्वोत्तर एवं कश्मीर की पहाड़ियों में रक्तरंजित झरने बह रहे हैं, कश्मीर विधानसभा ही नहीं भारत की संसद तक आतंकवाद से लहुलुहान हुई है, इससे आतंकवाद के धमाकों की ध्वनि को सहज ही सुना जा सकता है। भारत के पड़ोसी देश भी इस समस्या को उभारने में अवांछनीय कार्य करते रहे हैं तथा इससे भारत के राजनीतिक संबंधों में भी तनाव बना रहे हैं। इसलिए आतकवाद हमारे आज के राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय दोनों स्तरों पर चिंतन का प्रमुख विषय है।

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आतकवाद का आशय और स्वरूप

आतकवाद से आशय उस विचार-दृष्टि से है जिसके अनुसार वर्गीय हित लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं एक संविधान में विश्वास, विचार अभिव्यक्ति, समझाइश मतदान के द्वारा सत्ता बनाना और उससे जनहित के समाधान प्राप्त करना आदि में न रहकर केवल आतंक फैलाकर अपने राजनीतिक-आर्थिक अधिकारों को प्राप्त करना होता है। आतंकवादी लोगों का उद्देश्य हिंसक कार्यों के द्वारा व्यक्ति, समाज या राज्य से अपनी माँगें मनवाना होता है। आतंकवादी स्वयं को राजनीतिक परिवर्तन का सिपाही समझता है तथा एक अघोषित और गुरिल्ला युद्ध लड़ता है। वह आतंक फैलाने में भी मूल्य तलाशता है तथा एक हिंसक एवं आतंककारी राजनीतिक दर्शन के तहत अपनी गतिविधियों को संचालित करता है। यद्यपि लंबे समय तक एक भू-भाग में आतंकवाद के जारी रहने से जनता का आतंकवादियों से न केवल विश्वास उठ जाता है बल्कि वह उनके विरुद्ध भी हो जाती है। इस प्रकार आतंकवाद धीरे-धीरे अपनी मौत भी मर जाता है किंतु वह जनजीवन को बहुत अस्थिर और भयभीत भी बनाए रखता है। आतंकवादी अपने लक्ष्यों को पूरा करने के लिए अनेक तरीके अपनाते हैं, जैसे विमानों का अपहरण, राजनेताओं और राजनयिकों व हस्तियों का अपहरण-प्रतिनिधियों प्रमुख , जन की हत्या, तोड़फोड़ करना बम चलाना और आम जनता की निर्मम हत्या करना। उनकी सोच यह रहती है कि किसी-न-किसी रूप में जनजीवन एवं राजनीति को अस्थिर करके अपने आर्थिक एवं राजनीतिक हितों की पूर्ति की जाए वह शत्रु पक्ष का पूर्ण विनाश तो नहीं करता किंतु उसे आतंकित कर अपने उद्देश्य पूर्ति के लिए समर्पित करवाना चाहता है। वह व्यकित विशेष को निशाना बनाता है, संपूर्ण व्यवस्था को नहीं लेकिन समाज के कुछ वर्षों को अपने पक्ष में करना उसका लक्ष्य होता है। आतंकवादी संगठन अपनी आतंककारी गतिविधियों के अपने दायित्व की प्रायः घोषणा भी करते रहते हैं।

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भारत में आतंकवाद का विस्तार

आतंकवाद की दृष्टि से आज भारत के अनेक क्षेत्रों में चिंताजनक स्थितियाँ हैं। यद्यपि आतंकवाद उदय पूर्वी प्रदेशों में हुआ। सबसे पहले नगालैंड में ‘नागा नेशनल कौंसिल’ ने नगालैंड को भारत से अलग करने के लिए गुरिल्ला युद्ध शुरू किया फिर विश्वेश्वर सिंह की ‘पीपुल्स लिबरेशन आर्मी’ तथा लालडंगा के मिज़ो नेशनल फ्रंटकी गतिविधियों के कारण आतंकवाद मणिपुर और मिज़ोरम में फैल गया। आतंकवाद का एक लंबा सिलसिला पश्चिम बंगाल एवं आंध्रप्रदेश के नक्सलवादी’ आंदोलन के रूप में भी सामने आया जिसका मुख्य उद्देश्य हिंसात्मक गतिविधियों द्वारा सत्ता प्राप्त करना था, किंतु सबसे भयंकर रूप पंजाब में देखने में आया। 1983 से पंजाब में ‘ऑल इंडिया सिख स्टूडेंट्स फेडरेशन’, ‘दशमेश रेजीमेंट’ तथा ‘बब्बर खालसा’ के सदस्यों ने देश में आतंकवाद की लहर फैला दी। इन गतिविधियों ने अनेक तरीकों से मासूम लोगों की हत्या करना शुरू किया। 1984 में आतंकवादियों की गतिविधियाँ शीर्ष पर पहुँच गई तो सरकार ने ऑपरेशन ‘ब्लू स्टार’ के नाम से स्वर्ण मंदिर में सेना का प्रवेश करवाकर आतंकवादियों को गिरफ़्तार किया। 30 अक्टूबर, 1984 को आतंकवादियों की छाया में ही श्रीमती इंदिरा गाँधी की हत्या कर दी गई। फलस्वरूप पूरे भारत सिख और हिन्दुओं के बीच काफ़ी मनमुटाव पैदा हुआ तथा दिल्ली में काफ़ी सिक्खों की निर्मम हत्या की गई। इस प्रकार इस आतंकवाद द्वारा भारतीय समाज में वैमनस्य की भावना भी फैली।

जम्मू-कश्मीर में 1987 से एक भिंन प्रकार का आतंकवाद फैला जिसमें ‘जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट,’ ‘कश्मीर लिबरेशन आर्मी’ आदि संगठनों ने जम्मू-कश्मीर राज्य को भारत से अलग करने के उदेश्य को लेकर आतक मचाना शुरू किया। कश्मीर के आतंकवाद के पीछे पाक अधिकृत ‘कश्मीर’ के कुछ संगठनों एवं पाकिस्तानी सरकार एवं विशेष रूप से सेना का पूरा हाथ है। पाकिस्तान इन संगठनों के माध्यम से भारत के विरुद्ध एक अघोषित युद्ध लड़ता रहा है। करगिल युद्ध भी इसी आतंकवाद को मजबूत करने की मंशा का प्रतिफल था। करगिल युद्ध में पाकिस्तान के परास्त होने के बावजूद वह कश्मीर सीमा पर आतंककारियों को मदद करता रहा है। बंबई, गाँधीनगर, जयपुरपूना आदि शहरों में हुए बम विस्फोटों में हुए नरसंहार इसके रिसते हुए घाव हैं। वर्तमान में भी भारत सरकार की बहुत बड़ी चुनौती है। असम, उत्तरी-पूर्वी राज्यों, गोरखालैंड और झारखंड आदि क्षेत्रों में भी आतंकवाद फैला हुआ है। 1979 में असम में एक नया आतंकवादी संगठन ‘उल्फ़ा’ का जन्म हुआ। और यह अभी भी जारी है। इसका उद्देश्य असम में संपूर्ण प्रभुता संपन्न राज्य की स्थापना करना है। उल्फ़ा ने हिंसक आंदोलन, जबरन वसूली, अपहरण और हत्या के तरीके अपनाए। 2012 में भी असम में व्यापक हिंसा हुई है। तमिलनाडु में भी कई स्थानों पर ‘तमिल टाइगर्स’ ने आतंक मचा रखा है। नक्सलवादी आतंकवाद माओत्से तुंग के क्रांतिकारी वामपंथी दर्शन से प्रेरित आतंकवाद जिसका लक्ष्य है हिंसक साधनों द्वारा सामाजिक-आर्थिक न्याय पर आधारित व्यवस्था की स्थापना करना। इसने 1967-71 के वर्षों में बंगाल, बिहार और पश्चिम बंगाल आदि राज्यों में आतंकवादी रूप धारण किया तथा गुरिल्ला युद्ध पद्धति के आधार पर भूपतियों के विरुद्ध ब्रूनी संघर्ष छेड़ा। वर्तमान में यह आंध्रप्रदेश, बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्रऔर मध्यप्रदेश के कई क्षेत्रों में व्याप्त है और देश के लगभग 200 ज़िलों में फैल चुका है।

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आतंकवाद के कारण (भारत में आतंकवाद Full Essay)

आतंकवाद के जन्म के अनेक आंतरिक एवं बाहरी कारण हैं। देश की वर्तमान आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक, न्यायिक एवं प्रशासनिक व्यवस्था आम जनृता के प्रति इतनी संवेदनहीन है कि उसका सदियों से चला आ रहा शोषण और अन्याय और अधिक बढ़ता जा रहा है। राजनेताओं के द्वारा जनता की समस्याओं को सुलझाने का नारा तो दिया जाता है किंतु उनका वास्तविक समाधान नहीं किया जाता। बेरोज़गारी बढ़ती जा रही है, भूपतियों का शोषण बरक़रार है। ऐसी स्थिति में समाज के कई व्यक्ति एवं समूह इस विश्वास पर पहुँच जाते हैं कि लोकतांत्रिक विरोध एवं अहिंसात्मक ढंग से समाज में परिवर्तन संभव नहीं है तथा इसे हिंसात्मक एवं आतंकवादी तरीके से ही प्राप्त किया जा सकता है। आतंकवादी समूह में अधिकतर वे नवयुवक देखे जाते हैं जो अपने जीवन से किसी-न-किसी कारण असन्तुष्ट हैं। समर्थ लोगों के द्वारा आपाधापी, बेरोज़गारी, शोषण-जैसी समस्याओं ने नवयुवकों में तीव्र असंतोष उत्पन्न कर दिया है। जब यह वर्ग देखता है कि न्याय का पालन करते हुए इस व्यवस्था से कुछ नहीं प्राप्त किया जा सकता तो वह आपराधिक कार्यों में संलग्न हो जाता है। वह नशीले पदार्थों की तस्करी, नशीले पदार्थों के व्यसन, अवैध शस्त्र निर्माण और शस्त्र खरीद में संलग्न हो जाता है। तथा हथियारों के बलबूते पर समाज में आतंक फैलाता है। लोगों की हत्याएँ करना, सांप्रदायिक दंगे फैलाना, सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुँचाना, गोलियों व बमों से जनजीवन की शांति को भंग करना उन लोगों का पेशा बन जाता है।

आतंकवाद के मूल कारणों में भारत के नवयुवकों की जिम्मेदारी बहुत कम है जबकि उस राजनीतिक-सामाजिक व्यवस्था की जिम्मेदारी अधिक है जो आम जनता एवं विशेषकर नवयुवकों की समस्याओं के प्रति संवेदनशील नहीं हैं। समाज में वर्चस्व रखने वाले व्यक्ति खुले आम शोषण करते हैं तथा बल पूर्वक सत्ता का दुरुपयोग करते हैं। स्वयं राजनीतिक दल एवं सत्ताधारी लोग चुनावी राजनीति में इन आतंकवादी समूहों का दुरुपयोग करते हैं। यहाँ तक कि आतंकवाद के बलबूते पर शासन भी चलाया जाता है। राजनीति और आतंकवाद की यह साठ-गाँठ ही आगे चलकर आतंकवाद का प्रसार करने की जिम्मेदार बनती है।

भारतीय राजनीति में व्याप्त भ्रष्टाचार भी आतंकवाद को हवा देता है। जब यह खुले तौर पर देखा जाता है कि सत्ताधारी लोग सत्ता के बल से व्यापक स्तर पर भ्रष्ट कामों में लिप्त हो रहे हैं। समाज के बेरोज़गार असंतुष्ट नौजवान भी किसी-न-किसी तरह हथियारों का बल प्राप्त कर  आर्थिक लूट में संलग्न हो जाते हैं। समाज के अभिजात वर्ग के नौजवान भी इस प्रकार की आतंकवादी गतिविधियों में संलग्न पाए जाते हैं। अनेक प्रदेशों में राज्य का प्रशासन एवं पुलिस बल भी आतंकवादियों के साथ मिलकर आतंकवादियों द्वारा लूटी गई संपत्ति में हिस्सेदार बनता है। इसलिए यह भी देखा जाता है कि जब कभी किसी प्रदेश का प्रशासन आतंकवाद के विरुद कमर कस लेता है तो आतंकवाद का सफ़ाया भी होने लगता है। पंजाब के एवं 1998 तक कश्मीर के उदाहरण इस स्थिति को अच्छी तरह से स्पष्ट करते हैं। आतंकवादी स्थितियों को दबोचने के लिए अनेक बार निरपराध व्यक्ति भी पुलिस के जंगल में फंस जाते हैं तथा उनको जिस तरह की यातनाएँ दी जाती हैं उससे वे विचलित होकर स्वयं आतंकवादी बन जाते हैं।

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आतंकवाद और भारत-पाक संबंध

पाकिस्तान मूलतः इस्लामी राष्ट्र है, वह इस्लाम को मनुष्य से ऊपर समझता है। इस्लाम के आधार पर ही पाकिस्तान का जन्म हुआ है और पिछले 3-4 दशक से वह विश्व में इस्लामी अभियान का पहरुआ बना हुआ है। इसलिए पाकिस्तान की यह धार्मिक कट्टरता उसे भारत के संबंधों को लेकर बेचैन रखती है तथा कश्मीर के बहाने वह एक कुंठा के रूप में अभिव्यक्ति होती रहती है। विगत में भारत के साथ तीन युद्धों में प्राप्त हुई पराजय के कारण वह आतंकवाद के जरिए युद्ध में लिप्त रहा है । इस्लाम के लिए ‘जेहाद’ करने के नाम पर वह तालिबान का पोषक, समर्थक रहा है तथा पाकिस्तान व कश्मीर में अनेक आतंकवादी संगठनों का प्रणेता रहा है। पाकिस्तान अपनी खुफ़िया एजेंसी ‘आईएसआई’ के ज़रिए भारत एवं पूरे विश्व में इस्लामी जेहाद की पैरवी करता है। मुंबई के ताज होटल पर हुए आतंकवादी हमले ने पाकिस्तानी सेना एवं आईएसआई की प्रत्यक्ष भागीदारी को पूरी तरह स्पष्ट कर दिया है। परमाणु शक्ति बनने के बाद पाकिस्तान आतंकवादी प्रवृत्ति के पोषण का दुस्साहस और बढ़ गया है।

पाकिस्तान में सेना निर्देशित अलोकतांत्रिक एवं अवैध सरकारें इस्लामपंथी एवं भारत विरोधी जन-मानस को फुसलाकर ही सत्ता पर काबिज होने की कोशिश करती रही हैं। इसलिए भारत में , जम्मू -कश्मीर, पंजाब, असम, नगालैंड, मिज़ोरम आदि प्रदेशों का आतंकवाद के दंगे ताज प्रकरण आदि इस्लामिक जेहाद के विपैले अंकुर ही हैं। यह इतिहास का अभिशाप ही है कि पिछले सात दशकों से कश्मीर को लेकर भारत-पाक के बीच तनाव है और युद्ध चार बार आमने-सामने हो चुके तथा बराबर गुर्राते रहे हैं।

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आतंकवाद को रोकने हेतु किए गए प्रयत्न

भारत में को रोकने के लिए अनेक स्तरों पर अनेक प्रयत्न किए गए हैं। 1985 आतंकवाद ‘टाडा ‘एवं उसके स्थान पर 2002 में ‘पोटा’ बनाया गया हालाँकि आगे चलकर ये कानून निरस्त भी कर दिए गए। शस्त्र क़ानून में संशोधन भी किया गया । ऐसे क़ानून की व्यवस्था भी की गई कि यदि आतंकवादी कार्यवाही के फलस्वरूप किसी की जान जाती है तो अपराधी को मृत्युदंड दिया जाएगा। समय-समय पर केंद्र सरकार एवं राज्य सरकारों ने आतंकवाद को मजबूती से कुचलने के लिए कठोर शासनिक कार्यवाही की, अनेक बार सेना का भी सहारा लेना पड़ा। प्रशासनिक क़दमों के अच्छे परिणाम भी निकले तथा पंजाब के आतंकवाद से राहत मिली, किंतु आतंकवाद के पैदा होने की संभावनाओं को समाप्त करने के लिए बहुत ठोस उपाय करने की अभी भी बहुत आवश्यकता है। केंद्र सरकार एवं राज्य सरकार द्वारा अपने समाज की समस्याओं को हल करने में यदि उपेक्षित शोषित तबके के प्रति विशेष ध्यान रखा जाएगा तो आतंकवादी गतिविधियों को उभरने का कम अवसर मिलेगा, किंतु समाज के नौजवान लोगों में जब-जब असंतोष एवं संगठित रूप में आंदोलन उभरता है। तो उसको सकारात्मक रूप से सुलझाने का प्रयत्न किया जाना चाहिए। जब कभी कुछ वर्ग संगठित रूप से हिंसात्मक रुख़ धारण करते हैं तो सरकार द्वारा उनके साथ संवाद करके, उनकी समस्याओं का समाधान करके ही उसका सकारात्मक हल निकाला जाना चाहिए। यदि आतंकवाद पड़ोसी देशों के कारण फैलता है तो वहाँ पर पड़ोसी देशों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध बनाने की कार्यवाही से ही यह संभव है। भारत का पाकिस्तान, चीन, नेपाल, बर्मा, भूटान, श्रीलंका आदि देशों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध रख रहा है और पाकिस्तान की आपसी आंतरिक राजनीति के कारण अब इसमें अपेक्षित प्रगति होने लगी है, उम्मीद है कि पाकिस्तान में लोकतांत्रिक प्रक्रिया के मजबूत होने तथा आतंकवाद के विरुद्ध अनुकूल वातावरण बनने से आतंकवाद में कमी आएगी। पाकिस्तान और चीन के साथ बढ़ रहे व्यापारिक संबंधों से भी भू-राजनीतिक परिवर्तन आएगा और आतंकवाद कम होगा।

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आतंकवाद के दमन के साथ-साथ उसके कारणों का भी शमन

समय-समय पर अनेक प्रदेशों के छोटे क्षेत्रों को राज्य बनाने के जो आंदोलन उठते हैं। उनको यथाशीघ्र एक आयोग द्वारा सुलझाया जाना चाहिए। विकास के साथ-साथ क्षेत्रीय संतुलन की ओर भी बराबर ध्यान रखना ज़रूरी है ताकि एक क्षेत्र के लोगों को दूसरे क्षेत्र के लोगों के विरुद्ध दुर्भावना न पैदा हो। (असमी, बिहारी संघर्ष) राज्य-व्यवस्था द्वारा लूटखसोट को प्रश्रय देकर पूंजीपति वर्ग द्वारा खानों, वनों के अंधा-धुंध दोहन तथा उन क्षेत्रों में रह रहे ग़रीब लोगों के विस्थापन से जो आक्रोश पैदा होता है और उसकी परिणति नक्सलवादी आतंकवाद में होती है उसे तत्काल बंद कर क्षेत्रीय विकास का नया मॉडल प्रस्तुत करना चाहिए। आम जनता में अहिंसात्मक मनोभावना के सबल रहने से ही हिंसात्मक व्यवहारों और इस प्रकार आतंकवादी गतिविधियों को नियंत्रित किया जा सकता है। दरअसल आतंकवाद एक शोषण परक, दमनात्मक सामाजिक व्यवस्था के चरमरा जाने की नकारात्मक घंटी भी है अत: हमें आतंकवादियों के प्रति संवेदनशीलता दिखाते हुए उसके कारणों के प्रति अत्यधिक संवेदनशील होना चाहिए। आतंकवाद पुराने सामंतवाद तथा वर्तमान पूंजीवाद की गठजोड़ के विरुद्ध हमारी सच्ची लोकतांत्रिक व्यवस्था के विकसित न हो सकने के कारण उठाया गया सशस्त्र संघर्ष भी है। आतंकवाद के लहुलुहान चेहरे के पीछे छिपे उसके विद्प कारणों को दूर करने का गंभीर प्रयास करना चाहिए।

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Written by lokhindi
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