मुंशी प्रेमचंद निबंध

मुंशी प्रेमचंद पर हिंदी निबंध – Essay on Munshi Premchand

मुंशी प्रेमचंद पर निबंध

Munshi Premchand: A live storyteller of Indian society essay Hindi / मुंशी प्रेमचंद: भारतीय समाज का जीवंत कथाकार पर आधारित पूरा निबंध 2019 (प्रेमचंद पर हिंदी निबंध)


भारतीय जीवन के जीवंत क़लमकार:

प्रेमचंद हिंदी के ऐसे लेखक हैं जिन्होंने अपने युग की विराट समस्याओं को सशक्त और युगांतकारी शैली में प्रस्तुत किया है। उन्होंने अपने समय के समाज, राजनीति, अर्थव्यवस्था, संस्कृति सबको व्यापक फलक पर साहित्यिक जीवंतता और सरसता के साथ प्रस्तुत किया । वे अपने युग की मृतप्राय व्यवस्था को उधेड़कर सबके सामने सर्वग्राह्य ढंग से रख सके। उन्होंने यथास्थितिवादी व्यवस्था में घुटती और मरती हुई इंसानियत की ओर सबका ध्यान खींचा । वे साहित्य में संवदेना को इतना ओर-पोर भर सके कि उसे आम आदमी के लिए प्रिय बना सके । उन्होंने वास्तविक ग्रामीण भारत के बहुत से पक्षों पर लिखा, कहानी और उपन्यास-जैसी लोकप्रिय विधाओं में लिखा और स्वयं को तथा युग को उलट पलटकर लिखा। वे साहित्य को जीवन के क्रमशः निकटतर लेते गए और जीवन तथा साहित्य को एकमेक करने का विराटतर उदाहरण प्रस्तुत करते गए। वे भारतीय जीवन के जीवंत क़लमकार के रूप में हुए हैं।

मुंशी प्रेमचंद निबंध

मुंशी प्रेमचंद पर निबंध

जीवन से जूझता संघर्षरत जीवन:

प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई, 1880 को वाराणसी के पास ‘लमही’ नामक ग्राम में हुआ था । इनके पिता अजायब राय डाकख़ाने में क्लर्क थे । प्रेमचंद जब 8 वर्ष के थे तभी उनकी माँ आनन्दी देवी का स्वर्गवास हो गया । प्रेमचंद का वास्तविक नाम धनपतराय था किंतु साहित्य के क्षेत्र में वे अपने आपको प्रेमचंद के नाम से प्रस्तुत करने लगे और हिंदी साहित्य के अमर प्रेमचन्द हो गए । प्रेमचंद के परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी, परिवार का पालन-पोषण मुश्किल से ही हो पाता था । वे गाँव में रहते थे इसलिए गरीबी से एवं गाँव की समस्याओं से उनका सीधा वास्ता था। प्रेमचंद ने जैसे-तैसे बी.ए. पास किया, फिर वे एक स्कूल में अध्यापक हो गए, कुछ समय बाद सब डिप्टी-इंसपेक्टर भी हो गए । सन् 1921 में आप नौकरी छोड़कर ‘असहयोग आंदोलन’ में कूद पड़े । आर्थिक स्थिति अच्छी न होने के कारण पुनः अध्यापन करने लगे थे । इसी बीच आप साहित्य-सृजन में भी लगे रहे । बीच-बीच में आपने ‘मर्यादा’, ‘माधुरी,, ‘हंस’ तथा ‘जागरण’ आदि पत्र-पत्रिकाओं का संपादन भी किया । प्रेमचंद ने उर्दू में ‘नवाब राय’ के नाम से अनेक कहानियाँ लिखीं तथा शुरू में उर्दू में ही लिखना प्रारंभ किया किंतु बाद में वे हिंदी में लिखने लगे । आर्थिक संकट से मुक्ति पाने के लिए प्रेमचंद फिल्मी कहानियाँ लिखने के लिए मुंबई गए किंतु वहाँ का जीवन उन्हें पसंद नहीं आया और वे पुनः वाराणसी आ गए। जीवन-पर्यन्त प्रेमचन्द दरिद्रता से ही जूझते रहे । अत्यन्त दयनीय अवस्था में आपका स्वास्थ्य खराब हो गया तथा हिंदी साहित्य का यह समर्थ लेखक 1936 में इस संसार से सदा के लिए विदा हो गया।

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दशकों में फैला विविधामय कथा साहित्य: प्रेमचंद

प्रेमचंद ने प्रारंभ में उर्दू में ‘सोज़े वतन‘ नामक पुस्तक लिखी जिसने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान ऐसी हलचल उत्पन्न की कि उनकी यह रचना अंग्रेज़ी शासन ने ज़ब्त कर ली। बाद में प्रेमचंद हिंदी में कहानियाँ लिखने लगें। पंच परमेश्वर, बड़े भाईसाहब, नमक का दारोगा, कफ़न, परीक्षा, शतरंज के खिलाड़ी, मंत्र, पूस की रात आदि प्रेमचंद की उन 300 कहानियों में से प्रसिद्ध कहानियाँ हैं जो उन्होंने लगभग 24 संग्रहों में प्रकाशित की हैं ।कहानियों के अलावा प्रेमचंद ने निर्मला, प्रेमाश्रम, कर्मभूमि, गबन, सेवासदन, रंगभूमि, गोदान आदि उपन्यास भी लिखे । प्रेमचंद के उपन्यास न केवल संख्या की दृष्टि से बल्कि भारतीय जनजीवन को निकटता के साथ चित्रित करने की दृष्टि से हिंदी साहित्य की अमर निधि हैं। गोदान तो बीसवीं शताब्दी की भारतीय साहित्य की उत्कृष्ट रचना है। वह भारतीय किसान के त्रासद जीवन का करुण महाकाव्य है । वह अपने युग के विपन्न, शोषित समाज की प्रसव-वेदना है । वह हिंदी साहित्य का विशाल परिवर्तनकारी साहित्यिक शिला-स्तम्भ है । गोदान और उनके अन्य उपन्यासों को मिली ख्याति के आधार पर प्रेमचन्द को ‘उपन्यास सम्राट’ कहा जाता है। ‘मंगल सूत्र’ प्रेमचंद का अन्तिम और अधूरा उपन्यास है। प्रेमचंद ने कर्बला, संग्राम, प्रेम की वेदी आदि नाटक भी लिखे हैं जिनमें राष्ट्रीय भावना, हिंदू-मुस्लिम समन्वय तथा मानव प्रेम के दर्शन होते हैं । ‘कुछ विचार’ तथा ‘साहित्य का स्वरूप’ निबंध-संकलनों में उन्होंने साहित्य एवं समाज से संबंधित अपने विचारों को व्यक्त किया है।

जन-संवेदना का प्रगतिशील साहित्य:

प्रेमचंद बहुमुखी प्रतिभा-सम्पन्न साहित्यकार थे । यद्यपि उन्होंने नाटक, जीवनी, निबंध आदि का भी लेखन किया किंतु वे मूलतः कहानीकार और उपन्यासकार के रूप में ही अधिक चर्चित हुए । प्रेमचंद ने अपने आसपास की दुनिया को अपने साहित्य का विषय बनाया । उन्होंने ग्रामीण एवं शहरी समाज दोनों पर ही लेखनी चलाई किंतु हिंदी साहित्य में तब तक उपेक्षित चले आ रहे ग्रामीण समाज को विशेष रूप से प्रस्तुत किया । उन्होंने अपने आसपास की जिंदगी में बिखरी हुई सामाजिक रूढ़ियों, कुंठाओं, जड़ताओं आदि का चित्रण किया है । विधवा विवाह, बाल विवाह, अनमेल विवाह, जातिवाद, शोषण आदि का अंकन आपके उपन्यासों में बहुत मिलता है । प्रेमचंद की दृष्टि पहले आदर्श को प्रस्तुत करने की थी, फिर वे यथार्थ का चित्रण करते हुए अंततः  उसे आदर्श की ओर मोड़ने लगे, लेकिन गोदान तक आते-आते उन्होंने पूरी तरह यथार्थवादी दृष्टि को अपना लिया । प्रेमचंद निम्नवर्गीय किसान एवं मज़दूरों के हिमायती हैं । उन्होंने उनकी जिंदगी में व्याप्त समस्याओं का विस्तार से चित्रण किया है । प्रेमचंद के साहित्य में सभी वर्गों का नेतृत्व है । उनके चरित्रों में किसान, मज़दूर, अछूत, डॉक्टर, मौलवी, जमींदार, वकील आदि सभी हैं । उन्होंने पुरुषों के साथ-साथ नारी-चरित्रों में भी अपनी गहरी आस्था व्यक्त की है दलित-पीड़ित जन-समूह के प्रति प्रेमचंद के हृदय में जो अनुराग, सहानुभूति, करुणा है, वह उनके साहित्य की अमूल्य निधि है।

प्रेमचंद का युग गाँधीवादी युग है। वह युग सामाजिक एवं राजनीतिक चेतना जगानेवाला युग है, इसलिए प्रेमचंद ने अपने साहित्य में सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक दमन से संबंधित मुद्दों को उठाया है । समाज में जाति, वर्ण, छुआछूत, स्त्री-पुरुष संबंध, शिक्षित-अशिक्षित, ग्रामीण-शहरी आदि संघर्षों को चित्रित किया है। वे साहित्य को केवल मनोरंजन की वस्तु नहीं समझते। उनके अनुसार-‘जिस उपन्यास को समाप्त करने के बाद पाठक अपने अंदर उत्कर्ष का अनुभव करे, उसके सद्भाव जाग उठे, वहीं सफल उपन्यास है।’ वे पहले गाँधी जी के हृदय-परिवर्तन के सिद्धांत से प्रभावित होते हैं, बाद में वे गोदान तक आते-आते गाँधीवादी विचारधारा के आदर्शवाद से अपने-आपको मुक्त कर लेते हैं और विचारधारा को यथार्थवाद से जोड़ लेते हैं। इस प्रकार प्रेमचंद हिंदी साहित्य में प्रगतिशील साहित्य के अगुवा बनकर आते हैं।

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युगप्रवर्तक भाषा-शैली: प्रेमचंद

प्रेमचंद ने प्रारंभ में उर्दू भाषा में लिखना प्रारंभ किया, फिर वे हिंदी में लिखने लगे किंतु हिंदी में भी अरबी-फारसी भाषा के शब्द बहुत होते थे । प्रेमचंद के समय हिंदी साहित्य में ‘छायावाद’ चल रहा था जिसमें संस्कृत के शब्दों की भरमार थी। प्रेमचंद ने संस्कृत के तत्सम शब्दोंवाली भाषा को छोड़कर बोलचाल की सरल भाषा को अपने साहित्य में स्थान दिया । यद्यपि उन्होंने कहीं-कहीं संस्कृत शब्दों की प्रधानतावाली भाषा का भी प्रयोग किया है किंतु अधिकतर आम बोलचाल की भाषा को ही उन्होंने साहित्य में अपनाया है । प्रेमचंद की भाषा में मुहावरों और कहावतों का सटीक प्रयोग मिलता है । पात्रों के अनुकूल भाषा की रचना प्रेमचंद की अपनी विशेषता है । उनके मुस्लिम पात्र , ईसाई पात्र अंग्रेज़ी तथा पढ़े लिखे हिंदू पात्र संस्कृत के शब्दोंवाली हिंदी बोलते दिखाई देते हैं । प्रेमचंद ने जन-साधारण की भाषा को साहित्य में स्थापित कर साहित्यं की पूरी शेली ही बदल दी और अपनी रचनाओं में ऐसी सहज प्रवाहवाली भाषा स्थापित की कि आगे का साहित्य प्रेमचंद की तर्ज पर लिखा जाने लगा।

प्रेमचंद के साहित्य में प्रसंगानुसार शैली का परिवर्तन भी देखा जाता है । यद्यपि उनकी मुख्य शैली वर्णनात्मक है और वे किसी घटना, पात्र, वस्तु आदि का वर्णन करने में रम जाते हैं। वे वर्णन इस ढंग से करते हैं कि उस वस्तु का चित्र सामने उपस्थित हो जाता है । कहानी और उपन्यासों में पात्रों की भावना के अनुकूल वे भावात्मक शैली का भी उपयोग करते हैं तथा वहाँ पर सरस काव्य के भी दर्शन होते हैं । उनके पात्र अपने भावों को खुलकर व्यक्त करने लगते हैं  तथा भाषा में सहज सरसता पैदा हो जाती है । प्रेमचंद एक विचारशील लेखक थे, इसलिए उनके विचार उनके पात्रों के माध्यम से समय-समय पर आए हैं तथा समाज के मुद्दों पर उन्होंने तात्विक चिंतन भी प्रस्तुत किया है । ऐसे प्रसंगों में उनकी भाषा विवेचनात्मक हो गई है। प्रेमचंद पात्रों के मनोविज्ञान तथा उनकी मनस्थिति को अत्यन्त सक्षमता के साथ प्रस्तुत करते हैं। ऐसी स्थितियों में उनकी शैली मनोवैज्ञानिक हो गई है। ग्रामीण समाज का चित्रण करते समय, ज़मींदार एवं गरीब किसानों के व्यवहारों का वर्णन करते समय प्रेमचंद ने हास्य-व्यंग्य शैली को भी अपनाया है । वे स्थान-स्थान पर व्यंग्य करने से भी नहीं चूकते । इस प्रकार प्रेमचंद ने जीवन के विविध दृश्यों को प्रस्तुत करने में अनेक प्रकार की शैलियों का प्रयोग किया है । उनकी भाषा-शैली आम आदमी के इतनी नज़दीक है कि वह उनके साहित्य से बराबर जुड़ता जाता है । इसलिए प्रेमचंद न केवल साहित्य की उत्कृष्टता की दृष्टि से बल्कि पाठकों की संख्या की दृष्टि से भी एक बड़े लेखक हैं।

युगांतरकारी साहित्यकार: प्रेमचंद

प्रेमचंद हिंदी के एक युगांतरकारी साहित्यकार हैं, अर्थात् उन्होंने इतना उत्कृष्ट साहित्य लिखा और ऐसा विशिष्ट साहित्य लिखा है कि उनके नाम से हिंदी के कथा साहित्य का एक नया युग ही उठ खड़ा हुआ । हिंदी कहानी और उपन्यास के इतिहास में ‘प्रेमचंद युग’ ही स्थापित हो गया । प्रेमचंद के प्रभाव से हिंदी कहानी और उपन्यास में एक नई परंपरा चल पड़ी । वे एक मार्गदर्शक साहित्यकार के रूप में उभरे और आगे की पीढ़ी का मार्गदर्शन करने लगे । प्रेमचंद ने हिंदी साहित्य में यथार्थवादी लेखन परंपरा का सूत्रपात किया । वे प्रगतिशील साहित्य के पुरोधा के रूप में स्थापित हुए । प्रेमचंद न केवल हिंदी और भारत के लेखक के रूप में स्थापित हुए बल्कि उनके साहित्य का भारतीय एवं विदेशी भाषाओं में अनुवाद होने से वे हिंदी और देश की सीमाओं से भी बाहर पहुंचे । प्रेमचंद के साहित्य पर इस देश में और बाहर भी शोध कार्य हुए हैं । इसलिए न केवल हिंदी साहित्य में बल्कि विश्व साहित्य में प्रेमचंद का विशेष स्थान है। मानव समस्याओं को इतनी व्यापकता, सक्षमता और सरसता के साथ प्रस्तुत करने वाले लेखक दुनिया में बहुत कम हैं।

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Written by lokhindi
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