Real life Inspirational Stories in Hindi

Top 30 Real life Inspirational Stories in Hindi

Real life Inspirational Stories in Hindi

Real Life Inspirational Stories in Hindi / Motivational Stories के इस भाग में कुछ ऐसे व्यक्तियों के जीवन-प्रसंगों को लिया गया है, जो सचमुच आपको जीवन में आगे बढ़ने हेतु प्रेरित करते हैं, प्रोत्साहित करते हैं तथा आपकी सुषुप्त ऊर्जा को पुनः जाग्रत कर, उन्हें प्रगतिपथ पर प्रशस्त होने की हिम्मत प्रदान करते हैं। Best Inspirational Stories – वस्तुतः सफलता व्यक्ति की सोच में होती है। जब हम विषम परिस्थितियों में सफल होने वाले साधारण व्यक्ति की कहानी पढ़ते हैं, तो इन Motivational कहानियों से मिलने वाली प्रेरणा हमारे मन-मस्तिष्क को उद्वेलित कर हमें सफलता की बुलन्दियों को छूने के लिए तैयार करती है, प्रोत्साहित करती है। 

ये ऐसी जीवन्त Inspirational / Motivational (Stories) कहानियाँ हैं, जो आपके जीवन की दिशा, आपके सोचने का ढंग एवं आपके जीने का अन्दाज बदलने हेतु आप में पर्याप्त ऊर्जा का संचार कर सकती हैं।

Real life Inspirational Stories in Hindi

Real life Inspirational Stories in Hindi

आप इन सभी प्रेरणास्पद व्यक्तित्व की सफलता की कहानियों को बार-बार पढ़े एवं स्वयं की परिस्थितियों से तुलना करें। आप पाएँगे कि आपकी परिस्थितियाँ कितनी अनुकूल हैं, जबकि इन व्यक्तियों ने कितनी प्रतिकूल परिस्थितियों में संघर्ष कर जीवन में सफलताएँ अर्जित की हैं। जानें – Top 30 Real Life Inspirational Stories in Hindi / Motivational Stories For Students in Hindi language by – Lokhindi

Contents

डॉ.ग्लेन कनिंघम: दृढ़ संकल्प-शक्ति के महानायक

एक बार एक छोटा-सा (8 वर्ष का) बच्चा स्कूल में आग से बुरी तरह जल गया उसकी टाँगें बहुत बुरी तरह से जल गईं थीं। डॉक्टरों ने कहा कि वह कभी चल नहीं पाएगा। उसके पैरों का सारा माँस जल चुका था। अस्पताल से जब वह घर आया, तो उसकी माँ उसके पैरों की रोजाना मालिश करती और उसे हील चेयर पर घुमाने पास के मैदान में ले जाती। उस बच्चे में बड़ा दृढ़ विश्वास था, उसकी संकल्पशक्ति काबिले तारीफ़ थी। उसे विश्वास था कि चाहे कुछ भी हो, वह चलेगा।

एक दिन जब उसकी माँ उसे ह्वील चेयर पर बैठाकर कहीं चली गई, तो उसने स्वयं को उस चेयर पर से गिरा लिया एवं स्वयं को घसीटना शुरू कर दिया। वह रोजाना ही ऐसा करता रहा और धीरे-धीरे उसके पैरों में कुछ जान आने लगी। वह खड़ा होने लगा, फिर बहुत धीरे-धीरे चलने लगा। फिर सामान्य तरह से चलने लगा। फिर वह दौड़ने लगा।

एक दिन वह अमेरिका का एक मील दौड़ने वाला सबसे तेज धावक बन गया। उसने 1500 मी की दौड़ में विश्व रिकॉर्ड बनाया। वह कोई और नहीं डॉ. ग्लेन कनिंघम थे। कनिंघम की संकल्प-शक्ति को बार-बार नमन है।

हाथों का मोहताज नहीं हौसला: 

सकारात्मक सोच के साथ ज़िद की जाए तो वास्तव में दुनिया बदल सकती है। ऐसा ही कर दिखाया है श्रीराम कॉलोनी सांगानेरी निवासी 15 वर्षीय किशोर रोशन नागर ने। वर्ष 2002 में हुए हादसे में दोनों हाथ व एक पैर गवाँ देने के बाद पढ़ाई का सपना चूर हो चुका था। घर के बड़े बुजुर्गों की हिम्मत भी जवाब दे चुकी थी, लेकिन रोशन ने जिद की और आज वह दसवीं की बोर्ड परीक्षा दे रहा है।

वर्ष 2002 में घर की छत से गुजर रही हाइटेंशन लाइन के तारों में दोस्त की पतंग सुलझाने के दौरान रोशन नंगे पैर ही छत पर चला गया। लोहे का सरिया हाथ में लेकर रोशन पतंग के लिए लपका, तो उसे ऐसा करण्ट लगा कि एक पैर और दोनों हाथ गवाने पड़े। दो ऑपरेशन के बाद दादा नारायण उसे घर ले आए।

इलाज के करीब दस माह बाद रोशन ने पढ़ने की इच्छा जाहिर की इस ज़िद पर दादी किसना देवी ने हौसला बढ़ाया, उन्होंने उसके हाथ में कलम बाँधकर लिखने का अभ्यास करवाया। कड़ी मेहनत के बाद उसने वर्ष 2003 में पाँचवीं कक्षा में फिर से स्कूल जाना शुरू किया। इसी लगन के साथ उसने छठी में 52%, सातवीं में 62%, आठवीं में 79% और नौवीं में 64% अंक हासिल किए। बिना हाथ के 15 वर्षीय रोशन नागर का हौसला देखिए। रोशन ने कटे हाथ पर कलम बाँधकर जयपुर के नेवटा केन्द्र पर दसवीं की परीक्षा दी है। रोशन कहता है-वह किसी पर बोझ बनकर नहीं रहना चाहता। वह सीए बनना चाहता है। Real Life Inspirational Stories in Hindi 

अभिनव बिन्द्रा: जिद और जुनून ने दिलाया गोल्ड

ओलम्पिक में भारत को गोल्ड मेडल मिलने से हर भारतवासी खुशी से झूम उठा। बिन्द्रा की ज़िद और जुनून ने उन्हें इस मुकाम पर पहुँचाया है। बैंकॉक में हुए वर्ल्ड शूटिंग चैम्पियनशिप में बिन्द्रा की टीममेट रहीं इण्टरनेशनल शूटर श्वेता चौधरी ने कहा कि बिन्द्रा ने जो कहा, वह कर दिखाया। श्वेता मामूली अन्तर से ओलम्पिक टीम में जगह बनाने में नाकाम रहीं। श्वेता ने बताया कि बिन्द्रा ओलम्पिक गोल्ड के लिए पिछले चार साल से अनवरत मेहनत कर रहे थे। बिन्द्रा ने जो कहा, वह कर दिखाया।

ऐसे बदली दुनिया, श्वेता बताती हैं कि एथेन्स ओलम्पिक के बाद अभिनव के व्यवहार में चेन्ज आया। एथेन्स ओलम्पिक में पदक हासिल न करने के बाद ही उन्होंने निश्चय कर लिया था कि वह अगला मौका (बीजिंग ओलम्पिक) नहीं गंवाएँगे। एक स्मरण सुनाते हुए श्वेता ने कहा कि बैंकॉक में वर्ल्ड चैम्पियनशिप के दौरान जब भारतीय टीम के अन्य शूटर शाम को शहर घूमने गए थे, बिन्द्रा जिम में एक्सरसाइज कर रहे थे। शायद अभिनव को एथेन्स ओलम्पिक में पदक नहीं जीतने का सदमा ऐसा लगा कि उनके व्यवहार में काफी परिवर्तन आ गया। उसके बाद से वह रिजर्व रहने लगे। इसके पहले वह साथियों के बीच आकर हँसी-मजाक करते थे। इसके बाद वह लगातार विदेशों में जाकर प्रैक्टिस करते रहे।

श्वेता ने बताया कि बिन्द्रा ने स्वयं ही अपने लिए प्राइवेट कोच, पादकलॉजिस्ट व फिजियो नियुक्त किया था। इसके बावजूद, छोटी प्रतियोगिताओं में उनके मेडल न जीतने पर कई बार उनकी आलोचना भी हई, परन्तु उनको जानने वाले जानते थे कि अभिनव में वह क्षमता है, जो वक्त आने पर बड़ी प्रतियोगिता में अवश्य दिखेगा। उनका टारगेट ओलम्पिक ही था।

गोल्फ कैडी: Real Life Inspirational Stories in Hindi

बंगलुरु के गोल्फ क्लब में कैडी (अर्थात् खिलाड़ियों के पीछे बैग उठाकर चलने वाले लड़के) का कार्य करने वाले, चिन्ना स्वामी मनियप्पा ने 11 अक्टूबर, 2009 को 12.5 लाख डॉलर की हीरो होण्डा इण्डियन ओपन चैम्पियनशिप जीतकर सभी को अचम्भे में डाल दिया। जब डीएलएफ गुडगाँव गोल्फ क्लब के मैदान पर चिन्ना स्वामी ने दक्षिण कोरिया के प्रतिष्ठित खिलाड़ी ली सुंग को हराया, तो लोग विश्वास न कर सके।

कर्नाटक के चिन्ना स्वामी मनिअप्पा ने बिना किसी कोच के स्वयं की मेहनत एवं लगन के बल पर यह प्रतियोगिता जीतकर यह साबित कर दिया कि लगन निष्ठा एवं आत्मविश्वास से कोई भी लक्ष्य हासिल करना सम्भव है।

चिन्ना स्वामी आज तक कर्नाटक गोल्फ क्लब के सदस्य नहीं हैं। चिन्ना स्वामी के माता-पिता कर्नाटक के उसी गोल्फ मैदान पर दैनिक मजदूर थे, जहाँ आज उनका बेटा गोल्फ की प्रैक्टिस करता है।

चिन्ना स्वामी ने गोल्फ की बारीकियाँ कैडी का कार्य करते-करते सीखीं एवं प्रोफेशनल गोल्फर बने। हमें गर्व है ऐसे भारतीय पर। चिन्ना स्वामी आज हर उस युवक के लिए प्रेरणास्रोत हैं, जो आर्थिक मजबरी को अपनी सफलता के मार्ग की रुकावट समझते हैं।

शूज के पैसे भी नहीं थे उसैन बोल्ट के पास

वर्ष 2009 में बर्लिन में हुई विश्व एथलेटिक्स चैम्पियनशिप में उसैन बोल्ट (Usain Bolt) ने 100 M एवं 200 M की रेस में स्वयं का ही विश्व रिकॉर्ड तोड़कर तथा 9.50 एवं 19.19 सेकण्ड्स का नया रिकॉर्ड बनाकर, विश्व को चौंका दिया।

दुनिया के सबसे तेज धावक के बचपन की कहानी, उसी की माँ की जुबानी- यह कहानी उस व्यक्ति की है, जो फर्श से अर्श तक पहुँचा है। कहानी उस व्यक्ति की, जो बचपन में खेलता था क्रिकेट, लेकिन आज धूम मचा रहा है एथलेटिक्स में और बन गया है दुनिया का सबसे तेज दौड़ने वाला। आप उसे उसैन बोल्ट (Usain Bolt) के नाम से जानते हैं, लेकिन मेरे लिए वह मेरा प्रिय बेटा ही है। मेरे पति वेलेस्ले गाँव में छोटी-सी दुकान चलाते हैं, इसलिए बचपन में उसैन को स्पोट्र्स शूज नहीं दिला पाए थे। स्कूल प्रबन्धन ने उसे ये जूते दिलाए, जिससे उसकी ट्रेनिंग ने रफ्तार पकड़ी। उसैन का जन्म जमैका के छोटे से गाँव ट्रेलॉनी पेरिश (शेरवुड कन्टेंट) में हुआ, जहाँ स्ट्रीट लाइट्स नहीं थी और पीने का पानी भी नहीं के बराबर था। जहाँ बजुर्ग आज भी गधे पर बैठकर इधर-उधर जाते हैं और लोगों को पीने के पानी के लिए सार्वजनिक नल के सामने घण्टों लाइन लगानी पड़ती है।

उसैन बचपन में हाइपर एक्टिव था। वो जब तीन सप्ताह का था, तो मैं उसे बिस्तर पर लिटाकर कमरे से बाहर चली गई। जब मैं कमरे में आई, तो देखा वो बिस्तर से गिर गया था, लेकिन उस पर चढ़ने की कोशिश में जुटा हुआ था। उसी समय मुझे लग गया था कि यह साधारण बच्चा नहीं है। उसका जन्म तय समय से डेढ़ सप्ताह बाद हुआ था। मुझे लगता है। उसकी रफ्तार सिर्फ उसी समय धीमी रही होगी। मेरे पिता ने सबसे पहले यह नोट किया कि इस बच्चे में कुछ खास बात है। उसके बाद से मैंने उसैन के खान-पान पर ध्यान देना शुरू किया। हमने उसैन का एडमिशन विलियम निब स्कूल में कराया था। वहाँ की प्रिन्सिपल लोन थोप ने कुछ दिन बाद हमें बताया कि हमारा बेटा खेलों में बहुत अच्छा है, इसलिए उसकी ट्रेनिंग का ध्यान भी स्कूल ही रखेगा। बीजिंग में जब उसैन चैम्पियन बना, तो थोपें की खुशी देखने लायक थी। बीजिंग ओलम्पिक में रिकॉर्ड बनने के बाद, उस सफलता के बाद गाँव पर खूब पैसा बरसा। – माँ (जेनिफर बोल्ट)

विषमताओ में भी सफल होते हैं, महान् व्यक्तित्व के धनी:

एक बच्चे का जन्म, अपने पिता की मृत्यु के तीन माह बाद हुआ। इस बच्चे का जन्म, समय से पूर्व (Prematurely) हुआ। जन्म के समय वह बच्चा बहुत कमजोर था। जब वह मात्र तीन वर्ष का था, तो उसकी माँ ने दूसरी शादी कर ली एवं बच्चे को उसकी नानी के पास पालन-पोषण हेतु छोड़ दिया। गाँव के स्कूल में बच्चा पढ़ने लगा। जब वह 15 वर्ष का ही था, तो उसके सौतेले पिता का देहान्त हो गया। बच्चे की माँ वापस आ गई एवं उसने बच्चे की पढ़ाई छुड़वाकर उसे खेत में कार्य करने को कहा। बच्चे को खेत में काम करना पसन्द नहीं था। इस समय हाईस्कूल के एक अध्यापक ने उसकी सहायता की और वह पुनः स्कूल जाने लगा।

19 वर्ष की उम्र में उसे एक लड़की से प्यार हो गया और उसने उससे शादी कर ली, लेकिन बहुत जल्दी ही वह लड़की उसे छोड़कर चली गई। इसके बाद उस लड़के ने कभी शादी नहीं की। जन्म से ही दुर्भाग्यशाली उस बच्चे को जीवन में हर क्षेत्र में विषमताओं का सामना करना पड़ा। आप सोच सकते हैं। कि वह बच्चा जीवन में क्या कर सकता है?

यह बच्चा बड़ा होकर विश्व प्रसिद्ध वैज्ञानिक ‘न्यूटन’ के रूप में विख्यात हुआ, जिसने गुरुत्वाकर्षण के नियमों का प्रतिपादन किया।

अड़सठ की उम्र में हिमालय जीता:

उत्तरकाशी की चन्द्रप्रभा अटवाल ने कायम की मिसाल, 6133 मी ऊँची चोटी श्रीकंठ पर लहराया तिरंगा। उत्तरकाशी की 68 वर्षीय चन्द्रप्रभा अटवाल पहाड़ों की गोद में खेलकर बड़ी हुई और होश सम्भालने पर इन्हीं से दिल लगा बैठीं। उम्र के इस पड़ाव में भी चन्द्रप्रभा के हौसले इतने बुलन्द हैं कि उन्होंने हिमालय की 6133 मी ऊँची चोटी श्रीकंठ पर तिरंगा फहराकर मिसाल कायम की है।

आठ महिला पर्वतारोहियों के दल का नेतृत्व करने वाली चन्द्रप्रभा को पहाड़ों से इस कदर मोह हो गया कि उन्होंने शादी भी नहीं की। पर्वतारोहण का 40 साल का अनुभव रखने वाली चन्द्रप्रभा ने कई अन्य देशों में पर्वतारोहण किया है।

इस पर्वतारोही ने नेपाल, चीन, जापान में पहाड़ों की ऊँचाई नापी है। चन्द्रप्रभा को माउण्ट एवरेस्ट पर तिरंगा नहीं फहरा पाने का मलाल आज भी है। उन्होंने बताया कि वे तीन बार एवरेस्ट मिशन के लिए चुनी गईं, लेकिन वे इन्हें पूरा नहीं कर पाईं। – Real Life Inspirational Stories in Hindi

विल्मा रूडोल्फ: Inspirational Stories Hindi

विल्मा रूडोल्फ का जन्म एक गरीब परिवार में हुआ था। जब वे मात्र चार वर्ष की थीं, तो उन्हें भयंकर निमोनिया एवं ज्वर हो गया, जिससे उन्हें पोलियो हो गया। डॉक्टर ने उन्हें पैर में ‘ब्रेस’ पहना दिया और कहा कि अब वे कभी पैर से नहीं चल सकेंगी। विल्मा की माँ उन्हें हमेशा प्रोत्साहित करती रहती और उन्हें ईश्वर प्रदत्त योग्यता का उपयोग करने एवं हिम्मत से काम लेने हेतु उत्साहित करती रहती थी। विल्मा रूडोल्फ बहुत हिम्मत वाली लड़की थी। हार मानना तो जैसे वह जानती ही न थी। नौ वर्ष की उम्र में, डॉक्टरों की सलाह के विपरीत, उन्होंने अपने पैर से ब्रेस उतार दिए एवं धीरे-धीरे पैरों पर चलना शुरू किया।

13 वर्ष की उम्र में दौड़ में हिस्सा लिया। वह दौड़ में बार-बार पराजित हुई, लेकिन एक दिन ऐसा भी आया, जब वह प्रथम आईं।

15 वर्ष की उम्र में वह Tennessee State University गई। वहाँ वह एक Temple नामक कोच से मिली, उन्होंने कोच से कहा कि मैं दुनिया की सबसे तेज धाविका बनना चाहती हूँ। कोच ने उनकी लगन, निष्ठा एवं दृढ़ संकल्प को देखते हुए, कहा कि “तुम्हें कोई नहीं रोक सकता और इसमें मैं तुम्हारी सहायता करूंगा, तुम्हें ट्रेनिंग दूंगा।”

वह दिन भी आया, जिसका विल्मा रूडोल्फ को बेसब्री से इन्तजार था। वह 1960 के ओलम्पिक खेलों में हिस्सा ले रही थी। विल्मा का मकाबला जुता हायने (Jutta Heine) नामक धाविका से था, जो कभी हारी ही नहीं थी।

पहली दौड़ 100 मी की थी। विल्मा ने जुत्ता को पराजित किया एवं अपना प्रथम स्वर्ण पदक जीता।

दूसरी दौड़ 200 मी की हुई, उसमें भी विल्मा ने जुत्ता को पराजित किया एवं अपना दूसरा स्वर्ण पदक जीता।।

तीसरी दौड़ 400 मी की बेटन रिले रेस थी। यहाँ भी वह जुत्ता हायने के मुकाबले में थी। इस दौड़ में सबसे तेज धावक को सबसे अन्त में रखा जाता है। यहाँ तीन धावकों के दौड़ने के बाद जब बेटन विल्मा को दिया गया, तो बेटन, विल्मा के हाथ से गिर गया, लेकिन जैसे ही विल्मा ने जुत्ता को दौड़ते हुए देखा, उसने तुरन्त बैटन उठाया और अविश्वसनीय गति से मशीन की तरह दौड़ लगा दी।

इस तरह उसने तीसरा स्वर्ण पदक भी अपने नाम किया। यह ऐतिहासिक घटना थी। विल्मा ने इतिहास रच दिया था। उसने दुनिया की सबसे तेज दौड़ने वाली महिला बनने का सपना साकार कर लिया।

अपंग महिला का यह कारनामा इतिहास में दर्ज है एवं जीतने की इच्छा रखने वालों के लिए एक शानदार प्रेरणापूँज है। यह उन लोगों के लिए सबक है, जो अपनी असफलता के न जाने कितने बहाने बताते हैं, परिस्थितियों को दोष देते हैं। सफलता हिम्मती, साहसी और संकल्पित लोगों की दासी है, यह सिद्ध किया विल्मा रूडोल्फ ने। विल्मा रूडोल्फ को शत्-शत् नमन। True Motivational Story in Hindi 

लिज्जत पापड़ की कहानी

(मात्र 80 रूपये से शुरू होकर 500 करोड़ से अधिक की अविश्वसनीय बिक्री का लेखा-जोखा)

अच्छी क्वालिटी एवं सुरुचिपूर्ण स्वाद के लिए पहचाने जाने वाले लिज्जत पापड़ की सफलता की कहानी, निश्चित रूप से सहकारी क्षेत्र में सफलता की शानदार मिसाल है। मात्र 80 रु में केवल 7 महिलाओं द्वारा वर्ष 1959 में शुरू किए गए महिला गृह उद्योग ने आज 500 करोड़ से अधिक की बिक्री का आँकड़ा पार कर लिया है। आज इस संस्थान से 42000 से अधिक महिलाएँ जुड़ी हुई हैं। इसने एक बीमार, बन्द पड़ी पापड़ बनाने की इकाई को खरीदकर 15 मार्च, 1959 को पापड़ बनाने का कार्य शुरू किया। चार पैकेट पापड़ बनाने से इस उद्योग की मुम्बई में शुरूआत हुई। धीरे-धीरे यह को-ऑपरेटिव में परिवर्तित हो गया और आज एक बड़े उद्योग के रूप में इसे जाना जाता है।

इसकी पहले वर्ष की बिक्री मात्र 6196 रु थी। आज इसकी बिक्री 500 करोड़ से भी अधिक है।

यह कहानी महिलाओं के सशक्तीकरण एवं उनकी मेहनत से उपजी अभूतपूर्व सफलता की कहानी है। आज लिज्जत पापड़ न केवल हमारे देश के घर-घर में प्रयुक्त होता है, बल्कि इसका निर्यात भी किया जा रहा है। इस संस्थान का कोई एक मालिक नहीं है, बल्कि संस्थान से जुड़ी हर महिला इसकी स्वामिनी है, लाभ एवं हानि बराबर से सभी द्वारा साझा किए जाते हैं।

इस संस्थान में न दान लिया जाता है, न ही किसी तरह का भी दान स्वीकार किया जाता है। संस्थान में निर्णय थोपा नहीं जाता, बल्कि सभी के द्वारा सर्वसम्मति से लिया जाता है। सचमुच महिला गृह उद्योग-लिज्जत पापड़, एक अनूठा संस्थान है, जिसकी सफलता की कहानी भी अद्भुत है।

सातवीं कक्षा तक पढ़े कर्नल ने दुनिया में KFC की चेन शुरू की:

कर्नल साण्डर्स (Colonel Sanders), जिनका पूरा नाम हारलैण्ड डेविड साण्डर्स (Harland David Sanders) था। एक अमेरिकन व्यवसायी थे, जिन्होंने KFC (Kentucky Fried Chicken) उत्पादकों की चेन सारी दुनिया में फैलाई। साण्डर्स जब 5 वर्ष के ही थे, तो उनके पिता का देहान्त हो गया, चूंकि उनकी माँ नौकरी पर जाती थी, तो घर का खाना उन्हें ही पकाना होता था। जब वे 7वीं कक्षा में थे, तो उन्हें पढ़ाई छोड़नी पड़ी। जब उनकी माँ ने दूसरी शादी कर ली तो साण्डर्स घर से भाग गए। जीवन की शुरूआत में साण्डर्स को बहुत संघर्ष करना पड़ा। कभी स्टीम बोट में नौकरी की, तो कभी इंश्योरेंस में सेल्समैन का कार्य किया, तो कभी रेलरोड में फायरमैन का कार्य किया।

16 वर्ष की उम्र में (अपनी उम्र को गलत बताकर) वे आर्मी में भरती होकर क्यूबा में नौकरी करते रहे। 40 वर्ष की उम्र में साण्डर्स चिकन बनाते थे एवं जो उनके सर्विस स्टेशन पर रुकते, उनके लिए वे चिकन काम आते। उस समय उनके पास कोई रेस्तराँ नहीं था। चिकन की गुणवत्ता के कारण शीघ्र ही उसकी बिक्री बढ़ने लगी और वे 142 सीट वाले होटल में मुख्य कुक (Chef) की तरह कार्य करने लगे। वहाँ उन्होंने चिकन पकाने का नया तरीका Pressure Fryer ईजाद किया।

वर्ष 1935 में गवर्नर रूबी लफून (Ruby Laffoon) द्वारा उन्हें Kentucky Colonell की उपाधि दी गई। अब धीरे-धीरे कर्नल साण्डर्स का KFC चिकन बहुत प्रसिद्ध हो गया। वर्ष 1964 में कर्नल ने KFC Corporation का हिस्सा 2 मिलियन डॉलर्स में बेच दिया। कर्नल ने कनाडा में अपनी फ्रेंचाइजी बेची एवं खूब धन कमाया।

यह कहानी बताती है कि अपनी उच्च क्वालिटी एवं कड़ी मेहनत से आप अत्यन्त कठिन परिस्थितियों में भी बहुत बड़ी सफलता अर्जित कर सकते हैं।

संजय अरवाडे: दृढ़ निश्चय की जीती-जागती मिसाल

कुली पिता और बीड़ी बनाने वाली माँ के लाडले संजय अखाडे ने तय किया आईएएस अधिकारी बनने का सफर। किसी चीज को पाने के लिए यदि पूरी शिद्दत के साथ कोशिश की जाए, तो मानकर चलिए कि आपको कामयाब होने से कोई भी नहीं रोक सकता, इसका उदाहरण है संजय अखाडे। महाराष्ट्र के नासिक जिले के संजय अखाडे, घोर विपन्नता के बावजूद आईएएस बनने में कामयाब रहे।

नासिक के मखमलाबाद रोड की तंग गलियों में बने एक घर की चाहरदीवारी में कुली के बेटे के रूप में जन्मे मेधावी संजय अखाडे। माँ महीने के तीसों दिन आधे पेट रहकर फैक्ट्री में बीड़ी बनाती, तब उम्मीद बन्धती कि कम-से-कम बच्चे चाय में डुबोकर डबल रोटी तो खा ही लेंगे। पिता का कोई कसूर नहीं स्टेशन पर कुली का काम कर रहे व्यक्ति को आखिर मिलता ही क्या है?

दूसरों के थैले और बोरियाँ उठाते-उठाते वह यह भी भूल जाता कि देर हुई, तो उसके बच्चे आज भी भूखे पेट ही सोएँगे। माता-पिता की ऐसी हालत देख संजय बचपन से ही मजदूरी करने लगे।

कई सालों तक संजय ने होटलों में टेबिल साफ करके, मेडिकल की दुकान पर काम करके, अखबार बाँटकर और एसटीडी की दुकान पर बैठकर अपने पिता का साथ दिया। पिता ने स्कूल में भी डाला तो केवल इस मकसद से कि वे दिनभर की मिली मजदूरी को गिन सकें, लेकिन संजय तो जैसे बने ही कुछ खास बनने के लिए थे। स्कूल में मन लगाकर पढ़ते और बाकी बचे वक्त में मजदूरी कर खुद का पेट पालते। वे खाने, पहनने, रहने में जरूर लोगों से पीछे रहे, लेकिन पढ़ने में सबसे अव्वल रहे। हर कक्षा में उनका पहला स्थान पक्का रहता था। संजय मराठी के अतिरिक्त कोई अन्य भाषा नहीं जानते थे। ऐसे में सुबह अखबार बाँटने के बाद बचे हुए अंग्रेजी अखबारों को पढ़कर उन्होंने अपनी अंग्रेजी सुधारी। मुसीबतों से जूझते हुए संजय स्नातक तक की पढ़ाई पूरी करके प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में जुट गए। सारा दिन मजदूरी करने के बाद जो वक्त मिलता, संजय उसका पूरी ईमानदारी के साथ पढ़ाई में इस्तेमाल करते। बकौल संजय, ‘मैंने संघर्ष के दिनों में एक मिनट भी बरबाद नहीं की।

मै जानता था कि अगर मैंने वक्त की कीमत नहीं पहचानी, तो वक्त भी मझे नहीं पहचानेगा। संजय कहते हैं, “शुरू-शुरू में मैं हीन भावना से ग्रसित था न मैं देखने में अच्छा था और न मेरी पारिवारिक पृष्ठभूमि मजबूत थी और न ही मुझे अंग्रेजी बोलनी आती थी। ऐसे में मैं होशियार छात्रों का सामना कर पाऊँगा? लेकिन ज्यों-ज्यों मैं पढ़ाई करता गया, मेरे आत्मविश्वास के आगे सारी कमियाँ न जाने कहाँ गायब हो गईं।

इसी दौरान संजय को मार्गदर्शक के रूप में पुणे के आईएएस अविनाश धर्माधिकारी मिले। उन्होंने संजय का न केवल हौसला बढ़ाया, बल्कि कोचिंग भी कराई। संजय की मेहनत और अविनाश का मार्गदर्शन रंग लाया। इस साल की संघ लोकसेवा आयोग परीक्षा में सफल प्रत्याशियों की सूची में एक नाम संजय का भी था। संजय को यह सफलता चौथे प्रयास में मिली। अब वे आईएएस बन चुके हैं।

संजय कहते हैं, हालात कितने ही बुरे हों, कितनी गरीबी हो। इसके बाद भी यदि आपकी विल पावर मजबूत हो, आपको हर हाल में सफल होने की सनक हो, तो दुनिया की कोई ताकत आपको कामयाबी का वरण करने से नहीं रोक सकती।” – Real Life Inspirational Stories in Hindi

इसलिए मित्रों! उठो, जागो और तब तक चैन से मत बैठो, जब तक तुम कामयाब न हो जाओ।

वर्नर हाइजेनबर्ग: Inspirational Stories in Hindi

बीसवीं शताब्दी के महान् भौतिकविद् वर्नर हाइजेनबर्ग (1901-1976) जर्मन सैद्धान्तिक भौतिकशास्त्री थे, उन्होंने क्वाण्टम मैकेनिक्स के क्षेत्र में अभूतपूर्व योगदान दिया। क्वाण्टम भौतिकी में प्रयुक्त किया जाने वाला अनिश्चितता का  सिद्धान्त उन्होंने ही प्रतिपादित किया था। नाभिकीय भौतिकी, क्वाण्टम फील्ड थ्योरी और आर्टिकल थ्योरी के क्षेत्र में भी उन्होंने अनेक नियमों, संकल्पनाओं और सिद्धान्तों को अन्वेषित किया।

वर्नर हाइजेनबर्ग उन्नीस साल की उम्र में एक स्कूल में गेटकीपर की नौकरी करते थे, उन्हें पढ़ने का शौक था और वे स्कूल की लाइब्रेरी से पढ़ने के किताबें ले लिया करते थे, एक बार उन्हें प्राचीन यूनानी दार्शनिक प्लेटो की पुस्तक ‘तिमैयस’ मिल गई, जिसमें प्लेटो ने परमाणुओं एवं पदार्थ से सम्बन्धित अपने सिद्धान्त प्रस्तुत किए थे। मामूली शिक्षा प्राप्त वर्नर हाइजेनबर्ग को इस किताब को पढ़ते-पढ़ते भौतिकी में इतनी रुचि हो गई कि उन्होंने इसका विधिवत् अध्ययन करने की ठान ली।

इसके बाद जो हुआ, वह शिक्षा और प्रतिभा में अनुपम उदाहरण के रूप में हमेशा याद रखा जाएगा। वर्नर हाइजेनबर्ग ने भौतिकी का इतना विशद् अध्ययन किया कि मात्र 23 वर्ष की उम्र में वे महान् भौतिकीशास्त्री मैक्स प्लांक के सहायक के रूप में नियुक्त हो गए। 26 वर्ष की उम्र में वे लीपिंजग में भौतिकी के प्रोफेसर बन गए।

32 वर्ष की उम्र में उन्हें पिछले कुछ वर्षों के दौरान भौतिकी के क्षेत्र में किए गए उल्लेखनीय कार्यों के लिए नोबेल पुरस्कार मिल गया।

13 वर्ष की छोटी अवधि में एक गेटकीपर से नोबेल पुरस्कार विजेता तक का सफर तय करने की मिसाल दुनिया में और कोई नहीं है। एक किताब से प्रेरणा पाकर एक साधारण नवयुवक कितनी ऊँचाइयों तक पहुँच सकता है, वर्नर हाइजेनबर्ग की यह कहानी हमें यही बताती है।

फोर्ड मोटर के मालिक: हेनरी फोर्ड

फोर्ड मोटर के मालिक हेनरी फोर्ड दुनिया के चुनिन्दा धनी व्यक्तियों में शुमार किए जाते थे, उनकी गाड़ी की प्रशंसा दुनिया भर में होती थी। एक बार एक भारतीय उद्योगपति भारत में मोटर कारखाना लगाने से पहले फोर्ड से सलाह करने अमेरिका गए। भारतीय उद्योगपति ने अमेरिका पहुँचकर हेनरी फोर्ड से मिलने का समय माँगा। 

फोर्ड ने कहा, “दिन में मैं आपके लिए अधिक समय नहीं निकाल पाऊँगा, इसलिए आप शाम छह बजे आ जाइए।” भारतीय उद्योगपति उनके घर पहुंचे। वहाँ एक आदमी बर्तन साफ कर रहा था। उन्होंने उससे कहा, ‘मुझे हेनरी साहब से मिलना है।’ वह आदमी उन्हें बैठक में बैठाकर अन्दर चला गया।

थोड़ी देर बाद उसने उनके सामने आकर कहा, “तो आप हैं वह भारतीय उद्योगपति। मुझे हेनरी कहते हैं।”

भारतीय उद्योगपति को असमंजस में देखकर हेनरी ने कहा, “लगता है आपको मेरे हेनरी होने पर सन्देह हो रहा है। भारतीय उद्योगपति ने सकपका कर कहा, “हाँ सर, अभी आप को एक नौकर का काम करते देखकर ताज्जुब हुआ इतनी बड़ी कम्पनी के मालिक को बर्तन साफ करते हुए देखकर किसी को भी भ्रम पैदा हो सकता है। यह काम तो नौकरों का है।”

हेनरी ने कहा, “शुरूआत में मैं भी एक साधारण इन्सान था। अपना काम खुद करता था। अपने हाथ से किए गए कठोर परिश्रम का ही फल है कि आज मैं फोर्ड मोटर का मालिक हूँ। मैं अपने अतीत को भूल न जाऊँ और मुझे लोग बड़ा आदमी न समझने लगे, इसलिए मैं अपने सभी काम अपने हाथ से करता हूँ। अपना काम करने में मुझे किसी तरह की शर्मिन्दगी और झिझक नहीं होती।”

भारतीय उद्योगपति उठ खड़े हो गए और बोले, “सर! अब मैं चलता हूँ। मैं जिस मकसद से आपके पास आया था, वह एक मिनट में ही पूरा हो गया। मेरी समझ में आ गया कि सफलता की कुंजी दूसरों पर भरोसा करने में नहीं, स्वयं पर भरोसा करने में है।” Real Life Inspirational Stories in Hindi For Students

फ्लोरेन्स चैडविक: लक्ष्य पर दृष्टि और मन में आत्मविश्वास

4 जुलाई, 1952 को फ्लोरेन्स चैडविक ‘कैटेलिना चैनल’ को तैरकर पार करने वाली पहली महिला बनने जा रही थी। इंग्लिश चैनल पर वह पहले ही विजय प्राप्त कर चुकी थी। पूरी दुनिया उसके इस करिश्मे को देख रही थी। हड्डियाँ जमा देने वाले ठण्डे पानी में कोहरे को चीरती हुई फ्लोरेन्स आगे बढ़ रही थी, वहाँ शार्को का खतरा भी था। 

फ्लोरेन्स ने हार मान ली। बाद में उसे यह जानकर बड़ा दुःख हुआ कि वह सागर तट से सिर्फ आधा मील दूर थी। फ्लोरेन्स ने हार इसलिए नहीं मानी कि वह वाकई तैरते-तैरते थक गई थी, बल्कि इसलिए कि उसे अपना लक्ष्य नहीं दिख रहा था।

इस बात को लेकर फ्लोरेन्स ने कोई बहाना नहीं बनाया। उसने कहा-“मैं झूठ नहीं बोलूंगी….. यदि मुझे जमीन धुंधली-सी भी दिख जाती, तो में तैर गई होती।

दो महीने बाद वह वापस कैटेलिना चैनल की ओर आई। इस बार पहले से बुरे मौसम के बाद भी उसने न केवल चैनल को पार करने वाली पर महिला बनने का खिताब पाया, बल्कि पुरुषों के रिकॉर्ड को भी दो घण्टे के बड़े अन्तर से पीछे कर दिया।

आत्म विजेता ही असली विजेता – Motivational Stories Hindi 

कहते हैं, जिसने खुद को जीता, उसने दुनिया जीत ली। अपने ऊपर विजय प्राप्त करने वाले को सबसे बड़ा योद्धा माना गया है। मनुष्य का असली शत्रु तो वह स्वयं ही है। वस्तुतः हमारे असली शत्रु हमारे कुसंस्कार, हमारी बुरी आदतें, हमारे कुविचार और हमारा भ्रष्ट आचरण आदि हैं।

दीमक लकड़ी को, विषाणु स्वास्थ्य को चाट जाते हैं। व्यसन एवं दुर्गुण मनुष्य को गर्त में धकेलते हैं और उसके उत्कर्ष का कोई प्रयास सफल नहीं होने देते। दूसरों का दोष हमें तुरन्त दिखाई देता है, जबकि अपने दोषों के प्रति हम आँखें मूंदे रहते हैं। यदि हम अपने व्यसनों, दुर्गुणों, चारित्रिक दोषों का परिमार्जन कर सकें, अपने कुसंस्कारों पर विजय प्राप्त कर सकें, तो हम असली विजेता हैं। इन शत्रुओं पर विजय प्राप्त करना सबसे कठिन एवं दुरूह कार्य है, इन्हें परास्त करने वाला ही वास्तविक विजेता है।

करसन भाई पटेल: गरीबी से सम्पन्नता की यात्रा

एक मध्यम वर्गीय किसान परिवार में जन्मे करसन भाई पटेल का जन्म गुजरात के मेहसाना कस्बे में हुआ, उन्होंने अपना जीवन गुजरात के खान विभाग में लैब एसिस्टेन्ट की नौकरी से शुरू किया। वर्ष 1969 में जब करसन भाई की उम्र मात्र 25 वर्ष थी, उन्होंने घर में ही एक लघु उद्योग स्थापित किया, जिसमें उन्होंने डिटरजेन्ट बनाना शुरू किया।

यह ऐसा समय था, जब बाजार में विदेशी कम्पनियों के ही डिटरजेण्ट मिला करते थे और किसी भारतीय उद्योग द्वारा डिटरजेण्ट बनाने की कल्पना भी न की जा सकती थी।

करसन भाई घर-घर जाकर तीन रुपये प्रति किलो की दर से निरमा डिटरजेण्ट बेचा करते थे। उन्होंने निरमा नाम अपनी बेटी निरूपमा के नाम से लिया। निरमा पाउडर ने डिटरजेण्ट पाउडर की दुनिया में तहलका मचा दिया। व्यक्ति से शुरू इस उद्योग में आज करसन भाई के पास 15000 व्यक्तियों का समूह है। आज निरमा का वार्षिक टर्न ओवर 35500 करोड़ से अधिक है।

करसन भाई हर उस व्यक्ति के लिए सदैव प्रेरणा के स्रोत रहेंगे, जो जीवन में कड़ी मेहनत करके कुछ करने की इच्छा रखते हैं।

फोर्ब्स पत्रिका के अनुसार, सन् 2005 में करसन भाई की कुल पूँजी 640 मिलियन डॉलर थी।

भारत रत्न प्राप्त डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम: Story

अब्दुल कलाम का जन्म 15 अक्टूबर, 1931 को तमिलनाडु के एक गाँव धनुषकोडी में हुआ था। इनके पिता, मछुआरों को किराए पर नाव देते थे। कलाम ने अपनी पढ़ाई के लिए धन की पूर्ति हेतु अखबार बेचने का कार्य भी किया। डॉ. कलाम ने जीवन में अनेक चुनौतियों का सामना किया। उनका जीवन सदा संघर्षशील रहने वाले एक ऐसे व्यक्ति की कहानी है, जिसने कभी हार नहीं मानी तथा देशहित में अपना सर्वस्व न्योछावर करते हुए, सदा उत्कृष्टता के पथ पर चलते रहे। 71 वर्ष की आयु में भी वे अथक परिश्रम करते हुए भारत को सुपर पावर बनाने की ओर प्रयासरत थे।

भारत रत्न डॉ. अब्दुल कलाम भारत के 11वें राष्ट्रपति बने। वे भारत रत्न से सम्मानित होने वाले तीसरे राष्ट्रपति हैं। भारत के मिसाइल कार्यक्रम के जनक, डॉ. कलाम ने देश को ‘अग्नि’ एवं ‘पृथ्वी’ जैसी मिसाइलें देकर, चीन एवं पाकिस्तान को इनकी रेंज में लाकर, दुनिया को चौंका दिया।

एक बार एयरफोर्स के पायलेट के साक्षात्कार में 9वें नम्बर पर आने के कारण (कुल आठ प्रत्याशियों का चयन करना था) उन्हें निराश होना पड़ा था।

वे ऋषिकेश बाबा शिबानन्द के पास चले गए एवं अपनी व्यथा उन्हें सुनाई।

बाबा ने उन्हें कहा :- 

Accept your destiny and go ahead with your life.  You are not destined to become an Airforce Pilot. What you are destined to become is not revealed now but it is predetermined. Forget this failure, as it was essential to lead you to your existence. Become one with yourself, my son. Surrender yourself to the wish of God.

बाबा शिवानन्द का कहने का अर्थ यह था कि असफलता से निराश होने की आवश्यकता नहीं। यह असफलता आपकी दूसरी सफलताओं के द्वार खोल सकती है। तुम्हें जीवन में कहाँ पहुँचना है, इसका पता नहीं। आप कर्म करो, ईश्वर पर विश्वास करो।

डॉ. कलाम का जीवन, हर उस नवयुवक के लिए आदर्श प्रेरणा स्रोत है, जो अपने जीवन में एक असफलता मिलने पर ही निराश हो जाते हैं। डॉ. कलाम ने अपने सारे जीवन में नि:स्वार्थ सेवा कार्य किया। उनका राष्ट्र प्रेम और उनका देशभक्ति का ज़ज्बा हर भारतीय के लिए सबक एवं प्रेरणा का पुंज है और हमेशा रहेगा।  – Real Life Inspirational Stories in Hindi For Success

प्रकाश कँवर: अनपढ़ माँ की जिद ने अपनी बेटी को बनाया आईएएस

प्रकाश कँवर को अपने अनपढ़ होने का मलाल था, लेकिन साधारण परिस्थिति में गुजर-बसर करते हुए आज अपनी बेटी डॉ. रतनकॅवर गढ़वी चारण (24) को आईएएस बना देखकर वे गौरवान्वित हैं।

रतनकॅवर ने पहले अपनी मेहनत से एमबीबीएस की डिग्री हासिल की और यूपीएससी की परीक्षा में 124वीं रैंक हासिल करने में कामयाब रही। रतनकुँवर बचपन से ही पढ़ाई में होशियार रही है। दसवीं और बारहवीं की परीक्षाओं में उसने 91% से अधिक अंक प्राप्त किए। रतनकावर ने एमबीबीएस करने के बाद आईएएस बनने की ठानी। रतनकॅवर का कहना है कि आईएएस बनकर उसने माँ की वर्षों पुरानी इच्छा पूरी कर दी है।

रतनकॅवर ने भी अपनी सफलता का श्रेय माँ को देते हुए बताया, “डॉक्टर बनने के पहले और यूपीएससी की परीक्षा की तैयारी के दौरान, ऐसा लगता था, जैसे माँ को ही परीक्षा देनी है। वे मेरे साथ पूरी रात जागती रहती थीं।”

नरेश गोयल: जेट एयरवेज के चेयरमैन

23 दिसम्बर, 1950 को जन्मे नरेश गोयल ने अपने जीवन में बहुत संघर्ष किया है। नरेश गोयल को स्कूल जाने के लिए कई मील पैदल चलना पड़ता था, क्योंकि उस समय उनके पिता की आर्थिक स्थिति साइकिल खरीदने की नहीं थी। गोयल ने अपना जीवन अपने मामा की कम्पनी में से 300 प्रतिमाह की कैशियर की नौकरी से शुरू किया। आज उनकी कुल पूँजी 8100 करोड़ की ऑकी जाती है।

नरेश गोयल ने कभी भी अपने पुराने समय को नहीं भुलाया। वे जीवन में बहुत विनम्र एवं संयमित हैं। वर्ष 1967 में कॉमर्स से स्नातक करने के बाद उन्होंने लेबनीज एयरलाइन्स में सेल्स एजेण्ट की तरह कार्य करना शुरू किया।

वर्ष 1967 में इराकी एयरवेज में पब्लिक रिलेशन ऑफिसर एवं 1971 से 1974 तक जॉर्डन एयरलाइन्स में रीजनल मैनेजर के पद पर कार्य किया। इस तरह कई एयरलाइन्स में कार्य अनुभव प्राप्त करने के बाद 1992 में नरेश गोयल ने जेट एयरवेज को शुरू करके, अपने जीवन के सपने को पूरा किया। जीवन के इस मुकाम तक पहुँचने वाले गोयल, उन सभी नवयुवकों के प्रेरणा स्रोत हैं, जो परिस्थितिवश अपना जीवन बहुत छोटे स्तर से शुरू कर पाते हैं।

नरेश गोयल ने हमेशा बड़े सपने देखे और उन्हें पूरा करने हेतु खूब मेहनत से संघर्ष भी किया एवं सफल हुए।

सुब्रोतो राय: सहारा ग्रुप के चेयरमैन

सुब्रोतो राय का जन्म 10 जून, 1947 में बिहार के एक गाँव अररिया में हुआ। सुब्रोतो राय ने वर्ष 1978 में तीन व्यक्तियों की टीम के साथ एक पैरा बैंकिंग व्यवसाय मात्र 43 डॉलर की रकम से शुरू किया। आज सहारा ग्रुप कम्पनियों की कुल पूँजी लगभग 50 बिलियन डॉलर की ऑकी जाती है। आज सहारा समूह मनोरंजन, मीडिया, प्रोपर्टीज एवं हवाई यात्रा जैसे विभिन्न महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में अपना अच्छा दखल रखता है। 

सुब्रोतो राय की सफलता की कहानी योजनाबद्ध कार्यकुशलता, उच्च प्रबन्धन क्षमता एवं लक्ष्य निर्धारण कर उस दिशा में अपनी क्षमता एवं योग्यता को लगाकर, सफलता की बुलन्दियों पर पहुँचने की है।

सर एम विश्वेश्वरैया: ईमानदारी एवं कर्मठता की प्रतिमूर्ति

सर एम. विश्वेश्वरैया को लोग सर एमवी के नाम से जानते, पहचानते थे। उनका जन्म 15 सितम्बर, 1860 को पुराने मैसूर राज्य के गाँव मुदेनहाली (Muddenahalli) में हुआ था। उनके पिता श्रीनिवास शास्त्री संस्कृत के विद्वान् थे, उनकी माता एक धार्मिक महिला थी।

पढ़ाई में प्रारम्भ से ही मेधावी रहे सर एमवी ने अपना कैरियर नासिक में सहायक इन्जीनियर की तरह शुरू किया। उन्होंने सिन्धु नदी से सुक्कु कस्बे को पानी सप्लाई का तरीका ईजाद किया। उन्होंने पानी को व्यर्थ बहने से रोकने हेतु बाँध पर स्टील के दरवाजे लगवाए। कृष्णा राज सागर बाँध का डिजाइन भी सर एमवी ने ही तैयार किया। वह पूरी तरह ईमानदार एवं सचरित्र व्यक्तित्व के धनी थे।

वर्ष 1912 में मैसूर के महाराजा ने उन्हें दीवान नियुक्त करने की पेशकश की। इस नियुक्ति को स्वीकार करने से पूर्व उन्होंने अपने सभी रिश्तेदारों को रात्रिभोज पर आमन्त्रित किया और सभी से स्पष्ट कहा कि वह दीवान के पद को तब ही स्वीकार करेंगे, जब आप मुझे यह आश्वासन देंगे कि कोई मुझसे पक्षपातपूर्ण कार्य हेतु आग्रह नहीं करेगा।

मैसर के दीवान के रूप में उन्होंने बहुत शानदार कार्यों को अन्जाम दिया। चन्दन तेल की फैक्टरी, स्टील फैक्टरी, मेटल फैक्टरी, भद्रावती आयरन एवं स्टील फैक्टरी उन्हीं के समय में स्थापित हुईं। वर्ष 1955 में उन्हें भारत रत्न से नवाजा गया। ऐसे महान् व्यक्तित्व ईमानदारी एवं कर्मठता की अनूठी मिसाल हैं एवं सभी के लिए प्रेरणास्रोत हैं।

मेघनाद साहा: महान् वैज्ञानिक Motivational Story

6 अक्टूबर, 1883 को साहा का जन्म ढाका (जो अब बांग्लादेश में है) जिले के एक छोटे से गाँव में हुआ था। उनके पिता एक परचून की दुकान चलाते थे। उनका परिवार काफी गरीब था। मेघनाद साहा की, स्कूल की फीस इत्यादि की पूर्ति एक स्थानीय डॉक्टर अनन्ता दास द्वारा की जाती थी।

साहा शुरू से ही बहुत मेहनतकश एवं मेधावी छात्र थे। कलकत्ता यूनिवर्सिटी की प्रवेश परीक्षा में वर्ष 1909 में साहा ने पूर्वी बंगाल में सभी छात्रों में प्रथम स्थान प्राप्त किया। एस्ट्रोफिजिक्स के क्षेत्र में मेघनाद साहा ने बहुत शानदार एवं सराहनीय कार्य किया।

1947 में उन्होंने ‘न्यूक्लीयर फिजिक्स इन्स्टीट्यूट’ की स्थापना की, जिसे बाद में ‘साहा इन्स्टीट्यूट ऑफ न्यूक्लीयर फिजिक्स’ के नाम में परिवर्तित कर दिया गया।

एक गरीब परिवार में जन्म लेने के बाद भी मेघनाद साहा, अपनी संकल्पशक्ति, प्रबल आत्मविश्वास एवं कठिन मेहनत के कारण देश के महान् वैज्ञानिकों में गिने जाते हैं। उनका निधन वर्ष 1956 में हृदयगति रुक जाने से अचानक हुआ।

महान् गणितज्ञ रामानुजन: धुन के पक्के

रामानुजन का जन्म एक गरीब परिवार में 22 दिसम्बर, 1807 को तमिलनाडु के इरोड़ कस्बे में हुआ था। उनके पिता एक साड़ी की दुकान पर क्लर्क का काम करते थे। रामानुजन के जीवन पर उनकी माँ का बहुत प्रभाव था। जब वे 11 वर्ष के थे, तो उन्होंने SL Loney द्वारा लिखित गणित की किताब की पूरी मास्टरी कर ली थी। गणित का ज्ञान तो जैसे उन्हें ईश्वर के यहाँ से ही मिला था। 14 वर्ष की उम्र में उन्हें मेरिट सर्टीफिकेट्स एवं कई अवार्ड मिले।

वर्ष 1904 में जब उन्होंने टाउन हाईस्कूल से स्नातक पास की, तो उन्हें के. रंगनाथा राव पुरस्कार, प्रधानाध्यापक कृष्ण स्वामी अय्यर द्वारा प्रदान किया गया।

वर्ष 1909 में उनकी शादी हुई, उसके बाद वर्ष 1910 में उनका एक ऑपरेशन हुआ। घरवालों के पास उनके ऑपरेशन हेतु पर्याप्त राशि नहीं थी। एक डॉक्टर ने उनका मुफ्त में यह ऑपरेशन किया था। इस ऑपरेशन के बाद रामानुजन नौकरी की तलाश में जुट गए। वे मद्रास में जगह-जगह नौकरी के लिए घूमे। इसके लिए उन्होंने ट्यूशन भी किए। वे पुनः बीमार पड़ गए।

इसी बीच वे गणित में अपना कार्य करते रहे। ठीक होने के बाद, उनका सम्पर्क नेलौर के जिला कलेक्टर-रामचन्दर राव से हुआ। वह रामानुजन के गणित में कार्य से बेहद प्रभावित हुए। उन्होंने रामानुजन की आर्थिक मदद भी की। वर्ष 1912 में उन्हें मद्रास में चीफ अकाउण्टेंट के ऑफिस में क्लर्क की नौकरी भी मिल गई। वे ऑफिस का कार्य जल्दी पूरा करने के बाद, गणित का रिसर्च करते रहते, इसके बाद वे इंग्लैण्ड चले गए। वहाँ उनके कार्य को खूब प्रशंसा मिली। उनके गणित के अनूठे ज्ञान को खूब सराहना मिली।

वर्ष 1918 में उन्हें ट्रिनिटी कॉलेज कैम्ब्रिज का फेलो (Fellow of Trinity College Cambridge) चुना गया। वह पहले भारतीय थे, जिन्हें इस सम्मान (Position) के लिए चुना गया।

बहुत मेहनती एवं धुन के पक्के थे। कोई भी विषम परिस्थिति, आर्थिक कठिनाइयाँ, बीमारी एवं अन्य परेशानियाँ उन्हें अपनी ‘धुन’ से नहीं डिगा सकीं। वे अन्ततः सफल हुए।

आज उन्हें विश्व के महान् गणितज्ञों में शुमार किया जाता है। 32 वर्ष की छोटी उम्र में ही इस प्रतिभाशाली व्यक्ति का देहावसान हो गया। दुनिया ने एक महान गणितज्ञ को खो दिया। – Real Life Inspirational Stories in Hindi For Success in Life

ब्रह्मचारिणी कमलाबाई: कर्मठता एवं जीवन्तता की मिसाल

राजस्थान के नागौर जिले के कुचामन कस्बे में सन् 1923 में जन्मी कमलाबाई की जीवन कथा आत्मविश्वास, स्वाभिमान एवं संघर्षों की ऐसी प्रेरणास्पद कथा है, जो हर महिला, पुरुष को विषम परिस्थितियों में कर्मठता एवं जीवन्तता बनाए रखने हेतु प्रेरित करती है।

12 वर्ष की उम्र में शादी एवं दो वर्ष बाद विधवा होने पर कमलाबाई को भाग्य ने बहुत भयानक त्रासद स्थिति में लाकर खड़ा कर दिया। फिर वह पूरी तरह अनपढ़ थी। क्या करें, क्या नहीं करें? कोई सहारा नजर नहीं आ रहा था।

कमलाबाई, श्री महावीर मुमुक्षा महिला आश्रम (महिलाओं हेतु एक अनाथालय) के साथ जुड गईं। वहाँ उन्होंने लिखना, पढ़ना सीखा। भारतीय संस्कृति एवं इतिहास को मन से पढ़ा। पढ़ते-पढ़ते, उनके अन्दर पिछड़े इलाकों में लड़कियों एवं महिलाओं को पढ़ाने एवं उन्हें पढ़ने के लिए प्रेरित करने हेतु आन्तरिक इच्छा जाग्रत हुई।

तीस वर्ष की उम्र में उन्होंने आदर्श महिला विद्यालय शुरू किया, जिसमें शुरू में मात्र 6 लड़कियों ने प्रवेश लिया। आज उस विद्यालय में 2000 छात्राएँ हैं, जिनमें अधिकांश पिछड़े वर्ग एवं जनजाति समुदाय की लड़कियाँ है। वहाँ उन्होने लड़कियों का एक हॉस्टल भी बनाया, जिसमें 650 लड़कियाँ रहती हैं।

लड़कियों एवं महिलाओं में शिक्षा के प्रसार को ही ब्रह्मचारिणी कमलाबाई ने अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया है। वर्ष 1999 में कमलाबाई को देवी अहल्याबाई होल्कर स्त्री शक्ति पुरस्कार से नवाजा गया। ब्रह्मचारिणी कमलाबाई ने विषम परिस्थितियों से जूझते हुए केवल, स्वयं के जीवन को ही सार्थक नहीं बनाया, बल्कि हजारों पिछड़ी एवं जनजाति समुदाय की महिलाओं को भी शिक्षित कर, उनके जीवन में आशा का संचार किया।

सुधा चन्द्रन: दृढ़ संकल्प-शक्ति की मिसाल

सुधा चन्द्रन True Inspirational Story in Hindi

सुधा चन्द्रन

दुर्घटना में एक पैर गैवाने के बाद, कोई महिला जीवन में ‘नृत्य करने के सम्बन्ध में सोचने की कल्पना भी नहीं कर सकती, लेकिन सुधा चन्द्रन ने अपने अदम्य आत्मविश्वास, दृढ़ संकल्प-शक्ति के बल पर, अकल्पनीय को भी हकीकत में बदल डाला।

दुर्घटना में अपना एक पैर गैवाने के बाद सुधा चन्द्रन ने ‘जयपुर फुट’ लगाकर अपनी डांस प्रैक्टिस शुरू की और फिल्म ‘नाचे मयूरी’ में उनका शानदार डांस देखकर लोग अचम्भित रह गए, लोगों ने दाँतों तले अँगुली दबा ली।

आज सुधा चन्द्रन की गणना, बहुत शानदार एवं सफल नर्तकी, टीवी एवं फिल्म एक्ट्रेस के तौर पर की जाती है। सुधा चन्द्रन का कहना है कि जब हेलेन कीलर अपंगता से बाहर आ सकती है, तो मैं क्यों नहीं? उनका मानना है कि सफलता व्यक्ति की सोच में होती है। हम जो चाहे, वह प्राप्त कर सकते हैं, लेकिन इसके लिए चाहिए दृढ़ आत्मविश्वास।

शिव नाडार: एचसीएल टेक्नोलोजीज के चेयरमैन

वर्ष 1976 में मात्र 187000 रु से छः व्यक्तियों द्वारा मिलकर शुरू किए गए व्यवसाय को कई परिवर्तनों के बाद मि. नाडार के विश्वास एवं संकल्प ने वर्ष 1999 में देश की आईटी कम्पनियों में टीसीएस के बाद दूसरे नम्बर पर ला खड़ा किया।

नाडार ने अपने जीवन में कई उतार-चढ़ाव देखे, लेकिन हार नहीं मानी और लगातार संघर्षशील रहे। दृढ़ आत्मविश्वास के धनी, योजनाबद्ध कार्य करने वाले, इन्जीनियर नाडार आज देश के सफल उद्योगपतियों में गिने जाते हैं।

अमिताभ बच्चन: सदी के महानायक

इस सदी के महानायक, बॉलीवुड के सबसे लोकप्रिय अभिनेता, भारतीय सिनेमा जगत में जिनका कोई सानी नहीं, ऐसे सफलतम व्यक्तित्व का जीवन भी संघर्षों से भरा रहा है। अमिताभ बच्चन ने आज जो मुकाम हासिल किया है, वह न जाने कितने उतार-चढ़ाव, सफलता-असफलता के दौर से गुजरने के बाद हासिल किया है। अमिताभ बच्चन ने अपना कैरियर कोलकाता की एक शिपिंग कम्पनी में नौकरी करने से शुरू किया था। उन्होंने एक बार एक रेडियो सेवा में बतौर समाचार वाचक की नौकरी चाही थी, लेकिन उनकी आवाज को उपयुक्त नहीं माना गया।

वे संघर्ष के दिनों में 7 वर्ष तक प्रसिद्ध हास्य अभिनेता महमूद साहब के निवास पर रहे। उन्होंने राजनीति में भी अपना दांव आजमाया, सांसद भी चुने गए, लेकिन राजनीति उन्हें रास नहीं आई और बीच में ही त्यागपत्र देकर पुनः सिनेमा जगत में भाग्य अजमाने लगे। बोफोर्स विवाद में भी इनका नाम घसीटा गया, जिसके लिए उन्हें अदालत जाना पड़ा, लेकिन अन्तत: उन्हें निर्दोष माना गया।

अमिताभ बच्चन ने वर्ष 1996 में ABCL (Amitabh Bachchan Corporation Ltd.) की स्थापना की। एबीसीएल ने कुछ फिल्में बनाईं, लेकिन वे फ्लॉप रहीं।

एबीसीएल ने वर्ष 1997 में बैंगलोर में आयोजित 1996 की मिस वर्ल्ड सौन्दर्य प्रतियोगिता (1996 Miss World Beauty Pageant) का आयोजन किया, लेकिन खराब प्रबन्धन के कारण इसे करोड़ों रुपये का नुकसान उठाना पड़ा।

वर्ष 1997 में यह वित्तीय एवं क्रियाशील दोनों तरीकों से ध्वस्त हो गई। कम्पनी प्रशासन के हाथ में चली गई और बाद में इसे भारतीय उद्योग मण्डल द्वारा असफल करार दे दिया गया।

इसके बाद कौन बनेगा करोड़पति’ के टीवी प्रोग्राम का एंकर बनकर अमिताभ बच्चन ने पुनः अपनी साख जमाई। इस कार्यक्रम की सफलता से उन्हें एवं उनके परिवार को नैतिक एवं आर्थिक सम्बल मिला और पुन: सफलता के द्वार खुल गए।

हर विषम परिस्थितियों को साहसपूर्वक और धैर्यपूर्वक झेलते हुए अमिताभ बच्चन ने कभी अपना आत्मविश्वास नहीं खोया। बच्चन लगातार संघर्षरत रहते हुए आज सफलता की उन ऊँचाइयों पर पहुँच गए हैं, जहाँ पहुँचने की कल्पना शायद उन्होंने स्वयं भी नहीं की होगी। – True Motivational Stories in Hindi For Success

महमूद अली: महान् बॉक्सर की Inspirational Stories

महमूद अली Real Life Inspirational Stories in Hindi

महमूद अली

महमूद अली का जन्म 17 जनवरी, 1942 को लुइस विले केन्टकी में एक गरीब पेन्टर के घर हुआ। बचपन से ही अली का बॉक्सर बनने का सपना था। उन्होंने तीन बार विश्व हेवीवेट चैम्पियन का खिताब जीता, उनका जीवन काफी संघर्षमय रहा।

एक बार यूएस मिलीटरी में जाने से मना करने पर उनका बॉक्सिग टाइटल सस्पेण्ड कर दिया गया। बाद में उनकी अपील पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा उनके पक्ष में फैसला हुआ। बहुत से लोगों द्वारा बॉक्सिग का आज तक का सर्वश्रेष्ठ बॉक्सर महमूद अली को माना जाता है। ESPN.Com द्वारा उन्हें बॉक्सिग इतिहास में दूसरे नम्बर का सर्वश्रेष्ठ बॉक्सर माना गया है।

ज़िद के पक्के, अदम्य आत्मविश्वास के धनी अली ने अपनी संकल्प शक्ति के बल पर, दुनिया में अपनी सफलता के झण्डे फहराए हैं।

निक वुजिसिक: Real Life Inspirational Stories in Hindi

4 दिसम्बर, 1982 को निक का जन्म ऑस्ट्रेलिया के मेलबॉर्न में हुआ। जन्म से ही निक के कंधों से दोनों हाथ नहीं थे एवं पैरों के नाम पर एक छोटा-सा बायाँ पैर, जिस पर मात्र दो अँगुलियाँ थीं। आप कल्पना कर सकते हैं, कितनी कठिनाइयों एवं पीड़ा का सामना किया होगा निक ने अपने जीवन में। धीरे-धीरे उसके कई दोस्त बने। बच्चों ने ‘निक’ को दोस्त स्वीकार करना शुरू कर दिया। निक ने अपने पैर की दो अँगुलियों से लिखना भी शुरू कर दिया। अपनी उन्हीं दो अँगुलियों से लिखना सीखा, कम्प्यूटर चलाना सीखा, फोन पर बात करना, जवाब देना सीखा। धीरे-धीरे वह टेनिस बॉल भी फेंकने लगे। पानी का गिलास स्वयं उठाना, दाढ़ी बनाना आदि काम वह स्वयं करने लगे। 21 वर्ष की उम्र में कॉलेज से स्नातक पास की तथा अकाउन्टिग एवं फाइनेन्सियल प्लानिंग में डबल डिग्री प्राप्त की।

आज वह लोगों को प्रेरणादायक उपदेश देते हैं, उन्हें लोग प्रोत्साहक एवं प्रेरक वक्ता (Inspiring and motivational Preacher) की तरह जानते हैं। ‘निक प्रचर्यजनक व्यक्तित्व के धनी हैं। वह ‘Life Without limb’ के निदेशक हैं। कि हर व्यक्ति के लिए प्रेरणा के ऐसे ऊर्जावान स्रोत हैं, जो आपको रोमांच से सराबोर कर दे।

एक निर्जीव व्यक्ति में जान फेंक सकने वाले निक वास्तव में हमारे सलाम के काबिल हैं। आत्मविश्वास, आत्मबल से सराबोर ऐसे योद्धा को हमारा बार-बार नमन। A True Motivational Story – Lokhindi

जॉर्ज वाशिंगटन: समय का सम्मान

अमेरिका के प्रथम राष्ट्रपति जॉर्ज वाशिंगटन समय के बड़े पाबन्द थे। एक बार उन्होंने कुछ विशिष्ट अतिथियों को तीन बजे दोपहर के भोजन के लिए आमन्त्रित किया। साढ़े तीन बजे उन्हें सैनिक कमाण्डरों की आवश्यक बैठक में भाग लेना था। ठीक तीन बजे भोजन तैयार था। भोजन टेबल पर लगा दिया गया, लेकिन राष्ट्रपति महोदय के अतिथि नहीं आए। प्रतीक्षा करने की अपेक्षा राष्ट्रपति ने ठीक तीन बजे अकेले भोजन करना आरम्भ किया। आधा भोजन समाप्त होने पर, मेहमान आ पहुँचे।

उन्हें दुःख भी हुआ एवं अप्रसन्नता भी हुई, लेकिन वे भोजन में शामिल हो गए। राष्ट्रपति महोदय ने समय पर अपना भोजन समाप्त किया एवं उनसे विदा लेकर बैठक में भाग लेने चले गए। यह घटना समय प्रबन्धन के महत्त्व को दर्शाती है।

यह घटना आपको अतिरंजित लग सकती है, लेकिन समय की पाबन्दी, समय के महत्त्व को परिलक्षित करने वाली यह घटना, एक व्यक्ति का दृढ़ता को व्यक्त करती है।

महानायक सुभाषचन्द्र बोस: Motivational Story

सुभाषचन्द्र बोस जब बच्चे थे, तो एक दिन माँ के साथ लेटे हुए बिस्तर से उठकर जमीन पर जाकर सो गए। माँ के पूछने पर उन्होंने बताया कि आज अध्यापक जी ने बताया है कि हमारे ऋषि-मुनि जमीन पर सोते एवं कठोर जीवन जीते थे। मैं भी ऋषि बनूंगा। पिताजी ने भी उनकी बात सुनी, तो उन्होंने कहा “मात्र जमीन पर सोना ही पर्याप्त नहीं है, ज्ञान संचय तथा सामाजिक एवं राष्ट्रीय सेवा में संलग्न होना भी आवश्यक है। अभी तुम छोटे हो, माँ के पास जाकर सो जाओ। बड़े होने पर तीनों काम करना।” सुभाष ने पिता की सलाह की गाँठ बाँध ली।

आईसीएस की परीक्षा पास करने के बाद वह खूब ठाठ-बाट का जीवन व्यतीत कर सकते थे, लेकिन उन्होंने कहा, “मैं अपने जीवन का लक्ष्य निश्चित कर चुका हूँ। मातृभूमि की सेवा करूंगा।”

सुभाष बोस का बलिदान, इस देश के स्वतन्त्रता संग्राम के सेनानियों में पहले नम्बर पर गिना जाता है। ऐसे राष्ट्रभक्त को शत् शत् नमन।

धीरूभाई अम्बानी: 300 से 75000 करोड़ तक का सफर

धीरूभाई अम्बानी Motivational Story

धीरूभाई अम्बानी

23 दिसम्बर, 1932 को धीरूभाई का जन्म मोढ़ वैश्व परिवार में गुजरात में हुआ था। धीरूभाई के पिता हीराचन्द गोवर्धनदास अम्बानी एक अध्यापक थे। जब धीरूभाई 16 वर्ष के थे, तो वे यमन (Yemen) चले गए, जहाँ उन्होंने ए. बीस एण्ड कम्पनी (A.Besse & Co) / में  300 रु प्रतिमाह पर काम किया। कुछ दिनों बाद इस कम्पनी के शैल कम्पनी की डिस्ट्रीब्यूटर्स बन जाने से, धीरूभाई इस कम्पनी के पेट्रोल पम्प का कार्य देखने लगे।

वर्ष 1958 में वे भारत वापस लौट आए और उन्होंने एक टैक्सटाइल ट्रेडिंग कम्पनी की स्थापना की। धीरे-धीरे पूर्ण निष्ठा एवं लगन से आगे बढ़ते हुए, धीरूभाई ने अपने व्यवसाय को इतना बढ़ाया कि लोग दाँतों तले अँगुली दबाने को बाध्य हो गए।

लाइन्स इण्डस्ट्रीज के नाम से विश्व में विख्यात उनके टैक्सटाइल्स इण्डस्ट्रीज का टर्नओवर महानायक धीरूभाई अम्बानी के जीवन के अन्त समय में लगभग 75000 करोड़ था। धीरूभाई की प्रगति यात्रा बहुत उतार-चढ़ाव भरी रही और उन्हें अपने जीवन में हर सफलता के पथिक की तरह कड़े संघर्ष एवं प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ा। धीरू भाई ने कभी हार नहीं मानी एवं लगातार संघर्ष करते हुए आगे बढ़ते रहे। आज धीरूभाई अम्बानी की सफलता की यात्रा को लोग एक ऐतिहासिक संघर्ष की गाथा के रूप में जानते हैं।

आर माधवन: बेमिसाल शख्सियत

“भारत को कम-से-कम 10 लाख माधवन की आवश्यकता है।” – एपीजे अब्दुल कलाम (पूर्व राष्ट्रपति) 

ONGC जैसी नवरत्न कम्पनी की नौकरी छोड़कर खेती के व्यवसाय में उतरने वाले आर माधवन एक बेमिसाल शख्सियत हैं। उनकी सफलता की कहानी कुछ इस प्रकार है:-

माधवन जी को बचपन से ही पेड़-पौधे लगाने, सब्जियाँ उगाने में बेहद रुचि थी। किशोरावस्था में ही उन्होंने कई बार अपनी माँ को खुद की उगाई हुई सब्जियाँ लाकर दी थीं और माँ की शाबाशी पाकर उनका उत्साह बढ़ जाता था। बचपन से उनका सपना ‘किसान’ बनने का ही था, लेकिन जैसा भारत के लगभग प्रत्येक मध्यवर्गीय परिवार में होता है कि ‘खेती करोगे? कमाओगे क्या? और भविष्य क्या होगा?’ जैसा सवाल प्रत्येक युवा से पूछा जाता है, इनसे भी पूछा गया। परिवार के दबाव के कारण किसान बनने का कार्यक्रम माधवन को उस समय छोड़ना पड़ा।

माधवन जी ने आईआईटी-जेईई परीक्षा दी और आईआईटी चेन्नई से मेकेनिकल इन्जीनियर की डिग्री प्राप्त की। जाहिर है कि एक उम्दा नौकरी, एक उम्दा कैरियर और एक चमकदार भविष्य उनके आगे खड़ा था, लेकिन कहते हैं ना कि “बचपन का प्यार एक ऐसी शै है, जो आसानी से नहीं भूलती…।

इसके अतिरिक्त, आईआईटी करने के दौरान ‘किसानी’ का यह शौक उनके  लिए “आजीविका के साथ समाजसेवा” का रूप ले चुका था। ONGC में काम करते हुए भी उन्होंने अपने इस शौक को पूरा करने की जुगत लगा ही ली।

समुद्र के भीतर तेल निकालने के ‘रिग’ (Oil Rig) पर काम करने वालों को लगातार 14 दिन काम करने के बाद अगले 14 दिनों का सवैतनिक अवकाश दिया जाता है। माधवन ने यह काम लगातार नौ साल तक किया। 14 दिन तक मेकेनिकल इन्जीनियरिंग का काम और अगले 14 दिन, खेती-किसानी के नए-नए प्रयोग एवं अनुभव।

माधवन के शब्दों में जब मैंने पिता से कहा कि इतने सालों की नौकरी के बाद अब मैं खेती करना चाहूँगा, तो उस वक्त भी उन्होंने मुझे मूर्ख ही समझा था। चार साल की नौकरी में मैंने इतना पैसा बचा लिया था कि चेन्नई के निकट चेंगलपट्टू गाँव में 6 एकड़ जमीन खरीद सकें। वर्ष 1989 में गाँव में पैंट-शर्ट पहनकर खेती करने वाला मैं पहला व्यक्ति था और लोग मुझे आश्चर्य से देखते थे।”

6 एकड़ में उनकी सबसे पहली फसल मात्र 2 टन की ही थी और इससे वे बेहद निराश हुए, लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। वर्ष 1996 में उनके जीवन का ‘टर्निग प्वॉइंट’ साबित हुई उनकी इजराइल यात्रा। उन्होंने सुन रखा था कि ‘टपक-सिंचाई’ (Drip Irrigation) और जल-प्रबन्धन के मामले में इजराइल की तकनीक सर्वोत्तम है। इजराइल जाकर उन्होंने देखा कि भारत में एक एकड़ में एक टन उगने वाली मक्का को इजराइली एक एकड़ में सात टन कैसे उगाते हैं?

जितनी जमीन पर भारत में 6 टन टमाटर उगाया जाता है, उतनी ही जमीन पर इजराइली लोग 200 टन टमाटर का उत्पादन कर लेते हैं, उन्होंने इजराइल में 15 दिन रहकर सारी तकनीकें सीखीं।।

इजराइल में उन्हें मिले एक और हम वतन, डॉ. लक्ष्मणन, जो एक तरह से उनके ‘किसानी-गुरु’ माने जा सकते हैं। कैलिफोर्निया में रहने वाले डॉ. लक्ष्मणन पिछले 35 सालों से अमेरिका में खेती कर रहे हैं और लगभग 60,000 एकड़ जमीन के मालिक हैं।

उन्होंने माधवन की ज़िद, तपस्या और संघर्ष को देखकर उन्हें लगातार ‘गाइडेन्स’ दिया। उनसे मिलकर माधवन को लगा कि पैसे के लिए काम करते हुए, यदि मन की खुशी भी मिले, तो काम का आनन्द दोगुना हो जाता है।

लगभग 8 साल के सतत् संघर्ष, घाटे और निराशा के बाद सन् 1997 में उन्हें पहली बार खेती में प्रॉफिट’ हुआ। माधवन बताते हैं “इतने संघर्ष के बाद भी मेने हार नहीं मानी। मेरा मानना था कि यह एक सीखने की प्रक्रिया है और इसमें मैं गिरूगा और फिर उठूँगा, भले ही कोई मुझे सहारा दे या ना दे। मुझे स्वयं ही लड़ना है और जीतकर दिखाना है।”

माधवन के जीवन का एक और स्वर्णिम क्षण तब आया, जब पूर्व राष्ट्रपति से तय मिनट की मुलाकात दो घण्टे में बदल गई और अन्ततः कलाम साहब के मुँह से निकला कि भारत को कम-से-कम दस लाख माधवन की आवश्यकता है ।”

स्वभाव से बेहद विनम्र श्री माधवन कहते हैं कि “यदि मैं किसी उद्यमशील युवा को प्रेरणा दे सकूँ, तो यह मेरे लिए खुशी की बात होगी।” – Real Life Inspirational Stories in Hindi For Student

एनआर नारायणमूर्ति: Inspirational Story

वर्ष 1946 में जन्मे नारायणमूर्ति के पिता एक स्कूल अध्यापक थे। शुरू से ही मेधावी छात्र रहे नारायणमूर्ति ने इलेक्ट्रिकल इन्जीनियरिंग की डिग्री मैसूर विश्वविद्यालय से प्राप्त की एवं बाद में IT, खड़गपुर से कम्प्यूटर साइन्स की पढ़ाई पूरी की।

वर्ष 1981 में अपने छ; अन्य साथियों के साथ, उन्होंने मात्र 50 की पूँजी से अपना व्यवसाय शुरू किया। तब से वर्ष 1991 तक का, दस वर्ष का समय काफी मेहनत एवं कठिनाइयों में बीता। नारायणमूर्ति अपनी पत्नी के साथ एक कमरे के मकान में रहते थे। वर्ष 1991 में उदारीकरण की शुरूआत के साथ उनकी कम्पनी इंफोसिस (Infosys) के दिन बदल गए।

Infosys प्रथम भारतीय कम्पनी है, जिसके शेयर NASDAQ में लिस्ट हुए। आज Infosys दुनिया की सफलतम कम्पनियों में गिनी जाती है। नारायण मूर्ति सरलता एवं सादगी के प्रतीक हैं। नारायणमूर्ति का सारा परिवार आज भी दिखावटी खर्चे का विरोधी है। नारायणमूर्ति के बच्चों को भी स्वयं के द्वारा किए गए व्यय का हिसाब रखना आवश्यक है।

वर्ष में करोड़ो रुपयों का दान करने वाली कंपनी Infosys के कर्ता-धर्ता, यह परिवार वास्तव में सादगी, सरलता, कड़ी मेहनत से प्राप्त सफलता की जवलंत मिसाल है।

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Written by lokhindi
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