रेलगाड़ी Horror Story – ड़रावनी कहानी हिंदी में

Horror Story

– रेल में सफ़र कर रहे व्यक्ति के साथ घटी एक ड़रावनी घटना / रेलगाड़ी horror story in hindi | New Scary Stories in Hindi


विशाल नामक चालीस वर्षीय व्यक्ति सात माह के बाद अपने भरे-पूरे परिवार में लौट रहा था |

विशाल शहर से बाहर नौकरी करता था, सात महीने का अपना पूरा पैसा इकट्ठा करके वह अपने घर लौट रहा था |

उसके परिवार में उसकी पत्नी थी और दो बच्चे |

रेलगाड़ी Horror Story in hindi

विशाल रेलगाड़ी से अपने घर का सफर तय कर रहा था |

रात काफी हो चुकी थी ट्रेन में सवार सभी लोग अपनी अपनी बर्थ पर सो रहे थे |

मगर विशाल की आंखों में नाम-मात्र को नींद नहीं थी, इसका सबसे बड़ा कारण उसे घर जाने की खुशी थी | घर जाने की खुशी में विशाल को नींद नहीं आ रही थी |

विशाल के अलावा एक व्यक्ति ऐसा और भी था, जो सोया नहीं था |

उसकी बर्थ के सामने वाली बर्थ पर ही वह व्यक्ति बैठा था |

अपने सामने चुपचाप बैठे व्यक्ति को विशाल ने देखा तो जाना कि वह ड्रैकुला की कहानी पढ़ रहा था |

विशाल को लगा कि उसके सामने जो व्यक्ति बैठा है, वह किताब पढ़ने के माध्यम से अपना वक्त बिता रहा है शायद उसे भी नींद नहीं आ रही है |

विशाल को लगा कि वह क्यों न अपने सामने बैठे व्यक्ति से बातचीत करने में अपना समय गुजारे, इसी इरादे के साथ विशाल ने उसे पुकारा- “भाई साहब”

किताब पढ़ रहे व्यक्ति ने उसकी आवाज को अनसुना-सा करके उस पर कोई ध्यान नहीं दिया |

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“भाई साहब”

दूसरी आवाज पर उसने किताब नीचे करके विशाल को सपाट दृष्टि से देखा उसके चेहरे पर भी सपाट भाव ही थे |

इस बार विशाल तनिक संकोच के साथ बोला-

“मैंने आपको डिस्टर्ब तो नहीं किया |”

“नहीं” सामने बैठा व्यक्ति सपाट स्वर में बोला |

विशाल मुस्कुराकर उससे बातों का सिलसिला जारी रखते हुए बोला- “आपका नाम क्या है |”

“सूर्य प्रताप” वह बोला |

“ओह” विशाल ने हलक से सांस छोड़ते हुए कहा “क्या आप भी अपने घर जा रहे हैं|”  

“नहीं” सूर्य प्रताप ने पूर्ववत स्वर में कहा |

“तो फिर आप अपने घर से कहीं और जा रहे हैं” विशाल ने मुस्कुराते हुए सामान्य स्वर में कहा |

प्रताप ने उसे इस नजर से देखा मानो वह कुछ ना कहना चाहता हो |

विशाल चेहरे से ऐसा प्रकट करने लगा मानो बराबर संकोच कर रहा हो | फिर बोला-

“मैं आज सात महीने बाद अपने घर वापस लौट रहा हूं, अपने परिवार से मिलने की खुशी में मुझे नींद नहीं आ रही है इसलिए मैंने सोचा थोड़ा आपसे बात ही कर लूं |”

प्रताप कुछ ना बोला वह उसकी बात पर सिर को इस तरह जुम्बिश देकर रह गया, मानो उसकी बात पर सहमति जता रहा हो |

प्रताप के हाव भाव से साफ जाहिर था कि वह बात करने के मूड में बिल्कुल नहीं था | वह निरंतर जता रहा था कि जैसे उसे इस समय बात करना बिल्कुल अच्छा न लग रहा हो |

मगर आज तो जैसे विशाल चुप रहने के मूड में बिल्कुल नहीं था, वह बातों को बढ़ावा देते हुए बोला-

“भाई साहब, क्या आप भूत-प्रेतों पर विश्वास करते हैं |”

“हां” प्रताप अपने छोटे से उत्तर में बात को पूरा किया |

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“मगर कैसे” विशाल बोला -“क्या आपने कभी किसी भूत या प्रेत को अपनी आंखों से देखा है |”

उसके प्रश्न पर प्रताप ने चंद लम्हो तक उसे ध्यान पूर्वक इस तरह देखा मानो उससे बहुत कुछ कहना चाहता हो |

मगर ऐसा बिल्कुल नहीं हुआ |

कुछ कहने के स्थान पर प्रताप ने किताब अपने चेहरे के सामने की और उसे पढ़ने लगा |

विशाल ऐसा देख उलझ गया उसकी समझ में नहीं आया कि प्रताप ने उसकी बात का कोई जवाब नहीं देकर अपना चेहरा किताब में क्यों छुपा लिया ?

इस बार विशाल ने भरपूर संकोच भरे स्वर में कहा-

“आपने मेरी बात का कोई जवाब नहीं दिया, भाई साहब”

जवाब के रूप में प्रताप ने अपने चेहरे के आगे लगी किताब हटाई तो उसका बहुत ही भयंकर चेहरा विशाल के सामने आ गया |

प्रताप का चेहरा इतना डरावना हो चला था कि यदि कोई मानव उस चेहरे को देखकर अपने प्राण भी गवा बैठता तो हैरानी की बात नहीं थी |  

उसका डरावना चेहरा देखते ही विशाल की आंखों में मानो दुनिया भर का खौफ सिमट आया था | उसके चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगी थी |

विशाल की दोनों हथेलियां बर्थ से इस तरह सट गई थी, मानो उनके सहारे से वह उठकर खड़ा होना चाहता हो, उसकी पीठ पिछले भाग से सट गई थी |

हद यह थी उसके खौफजदा रह जाने की कि वह सांस लेने में भी डर रहा था या फिर यह कहा जाए कि सांसे खुद ही बाहर आते हुए भयभीत थी |

यहां तक कि उसकी आवाज भी नहीं निकल पा रही थी |

विशाल जान गया था कि उसके सामने मौजूद प्रताप कोई मनुष्य नहीं, बल्कि एक भूत है |

विशाल बेबस रहकर अपने स्थान पर शिवाय बैठे रहने के कुछ ना कर सका |

उसके सामने बैठा डरावना चेहरे व लंबे-लंबे दांत वाला भूत ठहाके लगाकर बोला-

“अब तुम्हें विश्वास हो चला होगा कि आज के समय में भी भूत-प्रेत जैसी चीजें मौजूद है |”

“क्या तुम सचमुच भूत हो” विशाल ने भय से परिपूर्ण स्वर में पूछा |

“अब भी तुझे यकीन नहीं आया मूर्ख, कोई बात नहीं मैं जब तेरा खून पिऊंगा, तब तुझे यकीन आ जाएगा |”

“नहीं-नहीं मुझे मत मारो, मेरे दो बच्चे और मेरी पत्नी घर पर मेरे आने की प्रतीक्षा कर रहे हैं | अगर मैं मर गया तो उनका सहारा छिन जाएगा, मुझे जाने दो |”

कहते हुए विशाल अपने स्थान से सरकने लगा |

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वह भूत उसे देखकर मुस्कुराता रहा |

विशाल भागने के चक्कर में अपने स्थान से फुर्ती के साथ उठा और दौड़ पड़ा |

उसी समय भूत ने अपने स्थान पर बैठे रहकर ही दाहिना हाथ उठाया |

उसका हाथ लंबा हो गया, वहीं बैठे रहकर उसने भाग रहे विशाल की गर्दन पकड़ ली और उसे अपनी तरफ घसीट लिया |

विशाल चिल्लाया- “बचाओ-बचाओ”

उसकी पुकार सुन रेल मैं सवार सभी यात्री उसके पास चले आए |

विशाल ने देखा कि उसके पास आए सभी यात्रियों के चेहरे भी बहुत डरावने हो चले हैं, अब उसे यह समझने में ज्यादा वक्त न लगाकर ट्रेन में सवार सभी यात्री भूत हैं |

पूरी रेल गाड़ी भूतों से भरी थी |

आहिस्ता-आहिस्ता विशाल को चारों ओर से भूतों ने घेर लिया |

इस चक्रव्यू में फसने के बाद विशाल का हार्ट अटैक हो गया |

इसी के साथ सारे भूत विशाल का खून पीने के साथ-साथ उसकी बोटी-बोटी तक नोच कर खा गये |

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Written by lokhindi
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