Hindi Panchatantra Stories – बुरी संगत का परिणाम

Panchatantra Stories

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नन्दन वन में एक सिंह (बब्बर शेर) रहता था। उसके तीन नौकर थे-कौआ, सियार और बाघ (शेरचीता)। सिंह उन तीनों के साथ एक गुफ़ा में रहता था। उसके नौकर चालाकी से वन के जीव जन्तुओं को सिंह के पास लाते और सिंह उसे मार डालता | फिर सबसे पहले सिंह उस जीव को खाता, फिर बाघ उसके बाद सियार और फिर कौआ!

यह तो सभी जानते हैं कि कौआ जीव जन्तुओं में सबसे ज्यादा चालाक और पाखण्डी होता है, इसी तरह सिंह का नौकर कौआ भी अत्यन्त अधिक चालाक और पाखण्डी था।

वन के जीव-जन्तुओं को धोखे से सिंह के पास लाने में उस कौवे का महत्त्वपूर्ण योगदान होता, अतः वह अपने मालिक को सबसे ज्यादा प्रिय था। वह बिना रोक-टोक के सिंह से बात कर सकता था और उसे सलाह भी दे सकता था।

एक दिन वह कौआ सिंह के लिए किसी जीव की खोज में वन में घूम रहा था, कि अचानक उंसकी निगाह एक ऊँट पर गई। वह ऊँट एक पेड़ के नीचे बैठा रो रहा था।

ऊट को देखकर उसके दिमाग में एक विचार आया कि यदि यह ऊँट फंस जाए तो कई दिन के भोजन का इन्तजाम हो जाएगा। यह सोचकर उस वह ऊंट के पास गया और बोला -“ऊँट भाई! तुम इस वन में कैसे? तुम तो इन्सानों के पास रहते हो?”

ऊँट और जोर से रोने लगा, फिर चुप होकर बोला-“क्या बताऊँ भाई, मैं अपने मालिक के साथ इस वन से गुजर रहा था कि रास्ते में उनसे बिछड़ गया और तब से इसी पेड़ के नीचे बैठा अपनी किस्मत को रो रहा हूँ।” कहकर वह पुनः रोने लगा।

“तुम चिन्ता मत करो ऊँट भाई, मैं तुम्हें एक ऐसे स्थान पर ले जाऊंगा । जहाँ तुम आराम से जीवन व्यतीत कर सको!” कौए ने कहा। मगर ऊट की की जाति से अन्जान था, वह बोला –

“नहीं भाई, मैं यहीं ठीक हूँ, पास की घास-फूस खाकर अपना जीवन व्यतीत कर लुगा, तुम चिन्ता मत करो!”

ऊंट की बात सुनकर कौआ सोच में गया कि अब उसे कैसे फंसाए? सोचते-सोचते उसके दिमाग में एक युक्ति आ ही गयी, वह बोला- ‘मगर ऊंट भाई, तुम यहाँ के लिए अन्जान हो, तुम नहीं जानते कि इस वन में एक जालिम सिंह नाम का शेर रहता है, वह किसी पर रहम नहीं करता और नए जानवर को तो वह छोड़ता ही नहीं, यदि उसे मालूम हो गया कि तुम यहाँ पंर नए आए हो तो वह तुम्हें छोड़ेगा नहीं, वह तुम्हें मार डालेगा ।”

कौए की बात सुनकर ऊँट सोच में पड़ गया। वह बोला- फिर तुम कैसे रहते हो भाई, उसने तुम्हें कभी कुछ नहीं कहा?” उसके स्वर में आश्चर्य भी था।

ऊँट की सुनकर कौआ कुटिल मुस्कान मुस्कराकर बोला-“ऊँट भाई! मैं उसी सिंह का नौकर हूँ, मेरे अलावा दो नौकर और हैं, सियार और बाघ ।” You Read This Hindi Panchatantra Stories on Lokhindi.com

“क्या, तुम सिंह के यहां नौकर हो?” ऊँट ने आश्चर्य से कहा। उसे कौओं की बात पर विश्वास आ गया था।

“हाँ मेरे भाई, तभी तो मैं जिन्दा हु, अगर तुम भी मरना नहीं चाहते तो मेरे साथ चलो, मैं तुम्हें सिंह के यहाँ नौकरी दिला दुगा।”

ऊँट फिर से सोच में पड़ गया।

तभी संयोगवश उधर से सियार और बाघ गुजरे, वे भी किसी शिकारी की खोज में निकले थे। कौए ने उन्हें देखते ही एक और युक्ति भिड़ाई। वह फिर ऊँट से बोला- देखो ऊंट भाई, यह वे दोनों हैं, जो सिंह के यह नौकरी करते हैं।”

ऊँट ने कौए की बात की सच्चाई परखने के लिए बांघ और सियार को रोककर पूछा- “क्यों भाई, यह कौआ जो कुछ कह रहा है, क्या वह सच है कि आप दोनों और यह कौआ सिंह के यहाँ पर नौकरी करते हैं?” कहकर ऊँट ने

एक नज़र कौए की ओर देखा। वह धीरे-धीरे मुस्कुरा रहा था। मगर ऊँट उसकी मुस्कुराहट ना देख पाया।

बाघ और सियार ने एक साथ कहा -“हाँ भाई, यह कौआ सब कुछ सच कह रहा है?”

उन दोनों की बात सुनकर ऊँट को कौए पर भरोसा हो गया। वह बोला-“ठीक है भाई, मैं चलने को तैयार हु, मगर एक शर्त है।”

“क्या शर्त है भाई?” कौए ने पूछा।

“तम मझे वचन दो कि सिंह से अभयदान दिलाओगे।”

कोआ कुछ सोचने के बाद बोला-“ठीक है, मैं वचन देता हूं कि तुम्हें अभयदान (मृत्यु व किसी भी प्रकार के डर से मुक्ति) दिलाऊँगा और तम्हारी सरक्षा भी करूगा।”

कौए से वचन लेकर ऊँट उसके साथ चल दिया। जल्दी ही वे सभी सिंह के पास पहुँच गये।

कौए ने ऊँट को सिंह से अभयदान दिला दिया और उसके यहाँ नौकरी भी,

मगर उसके मन में तो पाप घर कर चुका था, वह ऊंट के माँस के लिए तरस रहा था। वह निरंतर नए तरीके ढूँढ़ता रहता कि किस प्रकार ऊँट के माँस का स्वाद चखे? मगर सिंह तो ऊंट को अभयदान दे चुका था, बाघ और सियार बिना सिंह की मर्जी के ऊँट के हाथ भी नहीं लगा सकते थे और कौआ ऊंट का कुछ बिगाड़ नहीं सकता था।

इसी प्रकार दिन गुजरने लगे। ऊँट अपने दुश्मनों के बीच निर्भीकता से रहने लगा और कौआ उसे ललचाई निगाहों से देखते-देखते समय व्यतीत करने लगा।

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मगर ईश्वर को तो कुछ और ही मन्जूर था। एक बार नन्दन वन में सूखा पड़ गया। जीव-जन्तु खाने के दाने-दाने को तरसने लगे और नन्दन वन को छोड़-छोड़ कर जाने लगे। जल्द ही पूरा बन जानवरों, चिड़ी, परिन्दों से खाली हो

गया। जानवरों के वन छोड़ने का सबसे अधिक बुरा प्रभाव कौए, उसके साथी और उसके मालिक सिंह पर पड़ा।

जानवरों के ना होने से उनके भूखो मरने के दिन आ गये | जिन जानवरों को वे मारकर खाते थे, वही जानवर नन्दन वन को छोड़कर चले गये थे।

उस दिन वह चौथा दिन था, जब वे सभी भूख से छटपटा रहे थे। कौआ, सियार और बाघ एक स्थान पर बैठे बातें कर रहे थे और ऊंट उनसे अलग भूख निपटने का तरीका सोचने में मग्न था।

कौए ने सियार और बाघ से कहा “भूख से तड़पते आज चौथा दिन है, सभी जानबर वन छोड़कर चले गये हैं, खाने का दूर-दूर तक कोई इन्तजाम नजर नहीं आ रहा है।”

“हाँ भाई कौए, अब तो कुछ सोचने लायक भी ताकत नहीं है, बदन में।”

सियार ने कौए की हाँ में हाँ मिलाई। और यही तो कौआ चाहता था। वह झट से बोला-“भाई, मुझे एक

तरकीब तो नजर आ रही है, कहो तो बताऊँ?”

‘कहो भाई, जल्दी कहो!” बाघ ने तेजी से कहा।

“अगर इस ऊँट का काम हो जाए तो महीने भर का राशन मिल सकता है।” कहकर वह उन दोनों के हावभाव भाँपने लगा।

“छि: छि: कैसी बात रहे हो भाई, वह भाई है हमारा,- हमारे साथ रहता है, खाता है, पीता है, फिर मालिक ने उसे अभयदान दे रखा है ।” बाघ ने कौए की बात का विरोध किया।

“हाँ भाई, तुम्हारी बात ठीक है, लेकिन तुम यह बताओ कि यदि वह स्वयं ही खुद को हमें खाने को दे तो-” कौए ने अपनी बात अधूरी छोड़ दी।

“तो… ” बाघ के मुंह से निकला। Hindi Panchatantra Stories 

“तो कोई हर्ज नहीं है।” सियार ने वाक्य पूरा किया।

“हाँ तब तो कोई हर्ज नही है ।” बाघ ने भी सहमति दिखाई।

“तब समझो कि खाने का इन्तजाम हो गया। मगर.. ।” कौए ने फिर बात अधूरी छोड़ दी।

“मगर क्या?” सियार ने पूछा।

“मगर इसके लिए हमें मालिक को समझाना होगा ।” कौए ने अपना वाक्य पूरा किया।

“हाँ, यह तो सबसे आवश्यक है।” सियार ने कहा।

‘सुनो! मैं मालिक को जाकर समझाने की चेष्टा करता हूं।” कहकर कौआ उड़ गया।

कुछ ही देर बाद वह सिंह से कह रहा था–“मालिक! खाने का दूर-दूर तक कोई इन्तजाम नहीं है, अब आप ही बताएं क्या किया जाए?” कौए ने पहला तीर छोड़ा।

“हमारी तो कुछ समझ में नहीं आता कि क्या करें और क्या न करें” सिंह ने कहा।

“मालिक, एक युक्ति है, यदि आज्ञा हो तो कहूँ।” कौए ने दूसरा तीर छोड़ा।

“ठीक है, कहो ।” You Read This Hindi Panchatantra Stories on Lokhindi.com

“मालिक यदि इस ऊँट को मार दिया जाए तो कई.. ।”

“क्या कह रहे हो तुम?” सिंह ने कौए का वाक्य काट दिया- “तुम जानते हो कि हम उसे अभयदान दे चुके हैं।”

“पर मालिक यदि वह स्वयं ही अपने आप को खाने के लिए आपको दे तो… ।” कौए ने फिर अपना वाक्य अधूरा छोड़ दिया।

“तो..।” सिंह सोच में पड़ गया।

“तो भी आप उसे छोड़ देंगे?” कौए ने प्रश्न रखा।

“नहीं।” सिंह ने कहा “मगर ऐसा कैसे हो सकता है, कोई अपने आपको मारने के लिए क्यों कहेगा भला?”

“कहेगा मालिक।” You Read This Hindi Panchatantra Stories on Lokhindi.com

“मगर कैसे ?” सिंह के पूछने पर कौए ने उसे अपनी युक्ति समझाई और वापस उड़ गया। वह सीधा अपने साथियों के पास आया और उन्हें युक्ति समझा दी।

कौए की युक्ति पर अमल करते हुए सिंह गुफा से बाहर आया और सभी से बोला-मेरे सेवकों! आज भी कुछ मिला या नहीं?”

“नहीं मालिक ” सियार योजनाबद्ध तरीके से बोला।

“मालिक चार दिन में आप कितना सूख गये हैं। आपकी यह दशा देखकर मन रोता है, आपका सेवक होते हुए भी आपको भूखा तड़पते देख रहा हु,मालिक एक ना एक दिन मुझे मरना है ही, यह शरीर नाशवान है, एक दिन गलसड़ जाएंगा, लीजिए आप इसे खाकर अपनी भूख मिटा लीजिए, इस तरह से मेरा शरीर तो काम आ जाएगा।” कौए ने कही।

“छिः-छि: भला ऐसा भी कहीं होता है कि मालिक ही अपने सेवक को खा जाए | मैं मर तो सकता हूँ, मगर ऐसा नहीं कर सकता” सिंह ने कौए की समझाई युक्ति पर अमल करते हुए कहा।

“मालिक आप कौए को नहीं खाएंगे तो मुझे ही खा लीजिए ।” बाघ भी आगे आया |

सिंह ने फिर वही वाक्य दोहरा दिया।

अब सियार ने भी वही वाक्य कहा जो बाघ ने कहा था।

सिंह ने फिर वही वाक्य दोहरा दिया।

यह सब देख और सुनकर ऊँट ने सोचा-‘कि उसे भी ऐसा ही कहना चाहिए | वैसे भी सिंह ने किसी को खाया तो नहीं और यदि वह पीछे रहता है तो सब उसे कायर और डरपोक कहेंगे ।” यह सोचकर उसने कहा-“मालिक!

आप मुझे ही खा लीजिए, में इन सबसे बड़ा भी हूँ, आपका कुछ दिन का आहार ‘इकट्ठा हो जाएगा ।” ऊँट ने यह कह तो दिया, मगर वह बेचारा सीधा-सादा, भोला जानवर यह नहीं जानता था कि उससे यही कहलवाने के लिए तो उन चारों ने यह युक्ति भिड़ाई थी।

ऊँट के मुँह से ऐसा सुनते ही सिंह बहुत खुश हुआ, वह फौरन ऊँट पर झपट पड़ा और जल्दी ही उसे फाड़ डाला।

फिर चारों ने मिलकर उस भोले-भाले जानवर का माँस मजे से उड़ाया।

वे चारों मन ही मन खुश हो रहे थे।

सिंह, बाघ और सियार बार-बार कौए की चालाकी की प्रशंसा कर रहे थे। और कौआ अपनी सफलता पर मन ही मन मुस्कुरा रहा था। आज वह बहुत खुश था | आज ईश्वर ने महीनों पुरानी उसकी लालसा पूरी कर दी थी, कि वह

ऊँट के मीठे-मीठे मांस का आनन्द ले सके।

इस प्रकार एक भोला-भाला जानवर उन कुटिलों के चंगुल में फंसकर मृत्यु को प्राप्त हुआ था। यह सब बुरी संगति का परिणाम था। दुष्टों और धूर्तों का साथ करने और उनकी बात मानने से ही सीधा-सादा ऊँट मारा गया।

इसीलिए कहते हैं कि बुरे जनों की संगत मौत का कारण होती है।

शिक्षा – “ प्रत्येक प्राणी को अपना हित-अहित अपनी बुद्धि विवेक से सोचना चाहिए। कभी-कभी बुरी संगति अपनी मीठी बातों में फसाकर मन में कुछ और तथा जुबान पर कुछ और रखकर अपने वारजाल में फंसाकर प्राणी को मौत के मुँह में पहुँचा देती है-जैसा कि भोले-भाले ऊंट के साथ हुआ।”

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Written by lokhindi
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