Moral Stories For Childrens – कल का भुला – हिंदी कहानी

Moral Stories : कल का भुला

हिंदी कहानी / Moral Stories For Childrens | मोरल स्टोरी हिंदी | प्रेरणादायक कहानियाँ | 


गंगा और जमना नामक दंपति दौलतपुर गांव में रहते थे ।

गंगा की शादी हुए लगभग 5 वर्ष बीत चुके थे । दोनों पति-पत्नी अपना जीवन खुशी से गुजार रहे थे ।

लेकिन शादी के 5 सालों बाद भी उनके कोई संतान पैदा नहीं हुई थी । इससे वे दोनों बहुत परेशान रहने लगे थे ।

गंगा ने अपनी पत्नी को कई हकीम तथा वैदौं को दिखाया, लेकिन किसी से कोई फायदा नहीं हुआ ।

फिर वे पीरों व मठों पर गये, किंतु वहांँ से भी उन्हें निराशा ही हाथ लगी ।

गंगा अपने घर के करीब ही एक छोटा-सा ढाबा चलाता था और उसकी पत्नी जमना घर की देखभाल करती थी ।

वे अपने आस-पड़ोस वालों का बहुत ख्याल रखते थे, इसलिए लोगों से उनके अच्छे संबंध थे ।

उसी साल गांव की फसल ऐसी खराब हुई, कि खेतों में अनाज का दाना भी नहीं उग पाया था । लोगों के जानवर भूखों मरने लगे । बच्चे भूख से बिलबिलाने लगे ।

गंगा के ढाबे की आमदनी भी कम हो गयी । अब उसके परिवार का गुजारा भी बड़ी मुश्किल से चल पाता ।

लेकिन गंगा अपने नियम के अनुसार सुबह उठता और अपने ढाबे पर जाकर सफाई-सुथराई करता ।

एक दिन सुबह सवेरे गंगा अपने ढा़बे पर पहुंचा । अभी वह अंगीठी जला ही रहा था कि सामने से उसे एक बूढ़ा व्यक्ति, फटे-पुराने कपड़े पहने ढाबे की ओर आता दिखाई दिया ।

गंगा मन ही मन सोच रहा था कि कल की बची भाजी और भात खाकर, शहर से सामान लाकर कुछ अच्छा खाना तैयार कर तब ढाबे पर बेठेगा । You Read This Moral Stories For Childrens on Lokhindi.com

तभी बुड्ढा उसके करीब आकर बोला- “जो दे दाता के नाम,पावे वह मन की मुराद ।”

बूढ़े की आवाज उसकी सुनकर गंगा ने उसकी ओर देखा । फिर मन ही मन कुछ सोचा और फिर प्रेम-भाव दर्शाते हुए भाजी-भात गर्म करके बूढ़े को थाल में सजा कर दी ।

इतनी ही देर में गंगा की पत्नी जमना किसी काम से उसे बुलाकर घर ले गयी ।

फिर कुछ देर बाद दोनों ढा़बे पर वापस लौट आये ।

तो उन्होंने देखा कि जो खाना गंगा ने बूढ़े को थाली मैं सजा कर दिया था वह वैसे का वैसा ही रखा हुआ है और बुढे  का कहीं अता पता नहीं है ।

गंगा ने देखा थाली के ऊपर एक कागज टेढ़ा-मेढ़ा लिखा हुआ रखा था । उस पर लिखा था- “गंगा जा तू सफल हुआ-अब तुम दोनों पति-पत्नी इसी थाली का भोजन खा लो ।”

गंगा ने बूढ़े को इधर-उधर दौड़कर देखा । लेकिन वह उसे कहीं नहीं मिला ।

जमना ने भी उस बुड्ढे के बारे में बहुत सोचा । मगर उसके भी समझ में कुछ नहीं आया ।

फिर दोनों ने एक साथ बैठकर उस थाली का खाना खाया । और अपने ढाबे के कामों में जुट गये ।

दिन बीतते गये । जब कभी बूढे़ का ख्याल उन्हें आता, तो वे उसके बारे में सोचने पर मजबूर हो जाते ।

और जब इस बात को 1 साल बीत गया तो ईश्वर ने जमना पर अपनी कृपया के फूल बरसाये । उनके मन की मुराद पूरी हुई ।

जमना ने एक पुत्र को जन्म दिया ।

उन्होंने उसका नाम सुंदरलाल रखा ।

सुंदरलाल धीरे-धीरे बड़ा होने लगा । अभी वह 2 साल का ही हुआ था कि जमना ने दूसरे पुत्र को जन्म दिया ।

गंगा ने उसका नाम चंद्रलाल रखा । वह भी धीरे-धीरे बड़ा होने लगा ।

सुंदरलाल तो पहले ही से पाठशाला जाने लगा था और 4 साल का होने के बाद अब चंद्रलाल भी अपने बड़े भाई के साथ स्कूल जाने लगा ।

गांव के स्कूल की पढ़ाई खत्म करने के बाद सुंदरलाल पास के ही एक कस्बे के स्कूल में जाने लगा ।

यह कस्बा गांव से काफी दूर था । वहां केवल यात्री बसे ही मिलती थी, रेलगाड़ियां वहां पर भी नहीं चलती थी ।

सुंदरलाल अक्सर अपने पिता से कहता की वह किसी बड़े शहर में जाकर खूब घूमना और सैर-सपाटा करना चाहता है । वह संसार को देखना चाहता हैं । You Read This Moral Stories For Childrens on Lokhindi.com

गंगा ने अपने बेटे को बहुत समझाया । परंतु सुंदरलाल ने अपने पिता की एक ना मानी ।

और एक दिन वह स्कूल से फरार हो गया । More Moral Stories For Childrens

रात तक सुंदरलाल जब घर नहीं पहुंचा तो गंगा को अपने बेटे की चिंता सताने लगी ।

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रात बड़ी बेचैनी से गुजारने के बाद वह सुबह को उसके स्कूल आया । और उसके अध्यापकों से उसके बारे में पूछताछ की, तो पता चला कि वह तो कल स्कूल ही नहीं आया था ।

अतः गंगा को अपने बेटे की और अधिक चिंता होने लगी ।

उधर जमना की हालत भी बेटे की चिंता मैं खराब होने लगी । उसने तो बड़ी मुरादों से ये दो बच्चे देखे थे और अब उनमें से भी एक उसे छोड़ कर चला गया था । Moral Stories For Childrens

काफी पूछताछ के बाद पता चला कि सुंदरलाल को किसी ने बस पर सवार होकर कहीं जाते दिखा है, तो किसी से पता चला कि उसने उसे दूसरे शहर मैं रेलगाड़ी पर सवार होते देखा है ।

और वास्तव में सुंदरलाल को सैर-सपाटे कि चाह गांँव से दिल्ली तक खींच कर ले आई ।

कई दिन तक भूखा-प्यासा वह इधर-उधर भटकता फिरता रहा ।

दोनों घुटने के बीच सर रखकर बैठा वह सोच रहा था कि किसी ने उसकी कमर पर हाथ रखा और बोला- “लड़के कैसे बैठा है, थका-सा मालूम पड़ता है, शायद भूखा भी है । चल मेरे साथ, मैं तुम्हें रोटी खिलाऊंँगा ।”

शहर में आकर सुंदरलाल काफी परेशान, बेहाल हो गया था । इसलिये उस व्यक्ति को अपना सहारा समझकर वो  उसके साथ हो लिया ।

खाना तो उसने सुंदरलाल को खिलाया । मगर फिर उसने उसे एक खिलौना बनाने की फैक्ट्री में मजदूरी करने के लिए छोड़ दिया ।

सुबह से शाम तक वह फैक्ट्री में काम करवाता, इधर-उधर कहीं जाने भी नहीं देता और रात को सोते समय उस पर और उस जैसे अन्य बच्चों पर निगरानी रखता था ।

सुंदरलाल कई दिनों तक बिना नहाये-धोये रहता और कपड़े बदलने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता था । खाना भी भरपेट नहीं मिलता था ।

सुंदर लाल को घर की याद आती- भरपेट रोटी, मां की ममता और बाप का दुलार, स्कूल के बच्चों के साथ पढ़ाई-लिखाई, छोटे भाई का प्यार । उसे ये सब बातें रह-रहकर याद आतीं । वह घुट-घुट कर रोता, लेकिन क्या कर सकता था ? यहांँ से भाग निकलना आसान न था ।

इधर गांव मैं गंगा-जमना और उनका छोटा बेटा चंद्रलाल कई दिन तक उसे तलाशने में लगे रहे और आशा बनाये रखी कि सुंदर लाल 10-5 दिनों बाद अपने घर लौट आयेगा । परंतु जब कई महीनों बीत गई तो उन्होंने भी उसके आने की उम्मीद छोड़ दी ।

कभी उसकी आवाज कानों में गूंँजती, कभी उसके किसी कपड़े को देखकर जमना रो पड़ती, कभी गंगा रात को सोते-सोते बेटे की याद में उठ बैठता, मगर क्या करता ?

उधर सुंदरलाल कौ फैक्ट्री में काम करते काफी दिन बीत चुके थे | जिसकी वजह से फैक्ट्री वालों को भी सुंदरलाल पर विश्वास हो गया था कि अब वह वहां से नहीं भाग सकता ।

लेकिन सुंदरलाल वहां बहुत ज्यादा परेशान रहा करता था । इसलिए मौका देखकर एक दिन वह फैक्ट्री से भाग निकला और एक बस में छुप कर बैठ गया । Moral Stories For Childrens

कई घंटों का सफर तय करने के बाद बस फरीदाबाद, जो दिल्ली के पास हरियाणा का एक सुंदर शहर है, के बस अड्डे पर जाकर रुकी ।

सुंदरलाल अन्य यात्रियों में शामिल होकर बस से नीचे उतर आया ।

नये शहर में पहुंचकर सुंदरलाल इधर-उधर भूखा-प्यासा भटकने लगा ।

एक दिन तो उसने अपने पिता को खत लिखना भी चाहा, मगर उसकी हिम्मत नहीं हुई कि कैसे वह अपने माता-पिता और छोटे भाई का सामना कर पायेगा ?

एक दिन वह रात के समय भटकता फिर रहा था की अचानक उसे एक सिपाही ने आकर पकड़ लिया और थाने में बंद करने के बजाय वह उसे अपने घर ले आया ।

सिपाही सुंदरलाल से दिनभर एक कारखाने मैं काम कराता और रात मैं अपने घर के कामकाज में उलझा देता था ।

बेचारा किस्मत का मारा सुंदरलाल कुएं से निकल तो खाई में गिर गया ।

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इतना काम करने पर भी उसे खाना एक वक्त ही मिला करता था । रह-रहकर उसे अपने घर की याद आती थी ।

परंतु उसके मस्तिष्क मैं अब भी सैर-सपाटे के दर्शन नाचते रहते थे, जिन के चक्कर में वह अपने घर से भागा था ।

एक दिन उस सिपाही की किसी दूसरे सिपाही से लड़ाई हो गयी । उसने थानेदार को यह बात बताई कि किस प्रकार एक लड़के से मारपीट करता और भरपेट खाने को भी नहीं देता है ।

फिर थानेदार सुंदरलाल को अपने घर ले गया ।

सुंदरलाल मानो आसमान से गिरकर खजूर पर अटक गया हो ।

थानेदार की पत्नी बड़ी क्रूर थी । वह उससे गाय, भैंस को चरवाती, घर का कामकाज कराती और जो दूसरे नौकर थे वे उससे रात को अपने अपने पैरों को मालिश कराते थे । और सारे कामों का बोझ उस पर डालकर खुद मौज-मस्ती करते रहते थे ।

सुंदरलाल को घर से भागे हुये लगभग 2 साल का समय बीत गया था । इन 2 सालों में उसकी लंबाई तो अवश्य बढ़ गई थी, किंतु वह रह गया था दुबला-पतला ही ।

वह थानेदार साहब की भैंस चराने शहर से बाहर तो जाया ही करता था ।

एक दिन रास्ते में लौटते हुए उसे एक बूढ़ा फटे पुराने, मेले-कुचले कपड़ों में अपनी और लंगड़ाता हुआ आता दिखाई दिया ।

बूढ़े के चेहरे एक चमक थी और माथे पर अनुभव की ढेर सारी रेखाएं पड़ी हुई थी ।

बूढ़े ने सुंदरलाल को बड़े गौर से देखा और पुकारा ।

सुंदरलाल उसको देखकर डरा । उसकी चीख निकलने वाली थी की तभी बूढ़े ने बड़े प्यार से उसे कहा- “बेटा…..मैं खिलौने वाली फैक्ट्री का मालिक नहीं हूं, न सिपाही हूं और न ही थानेदार । मैंने तो तुझे कहीं देखा है, तू किसका बेटा है और यहां कहां से आता है ?”

इतना कहकर बूढ़े ने सुंदरलाल के सर पर प्यार से हाथ फेरा ।

इतने समय बाद इतना प्यार पाकर सुंदरलाल की आंखें भर आई, वह बोला- “बाबा, मैं गंगा ढाबे वाले का बेटा हूं ।”

यह सुनते ही बुड्ढे की आँखें किसी की याद में चमक उठी ।

वह बोला- “तो, तू गंगा का बेटा है, घर से भाग कर आया है । यहां मौज-मस्ती करने के लिये ।”

सुंदरलाल कुछ नहीं बोला । उसने बस ‘हां’ में सिर हिला दिया ।

फिर बूढ़ा बोला- “यह जो दु:ख तु सह रहा है, ये तेरी करनी के फल हैं । अपनी करनी से अपने मां-बाप को तू और क्यों दु:ख देता हैं बेटे ? जा अपने घर लौट जा ।” इतना कहकर उस बूढ़े ने सुंदर लाल के हाथ में कुछ रुपए दिये । और उसके कंधे पर हाथ रखकर वह उसे दूर तक अपने साथ ले गया ।

सुंदरलाल ने थानेदार की भैंस का रस्सा अपने हाथ से छोड़ दिया । वह अपने घर पर चली आई ।

कुछ दूर आगे जाने के बाद वह बूढ़ा न जाने कहां रह गया । सुंदरलाल को इस बात का पता ही नहीं चल पाया ।

तब सुंदरलाल रेलवे स्टेशन की ओर लपका । उसकी आंखों में उनींदापन था । वह रेल के डिब्बे में घुसकर वर्थ पर चढ़कर सो गया । फिर वह कभी बस मैं और कभी बेलगाड़ी में सवार होता चला गया ।

चलते-चलते सवेरे उसने अपने आपको गांव की उसी पगडंडी पर पाया, जिससे होकर वह गांव से कस्बे के स्कूल में जाया करता था ।

वह तेजी से अपने घर की तरफ भागा ।

रास्ते में उसे स्कूल जाता अपना छोटा भाई चंद्रलाल दिखाई दे गया ।

अपने बड़े भाई को इतने दिन बाद देख कर वह चिल्लाया- “भैया-भैया” ! तुम अब तक कहां थे ?” वह दौड़ कर सुंदरलाल के सीने से चिपक गया । Moral Stories For Childrens

दोनों भाई घर आये तो गंगा और जमना तो एक बार तो अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हो पाया था । परंतु सुंदरलाल दौड़कर अपनी मां से जा लिपटा और रो पड़ा ।

उसकी दु:ख भरी आपबीती सुनकर गंगा की आंखों में आंसू आ गये । उसने अपने बेटे को गले से लगाया । खूब प्यार किया ।

तभी पड़ोसी भी आ गया । वह बोला- “गंगा! तुम खुशनसीब हो जो तुम्हारा बेटा सुबह का भूला शाम को घर लौट आया । सुंदरलाल तुमने अपनी नासमझी के कारण अपने मां-बाप को बहुत कष्ट दिये हैं, अब तुम इन्हीं के साथ रहो और उनके जीवन को सुख प्रदान करो ।”

कहकर पड़ोसी चला गया । सुंदरलाल अपने घर पर खुशी-खुशी रहने लगा ।

शिक्षा- “ भ्रमण की इच्छा सभी व्यक्तियों की होती है, लेकिन अगर सहमति के साथ भ्रमण किया जाये तो उसमें आनंद प्राप्त होता है और यदि बिना अनुमति या सहमति के आप भ्रमण करने की इच्छा रखते हैं, तो अवश्य ही आप कठिनाई में पड़ जायेंगे । आपको दु:ख के सिवा कुछ हाथ नहीं लगेगा । इसलिए आपको समझना चाहिए कि आप जहां कहीं भी जाना चाहते हैं, तो जाने से पहले अपने माता-पिता की अनुमति लेना अनिवार्य समझे ।”

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Written by lokhindi
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