Chanakya Sutra Hindi | चाणक्य सूत्र के कुछ अंश हिंदी में

Chanakya Sutra

‘पंडित’ विष्णुगुप्त चाणक्य की नीति के कुछ महत्वपूर्ण अंश “Chanakya sutra hindi” सम्पूर्ण चाणक्य Neeti के सूत्र हिंदी भाषा में!

सुख का मूल धर्म:

सुख का मूल धर्म है। राजनीति एवं अपने कार्यों का ज्ञान होना ही राजा का सबसे बड़ा धर्म होता है। इसी धर्म से देश में सुख और शान्ति रह सकती है। इसलिए धर्म को ही सुख की मूल जड़ और धर्म कहा गया है।

धर्म का मूल अर्थ:

धर्म का मूल अर्थ है देश में जब धर्म बना रहे। यह धर्म तभी बना रहेगा जब देश की आर्थिक स्थिति ठीक होगी । यदि देश में राजनीति को ठीक ढंग से चलाना है तो देश की अर्थव्यवस्था को ठीक करना होगा। जिस देश की अर्थव्यवस्था ठीक नहीं, उसका धर्म भी सुरक्षित नहीं।

अर्थ का मूल रूप:

अर्थ का मूल राज्य है। राज्यों में स्थिरता बनी रहे। हर राज्य में शान्ति का वातावरण हो। ऐसा ही देश अर्थव्यवस्था में सुदृढ़ होता है।

राज्य और इन्द्रियां:

राज्य का मूल इन्द्रिजय है। राज्य में शान्ति तभी बनी रह सकती है, जब वहां का राजा या सरकार को चलाने वालों की इन्द्रियां उनके वश में हों। वे लोग अपने चरित्र को बनाए रखें।

राज्य पर इन्द्रियों का प्रभाव:

राज्य कैसे चलाया जाता है? इसका ज्ञान होने पर राजा सत्य को पहचान लेता है। सत्य को जान लेने पर उसका स्वभाव बहुत धैर्यवान और विनम्र हो जाता है। उसके अन्दर से हर बुराई दूर हो जाती है। वह हर मानव से अच्छा व्यवहार करता है। इसे ही तो विनय कहा जाता है, विनयशील राजा ही अपनी इन्द्रियों को वश में रख सकता है।

बूढ़ों की सेवा:

वृद्धों की सेवा को सबसे बड़ा धर्म माना गया है। ज्ञानी पुरुषों के साथ रहकर मनुष्यों को क्या करना चाहिए, क्या नहीं करना चाहिए, यही तो ज्ञान होता है।

सच्चा ज्ञान:

सच्चे ज्ञान से ही राजा अपने को योग्य समझता है। ज्ञानी बुद्धिजीवी पुरुषों की संगति में रहकर ही ज्ञान प्राप्त करे, यही ज्ञानी पुरुष का कर्तव्य है। इससे ही वह राज्य के शासन को चला पाएगा।

Chanakya sutra hindi: कर्तव्य-

जो राजा अपने कर्तव्य को समझ जाता है, वही अपनी इन्द्रियों को वश में रख सकता है। जो इन्द्रियों को वश में कर ले, वही महाज्ञानी है।

जितात्मा:

जितात्मा सभी सम्पत्तियों को प्राप्त करता है। जो राजा अपनी इन्द्रियों को वश में रखता है, उसकी सारी इच्छाएं पूरी हो जाती हैं। उसे धन-सम्पत्ति सब मिलते हैं।

सम्पन्न:

जो राजा सम्पन्न हो, उसकी प्रजा भी सम्पन्न हो जाती है। राजा की, व्यवस्था यदि सुन्दर हो तो सारे देश को सम्पन्नता प्राप्त हो जाती है। जब देश सम्पन्न होगा तो प्रजा भी सम्पन्न होगी।

राज्य कैसे चलता है?

प्रजा के सम्पन्न होने पर नेताहीन राज्य भी चलता है। यदि कभी अचानक ही राजा की मृत्यु हो जाए अथवा वह बीमार पड़ जाए और कोई सरकार चलाने वाला न रहे तो जनता के सम्पन्न होने पर ऐसे राज्य को कोई खतरा नहीं रहता। जनता स्वयं ही कोई व्यवस्था कर लेती है। ऐसे राज्य का हर काम शांतिपूर्वक चलता रहता है। यदि प्रजा दु:खी और गरीब होती है तो वह राज्य नष्ट हो जाता है।

प्रजा का कोप:

प्रजा का कोप सब कोपों से भयंकर होता है। देश की जनता ही उसकी सबसे बड़ी शक्ति होती है। इसलिए राजा को चाहिए कि पहले प्रजा को सुखी रखे। यदि कोई भी राजा प्रजा को दु:खी रखेगा तो प्रजा एक दिन अवश्य विद्रोह कर देगी। ऐसी हालत में राजा को कोई भी नहीं बचा सकेगा।

बुरा राजा:

राजा बुरा होने से तो राजा न होना ही अच्छा है। निकम्मे राजा से तो जनता कभी सुखी नहीं रहती। यदि बुद्धिहीन और पथभ्रष्ट राजा हो तो उसके बिना भी जनता राज को चला लेगी।

योग्यता:

जिस देश का राजा स्वयं ही योग्य हो तो ऐसे राजा को अपने सहयोगी भी योग्य ही रखने चाहिए। ताकि योग्य मंत्रियों के साथ मिलकर काम चलाए। सहायकों के बिना राजा कोई निर्णय नहीं कर सकता, इसलिए राजा को सदा योग्य सहायक ही रखने की आवश्यकता है।

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राज्य शासन:

जिस प्रकार एक पहिए से रथ नहीं चल सकता, उसी प्रकार कभी अकेला राजा शासन नहीं चला सकता। उसे अपने लिए मंत्रियों और सहायकों की भी आवश्यकता है। राजा और मंत्री शासन के दो पहिए होते हैं।

सच्चा सहायक:

जो मन्त्री राजा के सुख-दु:ख में साथ दे, वही सच्चा सहायक होता है। जो दुःख में साथ छोड़कर चला जाए, ऐसे सहायक पर विश्वास नहीं करना चाहिए।

मंत्रणा:

जो राजा अपने अच्छे सहयोगियों से मंत्रणा करता है, वह हर कार्य में सफल हो जाता है। जिस व्यक्ति में कोई गुण नहीं, ज्ञान ऐसे व्यक्ति से कभी भी कोई मंत्रणा न करें और न ही उसे राजनीति के गुप्त बात बताएं।

मंत्री कौन हो?

राजा को चाहिए कि किसी ज्ञानी, बुद्धिमान को ही मंत्री बनाए, जो राजनीति को भी जानता हो। ऐसे प्राणी को मंत्री बनाने से पहले छूप-छुपकर उसकी परीक्षा ले । राजनीति और प्रेम को कभी एक साथ न रखे। प्रेम व्यक्तिगत होता है। राजनीति पूरी प्रजा के साथ चलती है। कहने का अर्थ यह है कि मंत्री सदा राजनीति का ज्ञानी और जनता का सेवक हो।

कार्य सिद्धि:

सभी कार्य मंत्रणा से ही सिद्ध होते हैं। राजा सदा मंत्रियों की मंत्रणा से चलता है। जिस राजा के मंत्री गुणवान हैं, वह राजा अपनी प्रजा को खुश रखकर अपने कार्य सिद्ध करता है।

Chanakya sutra hindi: भेद-

प्रमाद से भेद शत्रु को ज्ञात हो जाता है। मंत्रणाओं को गुप्त रखने में थोड़ी-सी भी लापरवाही से राज्य के सारे भेद शत्रु के पास चले जाते हैं।

मंत्रणा-

मंत्री की रक्षा सभी के द्वारा की जाए। एक देश-दूसरे देश के भेदों को जानने के लिए कई तरह के प्रयत्न करता है। इसलिए जिस द्वार से भी भेद जाने का डर हो, उसी द्वार को पूर्ण रूप से बन्द कर दे। इन भेदों को पूरी तरह से सुरक्षित रखना चाहिए। मंत्र सम्पदा राज्य की उन्नति करती है। मंत्रणाओं की सावधानी से रक्षा करने पर ही देश उन्नति के शिखर पर पहुंचता है।

मंत्र की गोपनीयता श्रेष्ठतम कही गई है। मंत्रणा से ही राजा, मन्त्री मिलकर काम करते हैं। इसी से देश की रक्षा भी होती है। इसलिए देश की भलाई में मंत्रणा को गुप्त रखें।

कार्यान्ध के लिए मंत्रणा ही दीपक है। जैसे रात में इंसान अंधे के समान होता है। दीपक जैसे अंधेरे में मार्ग दिखाता है। ऐसे ही राजा के सामने जब कभी ऐसी कोई गम्भीर समस्या आ जाती है, जब उसे कुछ नहीं समझ आता कि क्या करना चाहिए, ऐसे अवसर पर केवल मंत्रणा ही तो काम देती है।

जब भी आप मंत्रणा करते हैं। तब उस समय मत्सर करना चाहिए। जब राजा मंत्री से बात करता हो, उस समय मंत्री की बातों को ध्यान से सुनना चाहिए। उसे कभी भी अपने से छोटा नहीं समझना चाहिए। कभी राजहठ का प्रदर्शन नहीं करना चाहिए।

मंत्र रूपी चक्षुओं से राजा शत्रु की कमजोरियों को देखता है। मंत्रणा राजा के लिए आंखों के समान है। इसलिए वह मंत्रणा से ही शत्रु की कमजोरियों का पता लगाता है।

तीनों का एक मत होना मंत्रणा की सफलता है। किसी भी गम्भीर समस्या पर यदि राजा और मंत्री एक मत हो जाएं तो समझ लो, विजय का मार्ग अपने आप मिल गया।

मत्र भेद:

छ: कानों से मंत्र भेद हो जाता है। राज्य के लिए होने वाले निर्णय का पता केवल राजा और मंत्री को ही होना चाहिए, किसी भी तीसरे आदमी की सलाह लेकर उसे यह भेद नहीं बताना चाहिए। जब दो से तीसरे व्यक्ति को इसका भेद पता चलेगा, तभी शत्रु को आपके विशेष भेद पता चल सकते हैं, जो राज्य और राजा दोनों के लिए हानिकारक हैं।

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मित्र कौन?

जो मुसीबत के समय भी प्यार करे वही सच्चा मित्र होता है। सुख में तो सब मित्र बन जाते हैं। जो लोग दु:ख और सुख में बराबर प्रेम रखते हैं, जो दुःख में काम न आ सके वह कैसा मित्र?

मित्र संग्रह:

जो लोग मित्र संग्रह करते हैं, उन्हें शक्ति मिलती है, साथी मिलते हैं। हां, मित्र बनाते समय स्वार्थी लोगों से दूर रहें। सच्चे मित्र बनाने से राजा की ताकत बढ़ती है। राजा की ताकत बढ़ने से देश की ताकत बढ़ती है

बलवान राजा:

बलवान राजा जो नहीं मिल सकता उसे भी पाने के प्रयत्न करते हैं, जो बलवान है, वही साहसी है। साहसी और बलवान राजा ही अपने देश को उन्नति के शिखर पर ले जाते हैं।

Chanakya sutra hindi: लाभ-

आलसी और कामचोर को कभी लाभ नहीं होता। कामचोर आदमी किसी प्रकार भी कमियों या आवश्यकताओं को पूरा करने में सफल नहीं हो सकता। इसलिए यदि आप इस संसार में सुखी रहना चाहते हैं तो सबसे पहले आलस और कामचोरी की आदतों को छोड़ दीजिए, फिर देखें आप कैसे सुखी रहते हैं।

आलसी आदमी तो प्राप्त चीजों की रक्षा भी नहीं कर सकता। पहले तो कामचोर आदमी को कुछ प्राप्त ही नहीं होता। यदि भूल से उसे कुछ मिल भी जाए तो वह उसे रख नहीं पाएगा।

आलसी, कामचोर के रक्षित में वृद्धि नहीं होती। भाग्य से यदि कोई कामचोर अपनी सम्पत्ति को बचा ले तो वह उसे कभी भी बढ़ा तो सकेगा ही नहीं। हर काम को चलाने के लिए धन की जरूरत है। जिसके पास धन नहीं, उसे जीवन का कोई सुख नहीं मिलता।

आलसी राजा अपने सेवकों से भी काम नहीं लेते। यदि राजा मंत्री ‘या उच्च अधिकारी ही आलसी व कमजोर हैं तो वे अपने नीचे के कर्मचारियों से कैसे काम की आशा करेंगे? ऐसे उच्च-कोटि के लोगों का आलसी होना पाप है।

उपलब्ध लाभ आदि चार कार्य देश के लिए जरूरी हैं। जो चीज नहीं है, उसे प्राप्त करना। प्राप्त हो जाने पर उसकी रक्षा करना। रक्षा के साथ ही उसमें बढ़ोतरी करना। फिर राज्य के अच्छे कामों के लिए उसका प्रयोग करना, यही चार कार्य हर राजा के मुख्य कार्य होते हैं।

नीतिशास्त्र:

नीतिशास्त्र राज्य तंत्र के अधीन है। यदि देश में कानून की व्यवस्था सही न हो, जनता को पर्याप्त सुविधाएं न मिल सकें तो ऐसी सरकार को या राजा को प्रजा अधिक देर तक सहन नहीं करेगी।

देश की गृहनीति और विदेशी नीति राज्य व्यवस्था के विशेष अंग हैं। हर राज्य दो नीतियों पर चलता है। पहली गृह नीति और दूसरी विदेश नीति । गृह नीति से प्रजा के आपसी हितों की रक्षा होती है। विदेश नीति से बाहरी खतरों से देश की रक्षा की जाती है। विदेश नीति के बिना तो देश की राजनीति ही अधूरी होती है।

गृह नीति:

गृहनीति केवल देश के आन्तरिक मामलों से जुड़ी रहती है। इसी से देश की कानून व्यवस्था बनाई जाती है। यदि इस नीति का ठीक ढंग से पालन न किया जाए तो देश के अन्दर कभी शान्ति नहीं आ सकती।

विदेश नीति:

इस नीति से ही अन्य देशों से सम्बन्ध जोड़े जाते हैं। इस नीति को ठीक ढंग से यदि न चलाया जाए तो देश को विदेशी खतरों का डर हर समय रहेगा। इससे देश की गृह नीति पर भी बुरा प्रभाव पड़ेगा। देश की आर्थिक स्थिति भी कभी नहीं सुधरेगी। हां, जिस देश की विदेश नीति सफल है, जिसके विदेशों से मधुर सम्बन्ध बने रहते हैं, जिसकी व्यापारिक संधियां सफल हैं, वह देश सदा खुशहाल रहेगा, उसकी जनता सुखी रहेगी। उसे बाहर के खतरों का कोई भय नहीं रहेगा।

Chanakya sutra hindi: संधि-

दूसरे देशों से संधि या विग्रह चलते रहते हैं। एक देश से दूसरे देश का युद्ध अथवा मित्रता चलती रहती है। किसी से न तो सदा लड़ाई रहती है, न ही युद्ध। किसी से युद्ध में क्या लाभ होगा और संधि से क्या लाभ होगा? यही ज्ञान प्राप्त करने वाला राजा सफल होता है। इसे ही राजनीति का ज्ञान कहा जाता है।

नीतिशास्त्र का ज्ञान प्राप्त करना राजा की योग्यता है। राजा को राजनीति का पूरा ज्ञान होना चाहिए। ऐसा न होने पर अधिकारी काम नहीं करते, जिससे राज्य को चलाने के लिए कठिनाई होती है। ऐसे में सावधानी से देश की रक्षा नहीं कर सकते।

हर समय सीमा संघर्ष होने वाले देश शत्रु बन जाते हैं। जिस देश की सीमाएं आपस में मिलती हैं और इसके लिए झड़पें व छेड़छाड़ होती रहती हैं, वे देश आपस में शत्रु बन जाते हैं। ऐसे शत्रुओं से सावधान रहना चाहिए।

एक ही देश के शत्रु आपस में मित्र बन जाते हैं। शत्रु देश का शत्रु मित्र बन जाता है। यदि किसी देश के एक से अधिक शत्रु हों तो उन सब में मित्रता हो जाती है। किसी कारण से ही शत्रु या मित्र बनेंगे। बिना किसी कारण के तो मित्रता अथवा शत्रुता नहीं होती। यदि कोई भी देश मित्रता का हाथ बढ़ाता है तो यह समझ लेना चाहिए कि इसका कोई कारण अवश्य है।

कमजोर राजा को चाहिए कि वह संधि कर ले। कमजोर देश के शासकों के लिए यह जरूरी है कि वह अपनी कमजोरियों का पता लगने से पहले ही अपने शत्रु से संधि कर लें।

किसी भी कमजोर के साथ संधि न करें। दुर्बल शत्रु यदि संधि का प्रस्ताव रखता भी है तो उसे स्वीकार न करें। यदि उसके साथ आप संधि करते हैं तो समझ लें कि वह ताकतवर हो जाएगा। जब वह ताकतवर हो जाएगा तो अवश्य आपके लिए ही खतरा सिद्ध होगा।

संधिकर्ताओं का तेज ही संधि का हेतु होता है। एक समान शक्ति और प्रभाव होने पर भी जब दो देश संधि करते हैं तो उसी संधि को सच्ची संधि कहा जाता है। यही संधि सदा चल सकती है।

बिना गर्म किया लोहा कभी लोहे से नहीं जुड़ सकता। जैसे ठंडा लोहा ठंडे लोहे से नहीं जुड़ता, इन्हें जोड़ने के लिए दोनों टुकड़ों को गर्म करना पड़ता है। ठीक ऐसे ही जब दोनों देश एक जैसे प्रभाव वाले होते हैं, उनमें ही सच्ची संधि हो पाती है। कमजोर और ताकतवर देशों में संधि होने पर भी कमजोर देश अपने प्रभाव को बनाए रखते हैं।

आक्रमण नीति:

जो बलवान है, शक्तिशाली है, उसे ही आक्रमण करना चाहिए। युद्ध सदा अपने से कमजोर शत्रु से करें। दुश्मन की कमजोरी का पता लगाकर ही उस पर आक्रमण करने की योजना बनाएं। अपने से ताकतवर शत्रु पर आक्रमण करने की भूल न करें। पहले अपनी शक्ति को बढ़ाकर ही शत्रु पर आक्रमण करें। यही बुद्धिमानों की राजनीति है।

कच्चा पात्र कच्चे पात्र से टकराकर टूट जाता है। यदि बराबर शक्ति वाले दो देश आपस में लड़ेंगे तो दोनों ही बर्बाद हो जाएंगे। क्योंकि कच्ची मिट्टी के बर्तन आपस में टकराकर टूट ही जाते हैं।

बलवान शत्रु से युद्ध हाथियों की सेना से लड़ना है-जैसे हाथियों की सेना से लड़ने वाले पैदल सैनिक मारे जाते हैं। वैसे ही अपने से शक्तिशाली देश पर आक्रमण करने वाला राजा मारा जाता है।

शत्रु क्या करता है, क्या करेगा? यह सबकुछ ध्यान से देखते रहें। शत्रु के देश की सारी जानकारी प्राप्त करने के लिए अपने होशियार और चालाक जासूसों को उसके देश में भेजकर उस देश के अन्दर के हालात जान लें।

पड़ोसी देश के साथ यदि संधि हो भी तो उसकी गतिविधियों की उपेक्षा न करें।

हर राजा अपने देश के गुप्तचरों द्वारा की जाने वाली तोड़फोड़, विद्रोह, आतंकवाद आदि गतिविधियों पर सदा ही कड़ी चौकसी रखे, क्योंकि हर शत्रु देश में अशान्ति फैलाकर उसका लाभ उठाता है।

जैसे लोग आग का सहारा लेते हैं, वैसे ही राजा का सहारा लेना चाहिए। किन्तु राजा का सहारा लेने पर भी होशियार रहना चाहिए। जैसे आग गर्मी देती है, परन्तु जला भी देती है। ऐसे ही राजाओं के अधिक निकट जाना नुकसान भी तो दे सकता है। इसलिए किसी अच्छे- भले और ताकतवर राजा से ही मित्रता करनी चाहिए।

राजा के प्रतिकुल आचरण न करें । राजा के विरुद्ध कोई काम नहीं करना चाहिए, ऐसा करना राजद्रोह माना जाता है। राजा को नम्रता के साथ उसके दोष तो बताए जा सकते हैं किन्तु विद्रोह करना अपनी मृत्य को खरीदना है। इसी से प्रजा को भी काफी कष्ट उठाने पड़ते हैं।

वेशभूषा:

व्यक्ति की वेशभूषा कभी भी उल्टी-सीधी नहीं होनी चाहिए। इन्सान भले ही कितना भी अमीर क्यों न हो, उसे ऐसे कपड़े नहीं पहनने चाहिए जिससे लोग उस पर व्यंग्य करें। राजा के चरित्र के बारे में आलोचना नहीं करनी चाहिए। धन का नशा भयंकर होता है। इससे सदा होशियार रहना चाहिए। इस नशे में धुत्त होकर भी राजा के समान मुकुट-छत्र इत्यादि की नकल न ही उतारें तो अच्छा है।

इन्द्रियों के जाल में फंसा हुआ राजा शक्तिशाली सेना के होते हुए भी हार जाता है। भोग विलासी जीवन में खोया हुआ राजा कभी भी विजय प्राप्त नहीं कर सकता। भले ही उसकी सेना की संख्या शत्रु की सेना से कितनी ही अधिक क्यों न हो।

जुआरी के पास जुआ खेलने के सिवा और कोई काम नहीं होता। क्योंकि वह अपने सारे गुणों को जुए में खोकर भूल जाता है। अतः जुआरी राजा अथवा मन्त्री देश का ही नाश कर देते हैं।

शराबी को कोई भी जिम्मेदारी का काम नहीं देना चाहिए। शराबी के विषय में एक गांठ पल्ले बांध लें कि वह कोई भी काम पूरा नहीं कर सकता।

काम में डूबा हुआ प्राणी कोई काम नहीं कर सकता। कामी आदमी किसी भी काम को मन लगाकर नहीं कर सकता । कामी आदमियों को कभी भी कोई अच्छे काम करने के लिए न दें। इसमें आपकी भलाई है।

कड़वी बोली बोलने वाले लोगों की बातें आग से भी अधिक तेजी से जलाती हैं। आग का जला ठीक हो जाता है। तलवार का घाव भर जाता है। किन्तु जुबान से निकले कड़वे शब्दों के जख्म कभी भी नहीं भर सकते।

अर्ध-संतुष्ट राजा को श्री (लक्ष्मी) त्याग देती है। राजा को धन से कभी सन्तुष्ट नहीं होना चाहिए। क्योंकि देश के विकास के लिए अधिक से अधिक धन चाहिए। क्योंकि देश का धन प्रजा का ही होता है। राजा को चाहिए कि उस धन को अपना न समझे। जो भी राजा प्रजा के इस धन को अपना समझता है, वह नष्ट हो जाता है। उसका विनाश हो जाता है।

शत्रु केवल दंड नीति पर निर्भर है। किसी भी राजा की दंड नीति-ढीली हो तो उसके शत्रु सिर उठा लेते हैं। शत्रु यदि जरा-सा भी सिर उठाए तो उसे उसी समय कुचल देना चाहिए। इस मामले में कभी भी नरमी का बरताव नहीं करना चाहिए।

यदि कोई राजा दंड नीति का उचित उपयोग करता है तो उससे प्रजा के हितों की रक्षा होती है।

दंड के अभाव में मंत्रियों का अभाव हो जाता है। ठीक से दंड न देने से भ्रष्ट मंत्रियों की भीड़ लग जाती है। यही भ्रष्ट मंत्री देश का नाश कर देते हैं।

आत्मरक्षा दंड नीति पर ही निर्भर है। दंड नीति के ठीक होने पर ही राजा अपनी और अपने देश की रक्षा कर सकता है। सत्य बात तो यह है कि प्रजा की रक्षा से ही राजा की भी रक्षा होती है। दंड-व्यवस्था उचित न होने पर प्रजा कभी सुखी नहीं रहती। जिस देश की प्रजा सुखी न हो वहां पर कभी भी विद्रोह हो सकता है।

Chanakya sutra hindi: शरीर-

कोई भी इन्सान शरीर छोड़कर इन्द्र पद को नहीं चाहता। मनुष्य शरीर को त्याग देने के लिए तैयार नहीं। हर प्राणी को अपने शरीर से बहुत प्यार होता है। शरीर से अधिक प्रिय उसे कोई चीज नहीं लगती।

हर प्राणी यह जानता भी है कि यह शरीर नाशवान है। इस पर भी यदि उसे कोई कहे कि इस शरीर को त्याग दे तो वह क्रोध से जंगल की आग की भांति भड़क उठेगा। यही नहीं यदि आप उसे यह लालच भी देंगे कि : तुम इस शरीर के बदले में स्वर्ग का राज ले लो तो भी वह इस शरीर को छोड़ने के लिए तैयार न होगा।

इस संसार में कोई भी प्राणी सुखी नहीं है। इस दुनिया में आने के पश्चात् कोई सुखी नहीं रह सकता। केवल मोक्ष मिलने पर ही उसे शान्ति मिलती है। यही शांति स्थाई शान्ति होती है। क्योंकि मोक्ष मिलने पर ही जन्म और मृत्यु के चक्कर से मुक्ति मिल जाती है। जो जन्म-मरण के बंधन से मुक्त हो जाता है उसे स्वयं ब्रह्मा मिलते हैं।

स्वर्ग में गिरने से बड़ा दुःख नहीं है। दुःखों के पश्चात् सुख मिलना सौभाग्य की बात है। किन्तु जब सुख के पश्चात् दुःख मिलता है तो यह बहुत कष्टदायक होता है। यदि एक बार स्वर्ग मिल जाए और फिर पुण्यों के समाप्त होने पर वहां से इस संसार में पुनः वापस आना पड़े तो इससे मिलने वाला दुःख इस दुनिया का सबसे बड़ा दुःख होता है।

प्रातःकाल उठना हर इन्सान के लिए अच्छा है। सुबह सूर्योदय होने से एक घंटे पूर्व उठना चाहिए। ऐसा करना स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है। प्रात:काल नारी से सहवास करना उचित नहीं है।

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Written by lokhindi
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