चाणक्य नीति: चौथा अध्याय [ हिंदी में ] Chanakya Neeti Hindi

चाणक्य नीति: चौथा अध्याय

‘पंडित’ विष्णुगुप्त चाणक्य की विश्व प्रसिद नीति का चौथा भाग हिंदी में। चाणक्य नीति: चौथा अध्याय ( Chanakya Neeti Fourth Chapter in Hindi  )


आयुः कर्म च वित्तं च विद्या निधनमेव च।

पञ्चैतानि हि सृज्यन्ते गर्भस्थस्यैव देहिनः ।।।

  • जब जीव गर्भ में होता है, उसी समय उसकी आयु, कर्म, धन, विद्या और मृत्यु आदि पांच बातें निश्चित हो जाती हैं।

साधुभ्यस्ते निवर्तन्ते पुत्रा मित्राणि बान्धवाः ।।

ये च तैः सह गन्तारस्तद्धर्मात्सुकृतं कुलम् ।।

  • पुत्र-मित्र और बन्धुगण साधुओं से दूर रहते हैं। परन्तु जो लोग साधुओं के अनुकूल चलते हैं, उनके इस पुण्य से उनका सारा वंश कृतकृत्य हो जाता है।

दर्शनध्यानसंस्पर्शेर्मत्सी कूर्मी च पक्षिणी। ।

शिशु पालयते नित्यं तथा सज्जन संगतिः ।।

  • जैसे मछली दर्शन से, कछवी ध्यान से और पक्षी (मादा) स्पर्श से अपने-अपने बच्चों का सदा पालन-पोषण करती हैं, वैसे ही श्रेष्ठ पुरुषों की संगति प्राणियों का पालन-पोषण करती है।

यावत्स्वस्थो ह्ययं देहो यावन्मृत्युश्च दूरतः ।।चाणक्य नीति चौथा अध्याय

तावदात्महितं कुर्यातू प्राणान्ते किं करिष्यति।।

  • जब तक मानव शरीर निरोग है और मृत्यु बहुत दूर है, तब तक अपने आत्म कल्याण का उपाय कर लेना चाहिए। क्योंकि मृत्यु हो जाने पर कोई कुछ नहीं कर सकता।

कामधेनुगुणा विद्या ह्यकाले फलदायिनी।

प्रवासे मातृसदृशी विद्या गुप्तं धनं स्मृतम् ।।

  • शिक्षा में कामधेनु गौ के समान गुण हैं। यह असमय में भी फल देती है। यह विदेशों में मां के समान रक्षक और हितकारिणी होती है। इसलिए विद्या को छुपा हुआ धन कहा गया है। फिर आप इस धन से क्यों वंचित हैं?

वरमेको गुणी पुत्रो निर्गुणैश्च शतैरपि।

एकश्चन्द्रस्तमो हन्ति न च ताराः सहस्रशः।।

  • सैकड़ों बुद्धिहीन और बदनाम बेटों से एक ही बुद्धिमान बेटा अच्छा होता है। क्योंकि चन्द्रमा ही तो संसार के अन्धेरे का नाश करता है। हजारों-लाखों-करोड़ों तारे तो अन्धेरे को नहीं मिटा सकते।

मूर्खश्चिरायुर्जातोऽपि तस्माज्जातमृतो वरः।

मृतः स च अल्पदुःखाय यावज्जीवं जडो दहेत् ।।

  • लम्बी आयु वाले मूर्ख बेटे से पैदा होते ही मर जाने वाला बेटा श्रेष्ठ है। उसका केवल थोड़े ही समय के लिए तो दु:ख होता है परन्तु मूर्ख बेटा तो जब तक जीवित है तब तक मां-बाप को दुःख देता ही रहेगा।

कुग्रामवासः कुलहीनसेवा कुभोजनं क्रोधमुखी च भार्स।

पुत्रश्च मूर्खा विधुवा च कन्या विनाग्निना षट् प्रदहन्ति कायम् ।।

  • बदनाम ग्राम में निवास करना, कुलहीन की सेवा करना, बुरा भोजन कराने वाली पत्नी, मूर्ख पुत्र और विधवा नारी। यह छहों बिना आग के ही शरीर को जलाते रहते हैं।

किं तया क्रियते धेन्वा या न दोग्धी न गर्भिणी।

कोऽर्थः पुत्रेण जातेन यो न विद्वान् न भक्तिमान् ।।

  • उस गौ से क्या लाभ जो न तो दूध देती है और न गर्भ धारण करती है, ठीक इसी प्रकार उस बेटे से क्या लाभ जो न विद्वान हो और न ईश्वर भक्त ही हो।

संसार तापदग्धानां त्रयो विश्रान्तिहेतवः।

अपत्यं च कलत्रं च सतां संगतिरेव च।।

  • इस संसार में तापों से तपते हुए प्राणियों के लिए विद्वानों ने शान्ति प्राप्ति के तीन साधन बताए हैं-पत्नी-पुत्र और भले मित्रों की संगति ।

सकृज्जल्पन्ति राजानः सकृज्जल्पन्ति पण्डिताः ।

सकृत कन्याः प्रदीयन्ते त्रीण्येतानि सकृत्सकृत् ।।

  • राजा लोग केवल एक बार आज्ञा देते हैं, पण्डित लोग एक बार बोलते हैं। अपनी प्रतिज्ञा पर दृढ़ रहते हुए कन्या दान भी केवल क बार ही किया जाता है। यह तीनों बातें केवल एक बार होती हैं। बार-बार यह सब नहीं होता।

एकाकिना तपो द्वाभ्यां पठनं गायनं त्रिभिः।

चतुर्भिर्गमनं क्षेत्रं पञ्चभिर्बहुभिर्रणः ।।

  • पूजा-पाठ, भक्ति अकेले में, अध्ययन के लिए दो या इससे अधिक, गाना तीन से अथवा अधिक, यात्रा के लिए चार साथी, खेती के लिए कम से कम पांच, युद्ध के लिए जितने भी अधिक हों उतने ही अच्छे माने जाते हैं।

सा भार्या या शुचिर्दक्षा सा भार्या या पतिव्रता।

सा भार्या या पतिप्रीता सा भार्या सत्यवादिनी ।।

  • पत्नी वही है जो पवित्र हो, जो चतुर (होशियार) हो, जो पतिव्रता बनकर रहे, जो अपने पति से प्रेम करती हो, जो सत्य बोले, झूठ से घृणा करे, केवल ऐसी ही नारी मान-सम्मान और पालन-पोषण करने योग्य मानी गई है।

अपुत्रस्य गृहं शून्यं दिशः शून्यास्त्वबान्धवाः।

मूर्खस्य हृदयं शून्यं सर्वशून्या दरिद्रता ।।

  • जिस घर में सन्तान नहीं वह सूना है, जिस इंसान के दोस्त या मित्र नहीं हैं उसकी दसों दिशाएं सूनी हैं। मूर्ख इन्सान का दिल सूना होता है। और दरिद्री व कामचोर के लिए तो सबकुछ सूना है।

अनभ्यासे विषं शास्त्रमजीर्णे भोजनं विषम् ।

दरिद्रस्य विषं गोष्ठी वृद्धस्य तरुणी विषम् ।।।

  • जिस आदमी को अभ्यास नहीं, उसके लिए शास्त्र जहर है। जिस आदमी को भोजन ठीक ढंग से न पचे, उसके लिए भोजन करना जहर है। निकम्मे-सुस्त आदमी के लिए सभा में जाना विष के समान ही माना गया है, बूढ़े इंसान के लिए युवा लड़की जहर से कम नहीं होती।

त्यजेद्धर्मं दयाहीनं विद्याहीनं गुरुं त्यजेत्।

त्यजेत्क्रोधमुखीं भार्यां निःस्नेहान् बान्धवांस्त्यजेत् ।।

  • मानव को चाहिए कि वे उस धर्म को न मानें जिसमें दया नहीं होती, जो मानव विद्वान नहीं है उसे कभी अपना गुरु न मानें, जिस नारी में अधिक क्रोध हो उसे अपनी पत्नी न मानें। जिन बच्चों में प्रेम नहीं, ज़िन लोगों को मित्रता का पता नहीं, उन्हें भी कभी अपना प्रिय न मानें।

अध्वा जरा मनुष्याणां वाजिनां बन्धनं जरा।

अमैथुनं जरा स्त्रीणां वस्त्राणामातपो जरा।।।

  • मानव के लिए अधिक पैदल चलना, घोड़ों को बांधकर रखना, औरतों के लिए सम्भोग न करना और वस्त्रों को धूप न लगाना। यह सब बुढ़ापा लाने के कारण हैं।

कः कालः कानि मित्राणि को देशः को व्ययागमौ।

कश्याऽहं का च मे शक्तिरिति चिन्त्यं मुहुर्मुहुः ।।

  • कौन-सा समय है? मेरे मित्र कौन हैं ? मेरे शत्रु कौन हैं ? मेरा देश कौन-सा है? मेरी आमदनी क्या है? मेरे खर्च कितने हैं? मेरी ताकत कितनी है? इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए बार-बार चिन्तन और मनन करना चाहिए। जो लोग इन सब बातों का ध्यान करते हुए अपने जीवन की गाड़ी को चलाते हैं, उन्हें कभी भी असफलता का मुंह नहीं देखना पड़ता।

जनतायोपनेता च यस्तु विद्यां प्रयच्छति।

अन्नदाता भयत्राता पंचैते पितुर स्मृता ।।

  • जन्म देने वाला पिता, संस्कार डालने वाला गुरु, विद्या देने वाला, अन्नदाता और डर से रक्षा करने वाला । यह पांचों पिता के समान मान गए हैं।

अग्निर्देवो द्विजातीनां मुनीनां हृदि दैवतम् ।।

प्रतिमा स्वल्पबुद्धीनां सर्वत्र समदर्शिनः ।।

  • द्विजों (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य) को अग्निहोत्र माना जाता है। अर्थात अग्नि इनका देवता है। मुनियों के देवता उनके हृदय में वास करते हैं। अल्पबुद्धिवालों के लिए प्रतिमा में देवता होता है और पूजा करने वालों के लिए सब स्थानों पर ही ईश्वर होता है।
  1. यह भी पढ़े: चाणक्य नीति: प्रथम अध्याय [ हिंदी में ] Chanakya Neeti
  2. यह भी पढ़े: चाणक्य नीति: दूसरा अध्याय [ हिंदी में ] Chanakya Neeti Hindi
  3. यह भी पढ़े: चाणक्य नीति: तीसरा अध्याय [ हिंदी में ] Chanakya Neeti Hindi

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Written by lokhindi
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