Funny Story Hindi – टपके का डर – Funny Hindi Story

टपके का डर – Funny Hindi Story

Funny Story Hindi

एक गांव में एक धोबी रहा करता था | वह बहुत गरीब था | उन दिनों सावन-भादो की जोरदार बरखा चल रही थी | धोबी की झोपड़ी बहुत ही पुरानी थी | हर समय छत के टपकने का डर बना रहता था | लोगों के कपड़ों पर अगर टपके की बूंद पड़ जाये तो और भी मुसीबत | टपके का दाग छूटता भी नहीं | 

उस दिन बड़े जोरों की बारिश थी | धोबी धोबिन से कह रहा था – “ बड़े जोर की बरखा हो रही है | मुझे इतना डर शेर का भी नहीं लगता है | जितना टपके का है |”

धोबी यह बात कह ही रहा था | उसी समय बारिश के कारण रास्ता भटककर एक शेर उसकी झोपड़ी के पिछवाड़े आ खड़ा हुआ था | उसने जब धोबी की बात सुनी तो वह सोचने लगा “ यह टपका तो मेरे से भी जोरदार है | धोबी को इतना डर मेरा नहीं है, जितना कि टपके का है |”

उधर गांव के एक कुम्हार का गधा खो गया था | घनघोर अंधेरा था | हाथ को हाथ भी सुझाई नहीं दे रहा था | अपने गधे को खोजता हुआ वह झोपड़ी के पिछवाड़े आया | अंधेरे में उसका हाथ शेर पर पड़ा | वह सपने में भी नहीं सोच सकता था, कि वहां शेर खड़ा है | उसने समझा कि उसका गधा ही खड़ा है | वह उस पर चढ़कर बैठा और उस पर डंडे बरसाने लगा | साथ ही कड़क कर बोला “ गधे की औलाद यहां छिपा खड़ा है | तेरी ऐसी हालत करूंगा, कि जिंदगी भर याद रखेगा |”

इतना कहकर उसने शेर के कुल्हे पर दो-चार डंडे और जमा दिये | शेर ने सोचा ‘ हो न हो टपका आ गया है | अब तो मेरी खैर नहीं |’ वह सरपट दौड़ पड़ा |

कुम्हार ने मन ही मन सोचा “ यह गधा मेरे वाला तो है, नहीं ! वह तो मरियल सा था | यह कैसा हटा कटा है, बिजली के सामान दौड़ता है | खूब हाथ लगा | मजे आ गये |”

शेर जंगल की ओर दौड़े जा रहा था | अचानक बिजली चमकी | कुम्हार ने गौर से देखा उसे पूरा विश्वास हो गया, कि वह गधे पर नहीं शेर पर बैठा है | उधर शेर था कि तेजी से भागा चला जा रहा था | अजीब बात थी, की शेर   कुम्हार से डर रहा था और कुम्हार शेर से |

कुम्हार सोच रहा था, कि उसकी जान कैसे बचे | रास्ते में एक बरगद का पेड़ था | उसकी लताये धरती पर लटक रही थी | शेर जब बरगद के पेड़ के नीचे से गुजरा, तो कुम्हार ने उचककर डाली पकड़ ली | शेर को अपनी पीठ हल्की लगी तो उसे संतोष हुआ और वह अधिक वेग से भागा | वह सोच रहा था ‘ कहीं टपका फिर से न आ दबोचे |’

उधर कुम्हार ने सोचा कि – “ वह छुप जाये बरगद की खोह में, सो उसने बरगद की एक खोखली जगह खोजी और उसमें छुपकर बैठ गया | वह सोच रहा था, रात यही काट लूं | शेर बरगद पर चढ़ नहीं सकता |”

सुबह तड़के घर चला जाऊंगा |

उधर शेर था कि भागा जा रहा था | उसके दिल में टपके का भय बैठा हुआ था | आगे उसे बंदर मिला शेर की इतनी बुरी दशा देखकर बंदर ने कहा – “ मामा ! मामा ! क्या बात है ? कहां भागे जा रहे हो |”

“ अरे बंदर ! भाग ले | यदि अपनी जान बचानी है, जंगल में टपका आ धमका है |” शेर हांफते हुए बोला |

“ क्या बात करते हो | मामा ! टपके से डर गये | मैं तो टपके को बड़े ही चाव से खाता हूं |” बंदर हंस कर बोला |  उसने सोचा शेर टपके आम की बात कर रहा है |

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“ अरे भांजे ! वह टपका नहीं, बहुत भयंकर बला है | कूल्हे पर ऐसे डंडे जमाये, कि मुझे नानी याद आ गयी | शेर गहरी सांस लेकर बोला |

“ अरे मामा ! जरा मुझे भी तो दिखाओ कहां है, टपका |”

“ रहे न बंदर के बंदर ! शरारत किये बिना बाज थोड़े आओगे | चलो |”

दोनों बरगद की ओर चल दिये | कुम्हार ने भोर के प्रकाश में देखा, कि शेर बंदर के साथ आ रहा है | उसने सोचा कि बंदर उसे ऊपर से नीचे धकेलेगा और शेर उसे खा जायेगा | वह बरगद की  खोह में छुपकर बैठ गया और अपने सिर पर पत्ते रख लिये |

शेर बरगद के नीचे खड़ा था | रोशनी हो गयी थी | इसी कारण शेर अब इतना नहीं डर रहा था | सोच रहा था कि –  “ अगर टपका आप भी गया तो भाग खड़ा होऊंगा |” बंदर बरगद पर चढ़ गया | वह बरगद के फल तोड़-तोड़ कर नीचे फेंक कर कहता – “ मामा ! क्या यही है, टपका |”

“ जब तू टपके के हाथ आयेगा, तो तेरी नानी याद आ जायेगी |” शेर बोला |

बंदर उछल कूद करता हुआ | वहां जा बैठा जहां पर कुम्हार छिपा हुआ था | बंदर की पूंछ से पत्ते हट गये |  कुम्हार सोचने लगा कि “ आ गया सिर पर दुष्ट | अब क्या करूं ?” कुम्हार के मुंह के सामने बंदर की पूंछ लटक रही थी | उसने सोचा – “ बहुत बढ़िया मौका है | मौका चूक गया, तो बात बिगड़ जायेगी |” उसने बंदर की पूंछ को दोनों हाथों से जकड़ लिया |

अब बंदर उछलकर दूसरी टहनी पर खाने की कोशिश करने लगा, तो हिला भी नहीं गया | पूछ भारी लगी | उधर शेर बोला – “ क्यों क्या हाल है |”

अब तो बंदर और भी डर गया | वह पूछ छुड़ाने के लिए जोर लगाने लगा | कुछ जोर बंदर ने लगाया तो कुछ  कुम्हार ने इससे बंदर की पूंछ उखडकर कुम्हार के हाथ में आ गयी और बंदर धप्प से जमीन पर जा गिरा | शेर तो पहले ही यह दृश्य देखकर भाग खड़ा हुआ | बंदर भी जल्दी से उठकर भाग गया | भागते-भागते जब दोनों बहुत दूर निकल आये | तब कहीं जाकर उन्होंने सांस ली | शेर बोला – “ क्यों भांजे ! पा लिया काबू टपके पर |”

“ अरे मामा ! कौन कहता है, कि वह टपका था | वह तो पूछ उखाड़ था | कमबख्त ने मेरी पूछ ही उखाड़ डाली |  तुम्हारे तो कूल्हे पर केवल डंडे ही मारे थे |” बंदर दर्द से कहराता हुआ बोला |

इधर कुम्हार पेड़ से उतरा और गुनगुनाता हुआ घर की ओर चल दिया | वह सोच रहा था कि – “ अब बिना अच्छी प्रकार पता लगाये | वह कोई काम नहीं करेगा |”  

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Written by lokhindi
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