Moral Stories – झूठा अहंकार – Moral Stories For Kids

Moral Stories – झूठा अहंकार

Moral Stories For Kids / Moral Stories in Hindi

बहुत समय पूर्व मानिकचंद नामक एक राजा था | उसके दरबार में बहुत से दरबारी थे | उनका काम राजा की ख़ुशामद करना था | राजा जो भी करता, दरबारी लोग भी वैसा ही करते |

एक दिन आसमान में काले-काले बादल छाए हुये थे | जिससे रात का समां प्रतीत होता था |

राजा बोला – “ रात हो गयी |”

“जी हां, रात हो गयी ।” सारे दरबारी एक साथ चिल्लाये |

यही उन दरबारियों और राजा का नित्य कर्म था |

संयोगवश दरबार में एक जटा-जूटधारी साधु आया |

राजा को दाढ़ी-मूछों से नफरत थी | उसने साधु को दरबार से निकाल दिया |

इस घटना के बहुत दिन बाद एक दिन राजा जंगल में शिकार खेलने गया | शिकार की खोज में घूमते-घूमते राजा परेशान हो गया |

लेकिन उसे कोई शिकार न मिला |

अन्त में वह किसी ऐसे स्थान को खोजने लगा, जहां पर वह विश्राम कर सके |

कुछ देर भटकने के बाद अंन्तत: उसे एक कुटिया दिखायी दी | उसने अपने घोड़े का रुख उसी और कर दिया |

जल्द ही वह कुटिया के समीप जा पहुंचा | किंतु कुटिया के आसपास किसी को न पाकर वह हैरान हुआ |

घोडे से उतरकर वह कुटिया के सामने जा खड़ा हुआ और चिल्लाया – “ कोई है ?”

आवाज सुनकर कुटिया से एक साधु बाहर आया | यह वही साधु था, जिसे राजा ने अपमानित करके दरबार से भगा दिया था | किंतु, वह साधु उस अपमान को भूल चुका था |  किंतु अपने राजा को तो वह पहचानता था | अंतः राजा को देखते ही उन्हें वह अपमान याद आ गया | उन्हें राजा पर क्रोध भी आया, पर वे उसे पी गये |

तभी राजा ने कहा – “ साधु महाराज ! मै जंगल में शिकार करने आया था, शिकार तो ना मिला, पर थकान बहुत हो गयी है | यदि आपके यहां कुछ देर आराम करने की आज्ञा मिल जाये, तो अति कृपया होगी |”

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“ ठीक है, आइये ” साधु उसे नम्रतापूर्ण कुटिया में ले गया |

राजा तभी भी उसे पहचान नहीं पाया था |

कुटिया में लेजाकर साधु ने राजा को कुछ फल खाने को दिये | राजा को यह काफी अच्छा लगा |

उसने खुश होकर कहा – “ महाराज मैं यहां का राजा हूं, आपकी कोई इच्छा हो तो बताइये, मैं उसे अवश्य पूरा करूंगा |”

साधु विनम्रता से बोले – “ राजन ! मैं भी आपकी तरह एक राजा था | एक दिन मुझे लगा कि राज पाट, धन-संपत्ति, कुटुंब-कबीला, कुछ भी अपना नहीं है | आदमी के साथ न कुछ आता है, न कुछ जाता है | बस, अपने बेटे को सब कुछ सौंपकर यहां चला आया | अब सारा समय धर्म ध्यान में लगाता हूं | बड़ा आनंद आता है, बड़ी मस्ती का अनुभव होता है |”

बातें करते-करते अचानक ही राजा को ध्यान आया की उसने साधु को कहीं देखा है, किंतु कहां ? यह उसे ध्यान में न आ रहा था ।

वह इस विषय में सोचने लगा |

कुछ याद करने पर उसे ध्यान हो आया कि यह वही साधु है, जिन्हें उसने अपने दरबार से निकाल दिया था | और आज, आज वह स्वयं उनकी कुटिया में आराम कर रहा है |

छिः छिः ! कितना नीच है वह | वह मन ही मन खुद को गालियां बकने लगा – “ मैं कितना मूर्ख हूं, जो इस दुनिया के भ्रमजाल में फसा बुरे -भले का अंतर नहीं समझता | जिस दुनिया में जी रहा हूं मैं, उसमे यहा मेरे चारों ओर ऐसे लोग रहते हैं जो मेरी विवेक को अपनी गंदी, झूठी बातों की धूल मे दबाते हैं |”

इधर राजा यह सोच रहा था और साधु उधर कह रहे थे – “ राजन ! इंसान का जन्म बड़ा मुश्किल है | वह बार-बार नहीं मिलता है | इंसान वही है, जिनके ज्ञान-चक्षु सदा खुले रहते हैं | और जो दुनिया में रहकर भी उससे ऊपर रहता है | और जो ऐसा नहीं करता, वह सिर्फ हाड-मास का बना पुतला है |”

राजा को अपनी विमूढता का ज्ञान हुआ | वह वापस लौटा तो उसे लगा कि उसके भीतर का आदमी मर चुका है, और इंसान जिंदा हो गया है | अब वह एक राजा न होकर इंसान बन गया था |

शिक्षा – “ इंसान के अधो: पतन का कारण झूठा, अभिमान और लोगों की चाटुकारिता होती है | इनके बीच घिरे रहकर मानव आदमी तो बना रहता है पर सच्चा इंसान नहीं | सच्चा इंसान वह है, जिसमे इंसानियत के भाव हो |”

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Written by lokhindi
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