घमण्ड का सिर निचा – शिक्षाप्रद कहानी हिंदी में

शिक्षाप्रद कहानी

घमण्ड का सिर निचा – शिक्षाप्रद कहानी हिंदी में। एक घमण्डी लड़के की कहानी/ Moral Story in Hindi। Informative story


सुन्दर वस्तु को देखते ही मन का मचल उठना, वस्तु को पाकर दिल का गर्व से भर उठना। किस मनुष्य में यह गुण नहीं है। कौने मनुष्य ऐसा है जो इस गर्व से अछूता हो? कौन मनुष्य गर्व को ना पाना चाहेगा?

मगर जब ही गर्व हद से ज्यादा बढ़ जाए तो घमण्ड, अभिमान और ना जाने कौन-कौन -सी संज्ञाएँ ले लेता है। इसी घमण्ड के कारण रावण जैसे महाबली, शक्ति के भंडार का भी नाश हो गया। इसी प्रकार के और भी कितने ही उदाहरण, जो यह बताते हैं कि घमण्ड और अभिमान का सदा सर्वनाश होता है।

लेकिन यह मनुष्य प्रवृत्ति भी अजीब चीज है, ना चाहते हुए भी इसमें घमण्ड पैदा हो ही जाता है, अब चाहे उस घमण्ड का मुंह काला हो या सिर ही क्यों ना मुड़ जाए, मनुष्य में आकर वास जरूर करता है।

कुछ ही दिनों पहले की एक घटना है। राजापुर नामक नगर में एक छोटा-सा परिवार रहता था। परिवार में बस तीन ही सदस्य थे-पति, पत्नी और एक लड़का।

घमण्ड का सिर निचा

लड़के की उम्र करीब दस वर्ष थी। वह रोज स्कूल जाता, लगन से पढ़ता और कक्षा में अव्वल भी आता था। वह बहुत हंसमुख था, हर किसी से हँसकर मीठे शब्दों में बात करता था, इसी कारण उसके अनेकों मित्र थे।

वह अपने मित्रों से लड़ता, झगड़ता और फिर उन्हीं के साथ खेल में मगन हो जाता। उसका नाम था-अनिल।

एक दिन उसके चाचा ने विदेश से उसके लिए कुछ कपड़े भेजे। कपड़े इतने सुन्दर थे कि हर किसी का मन उन्हें देख ललचा जाए। उन कपड़ों को पाने की लालसा किसी के भी मन में पैदा हो सकती थी।

और जिसे वे कपड़े ही प्राप्त हों तो..। उसके तो पाँव ही धरती पर नहीं पड़ेंगे। अनिल के साथ भी यही हुआ।

उन कपड़ों को देख-देखकर वह फूला ना समाता। कभी कपड़ों को आलमारी में रखता, कभी बाहर निकालता, कभी हैंगर पर टाँगता और कभी पहन ककर देखता फिर उतार देता।

कपड़ों को देख-देखकर ही उसका वजन बढ़ रहा था। कपड़ों के चक्कर में वह उस दिन स्कूल भी नहीं गया, ना घर में ही पढ़ा और ना खेलने ही गया।

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बस उन्हीं कपड़ों को देख-देखकर रीझता रहा। आइने के सामने खड़े होकर कभी यह कहता-“वाह! कितनी सुन्दर ड्रेस है।” और कभी यह कहता–“अरे वाह रे अनिल! इस ड्रेस ने तो तुझ पर चार चाँद लगा दिये ।”

माँ उसकी यह बातें सुनकर मुस्कुराकर रह गईं।

अगले दिन वह गर्व से ड्रेस पहनकर स्कूल गया। वहां पर उसे देखते ही उसके मित्रों ने उसे चारों ओर से घेर लिया। कुछ उसके कपड़ों को हसरत से छू-छू कर देख रहे थे।

उनका छूना ही अनिल को नागवार गुजरा। वह उन पर चिल्ला पड़ा–“तुम लोगों को इतनी भी तमीज नहीं है कि किसके साथ कैसे पेश आया जाता है, कर दिये ना सारे कपड़े खराब हटो पीछे” कहकर वह गुस्से से पाँव पटकता घर वापस आ गया।

उसके मित्र उसके इस व्यवहार पर आश्चर्यचकित रह गये। उन्हें अनिल पर गुस्सा भी आ रहा था, मगर दोस्ती के नाते वे उसकी बात को टाल गये। और इसके बाद तो हद ही हो गई। अनिल ने अपने दोस्तों से मिलना-जुलना भी बन्द कर दिया। धीरे-धीरे उसके स्वभाव में परिवर्तन आने लगा, अब वह पहले जैसा अनिल नहीं रह गया था। ना किसी से मिलता-जुलता, ना हसकर बात करता, बस अपनी विदेशी ड्रेस में ही मगन रहना उसकी आदत-सी बन गई थी।

घमण्ड का सिर निचा -शिक्षाप्रद कहानी

उसकी इस आदत से उसके माता-पिता भी परेशान हो गये थे। उनकी भी समझ में नहीं आ रहा था कि यह अनिल को क्या हो गया था। वह हर समय घमण्ड में चूर रहने लगा। अब तो वह मम्मी को भी सीधे जवाब नहीं देता था । ड्रेस में ध्यान लगे रहने के कारण पढ़ाई की ओर भी वह कम ध्यान देने लगा। हर वर्ष कक्षा में प्रथम आने वाला अनिल इस वर्ष कक्षा में ही तीसरे नम्बर पर आया था।

इसी कारण उसे पिताजी और टीचर से डांट खानी पड़ी थी। और इसी कारण वह माँ-बाप के मन से भी उतरने लगा था।

मगर उसे कब इसकी चिन्ता थी, कोई रूठे या मने उसे इससे क्या लेना-देना । उसे तो बस अपनी ड्रेस की फिक्र थी। कहीं उस पर कोई धब्बा ना लग जाए, कहीं उसकी क्रीज ना खराब हो जाए।

इसी तरह उसकी जिन्दगी बसर हो रही थी।

एक दिन वह सुबह सवेरे स्कूल जा रहा था। स्कूल सड़क के दूसरी ओर था। उसने अपनी वही सुन्दर, विदेशी ड्रेस पहन रखी थी। उस दिन वह कुछ लेट भी हो गया था, अतः वह जल्द से जल्द स्कूल में पहुँचना चाहता था। ।

सड़क पर वाहनों का आना-जाना जारी था।  वह सड़क के इस ओर खड़ा था। और स्कूल दूसरी ओर था।

अनिल ने दाएं-बाएं देखा। दाईं तरफ से एक ट्रक आ रहा था। अनिल ने सोचा कि जब तक ट्रक वहां तक आएगा, वह सड़क पार कर चुका होगा ।

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मगर होनी को कौन टाल सकता है।

वह अभी यह सोच ही रहा था कि उसके पीछे खड़े एक स्कूटर को स्कूटर मालिक स्टार्ट करने लगा। उसकी पीठ स्कूटर के पिछले हिस्से की ओर थी ।

जैसे ही स्कूटर मालिक ने स्कूटर स्टार्ट कर खड़े-खड़े ही उसे रेस दी, स्कूटर के साइलेंसर (उगलने वाली पम्प) से ढेर सारा धुंआ निकल कर अनिल के कपड़ों पर जमने लगा।

अनिल ने जब यह सब कुछ देखा तो वह आगबबूला हो गया। मगर उस समय वह चुप ही रहा। झुझलाकर वह सड़क पार करने लगा, सड़क पार करते समय उसका सारा ध्यान अपने कपड़ों पर था । वह अपने कपड़ों को बार-बार झाड़ रहा था।

दाईं ओर से आने वाला ट्रक तेजी से उसकी ओर बढ़ रहा था, ट्रक ड्राइवर ने जब सड़क के बीचो-बीच एक बच्चे को देखा तो उसने फौरन ट्रक के ब्रेक मार दिये। मगर ट्रक पूरी रफ्तार पर था। अतः रुकते-रुकते भी तेजी से अनिल से टकरा गया ।

“नहीं.!” अनिल के मुंह से निकला और वह सोते से उठ बैठा।

माँ और पिताजी फुर्ती से उसके पास आए। माँ ने उसे पानी पिलाया।

“क्या हआ बेटे ?” पिताजी ने पूछा।

“घमण्ड टूट गया पिताजी। या मेरे अन्दर का घमण्ड ट्रक के नीचे कुचला गया माँ।” कहकर अनिल फूट-फूटकर रोने लगा। फिर पिताजी के पूछने पर उसने सारी बात विस्तारपूर्वक माँ और पिताजी को बता दी।

और इस प्रकार अनिल का घमण्ड खत्म हो गया। मर गया वह ट्रक के नीचे कुचल कर। और पहले वाले अनिल का पुनर्जन्म हुआ। वह समझ चुका था कि घमण्ड का अन्त इसी प्रकार ट्रक के नीचे कुचल कर होता है। हमें भी घमण्ड का त्याग किसी भयानक अन्त से पहले ही कर देना चाहिए।

शिक्षा-“किसी भी व्यक्ति को घमण्ड नहीं करना चाहिए। यदि वह ऐसा करता है तो अवश्य ही उसे एक-न-एक दिन अपना सिर शर्म से झुकाना पड़ता है। घमण्ड ऐसा स्वभाव जिसे अवश्य ही जल्द से जल्द समाप्त हो जाना पड़ता है।”

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Written by lokhindi
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