New Hindi Moral Stories – बहु की होशियारी – कहानी

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मोरल हिंदी कहानी / New Hindi Moral Stories – बहु की होशियारी । प्रेरणादायक कहानियां हिंदी में_Moral Stories in Hindi |


सुन्दर नगर में चन्दर नाम का व्यक्ति रहता था। वह बड़ा मेहनती था। उसके सात बेटे थे। वे भी अपने पिता की तरह खूब मेहनती थे। चन्दर की पत्नी का देहान्त हो चुका था।

सातों बेटे और चन्दर राजा के यहाँ नौकरी करते थे। राजा उन्हें रोजाना उनकी मेहनत के बदले केवल पाँच सेर जौ के दाने देकर टाल देता था। घर आकर वे स्वयं भोजन बनाते थे।

इतने कम अनाज में उसके परिवार का भला नहीं होता था। चन्दर के परिवार में अच्छी खुराक वाले सदस्य थे, इसलिये इतने कम खाने में वे हमेशा भूखे ही रह जाया करते थे।

कई बार चन्दर के मन में राजा की नौकरी छोड़ने का विचार भी आया, किन्तु यह सोच कर वह अपने विचार को मन से त्याग देता था कि यदि वह उसकी नौकरी छोड़कर किसी दूसरे शहर जाकर भी नौकरी करेगा, तो राजा उसे अवश्य तलाश करवा लेगा और फिर उसको उसके परिवार सहित सूली पर लटकवा देगा।

एक दिन चन्दर भोजन तैयार करने के लिये चूल्हे में आग दहका रहा था कि पड़ोस की एक बुढ़िया ने उसे आकर समझाया-“ऐ चन्दर ! तुम्हारे सात-सात जवान बेटे हैं, फिर भी तुम चूल्हा झोंकते हो। तुम अपने बड़े बेटे की शादी क्यों नहीं कर लेते? घर में एक बहू आ जायेगी तो कम से कम तुम लोगों को चूल्हा तो नहीं .झोंकना पड़ेगा।”

उस बुढ़िया को शायद यह मालूम नहीं था कि चन्दर के बड़े बेटे नन्दकिशोर की दो साल पहले ही शादी हुई थी। उसने से इसलिये उसने चन्दर से ऐसा सवाल किया था।

तब चन्दर ने बुढ़िया को बताया -“चाची, नन्दकिशोर की शादी हुए तो दो साल बीत चुके हैं..मगर ” उसने अपना वाक्य अधूरा छोड़ दिया और फिर चूल्हे में फेंक मारने लगा।

“क्यो रे..क्या हुआ चन्दर? मुझे भी तो बता क्या हुआ?” बुढ़िया ने उत्सुकतावश पूछा।

“क्या बताऊँ चाची. .. ।” चन्दर ने भोला-सा मुंह बनाकर कहा-“उसकी बहू अपनी माँ के घर पर ही है।”

“माँ के घर.क्यों ..तूने उसे वहाँ क्यों छोड़ रखा है? तू अपने बेटे से कहता क्यों नहीं..वो उसे वहाँ से लेकर आये ।” बुढ़िया ने चन्दर को सुझाव दिया।

“कैसे लाये चाची.हमारे घर में तो एक चारपाई तक नहीं है, जिस पर वह बेचारी आकर बैठ भी सके। और फिर नन्दकिशोर के पास ऐसे कपड़े भी नहीं हैं चाची, जिन्हें पहनकर वह अपनी ससुराल जा सके।”

“अरे वाह रे वाह चन्दर..बस इतनी सी बात है…मैं तो समझी थी कि कोई बड़ा बखेड़ा है। चल.तुम्हें कपड़े में दूगी-तुम नन्दकिशोर को उसकी ससुराल भेजने का प्रबन्ध करो। भगवान ने चाहा तो सब ठीक हो जायेगा ।” कहकर बुढ़िया अपने घर चली आई।

चन्दर की समझ में बुढ़िया की बात आ गयी। उसने कपड़े लेकर अपने बेटे नन्दकिशोर से कपड़े पहनकर ससुराल जाने के लिये कहा तो वह तैयार होकर चला गया ।

ससुराल में उसकी खूब आवभगत हुई और तीन दिन वहाँ रहने के बाद नन्दकिशोर अपनी बहू को लेकर अपने घर की तरफ चल दिया।

परन्तु, रास्ते में उसने सोचा कि उनके घर में तो कोई चारपाई भी नहीं है। जिस पर वह अपनी बहू को बिठा सके।

तब उसके दिमाग में एक युक्ति आयी। उसने अपनी पत्नी को सीधा उस बुढ़िया के घर पर ही उतार दिया और जब वह अपने घर खाली हाथ आया तो चन्दर ने उससे उसकी पत्नी के बारे में मालूम किया तो उसने सबकुछ अपने पिता से बता दिया।

 

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फिर वे राजा के यहाँ नौकरी पर चले गये।

बढ़िया ने नन्दकिशोर की पत्नी की खब खातिर की और फिर वह बोली “आओ बेटी मैं तुम्हें तुम्हारे घर छोड़ आउ।”

बुढ़िया की बात सुनकर नई नवेली बहू को बड़ा आश्चर्य हुआ। वह सोचने लगी कि क्या यह उसका घर नहीं है?

तब उसने हिचकिचाते हुए बुढ़िया से पूछा-“क्यों माँ जी, क्या यह मेरा घर नहीं है?”

फिर बुढ़िया ने जो कुछ सच था उसे बता दिया और उसे उसके घर छोड़ आई।

अपने पति के घर में घुसकर बहू ने देखा तो उसे बहुत बुरा-सा वह घर लगा। घर के अन्दर जगह-जगह चूल्हे बने हुए हैं, चूल्हों की राख बिखरी पड़ी है, एक कोने में टूटी हुई चारपाई पड़ी है, बर्तनों के नाम पर घर के अन्दर टूटी-फूटी चार-पाँच प्लेटें हैं, कपड़ों को उठाकर देखा तो उन फटे पुराने कपड़ों पर धूल जमी पड़ी है। अपनी ससुराल के घर की हालत देखकर बहू की आँखों में आंसू आ गये।

अब वह सोचने लगी कि पिछले जन्म में उसने ऐसी कौन सी गलती की थी। जिसकी सजा भगवान उसे इस जन्म में दे रहा है?

बहू हिम्मत वाली थी। कुछ देर सोचने के बाद वह उठी और घर की सफाई में जुट गयी । सारा घर साफ किया । आंगन में फैली चूल्हों की राख जगह-जगह बने चूल्हे तोड़कर उसने एक चूल्हा तैयार किया। फिर वह अपने पति के आने की प्रतीक्षा करने लगी।

शाम होने जा रही थी, परन्तु उनमें से अभी तक कोई भी सदस्य घर पर नहीं आया था। बहू को बेचैनी होने लगी। इतना बड़ा घर और उस घर में वह अकेली! उसे चिन्ती होने लगी कि कहीं कोई गैर आदमी आकर उसके साथ दुराचार ना करने लगे।

उसके मन में तरह-तरह के ख्याल आने लगे। किन्तु जैसे ज्यादा प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ी। तभी उसका पति और ससुर अपने बेटों के साथ घर में आये तो उन्होंने देखा कि उनके घर की हालत बिल्कुल बदल चुकी है। यह देखकर वह सब प्रसन्न हो उठे।

परन्तु जब चन्दर की निगाह चूल्हों की तरफ उठी तो उसने बहू से कहा-बहू! ये तुमने क्या किया? तुमने तो सब चूल्हे ही खत्म कर दिये। अब हम खाना कहाँ पर बनायेंगे?”

“तुम इसकी चिन्ता मत करो बापू आज से इस घर के अन्दर एक ही चूल्हे पर खाना बनेगा और हम सब एक साथ मिलकर खायेंगे।”

“ठीक बहू.अब जैसी तुम्हारी मर्जी ।” और फिर चन्दर ने जौ के वे दाने जो हर रोज राजा उन्हें देता था, अपनी बहू के सामने रख दिये ।

इतने कम भोजन को देखकर बहू ने पूछा-“क्या राजा आपको केवल इतने ही जौ देता है?

‘हाँ बेटी ।” चन्दर ने बताया–“राजा जो कुछ देता है, वही हम ले आते हैं। राजा की बात टालने की हिम्मत किसमें है बेटी?”

ससुर की बात सुनकर बहू कुछ सोचने लगी । फिर वह बोली-“तुम सब लोग दब्बू हो। राजा के लिये तुम इतनी मेहनत करते हो और राजा तुम्हें थोड़े से जौ देकर बहका देता है। कल तुम उससे कहना कि वह इससे तीन गुने जौ दे तो काम करेंगे। उसको जरूरत होगी तो तुम लोग से काम करायेगा। और सुनो तुम डरना मत। “

नन्दकिशोर ने कहा-“भाग्यवान तुम नहीं जानती राजा को। हमारी बात सुनकर वह हमारी जबान कटवा देगा ।”

“तुम चोरी तो नहीं कर रहे हो, तुम झूठ तो नहीं बोल रहे हो। अपना हक उससे मांग रहे हो और जो अपना हक नहीं मांग सकता । वह कुछ नहीं कर सकता । तुम मेरी बात मानो, राजा से कल तुम यही बात कहना तो सही। राजा जी तुम्हें कुछ नहीं कहेंगे “

तब चन्दर ने बहू को आश्वासन दिया कि वे ऐसा ही करेंगे जैसा वह कह रही है। और फिर अगले रोज पूरे दिन काम करने के बाद राजा ने उन्हें जो दिये तो चन्दर ने उससे तीन गुने जौ देने की माँग की।

राजा ने कोई प्रतिवाद न किया और उन्हें तीन गुनी मात्रा में जौ दे दिये।

वे खुशी-खुशी अपने घर वापस आये। New Hindi Moral Stories

बहू के सामने उन जौ को रखा। बहू ने देखा कि जौ कल से तीन गुना अधिक हैं, तो उसने पूछा-“क्या राजा ने तुम्हें कुछ कहा तो नहीं?”

“नहीं बहू..उन्होंने चुपचाप हमें तीन गुने जौ दे दिये।” चन्दर ने बताया।

बहू जौ लेकर पिछले दिन की भाँति बूढ़ी के घर गयी और उन्हें पीट लायी। फिर उसने रोटियाँ और सब्जी बनाकर पंरोसी।

खाना खाकर-सबने बहू को दिल से दुआएं दीं। देवरों ने भाभी की खूब प्रशंसा की। बहू होशियार थी, वह अक्ल से काम लेती थी। राजा द्वारा दिये गये जौ में से वह आधे जौ बचाकर रख देती थी।

एक हफ्ता उसने यही काम किया। फिर अगले दिन उसने अपने पति से कहा-“ए जी, सुनो आज तुम राजा से कहना कि इतने जौ से हमारा काम नहीं चलता। वह कुछ न कुछ जौ की मात्रा और बढ़ा दें।”

शाम को काम से निपटने के बाद बाप-बेटे राजा के पास गये और उसके सामने अपना प्रस्ताव रखा तो राजा ने बिना भू-पटाक के जौ की मात्रा फिर तीन गुना कर दी।

वे जौ लेकर घर आये।

तब बहू ने जौ को देखकर अपने ससुर से कहा-बापू जी, तुम लोग कल से राजा के यहाँ काम करने नहीं जाओगे।”

फिर हम लोग क्या खायेंगे बेटी?” बहू की बात सुनकर चन्दर ने आश्चर्यचकित होते हुए पूछा।

“मैंने काफी अनाज बचा-बचाकर इकट्ठा कर लिया है। तुम लोग बाजार में कोई दुकान देख लो और उसमें अनाज बेचने का काम शरू कर दो। भगवान ने चाहा तो हमारे पास सब कुछ हो जायेगा ।

बहू की बात चन्दर की समझ में आ गयी।

दूसरे दिन उसने बाजार में एक दुकान का प्रबंध कर लिया। उसमें बहू द्वारा बतायी गई योजना के अनुसार अनाज बेचने का काम शुरू कर दिया।

शुरू-शुरू में तो दुकान पर कम ही ग्राहक आये,लेकिन फिर उनकी दुकान चल निकली। दुकान चलती देख चन्दर तथा उसके बेटों की खुशी का ठिकाना ना रहा। वे घर के लिये भी कुछ न कुछ सामान जुटाने लगे।

एक दिन बहू ने अपने ससुर से कहा-पिताजी! तुम रोजाना घर पर खाली हाथ चले आते हो, तुम्हारी यह बात अच्छी नहीं है। रास्ते में जो कुछ मिला करे उसे उठा लाया करो ।”

ससुर ने बहू की बात की गाँठ बाँध ली।

और अगले ही दिन से वह रास्ते में पड़ी किसी भी वस्तु को छोड़कर नहीं आता था। रास्ते में यदि उसे कोई कागज भी मिल जाता तो वह उसे भी नहीं छोड़ता था। और बहू उन सब चीज़ों को घर के एक कोने में जमा करती रहती थी।

चन्दर रोजाना कुछ न कुछ लेकर घर में घुसता था, किन्तु आज उसे रास्ते भर कुछ ऐसी वस्तु दिखाई नहीं दी जैिसे उठाकर वह अपने घर ले जा सके। You Read This New Hindi Moral Stories on Lokhindi.com

वह एक जगह खड़ा होकर सोचने लगा। अचानक उसकी नजर रास्ते के किनारे पड़े एक मरे हुए साँप पर पड़ गयी।

वह झपट कर उसके पास पहुँचा। उसने देखां साँप वाकई मरा हुआ था। उसने सोचा कि वह उसी मरे हुए साँप को उठाकर ही अपने घर ले जाए । यदि वह घर में कुछ भी लेकर नहीं घुसा तो उसके बेटे की बहू कहीं उससे नाराज न हो जाये।

तब चन्दर ने एक लकड़ी पर उस साँप को ठग लिया और उसे ही अपने घर ले आया । बहू ने जब अपने ससुर के हाथ में मरा हुआ साँप देखा तो वह उछल कर बोली- “अरे..’! ये क्या.उठा लाये पिताजी. .. !” फिर कुछ सोचने के बाद वह बोली-“खैर, कोई बात नहीं। अब आप इसे ले आये हैं तो छत पर फेंक दो।”

चन्दर ने उसको तुरन्त छत पर फेंक दिया।

यह संयोग ही था कि एक चील रानी का हार अपनी चोंच में दबाए उड़ रही थी। उसने छत पर साँप देखा तो वह तुरन्त वहाँ उतर आयी।

चील ने हार तो छत पर एक तरफ फेंका और साँप पर झपट पड़ी। वह साँप को उठाकर आकाश में उड़ गयी।

दोपहर को जब बहू छत पर कपड़े सुखाने चढ़ी, तो हीरों का हार देखते ही उसकी आँखें आश्चर्य से फटी की फटी रह गयीं। उसने हार को उठा लिया और नीचे आकर उसे एक सन्दूक में सुरक्षित रख दिया।

उसी दिन नगर में मुनादी हुई कि ‘एक चील रानी का हीरों का हार ले कर उड़ गई है। जिस किसी व्यक्ति को वह हार मिल जाये उसे राजा के दरबार में पहुँचा दे। राजा उसे मुंह माँगा इनाम देंगे।’

जब यह बात बहू को पता चली तो उसने हार के बारे में किसी से कोई जिक्र नहीं किया। नगर के सभी लोगों की जुबान पर रानी के हार की चर्चा थी लेकिन हार अभी तक नहीं मिला था। अगले दिन राजा ने पुनः नगर में ऐलान कराया कि रानी का हार अभी तक किसी ने भी दरबार में नहीं पहुँचाया है। किसी को यदि हार के बारे में मालूमात हो तो वह तुरन्त दरबार में आकर निडरता से राजा को बताये।

यह ऐलान भी नन्दकिशोर की बहू ने सुना।

फिर जब शाम को उसके पति, ससुर और गये तो बहू देवर सब घर में आए तो बहु ने जिक्र किया-“क्या वास्तव में रानी का हार चील लेकर उड़ गयी है या राजा की कोई चाल है?”

बहू की बात सुनकर चन्दर ने कहा- नही-नहीं बहू…. राजा इतना झूठा नहीं है, हम उसे जानते है, वह झूठ नहीं बोल रहा है। हार वास्तव में चील ले उड़ी है और फिर राजा को उसके ज्योतिषियों ने बताया है कि हार किसी की छत पर है।”

“नहीं पिता जी.ज्योतिषी झूठ बोलते हैं। हार राजा के महल के पीछे कूड़े के ढेर में दबा हुआ मिलेगा।” बहू ने बड़ी चालाकी से कहा।

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तुम्हें कैसे मालूम बेटी कि हार कूड़े में मिलेगा?” चन्दर ने उत्सुकतावश पूछा।

फिर बहू बोली-“पिताजी, कुछ बातें ऐसी होती हैं, जिन पर बहस करने से कोई फायदा नहीं होता। तुम मेरी बात मानो-राजा के दरबार में तुम झूठ-मूठ का पोथी पन्ना लेकर जाओ और जैसा मैं कहती हूं, वैसी सूचना राजा को दे दो।”

“क्या कहती है बहू तू! चन्दर को क्रोध आया-अगर वहां हार नहीं मिला तो राजा मेरी गर्दन उड़वा देगा।”

“नहीं.नहीं मैं नहीं जाऊंगा ।” चन्दर सहमकर पीछे हटा।

“पिताजी! मैं जो कुछ कह रही, बिल्कुल सच कह रही हूं। आप वैसा ही करें जैसा मैं तुमसे कह रही हूँ-तुम्हें कुछ नहीं होगा ।” बहू ने अपने ससुर का खूब समझाया।

फिर चन्दर ने बहू की बात मान ली। और एक कागजों की पोथी लेकर वह राजा के दरबार में पहुँचा। वहाँ उसने निडर होकर झूठ-मूठ की पोथी राजा के सामने खोली और उसमें देखकर वही-वही बातें अपने मुंह से कह दीं जो उसके बेटे की बहू ने उसे समझायी थीं।

इधर बहू उस हार को राजा के महल के पीछे कूड़े में डाल आई। चन्दर की बात सुनकर राजा ने अपने सिपाहियों को महल के पीछे कूड़े के ढेर में हार ढूंढने का आदेश दिया।

संयोग से हार सिपाहियों को मिल गया। हार दरबार में लाया गया। उसे देखकर राजा सहित सारे राज ज्योतिषी

चन्दर की भविष्यवाणी को मान गये।

वे नहीं जानते थे कि एक अनपढ़ सँवार आदमी इतना बड़ा विद्वान हो सकता है।

राजा ने उससे कहा-“चन्दर हम तुम्हारे काम से बहुत खुश हैं । अब तुम हमसे जो कुछ माँगना चाहते हो माँग लो।”

“अन्नदाता! मैं आपसे क्या माँग सकता हूँ। मेरी तो आपके सामने जुबान भी नहीं खुल सकती। मैंने तो, हुजूर अपने कर्तव्य का पालन किया है।” चन्दर राजा के सामने हाथ जोड़कर खड़ा हो गया।

“ऐसा कैसे हो सकता है? तुम्हें कुछ न कुछ तो अवश्य ही माँगना होगा।”

राजा ने पुनः चन्दर से आग्रह किया है। राजा की बात सुनकर चन्दर बोला-सरकार! मेरे बेटे तो बहुत मूर्ख हैं।

हाँ, मेरी पुत्रवधु बहुत योग्य है। मैं उससे परामर्श करके आऊँगा तब आपको बताऊंगा।”

“ठीक है, जाओ, तुम इसी समय बहू से पूछ कर आओ।” राजा ने उसे घर पर भेज दिया।

वह घर आकर बेटे की बहू से परामर्श करने लगा। New Hindi Moral Stories

ससुर की बात सुनकर बहू बोली-”यह कौनसी बड़ी बात है पिताजी । तुम राजा से वचन माँगो कि वह धनतेरस से लेकर दीवाली तक नगर में किसी के भी घर में दीया न जलने दे। यहाँ तक कि महल के अन्दर भी अंधेरा रहना चाहिए।”

बह की बात चन्दर की समझ में बिल्कुल नहीं आई। वह सोचने लगा कि कहीं बहू का दिमाग तो खराब नहीं हो गया है? दीवाली पर सबके घर में अंधेरा कराकर इसे क्या मिलेगा?

वह कहने लगा-“बेटी-मेरी समझ में तेरी उल्टी सीधी बातें नहीं आ रही हैं। मैं ऐसी बात राजा से कैसे कह सकता हूं? वह तो गुस्से में भरकर मुझे पागलखाने में डलवा देगा।”

“तुम घर पर बैठकर ही राजा के निर्णय की बात स्वयं क्यों सोच रहे हो। वह तुम्हें कुछ नहीं कहेगा पिताजी । जाओ, जैसा मैंने कहा तुम वैसा ही कहना।”

फ़िर चन्दर अपना-सा मुंह लेकर दरबार में पहुँचा।

वहाँ राजा ने उससे पूछा- “कहो चन्दर क्या सलाह मशविरा करके आए हो?”

“सरकार! मैं जो कुछ सलाह मशविरा करके आया, वह सब अभी आपके सामने बता ढूंगा। लेकिन पहले आप मुझे वचन दें कि आप मेरी बात पूरी करेंगे।”

राजा ने हंसते हुए वचन दिया।

फिर चन्दर ने कहा-“महाराज! धनतेरस से दीवाली तक सारे नगर में अंधेरा रखा जाये। कोई भूलकर भी अपने घर में दीया न जलाये। आपके महल में भी अंधेरा ही रहना चहिए। बस मेरे घर में घी का दीपक जलेगा।”

चन्दर की बात सुनकर दरबार में उपस्थित सभी व्यक्ति सोच में पड़ गये। फिर राजा ने कहा- “मुझे ऐसा लगता है कि तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है। चन्दर! सारे नगर में अंधेरा कराने से तुम्हें क्या मिलेगा? तुम ये मूर्खता भरी बातें

छोड़ो और कोई अच्छी सी वस्तु माँग लो। मैं तुम्हें सब कुछ दे सकता हूं।”

मगर चन्दर अपनी बात पर अड़ा रहा। उसने पुनः जोर देकर राजा से कहा-“मैंने जो कुछ कहना था कह दिया। मैं इसके सिवाय आपसे कुछ और नहीं माँगूंगा महाराज।”

और राजा को चन्दर की बात माननी पड़ी। उसने उसे वचन दे दिया था। उसे अपने वचन की लाज रखनी थी।

फिर राजा ने उसी दिन नगर में ऐलान करा दिया कि आने वाली दीवाली पर धनतेरस से लेकर दीवाली तक कोई अपने घर में दीया नहीं जलायेगा । यदि किसी ने आज्ञा का पालन नहीं किया तो उसे मृत्युदण्ड दिया जायेगा।

राजा के इस आदेश से सारे नगर में हड़कम्प मच गया। लोग राजा और चन्दर को कोसने लगे–“पता नहीं इन दोनों को क्या हो गया है। और राजा ने एक नौकर की बात मान ली। आज तक तो इस नगर में ऐसा नहीं हुआ था। यह तो सरासर राजा की ज्यादती है।”

कोई कुछ कह रहा था, कोई कुछ। लेकिन उनकी बात वहाँ सुनने वाला कौन था? समय बीतता चला और धनतेरस का दिन भी आ गया।

लोगों ने डर के मारे अपने-अपने घरों में दीपक नहीं जलाए। पूरा नगर अंधेरे में डूबा हुआ था।

केवल चन्दर के घर में घी का दीपक प्रकाशमान था।

दीवाली का दिन था । लक्ष्मी अपने वाहन पर घूमने निकली । नगर में चारों ओर अंधकार फैला हुआ था। उनके साथ ऋद्धिसिद्धि भी आए हुए थे। उन्होंने उनसे पूछा– “आज दीवाली के त्यौहार की धनतेरस है। लेकिन इस नगर में किसी ने दीपक नहीं जलाकर रखा है। आखिर क्या बात है?” You Read This New Hindi Moral Stories on Lokhindi.com

ऋद्धिसिद्धि ने उन्हें सारी बात बताई। New Hindi Moral Stories

सुनकर लक्ष्मी जी बहुत निराश हुईं। वे अंधेरे में नहीं रुकती थीं। उनके पास हर समय ज्योति जलती रहती है।

वे उजाले की खोज में इधर-उधर भ्रमण करने लगीं। फिर अन्त में उन्हें चन्दर के घर में दीपक जलता हुआ मिला। वे तुरन्त उसी घर में घुस गयीं और वहीं अपना आसन लगाकर जम गयीं।

घर में सब सो चुके थे। केवल नन्दकिशोर की बहू नींद के कारण ऊँघ रही थी। कुछ देर के लिये उसकी भी आंख लग गयी थी और फिर जब उसकी आँख खुली तो वह अपने टूटे-फूटे घर की जगह एक आलीशान कोठी देखकर चकित रह गयी। कोठी सभी आधुनिक वस्तुओं से परिपूर्ण थी। यह देखकर वह बहुत प्रसन्न हुई। उसकी युक्ति काम कर गयी थी। फिर उसने अपने पति तथा ससुर को जगाया। और फिर चन्दर के सभी बेटे जाग उठे।

सब अपने आपको टूटे-फूटे घर की जगह आलीशान कोठी में देखकर हैरान हो रहे थे। उनकी समझ में कुछ भीनहीं आ रहा था। एकदम इतना बड़ा परिवर्तन कैसे हो गया?

अचानक लक्ष्मी जी प्रकट हुईं और उन्होंने बताया कि अब तुम्हारे दरिद्रता के दिन दूर हुए। अब तुम्हारे अच्छे दिन आ गये हैं, क्योंकि दीवाली के पर्व पर मैंने केवल तुम्हारे घर में दीपक जलता पाया और सारे नगर में अंधेरा था। इसलिए मैं तुम्हारे ही घर में आ गयी। मैंने यहाँ आकर आसन जमा लिया है। 

लक्ष्मी जी की कृपा भरी बातें सुनकर चन्दर की समझ में आ गया कि उसके बेटे की बहू ने क्यों राजा से यह बात कहलवायी थी?

सुबह को बहू ने अपने ससुर से दरबार में जाने को कहा। मगर चन्दर ने दरबार में जाने से मना कर दिया।

फिर बहू ने उसे समझाया-पिताजी आप नहीं जानते अब हमें राजा का गुस्सा भी तो ठण्डा करना है। आप उनसे जाकर कहें कि मैंने तीन दिन तक नगर में अंधेरा इसलिये रखवाया था कि प्रकाश युक्त घरों पर भारी आपदा आने का योग था। अतः अन्धकार के कारण विपदा टल गयी है। फिर यह बात सुनकर राजा प्रसन्न हो जायेगा।”

बहू की बात सुनकर चन्दर दरबार में उपस्थित हुआ और बहू द्वारा कहे गये वाक्यों को उसने राजा के सामने दोहरा दिया। उसकी बात सुनकर राजा वास्तव में ही प्रसन्न हो गया और चन्दर को राजा ने बहुत-सा धन देकर विदा किया। अब वे अपनी बहू की होशियारी और बुद्धिमत्ता के द्वारा खुशी-खुशी दिन बिताने लगे।

शिक्षा- “परिवार में अधिक व्यक्तियों का होना अच्छा, लेकिन यदि वे सब के सब बुद्धिहीन हों तो इससे बड़ा अभिशाप और कोई नहीं हो सकता। यदि उस परिवार में एक व्यक्ति भी बुद्धिमान है तो वह अपने पूरे परिवार की नाव को खींच कर ले जा सकता है। जिस प्रकार चन्दर के बेटे की बहू ने उसके घर की काया ही पलट कर डाली।”

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Written by lokhindi
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