Moral kahani Hindi – लालच का फल – हिंदी कहानी

लालच का फल – Moral Story In Hindi

Moral kahani Hindi

मध्यप्रदेश वनों से गिरा हुआ प्रदेश है | इसी प्रदेश में एक सघन वन में एक बाघ रहा करता था | अपनी जवानी में उसने अपने बल और पराक्रम से पूरे वन में आतंक मचा रखा था | लेकिन जब वह बुड्ढा हो गया तो उसकी शक्ति क्षीण हो गयी | वह अपनी आवश्यकता के अनुसार भोजन की प्राप्ति करने में असमर्थ हो गया | तब उसने अपने मन में विचार किया | इस विश्वा में शक्ति एव बल से क्षीण होकर जीवित रहना अत्यंत ही नारकीय है | जो वन्य पशु मुझे देख कर ही भय से निश्चित हो जाते थे | वे मेरे सामने से मुझे चढ़ाते हुए निकल जाते हैं और मैं कुछ कर नहीं सकता |

बाघ अपनी मांद में गया और और उसने स्वय के द्वारा खाये गये मनुष्यों के सामानों में से एक रतनो से जड़ा बहुमूल्य कंगन एवं चंदन ढूंढ निकाला | वह कंगन लेकर एक ऐसे तालाब के किनारे पहुंचा जिसके रास्ते पर लोगों का आना जाना लगा रहता था |

बाघ ने स्नान किया तथा चंदन को घिसकर लगाया | दाये हाथ में कुश एवं बाये हाथ में कंगन लेकर मंत्रजाप करता हुआ बोला – “ हे प्राथिर्यो! भगवान ने यह कंगन मुझे दान करने को कहा है, जो व्यक्ति खुद को उचित पत्र समझता है | वह आये और स्नान करके विधिवत दान के रूप में इस कंगन को ले ले |”

लोगों ने बाघ की बात सुनी | कंगन बहुत कीमती था; किंतु वह इतना भी बहुमूल्य नहीं था कि वे बाघ जैसे हिंसक पशु विश्वास कर लेते | वे अपने रास्ते चले गये |

उन लोगों में एक ब्राह्मण भी था, जो कि कई शास्त्रों का ज्ञाता था और विदेश से धनोपार्जन करके अपने घर जा रहा था | उसने सोचा – “ अगर यह कंगन मुझे मिल जाये तो मेरी सारी गरीबी दूर हो जायेगी | वैसे इसमें प्राण जाने का डर था | लेकिन पुरुषार्थ के बिना धन नहीं प्राप्त होता है |”

ब्राह्मण ने डरते हुए बाघ से पूछा – “ तुम तो प्रकृति से ही हिंसक हो | तुम्हारा विश्वास किस प्रकार किया जा सकता है |”

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बाघ ने कहा – “ आपका शक करना ठीक है | इस संसार की यही रीत है | लोग अपनी मान्यताओं के बंधन में पड़े हुये हैं | बाघ होने के कारण मैंने भी इस वन में बहुत अत्याचार किये हैं; किंतु जब एक दिन सूर्य देवता ने स्वपन में मुझे आकर फटकारा और कहा कि मुझे हिंसा छोड़कर धर्म में ध्यान लगाना चाहिये, तो मैंने समस्त पाप कर्म छोड़ दिये | अब तो मैं इस सांसारिक जीवन से इतना निर्लिप्त हो चुका हूं कि अपने पास रखी बहुमूल्य कंगन भी दान में देना चाहता हूं |”

बाघ ने धारा प्रवाह नीति, धर्म, नीति, दान, अहिंसा के महत्व पर बोलना आरंभ कर दिया | ब्राह्मण उसके वचनों से अत्यधिक प्रभावित हुआ | उसने सोचा – “ विद्वान और दार्शनिक प्राणी हिंसक कदापि नहीं हो सकता | वह दान लेने के लिए तैयार हो गया |”

तब बाघ ने कहा कि – “ वह तालाब में स्नान करके आये |” उसने तालाब के एक किनारे की ओर संकेत किया |  ब्राह्मण जो ही स्नान करने तालाब में उतरा | वह दलदल में फंस गया | बाघ यह देखकर बोला – “ ओह! लगता है, कि तुम दलदल में फंस गये हो | ठहरो! मैं आकर निकालता हूं |”

इतना कहकर वह धीरे-धीरे ब्राह्मण के पास आ गया | फिर उसे दबोचते हुए बोला – “ अरे मूर्ख ब्राह्मण! तू इतना बड़ा विद्वान होकर भी यह नहीं समझ सका कि ज्ञान, धर्मशास्त्र का ज्ञान होना या चंदन तिलक लगा लेना किसी प्राणी की सचित्रता और पवित्रता की निशानी नहीं होता |”

इतना कहकर वह ब्राह्मण को मारकर खा गया |

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Written by lokhindi
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