Story for Kids in Hindi – सच्ची मित्रता – Story for Kids in Hindi

Story for Kids in Hindi – सच्ची मित्रता

Story for Kids in Hindi

वह एक छोटी-सी झोपड़ी थी | एक छोटा-सा चिराग झोपड़ी के एक कोने में रखा अपने प्रकाश को दूर-दूर तक फैलाने की कोशिश कर रहा था | लेकिन एक कोने तक ही उसकी रोशनी सीमित होकर रह गयी थी | इस कारण झोपड़ी का अधिकतर भाग अंधकार में डूबा था | फिर भी उसकी यह कोशिश जारी थी, कि वह झोपड़ी को अंधकार रहित कर दे |

झोपड़ी के कोने में टाट पर दो आकृतियां बैठी कुछ फुसफुस रही थी | वे दोनों आकृतियां एक पति-पत्नी थे |

पत्नी ने कहा – “ स्वामी ! घर का राशन-पानी पूर्ण रूप से खत्म है, केवल यही भुने चने हैं |”

पति का स्वर उभरा – “ हे भगवान ! यह कैसी महिमा है तेरी, क्या अच्छाई का यही परिणाम होता है |”

“ हूं ” पत्नी सोच में पड़ गयी | पति भी सोचनीय अवस्था में पड़ गया |

काफी देर तक दोनों सोचते रहे | अंत में पत्नी ने कहा  – “ स्वामी ! घर में भी खाने को कुछ नहीं है | निर्धनता ने हमें चारों ओर से घेर लिया है | आपके मित्र कृष्ण अब तो मथुरा के राजा बन गये हैं, आप जाकर उन्हीं से कुछ सहायता मांगो |”

पत्नी की बात सुनकर पति ने पहले तो कुछ संकोच किया | पर फिर पत्नी के बार-बार कहने पर वह द्वारका की ओर रवाना होने पर सहमत हो गया |

सुदामा नामक उस गरीब आदमी के पास धन के नाम पर फूटी कौड़ी भी ना थी, और ना ही पैरों में जूतियां |

मात्र एक धोती थी, जो आधी शरीर पर और आधी गले में लिपटी थी | धूल और कांटो से भरे मार्ग को पार कर सुदामा द्वारका जा पहुंचा |

जब वह कृष्ण के महल के द्वार पर पहुंचा, तो द्वारपाल ने उसे रोक लिया |

सुदामा ने कहा – “ मुझे कृष्ण से मिलना है |”

द्वारपाल क्रूद्र होकर बोला – “ दुष्ट महाराज कृष्ण कहो |”

सुदामा ने कहा – “ कृष्ण ! मेरा मित्र है |”

यह सुनते ही द्वारपाल ने उसे सिर से पांव तक घुरा और अगले ही क्षण वह हंस पड़ा |

“ तुम हंस क्यों रहे हो ” सुदामा ने कहा |

“ जाओ कहीं और जाओ, महाराज ऐसे मित्रों से नहीं मिलते ” द्वारपाल ने कहा और उसकी ओर से ध्यान हटा दिया |

किंतु सुदामा अपनी बात पर अड़े रहे |

द्वारपाल परेशान होकर कृष्ण के पास आया और उन्हें आने वाले की व्यथा सुनाने लगा |

सुदामा का नाम सुनकर कृष्ण नंगे पैर ही द्वार की ओर दौड़ पड़े |

द्वार पर बचपन के मित्र को देखते ही वे फूले न समाये | उन्होंने सुदामा को अपनी बाहों में भर लिया और उन्हें दरबार में ले आये |

उन्होंने सुदामा को अपनी राजगद्दी पर बिठाया | उनके पैरों से काटे निकाले पैर धोये |

सुदामा मित्रता का यह रूप प्रथम बार देख रहे थे | खुशी के कारण उनके आंसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे |

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और फिर कृष्ण ने उनके कपड़े बदलवाये | इसी बीच उनकी धोती में बंधे भुने चनों की पोटली निकल कर गिर पड़ी | कृष्ण चनो की पोटली खोलकर चने खाने लगे |

द्वारका में सुदामा को बहुत सम्मान मिला, किंतु सुदामा फिर भी आशंकाओं में घिरे रहे | क्योंकि कृष्ण ने एक बार भी उनके आने का कारण नहीं पूछा था | कई दिन तक वे वहा रहे |

और फिर चलते समय भी ना तो सुदामा उन्हें अपनी व्यथा सुना सके और ना ही कृष्ण ने कुछ पूछा |

वह रास्ते भर मित्रता के दिखावे की बात सोचते रहे |

सोचते सोचते हुए वे अपनी नगरी में प्रवेश कर गये | अंत तक भी उनका क्रोध शांत न हुआ |

किंतु उस समय उन्हें हेरानी का तेज झटका लगा | जब उन्हें अपनी झोपड़ी भी अपने स्थान पर न मिली |

झोपड़ी के स्थान पर एक भव्य इमारत बनी हुयी थी | यह देखकर वे परेशान हो उठे | उनकी समझ में नहीं आया, कि यह सब कैसे हो गया | उनकी पत्नी कहां चली गयी |

सोचते-सोचते वे उस इमारत के सामने जा खड़े हुये | द्वारपाल ने उन्हें देखते ही सलाम ठोका और कहा – “ आइये  मालिक |”

यह सुनते ही सुदामा का दिमाग चकरा गया |

“ यह क्या कह रहा है ” उन्होंने सोचा |

तभी द्वारपाल पुन: बोला – “ क्या सोच रहे हैं, मालिक आइये न |”

“ यह मकान किसका है ” सुदामा ने अचकचाकर पूछा |

“ क्या कह रहे हैं मालिक, आप ही का तो है |”

तभी सुदामा की दृष्टि अनायांस ही ऊपर की ओर उठती चली गयी | ऊपर देखते ही वह और अधिक हैरान हो उठे | ऊपर उनकी पत्नी एक अन्य औरत से बात कर रही थी |

उन्होंने आवाज दी –

अपना नाम सुनते ही ऊपर खड़ी सुदामा की पत्नी ने नीचे देखा और पति को देखते ही वह प्रसन्नचित्त होकर बोली –
“ आ जाइये, स्वामी! यह आपका ही घर है |”

यह सुनकर सुदामा अंदर प्रवेश कर गये |

पत्नी नीचे उतर आयी तो सुदामा ने पूछा – “ यह सब क्या है |”

पत्नी ने कहा – “ कृष्ण! कृपा है, स्वामी |”

“ क्या ” सुदामा के मुंह से निकला | अगले ही पल वे सब समझ गये | फिर मन ही मन मुस्कुराकर बोले – “ छलिया कहीं का |”

शिक्षा – “ मित्र वही जो मित्र के काम आये | असली मित्रता वह मित्रता होती है जिसमें बगैर बताये, बिना एहसान जताये, मित्र की सहायता इस रूप में कर दी जाये कि, मित्र को भी पता ना चले | जैसा उपकार श्री कृष्ण ने अपने बाल सखा सुदामा के साथ किया |”

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Written by lokhindi
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