सनम बेवफा Love Story – Love & Cheating Story in Hindi

सनम बेवफा Love Story

किस्सा तोता-मैना/स्त्री और पुरुष के संबंधो की रोचक दास्तान हिंदी में (सनम बेवफा Love Story)! Love & Cheating Stories in Hindi-Sad Romantic Hindi Love Story


पार्वती शायरों की शायरी की कल्पना के समान सुन्दर थी। पहली ही नजर में हर कोई उसे पाने के लिए तड़प उठता था। उसकी उम्र सोलह बसन्त पार कर चुकी थी। कहने का तात्पर्य यह है कि वह जवानी की दहलीज पर कदम रख चुकी थी। उम्र की यह ऐसी सीढ़ी होती है जब किसी को अपने आप पर अख्तियार नहीं रहता, दिल बेकाबू हो जाता है।

मगर पार्वती ने अपने दिल को बड़ी मजबूती से अपने काबू में कर रखा था। कॉलेज के छात्र उसे एकटक देखते और तरह-तरह की फब्तियां कसते रहते परन्तु वह कभी सिर उठाकर न देखती। नारी की ताकत आंखों में होती है। जब वह आंख ही नहीं मिलाती थी तो उसका दिल पहलू से जाता कैसे?

समय चक्र घूमता रहा।

उसी कॉलेज में एक रईस बाप का बिगड़ा हुआ बेटा रोहित भी पढ़ता था। वह तो कॉलेज में सिर्फ समय बिताने के लिये आता था। वरना उसका काम था सिर्फ शराब पीना, अय्याशी करना और कॉलेज की लड़कियों के साथ छेड़छाड़ करना। कॉलेज की छात्राएं भी इस बात को अच्छी तरह से जानती थीं कि रोहित की यदि शिकायत भी की जाए तो कोई लाभ नहीं है। क्योंकि अगर उसका कॉलेज से रेस्टीकेशन भी हो गया तो उसे कोई फर्क पड़ने वाला नहीं है, लेकिन उससे दुश्मनी अवश्य हो जाएगी।

एक दिन रोहित की दृष्टि पार्वती पर पड़ गयी। उस पर नजर पड़ते ही वह स्वयम् ही बुदबुदा उठा“उफू! ये हीरा आज तक हमारी नजरों में कैसे नहीं आया?”सनम बेवफा Love Story

उस समय उसके आवारा साथी उसके साथ नहीं थे। वैसे चार-छः साथी हर समय उसके साथ रहते थे। उसका माल डकारने के चक्कर में उसकी हां में हां मिलाते रहते थे। रोहित ने एक पल कुछ सोचा फिर वह उसकी ओर बढ़ चला। उसने पार्वती के पास जाते ही उसका हाथ थाम लिया और कहा-“जानेमन! आज तक कहां थी? हमने तो कभी देखा ही नहीं ।”

एक पल के लिए पार्वती सकते की सी हालत में आ गयी। उसकी समझ में ही नहीं आया कि वह क्या करे और क्या न करे?

जब उसे होश आया तो उसने बिना एक पल गंवाए ही रोहित के गाल एक चांटा जड़ दिया—

“चटाक!”

शायद रोहित को इस बात की सपने में भी आशा नहीं थी कि कोई लड़की उसके मुंह पर चांटा मारने का साहस भी कर सकती है।

‘‘ये हिम्मत! यदि तुमने दोबारा इस प्रकार की हरकत करने की कोशिश तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा। समझे।” कहने के साथ ही पैर पटकती हुई पार्वती आगे बढ़ गयी ।

रोहित हक्का-बक्का-सा खड़ा देखता रह गया। उसके साथ जैसा आज हुआ था, पहले कभी नहीं हुआ था। स्वयम् ही उसका हाथ उसके गाल पर पहुंच गया। वह गाल सहलाने लगा।

पार्वती काफी दूर निकल चुकी थी।

तब, जब रोहित अपनी बेइज्जती महसूस करता हुआ खड़ा था। किसी ने पीछे से आकर उसके कन्धे पर हाथ रख दिया।

रोहित ने पलटकर देखा। उसके पीछे एक युवक खड़ा मुस्करा रहा था–उसका नाम राहुल था। राहुल भी उसी विद्यालय का छात्र था। राहुल और रोहित की आपस में बनती नहीं थी। उसको मुस्कराता हुआ देखकर रोहित के तन-बदन में आग लग गयी। मगर वह बोला कुछ नहीं।

राहुल ने उसी तरह मुस्कराते हुए कहा–”कहो! कुछ मजा आया?”

“राहुल!”

“बोलो।”

“यहां से चुपचाप चले जाओ।” रोहित ने कहा- “मुझे परेशान मत करो।”

“ठीक है। राहुल ने कहा-“मैं तो जाता हूं लेकिन खाल में रहा करो।”

इस समय उसके साथी साथ नहीं थे। वैसे भी इस प्रकार के लोगों में कोई हिम्मत तो होती नहीं।

रोहित ने मन ही मन निश्चय कर लिया कि वह उसे छोड़ेगा नहीं। एक-न-एक-दिन अपनी इच्छा पूरी अवश्य करूंगा।

और पार्वती।।

पार्वती ने उसके मुंह पर चांटा तो अवश्य मार दिया था, लेकिन वह स्वयं बुरी तरह से घबरा गयी थी। उसने लड़कियों से सुना था कि रोहित एक रईस बाप का विगडैल बेटा है। उसका काम ही लड़ाई-झगड़ा करना है। इसी ऊहापोह में वह अपने घर पहुंच गयी।

फूल सा चेहरा मुरझा सा गया था। अनजाना-सा भय उसके मनो मस्तिष्क पर छाता चला जा रहा था। वह तो उस घड़ी को कोस रही थी जब उसने उसके गाल पर चांटा रसीद कर दिया था। शाम को ठीक से खाना भी नहीं खा सकी थी। वह मन ही मन सोचती रही थी कि जाने वह क्या करेगा? बदमाश आदमी का क्या भरोसा? रात में सो भी नहीं सकी।

दूसरे दिन…।।

तब जब वह कॉलेज के द्वार पर पहुंची तो उसने रोहित व उसके साथियों को द्वार पर खड़े पाया। उनके चेहरों पर जहरीली मुस्कानें थीं। पार्वती ने एक बारगी उनकी ओर देखा था और फिर गर्दन घुमाकर तेज कदम बढ़ाती हुई चली गयी।

“हा…हा…हो…।” उन्होंने बाद मैं ठहाका लगाया।

वहीं पास ही राहुल भी खड़ा था। उसने भी उनकी ओर देखा था। वह वास्तव में इसी वजह से आया था कि यदि वे पार्वती के साथ किसी प्रकार की हरकत करें तो वह उसकी सहायता करे।

राहुल भी आगे बढ़ गया।

वह तेज कदम बढ़ाता हुआ पार्वती के पास आकर बोला–“मिस पार्वती ।”

“जी ।” उसके मुख से अनायास ही निकल गया–कहने के साथ ही उसने राहुल की ओर देखा।

“मुझे राहुल कहते हैं मिस पार्वती ।” उसने कहा-“मैं भी इसी विद्यालय का छात्र हूं।”

“होंगे, तो मैं क्या करूं?” ।

“मैं यह कह रहा था। राहुल ने कहा-“आपने जो काम कल किया था वह वास्तव में काबिले तारीफ था।”

“मुझे आपकी हमदर्दी की आवश्यकता नहीं है।”

“मैं यह कह रहा था, मिस पार्वती।” उसने कहा-“मैं ही एक ऐसा आदमी हूं जो तुम्हें रोहित से बचा सकता हूं। आपने यह तो सुन ही रखा होगा कि वह परले सिरे का बदमाश है।”

“अब जो होगा देखा जाएगा।” उसने कहा-“आप अपने रास्ते जाइए।”

“ठीक है।” कहने के साथ ही वह एक ओर को चला गया।

सच बात यह थी कि पार्वती को उस समय किसी सशक्त सहारे की आवश्यकता थी जो रोहित से उसे बचा सके व उसकी रक्षा कर सके।

उसने राहुल के विषय में सोचा।। लम्बा-चौड़ा, देखने में सुन्दर युवक।

उसके विषय में विचारकर उसने एक बार अपने बालों को झटका दिया और आगे बढ़ गयी। लेकिन यह सच है कि उसके दिल के किसी कोने में राहुल ने जगह बना ली थी। उधर राहुल ने अपने मन में यह अवश्य समझ लिया था कि उसने पार्वती को अपनी ओर आकर्षित कर लिया है।

उसी शाम।

जब कॉलेज की छुट्टी होने के बाद वे सीढ़ियों से उतर रहे थे तो जीने के मोड़ पर राहुल और पार्वती टकरा गए। उन दोनों के हाथों से उनकी किताबें गिर गयीं।

वे दोनों अपनी-अपनी पुस्तकें उठाने के लिये झुके। पुस्तकों को उठाते समय राहुल के हाथ पार्वती के हाथों से टकरा गए।

उफ्…।।

पार्वती के सारे बदन में झुरझुरी-सी फैल गयी। जवानी में किसी पुरुष का स्पर्श नारी के मन के तारों को झकझोर कर रख देता है।

राहुल ने लड़खड़ायी सी आवाज में कहा- “आई एम सॉरी मिस पार्वती।”

पार्वती ने कुछ भी नहीं कहा। वह चुपचाप अपनी पुस्तकें उठाकर उठाकर चली गयी।

पार्वती इस बात को अच्छी तरह से समझ रही थी कि राहुल उसकी ओर आकर्षित हो रहा है। राहुल भी अपने मन में कुछ ऐसा ही सोच रहा था। धीरे- धीरे वे एक-दूसरे के काफी करीब आने लगे और वह दोनों कॉलेज के बाद भी एकान्त में मिलने लगे।

पार्वती की यह मजबूरी थी कि उसे किसी न किसी सहारे की आवश्यकता थी। उसे राहुल से अच्छा सहारा कौन मिल सकता था?

इसीलिए उसने अपने दिल को उसके हवाले कर दिया।

राहुल और पार्वती कॉलेज में चर्चा का विषय बनने लगे। जो पार्वती किसी को अपने पास फटकने भी नहीं देती थी वही चर्चा का विषय बन गयी। अगर कहा जाए कि पार्वती पूरी तरह से राहुल के जाल में फंस गयी थी तो अतिश्योक्ति न होगी।

एक दिन कॉलेज में प्रवेश करने से पहले ही राहुल पार्वती को मिल गया। उसने आंख से इशारा करके उसे अपने पास बुला लिया।

पार्वती के पास आने पर बोला–“आओ। आज एक होटल में चलेंगे।” राहुल के चेहरे पर शरारत खेल रही थी।

‘‘क्यों?” ।

पार्वती, तुम्हारी हर बात में ‘क्यों’ कहने की आदत बहुत बुरी है। मैंने तो तुम्हारे साथ जीने-मरने की कसम खायी है। फिर अब तुम इतनी शंका क्यों करती हो?”

“राहुल ।’ पार्वती ने हंसते हुए कहा-“हम लोगों का इस तरह से मिलना और रोज कॉलेज से जल्दी चले जाना अच्छा नहीं है।’

“अरे छोड़ो भी, आओ।” राहुल ने कहा।

हल्की-सी नाराजगी के साथ पार्वती राहुल के साथ चल दी। वे दोनों साथ-साथ चलते हुए होटल में आ गए। होटल में आकर राहुल ने एक कमरा ले लिया। वे दोनों कमरे में आ गए।

वहां आकर उन्होंने हल्का खाना खाया। राहुल ने पार्वती के पानी के गिलास में हल्के नशे की गोली डाल दी थी। कुछ देर बाद पार्वती को ऐसा लगा कि जैसे उसकी आंखें बन्द होती जा रही हैं।

चाहकर भी वह अपने आपको होश में न रख सकी। नींद ने उसे दबोच लिया।

चार घण्टे बाद जब उसकी नींद टूटी तो वह अवाक् रह गयी। उसके पास कुछ भी न बचा था। उसका सब कुछ राहुल ने लूट लिया था। कुसी पर बैठा राहुल उसकी ओर देख रहा था।

‘‘पार्वती।” राहुल ने कहा- ‘मैं बहत शर्मिंदा हूं। क्या करूं, मैं अपने आप को रोक नहीं पाया। तुम्हारे रूप ने मुझे पागल बना दिया था।”

अब…? जो होना था सो तो हो गया था। रोने-धोने या चीखने-चिल्लाने से कुछ होने वाला नहीं था। पार्वती ने अपने कपड़े ठीक किए। और फिर राहुल ओर देखती हुई बोली-“अब चलो यहां से।”

“पार्वती ।।

“हां राहुल ।”

“मुझे माफ नहीं करोगी?”

राहुल ।” पार्वती ने कहा-“मेरे माफ करने या न करने से क्या होता है? तुमने तो मुझे कहीं का नहीं छोड़ा।”

“मैंने तुम्हारे साथ जीने-मरने की कसम खायी है, तुम चिन्ता क्यों करती हो?”

“अगर हमारे माता-पिता हमारा विवाह एक-दूसरे के साथ करने के लिए तैयार न हुए तो…?”

“तो हम कहीं दूर चले जाएंगे। इतनी दूर कि हमें कोई भी खोज न सके।”

फिर पार्वती ने कुछ नहीं कहा। वह कुछ कहने की स्थिति में भी नहीं थी। उसे आत्मग्लानि हो रही थी।

राहुल पार्वती को अपने साथ लेकर चल दिया। रास्ते में उन दोनों के बीच कोई बात नहीं हुई और वे दोनों सीधे अपने-अपने घर चले गए।

पार्वती पूरी रात न सो सकी और न ढंग से खाना खा सकी। जिस लाज के मोती पर युवतियों को नाज होता है, उसे वह प्यार के चक्कर में गंवा चुकी थी या यों कहें कि वह धोखा खा गयी थी।

दुनिया कहती है कि युवतियों की लाज का धागा बड़ा कमजोर होता है जो जरा-सी ठसक से टूट जाता है। पार्वती की स्थिति ऐसी थी कि वह अपने मन की व्यथा किसी से कह भी नहीं सकती थी और मन ही मन घुट रही थी।

समय बीतता गया।

राहुल को तो जैसे पार्वती पर विजय मिल गयी थी। उसकी जब भी इच्छा होती पार्वती को अपने साथ होटल ले जाता और अपनी इच्छा पूरी करता था।

पार्वती इससे परेशान थी और विवश भी। उसकी समझ में यह नहीं आ रहा था कि वह करे तो क्या करे? राहुल के जाल से उसका निकल पाना आसान नहीं था।

सनम बेवफा Love Story in Hindi

एक दिन…।

पार्वती ने राहुल से फैसला करने का निश्चय किया।

वह और राहुल कॉलेज के पास ही एक एकान्त स्थान पर बैठे थे। राहुल पार्वती के बालों से खेल रहा था।

‘‘राहुल ।” पार्वती ने धीमी आवाज में कहा।

“कहो पार्वती, क्या बात है?”

“तुम मुझे यह बताओ कि तुम मुझसे शादी कर रहे हो या नहीं? मैं अब इस प्रकार के जीवन से तंग आ गयी हूं।’ पार्वती के स्वर में धीमा आवेश था।

“शादी भी कर लेंगे, क्यों चिन्ता कर रही हो?”

“नहीं।” उसने कहा-“साफ-साफ बताओ।’

‘‘पार्वती।”

“हु।”

“मैंने अपने पिताजी को पत्र लिखा था। राहुल ने कहा–”उन्होंने लिखा है। कि हमारी होने वाली बहू को हमें पहले दिखाओ तब हम कोई फैसला करेंगे।”

“और अगर उन्होंने इन्कार कर दिया तो…?”

“अगर इन्कार कर दिया तो…।’ राहुल ने कहा-“हम भाग चलेंगे और विवाह कर लेंगे।”

‘‘अपने पिताजी के पास अब कब चलोगे तुम…?”

‘‘कल चलें ।”

“ठीक है, कल चलो।”।

‘‘कल तुम सवेरे तैयार होकर आ जाना।”

और दूसरे दिन पार्वती तैयार होकर आ गयी। दोनों चल दिए। स्टेशन पर आकर राहुल ने दो टिकट खरीद लिए। ट्रेन आयी और वे सवार हो गए।

पार्वती राहुल के साथ जा रही थी, लेकिन उसकी मनःस्थिति बड़ी खराब थी। वह बार-बार विचारों में खो जाती थी। बार-बार यह सोचती थी कि यदि वह समय से न लौट पायी तो उसके माता-पिता क्या सोचेंगे? उसके न पहुंचने पर उनकी क्या हालत होगी?

इधर पार्वती के विचार दौड़ते रहे और उधर ट्रेन दौड़ती रही। फिर एक स्टेशन पर राहुल और पार्वती उतर गए। स्टेशन से बाहर निकलकर दोनों रिक्शे पर सवार होकर चल दिए। कुछ देर चलते रहने के बाद रिक्शा राहुल के संकेत पर एक स्थान पर रुक गयी।

रिक्शा का किराया देकर दोनों एक मकान की सीढ़ियां चढ़ने लगे। वे दूसरी मंजिल पर पहुंच गए।

वहां एक औरत थी। वह पार्वती को अपने साथ लेकर अन्दर चली गयी।

कुछ देर बाद वह औरत वापस आयी। उस औरत ने राहुल के हाथ में सौ-सौ के नोटों की तीन गड्डियां रख दीं। राहुल नोटों की गड्डियों को लेकर मुस्कराता हुआ चल दिया। वास्तव में राहुल वेश्याओं का दलाल था जो भोली-भाली युवतियों को फंसाकर लाता था और उन्हें बेचकर चला जाता था।

शाम तक पार्वती को कुछ पता नहीं चला। उसने एक-दो बार पूछा–“राहुल कहां है?”

उसे बताया गया कि वह शाम को आएगा। बाजार गया है। शाम भी हो गयी मगर राहुल नहीं आया। पार्वती को लगा कि वह किसी जाल में फंस गयी है। घर पर उसके माता-पिता परेशान हो रहे होंगे। मगर अब हो क्या सकता था? काफी रात हो गयी, मगर राहुल का कहीं कुछ अता-पता नहीं था।

जैसे-तैसे रात बीतती जा रही थी।

उस बाजार में संगीत बजने लगा। नाच-गानों की आवाज आने लगी। अब पार्वती सब कुछ समझ गई थी। राहुल उसे प्यार के जाल में फंसा कर इस कोठे पर बेच गया है। वह फूट-फूट कर रोना चाहती थी, मगर अब उसके आंसू भी उसे नहीं बचा पाएंगे।

उस समय उसकी क्या स्थिति थी, बस वही जानती थी। वह किसी तरह से वहां से निकल भागना चाहती थी। वह एक बार उस बेवफा राहुल से मिलना चाहती थी। वह कमरे से निकलकर बाहर आयी।

बाहर कई आदमी बैठे थे और वह औरत उनसे बात कर रही थी। उसने एक बार पार्वती की ओर संकेत किया। अब उसे कोई शक न रह गया था।

तब…।।

पावती ने अब अपनी इज्जत बचाने के लिए अपनी जान पर खेल जान का निश्चय किया। अपनी पूरी ताकत लगाकर वह वहां उपस्थित लोगों की परवाह किए बिना सीढ़ियों की ओर तेजी से दौड़ी।

उस कोठे की मालिकिन और वहां उपस्थिति सब लोग एक पल के लिए हक्के-बक्के से देखते रह गए। एका-एक उनकी बात समझ में ही नहीं आयी कि वे क्या करें और क्या न करें? उस कोठे की मालिकिन रत्ना बाई को इस बात की स्वप्न में भी आशा नहीं थी कि पार्वती इस प्रकार की हरकत भी कर सकती है।

उसने फौरन चीखकर अपने दलालों को पुकारा और कहा-“देखो, उसे पकड़ो, वह भागने न पाए।”

पार्वती तब तक बड़ी तेजी से सीढ़ियां उतर गयी थी। उस शहर का उसे कोई ज्ञान तो था नहीं। वह एक ओर को दौड़ पड़ी।

अपनी पूरी शक्ति लगाकर दौड़ रही थी पार्वती।।

बाजार में आने-जाने वाले लोग उसे भागते देख रहे थे मगर किसी ने उसे रोकने की कोशिश नहीं की। सब जानते थे कि उस बाजार में ऐसा अक्सर होता रहता है।

पार्वती दौड़ रही थी। रत्ना बाई के दलाल उसे पकड़ने के लिए उसके पीछे भाग रहे थे।

बेतहाशा भागते हुए पार्वती अचानक एक कार से टकरा गयी। कार का पहिया उसके सर के ऊपर से उतर गया। पार्वती का भेजा बाहर निकल गया। चेहरा ऐसा हो गया कि पहचाना भी नहीं जाता था।

कार का ड्राइवर गाड़ी को और भी तेज दौड़ाकर ले गया। उसने एक औरत को कुचलने के बाद गाड़ी को रोकने तक की भी तकलीफ नहीं की थी।

पार्वती की लाश को पुलिस उठाकर ले गयी और उसका पोस्टमार्टम कराकर लावारिस करार देकर जलवा दी गयी।

… इतना कहकर मैना चुपं हो गयी।

कुछ क्षणों तक चुप रहने के बाद वह बोली-“तोते।”

“बोलो मैना।’

“तुमने सुन लिया?”

‘‘हां मैना।’

‘‘देखा उस बेईमान को।” मैना ने कहा- ‘‘पार्वती ने उस बेमुरव्वत इन्सान पर भरोसा किया। उस पर विश्वास करके अपने माता-पिता को छोड़कर चल दी और उसने उसका यह सिला दिया कि उसके तन को तीस हजार में बेच दिया।”

एक पल रुककर मैना ने पुनः कहना प्रारम्भ किया-“अब तुम बताओ। जब मैंने मर्दो के ऐसे किस्से सुन रखे हैं तो भला मैं तुम्हें कैसे अपने पास आने दें। वास्तव में संसार में मर्दो की जात बड़ी फरेबी, दगाबाज और बेपीर होती है। यही कारण है कि मुझे मर्दजात से नफरत है।”

‘‘मैना!”

“हां, बोल तोते!”

“यह मर्द जात पर सरासर इल्जाम है।” तोते ने कहा “सच बात तो यह है कि मर्दो से ज्यादा वफादार तो कोई होता ही नहीं। मैं अब तुम्हें एक ऐसी हसीना की दास्तान सुनाता हूं, जिससे यह सिद्ध हो जाएगा कि मर्द ही बेवफा नहीं होते।”

“सुनाओ।”

तोता मन ही मन प्रसन्न हो रहा था। वह जानता था कि अब वह उसे अपने पेड़ की शाख से जाने के लिए नहीं कहेगी।

कुछ पलों तक वातावरण में सन्नाटा छाया रहा। फिर तोते ने कहना प्रारम्भ किया।

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Written by lokhindi
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