Moral Hindi Story – साधु का स्वपन – Hindi Story

साधु का  स्वपन – Story in Hindi

Moral Hindi Story

किसी गांव में एक साधु रहा करता था | वह साधु अत्यंत कंजूस था | उसे भिक्षा में मिले भोजन से बचे हुए सत्तू को संचित करके एक घड़ा भर लिया था | उसने उस घड़े को एक छिके के बीच में अपने बिस्तर के ठीक ऊपर टांग रखा था | रात के समय वह बिस्तर पर लेटकर लगातार उस घड़े को देखा करता था | एक रात वह उस घड़े को देखते हुये सोचने लगा | अगर देश में अकाल पड़ जाये तो मैं इस घड़ा भर सत्तू को बेचकर मुझे सो रुपये तो मिल ही जायेगे |

उन्ही रुपयों से मैं दो बकरियां खरीद लूंगा | उन बकरियों के हर छ: महीने पर अगर चार-चार बच्चे भी हुये तो हर साल सोलह बच्चे होंगे | उनमें से आठ तो बकरियां  होंगी ही | इस तरह दो साल बाद मेरे पास दस बकरियां हो जायेगी |

इस कल्पना के आते ही वह प्रसन्न हो उठा | उसने आह्वादीत होकर सोचा – “ मैं उन बकरियों को पालूगा तो दो   वर्ष पश्चात मेरे पास पच्चास बकरियां तथा अड़तालीस बकरे हो जायेगे मैं | उन अड़तालीस बकरों को भी बेच कर बकरियां ही खरीद लूंगा | इस तरह मेरे पास सो बकरियां हो जायेगी | उनसे प्रतिवर्ष मुझे आठसौ बच्चे प्राप्त होंगे | उन्हें बेच कर मैं गाय खरीद लूंगा | जब गायों का समूह बन जाएगा और मेरे पास सो गायें हो जायेगी, तो उनके  बच्चों को बेचकर, मैं भैंस खरीद लूंगा | भैंसों के पश्चात घोड़ों का समूह बनाऊंगा और तब हर समूह के बच्चों को लेकर जो धन प्राप्त होगा | उससे एक विशाल भवन बनवाऊंगा |

मेरे विशाल भवन तथा मेरी समानता को देखकर अनेक ब्राह्मण मुझे अपना दामाद बनाना चाहेंगे | लेकिन मैं तो केवल “ रूपमती ” से ही विवाह करूंगा |

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आह !  जब रूपमती भिक्षा देने अपने मकान से बाहर आती है, तो उसके आगे अप्सराओं का सौंदर्य भी फिका जान पड़ता है |

मेरी संपन्नता के कारण उसके पिता उसका विवाह मेरे साथ अवश्य ही कर देंगे |

ब्राह्मण कुछ समय तक रूपमती के साथ होने वाले काल्पनिक प्रेमलाप में ही डूबा रहा | फिर वह सोचने लगा –

“ रूपमती से जो मेरा पुत्र उत्पन्न होगा | मैं उसका नाम कुलभूषण रखूंगा | जब वह घुटनों के बल चलने लगेगा, तो मैं अपने शास्त्र लेकर घूडसाल के समीप बैठ जाऊंगा और उन्हें पढ़ूंगा |”

कुलभूषण घुटनों के बल चलता हुआ मेरी और आयेगा तो मैं क्रूद्र होकर रूपमती से कहूंगा – “ अपने पुत्र को ले जाओ | वह घर के कामों में व्यस्त होने के कारण मेरी बातों पर ध्यान नहीं देगी | तो मैं गुस्से में कांपता हुआ उसके पास जाकर उसे जोर की लात लगाऊंगा |”

यह सोचते हुये उसने कल्पना में ही उत्तेजित होकर एक जोरदार लात चलायी, तो वह सीधी जाकर ऊपर टंगे सत्तू के घड़े पर लगी | घड़ा जमीन पर गिरकर टुकड़े-टुकड़े हो गया | उसका सत्तू भी जमीन में मिल गया | इस प्रकार ब्राह्मण की कल्पना भी मिट्टी में मिल गयी और वह सिर पकड़कर बैठ गया |

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Written by lokhindi
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