रानी अहल्याबाई History – Rani Ahilyabai Biography Hindi

रानी अहल्याबाई History

-रानी अहिल्याबाई का इतिहास /Rani Ahilyabai in Hindi। रानी अहिल्याबाई का जीवन परिचय – रानी अहल्याबाई की History और कहानी हिंदी में !  


जिस समय मल्हारराव होल्कर गुजरात के विद्रोह का दमन करके पूना जा रहे थे, पाथरडी में उन्होंने मनकोजी सिन्धिया की  पुत्री अहल्या को देखा। यह सुशीला कन्या अपने गुणों के कारण बचपन में ही सबकी आदर-पात्र थी।

मल्हाररावजी उसे इन्दौर ले आये और अपने बड़े कुमार खण्डेराव से उसका विवाह कर दिया। एक गरीब की पुत्री इस प्रकार राजवधू हो गयी।

अहल्याबाई में राजवधू होने का गर्व कभी नहीं आया। वे सास-ससुर की सेवा में ही लगी रहती थीं। जन्म से ही उनमें भगवान की भक्ति थी। पूजा-पाठ के साथ राज-प्रबन्ध में भी वे पति तथा ससुर को सहायता देने लगीं। एक पुत्र और एक कन्या उन्हें हुई। विवाह के नौ वर्ष बाद उनके पति का देहान्त हो गया।

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मल्हारराव के देहान्त के बाद अहल्याबाई का पुत्र राजा हुआ; किंतु वह क्रोधी और उतावला था। थोड़े ही दिनों में उसकी भी मृत्यु हो गयी। शासन का पूरा भार अहल्याबाई को सँभालना पड़ा और उसे बड़ी योग्यता से उन्होंने सँभाला।

माधवराव पेशवा के चाचा रघुनाथराव ने इन्दौर पर अधिकार करने की योजना बनायी। रानी अहल्याबाई ने यह समाचार पाकर युद्ध की तैयारी की और पेशवा माधवराव को पत्र लिखा। माधवराव ने अहल्याबाई के शासन-प्रबन्ध की प्रशंसा की। रघुनाथराव सेना लेकर आगे तो बढ़ा; किंतु अहल्याबाई की वीरता और युद्ध की तैयारी देखकर उसका साहस छूट गया। वह कुछ दिन इन्दौर में रानी का अतिथि बनकर रहा और फिर लौट गया। इसी प्रकार भीलों के विद्रोह का दमन भी रानी ने बड़ी वीरतासे किया था।

एक बार रघुनाथराव ने युद्ध में सहायता के लिये उनसे धन माँगा। रानी ने उत्तर दिया-‘मेरा सारा धन दान के लिये है।

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आप ब्राह्मण हैं, संकल्प पढ़कर दान लेना चाहें तो मैं प्रस्तुत हूँ।’ रघुनाथराव इस उत्तर से चिढ़े और एक बड़ी सेना लेकर चढ़ आये। रानी ने पाँच सौ स्त्रियों की सेना साथ में ली और किले से बाहर जाकर उन्हें चुनौती दी-‘आप राजा हैं, पर क्या स्त्रियों का धन लूटना आपको शोभा देता है? हम सबको मारकर ही आप यहाँ की सम्पत्ति ले जा सकते हैं।’ लज्जित होकर रघुनाथराव लौट गये।

दुःखियों का दुःख निवारण, परोपकार, प्रजा का हित और दान-यही अहल्याबाई के मुख्य कार्य थे। उनकी उदारता के कारण उनकी सीमा से लगे सभी देशों के नरेश उनका सम्मान करते थे। जब उनका परलोकवास हुआ, प्रजा को अपनी सगी माता के मरने-जैसा ही दुःख हुआ। पूरे भारत ने शोक मनाया।

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