Category: CHANAKYA NITI

Chanakya Niti in Hindi – विश्व के महान नीतिकारों में महापंडित चाणक्य को एक विशेष स्थान प्राप्त है। आज केवल भारत में ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में चाणक्य नीति की चर्चा हो रही है। इसका कारण केवल यही है कि एक साधारण व्यक्ति ने अपनी बुद्धि की शक्ति से ही नंद जैसे दुष्ट राजा का विनाश करके चंद्रगुप्त जैसे वीर को सम्राट बनाकर मौर्य वंश की नींव रखी। यही था इस चाणक्य नीति का कमाल।

Mahapandit Chanakya has a special place in the world’s great strategists. Today Chanakya Niti is being discussed not only in India but in the whole world. The reason for this is only that an ordinary person, by the power of his intellect, destroyed the evil King like Nand and made Chandragupta like the emperor, the founder of the Maurya dynasty. That was the maximum of this Chanakya Niti. Read Full Chanakya Niti With Chapters in Hindi on Lokhindi.com

Chanakya Sutra Hindi | चाणक्य सूत्र के कुछ अंश हिंदी में

Chanakya Sutra ‘पंडित’ विष्णुगुप्त चाणक्य की नीति के कुछ महत्वपूर्ण अंश “Chanakya sutra hindi” सम्पूर्ण चाणक्य Neeti के सूत्र हिंदी भाषा में! सुख का मूल धर्म: सुख का मूल धर्म है। राजनीति एवं अपने कार्यों का ज्ञान होना ही राजा का सबसे बड़ा धर्म होता है। इसी धर्म से देश में सुख और शान्ति रह सकती है। इसलिए धर्म को ही सुख की मूल जड़ और धर्म कहा गया है। धर्म का मूल अर्थ: धर्म का मूल अर्थ है देश में जब धर्म बना रहे। यह धर्म तभी बना रहेगा जब देश की आर्थिक स्थिति ठीक होगी । यदि देश ... Read more

चाणक्य नीति: सत्रहवां अध्याय [ हिंदी में ] Chanakya Neeti Hindi

चाणक्य नीति: सत्रहवां अध्याय ‘पंडित’ विष्णुगुप्त चाणक्य की विश्व प्रसिद नीति का सत्रहवां भाग हिंदी में। चाणक्य नीति: सत्रहवां अध्याय (Chanakya Neeti Seventeenth Chapter in Hindi) पुस्तकप्रत्ययाधीतं नाधीतं गुरुसन्निधौ। सभामध्ये न शोभन्ते जारगर्भा इव स्त्रियः ।। जिसने गुरु के सान्निध्य में नहीं वरन पुस्तकें पढ़-पढ़कर ही ज्ञान प्राप्त किया है, वह व्यक्ति विद्वानों की सभा में वैसे ही तिरस्कृत होता है। जैसे दुराचारिणी स्त्री गर्भधारण करके भी समाज में तिरस्कृत होती है। चाणक्य ने इस श्लोक में गुरु के महत्त्व को स्पष्ट करते हुए गुरु प्रदत्त ज्ञान को ही श्रेष्ठ बताया है। कृते प्रतिकृतं कुर्याद् हिंसने प्रतिहिंसनम् । तत्र दोषो ... Read more

चाणक्य नीति: सोलहवां अध्याय [ हिंदी में ] Chanakya Neeti Hindi

चाणक्य नीति: सोलहवां अध्याय ‘पंडित’ विष्णुगुप्त चाणक्य की विश्व प्रसिद नीति का सोलहवां भाग हिंदी में। चाणक्य नीति: सोलहवां अध्याय (Chanakya Neeti Sixteenth Chapter in Hindi) न ध्यातं पदमीश्वरस्य विधिवत्संसारविच्छित्तये स्वर्गद्वारकपाटपाटनपटुर्धमोऽपि नोपार्जितः । नारीपीनपयोधरोरुयुगलं स्वप्नेऽपि नालिङ्गितम्, मातुः केवलमेव यौवनवनच्छेदे कुठारा वयम् ।। जो प्राणी इस संसार के मोहमाया जाल में फंसे हुए हैं और जो इस जाल से बाहर निकलने के लिए न तो वेदों का पाठ करते, न ईश्वर की उपासना करते हैं। न ही अपने लिए स्वर्ग के द्वार खोलने के लिए धर्मरूपी धन का संग्रह करते, न स्वप्न में स्त्री के सुंदर स्तनों व जंघाओं का आलिंगन ... Read more

चाणक्य नीति: पंद्रहवां अध्याय [ हिंदी में ] Chanakya Neeti Hindi

चाणक्य नीति: पंद्रहवां अध्याय ‘पंडित’ विष्णुगुप्त चाणक्य की विश्व प्रसिद नीति का पंद्रहवां भाग हिंदी में। चाणक्य नीति: पंद्रहवां अध्याय (Chanakya Neeti Fifteenth Chapter in Hindi) यस्य चित्तं द्रवीभूतं कृपया सर्वजन्तुषु। तस्य ज्ञानेन मोक्षेण किं जटाभस्मलेपनैः ।। जिसका मन प्राणिमात्र पर दया करने से खुश हो जाता है उसे ज्ञान और मोक्ष प्राप्ति की तथा लम्बी-लम्बी जटाएं धारण करने और शरीरं पर राख का लेप करने की क्या जरूरत है? एकमेवाक्षरं यस्तु गुरुः शिष्यं प्रबोधयेतू। पृथिव्यां नास्ति तद् द्रव्यं यद्दत्वा चाऽनृणी भवेत् ।। जो गुरु अपने शिष्यों को अद्वितीय, विनाश रहित ईश्वर की शक्ति का ठीक-ठीक बोध करा देता है, ... Read more

चाणक्य नीति: चौदहवां अध्याय [ हिंदी में ] Chanakya Neeti Hindi

चाणक्य नीति: चौदहवां अध्याय ‘पंडित’ विष्णुगुप्त चाणक्य की विश्व प्रसिद नीति का चौदहवां भाग हिंदी में। चाणक्य नीति: चौदहवां अध्याय (Chanakya Neeti Fourteenth Chapter in Hindi) पृथिव्यां त्रीणि रत्नानि जलमन्नं सुभाषितम् । मूढः पाषाणखण्डेषु रत्नसंज्ञा विधीयते ।। इस धरती पर पानी, अन्न और सूक्तियां, ये तीन ही रत्न प्राणी के लिए हैं। परन्तु जो लोग मूर्ख हैं, अज्ञानी हैं, वे हर पत्थर के टुकड़ों को हीरा समझते हैं। आत्माऽपराधवृक्षस्य फलान्येतानि देहिनाम् ।। दारिद्रयरोगदुःखानि बन्धनव्यसनानि च ।। चिन्ता, दरिद्रता, रोग, दुःख, बन्धन और आपत्तियां, यह सबके सब मनुष्य को घेर लेते हैं। यही उसके सबसे बड़े शत्रु हैं किन्तु प्राणी ने ... Read more