कातिल पत्नी Hindi Love Story – प्रेम की अनूठी रासलीला

कातिल पत्नी Hindi Love Story

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अंगदनगर में चंद्रमान सिहं नाम एक राजा राज्य करता था । उसका पुत्र रणधीर सिंह हमेशा अपने दुश्मनों पर विजय पाता रहा था । रणधीर वीर, साहसी एवं सुंदर युवक था । एक बार वह अपनी सेना में कुछ सिपाहियों के साथ जंगल में शिकार खेलने गया ।

जब वह एक घने जंगल में पहुंचा तो उसकी दृष्टि में एक बड़े मोटे ताजे हिरण पर पड़ी। उसको देखकर रणधीर सिंह ने अपना धनुष बाण संभाला और अपना घोड़ा उसके पीछे दौड़ा दिया। राजकुमार को अपनी ओर आता देख कर वह हिरण तेजी से भागा और झाड़ियों के पीछे गायब हो गया । तब राजकुमार लाचार होकर अपने घोड़े को थका हुआ जानकर एक तालाब पर ले गया। पानी पीलाकर उसे पेड़ से बांधा, थोड़ा सा पानी स्वयं पिया और मुंह हाथ धोए। इसके पश्चात वह घोड़े की जीन बिछाकर तालाब किनारे बैठ गया । तालाब के चारों और हरियाली और सुंदर फूल पौधे देखता रहा तथा मन ही मन कहने लगा कि – यह जंगल कैसा शोभायमान हो रहा है । इसमें कितने सुंदर फूल खिले हैं । यहां बैठकर कितना आनंद प्राप्त हो रहा है । अभी राजकुमार प्रकृति के सौंदर्य से आनंदित हो रहा था कि इतने में उसने देखा कि बिजली के सामान क्रोंधता लड़कियों का एक झूण्ड आ रहा है । उसके बीच में एक खूबसूरत यौवना भी है जो चंद्रमा के समान प्रकाशमान है, वह अपने सौंदर्य से परियों को शरमाती तथा लहराती हुई चाल से चलती अपनी सखियों के साथ इठलाती चली आ रही थी । राजकुमार सोचने लगा – हे ईश्वर ! क्या रहस्य है जो मुझे नजर आ रहा है । ऐसे निर्जन वन में ऐसी कोमलांगी का क्या काम ? फिर वह सोचने लगा- ‘यह तो किसी राजा की कन्या प्रतीत होती है या फिर कोई परी है । जब तक इसका पूरा हाल मालूम ना हो जाए, तब तक मैं यहां से नहीं जाऊंगा ।’

यह निश्चय करके वह राजकुमार वहीं बैठ गया । थोड़ी देर में सब लड़कियां वही तलाब पर पहुंच गई और अपने वस्त्र उतारकर साड़ियां पहने लगीं । तालाब में उतर गई ।

उसी समय राजकुमारी की साङी का आंचल हवा में उड़ा और राजकुमारी का बदन नजर आया । मानो आकाश में सूर्य की किरने निकल पड़ी हो । हे मैना ! यह राजकुमारी इतनी सुंदर थी कि उसके रूप का वर्णन शब्दों में करना संभव नहीं । उसका मुख चंद्रमा के समान, दोनों भुजायें चप्पल डाल के समान, ऐसी सर्वांग मनोहारी, मृग के जैसे नैन और सौन्दर्य आदि की शोभा देखकर राजकुमार होशो-हवास खोने लगा ।

परंतु राजकुमार ने बड़े धैर्य से समय को संभाला और सोचने लगा- ‘ये राजकुमारी, ये सुंदरियां, यह सुंदर स्थान और यह तालाब कहीं यह सब रहस्यमयी जादू तो नहीं ? या मैं कोई सपना तो नहीं देख रहा हूं । इतनी सुंदर स्त्री मैंने पहले कभी नहीं देखी ।

उस रूपसी की मासूमियत और होठों पर खिलती मुस्कान जान निकाल दे रही थी । राजकुमार उसको देखे ही रहा था। उसी समय राजकुमारी की नजर भी रणधीर सिंह पर पड़ी । दोनों के नैन मिले । राजकुमार तो उस पर दिलो जान से फिदा हो ही रहा था, परंतु राजकुमारी भी उसके सुंदर पोरूष स्वरूप को देखकर मोहित हो गई । मगर लज्जावश वह कुछ कह न सकी ।

उसकी सूरत देखकर उसकी सखिया जान गई की राजकुमारी उस युवक पर मोहित हो गई है । यह सोचकर एक सखी बोली…

“राजकुमारी जी ! आप उस युवक को देखकर अपनी सुध-बुध मत खोइए ।”

“आप स्वयं को संभालिए, ऐसी मूर्खता की बातें न करें क्योंकि किसी ने कहा है कि जब किसी के दिल पर प्यार हावी हो जाता है तो उसका सुख चैन सब लूट जाता है ।” दूसरी सखी ने कहा ।

अपनी सखियों की बातें सुनकर राजकुमारी झुंझला कर कहने लगी- ”तुमने मुझे पागल समझ रखा है ? क्या जाने यह कौन है और कहां से आया है ? उसे क्या कहूं, वह तो परदेसी है । पर मेरे मन में यह बात आयी है कि इस छेड़खानी की सजा तुमको अवश्य दूंगी ।”

यह कहकर वह हंसने लगी, फिर तालाब से निकलकर वस्त्र पहने । उस समय राजकुमारी का बुरा हाल था । उसने कहीं का जेवर पहन लिया । उसकी सहेलियों ने ही उसके जेवर सही किए । राजकुमारी को राजकुमार के सिवा कुछ नजर नहीं आ रहा था । उसके ह्रदय की व्याकुलता बढ़ती ही जा रही थी । राजकुमारी की यह हालत देख कर सब सखियों ने राजकुमार को लेकर चलने का निश्चय किया । जब रणधीर सिंह ने उसे जाते हुए देखा तो वह तड़प उठा और घबराकर राजकुमारी को सुनाने के लिए बोला-

“तुम्हारे विरह में अब मैं कभी उबर नहीं पाऊंगा, हे प्राणेश्वरी तुम मेरे मन को भा गई हो ।”

तोता बोला- “हे मैना ! राजकुमार यह कहकर राजकुमारी को देखने लगा और फिर बोला- अब हम कहां जाएं और कैसे तुम्हारा साथ छोड़े । तुम्हारी सुंदरता के आगे हम बिक चुके हैं ।”

रणधीर सिंह का यह वचन सुनकर राजकुमारी ने एक फुल उठाकर पहले कान में लगाया और फिर छाती से लगाया । उसके बाद पांव से दबा कर फेंक दिया और अपने महल की ओर चल गई ।

परंतु उसके जाने के बाद विरह में राजकुमार की हालत हो गई कि उसने उसी दिन से खाना पीना, सोना अर्थात सब कुछ त्याग दिया । उसे सब कुछ व्यर्थ लगने लगा ।

और यही हाल राजकुमारी का भी था । वह खाना-पीना छोड़ कर अपनी चित्रसारी में पलंग पर पड़ी दिन-रात आहें भरती रहती थी । उसकी सहेलियों ने जब उसकी यह हालत देखी तो उसने कहा- “हे राजकुमारी ! आप ऐसी बुद्धिमान होकर भी एक अनजाने परदेसी पर मोहित हो गई । यह बात आपको शोभा नहीं देती ।”

यह सुनकर राजकुमारी ने कहा- “हे सखी ! मुझे उस परदेसी को देखे बिना अब चैन नहीं मिलेगा । जिस दिन से मेरे ह्रदय पर उसके प्रेम के बादल छाए हैं । उसका ऊंचा ललाट, मोती जैसे दांत और घुंघराले बाल तथा राजकुमारों जैसे वस्त्र मेरे दिल को भा गए हैं । मैं उसको भूलना चाहती हूं, मगर एक क्षण के लिए भी नहीं भूल पाती । यदि तुम चाहती हो कि मेरे प्राण बचे तो उस प्रियतम परदेसी से मिलवाने का कुछ प्रबंध करो, नहीं तो मेरा जीना मुश्किल है।

“हे मैना ! उधर तो राजकुमारी रणधीर सिंह के वियोग में तड़प रही थी । उधर रणधीर सिंह की हालत भी अच्छी नहीं थी । वह कभी उसकी याद में पागलों की भांति दौड़ता, कभी पछाड़ खाकर गिरता और कभी आहें भरकर कहता- “ओ खूबसूरत मृगनयनी ! तू मेरी आंखों से ओझल क्यों हो गई ।” यह कहकर वे विलाप करने लगता ।

एक दिन राजकुमारी के विरह में व्याकुल हो वह जंगल में जा पहुंचा और भूख-प्यास से तड़प कर चक्कर खाकर एक पेड़ के नीचे गिर पड़ा । इतने में उसका मित्र चंद्रदत्त भी वहां आ पहुंचा । उसने देखा कि उसका मित्र रणधीर सिंह एक वृक्ष के नीचे बेहोश पड़ा है । वह उसकी हालत देखकर बेचैन हो गया । उसने राजकुमार के मुंह पर जल छिड़का और उसे होश में लाया । फिर पूछने लगा- “हे मित्र ! तूने यह क्या हाल बना रखा है ?”

तब राजकुमार का यह हाल देखकर चंद्र दत्त समझ गया कि उसका मित्र किसी स्त्री पर मोहित हो गया है । अपने मन में यह विचार कर वह कहने लगा- ”हे मित्र ! तुम ऐसे निराश क्यों हो रहे हो । अपने ह्रदय की व्यथा मुझसे कहो, मैं उसका उपाय करूंगा ।”

तब रणधीर सिंह ने सब हाल उसको बताते हुए कहा- “हे मित्र ! यहां एक कन्या अपनी सखियों के साथ स्नान करने आई थी । वह रूपसी मेरे मन मस्तिक पर छा गई है । जब से मेरी और उसकी नजर चार हुई है, उसी समय से में व्याकुल हूं । जल बिन मछली के समान तड़प रहा हूं । खाना पीना कुछ अच्छा नहीं लगता । कोई ऐसा उपाय करो जिससे मेरी प्राण प्यारी मुझे मिल जाए ।”

चंद्रदत्त कहने लगा- “हे मित्र ! इंसान को इतना मूर्ख नहीं होना चाहिए कि बिना सोचे समझे किसी के प्यार में फंस जाए । ऐसा करना बुद्धिमता नहीं है । इसलिए मेरे मित्र ! बुद्धिमान होकर किसी अनजान स्त्री पर इस प्रकार मोहित नहीं होना चाहिए । क्या तुमने नहीं सुना कि राजा भृर्तहरी ने जोग क्यों लिया था ? भृर्तहरी ने लिखा है कि बिना सोचे समझे किसी अनजान स्त्री पर मोहित होना पागलपन है । इसलिए मेरे मित्र ! इन स्त्रियों के बंधन में गुणवान व्यक्ति नहीं फंसते क्योंकि यह आदमी के लिए हमेशा बंधन स्वरूप है ।”

“मित्र ! इस संसार में स्त्री के सिवा आनंद और कोई वस्तु नहीं है । जिस व्यक्ति ने संसार में आकर स्त्री के रूप का अमृत न चखा हो, उसका जीवन व्यर्थ है ।” राजकुमार ने दुखी मन से कहा ।

यह सुनकर राजकुमार का मित्र कहने लगा- “स्त्रियों के प्रेम में पड़ना व्यर्थ है, मूर्खता है, क्योंकि विद्वानों ने स्त्रियों की अय्यारी और चालाकी का बहुत विस्तार से वर्णन किया है और यह उपदेश दिया कि स्त्री सदैव दूर रहना चाहिए । चंद्रदत्त ने उसे काफी समझाया, किंतु राजकुमार रणधीर सिंह अपनी जिद पर अड़ा रहा । You Read this कातिल पत्नी Hindi Love Story on Lokhindi

जब राजकुमार इतना समझाने पर भी नहीं माना तो चंद्रदत्त समझ गया कि इसके सिर से इश्क का भूत आसानी से नहीं उतरेगा । यह सोचकर चन्द्रदत्त ने कहा जिस स्त्री का तुम मोहित हुए उसने तुमसे क्या कहा वह कहां की रहने वाली है अगर तुम मुझे उसके विषय में कुछ बताओ तो मैं तुम्हारी प्यारी को तुमसे मिलाने का कोई उपाय करूं ।

राजकुमार ने कहा- “उसने अपने मुंह से कुछ नहीं कहा । बस ! नयन से नयन मिले थे और हम पागल हो गए ।”

तब चंद्रदत्त ने कहा- “अब उसका मिलना सहज नहीं है मित्रवर ! इसलिए सब्र से काम लो ।”

इस पर राजकुमार ने कहा- “अगर वह सुंदरी हमें नहीं मिली तो हम जिंदा नहीं रह पाएंगे ।”

“मित्र ! तुम्हें इसका नामोनिशान, अता पता कुछ भी नहीं मालूम, उसे कहां पाओगे ? क्या उसने कुछ इशारा भी नहीं किया था ?” चन्द्रदत्त ने पूछा ।

यह सुनकर राजकुमार बोला- “मुझे उसका पता तो नहीं मालूम नहीं । हां, जब वह मेरे सामने से गई तो उसने सिर से उतारकर कानों में लगाया, फिर छाती से लगाकर उस फूल को पैरों से रौंदकर चली गई ।”

यह सुनकर चंद्रदत्त कहने लगा- हे मित्र ! इतना निराश क्यों हो रहे हो ? मैं उसके इशारों पर समझ गया हूं । उसने फूल जो कानों में लगाया उसका अर्थ है कि वह कर्नाटक देश के राजा की बेटी है । छाती से फूल लगाने का अर्थ यह हुआ कि वह भी तुम्हें दिलो जान से चाहती है और पांव तले फुल दबाया तो उसका अर्थ है कि उसका नाम पद्मिनी है । हे मित्र ! मैंने इस स्त्री के विषय में जान लिया है । अब उसका मिलना कठिन न समझो ।

यह कहकर दोनों दोस्त चलने लगे और अपनी सेना वापस अपने देश को लौटा दी तथा स्वयं घोड़े पर बैठ कर चल दिए । वह दोनों अपने अपने घोड़े पर बैठकर चले अवश्य परन्तु रणधीर सिंह की आहें बंद न हुई । वह उसी राजकुमारी को याद करता जा रहा था । कई दिन के बाद शाम के समय वे दोनों एक जंगल में पहुंचे । राजकुमार उस वन की शोभा देखकर विरह के वश के इधर-उधर घूमने लगा और एक विरल भरी रागिनी गाने लगा ।

कातिल पत्नी Cheating Love Story

राजकुमार की विरह भरी रागनी सुनकर चंद्र दत्त बोला- “हे मित्र ! तुम इतना परेशान क्यों हो ? भगवान पर विश्वास रखो । मैं तुम्हें तुम्हारी प्रयेसी से अवश्य ही मिला दूंगा ।”

“मेरा दिल मेरे काबू में नहीं है ।” रणधीर सिंह तड़प उठा ।

हे मैना ! इस तरह चलते चलते और बातें करते करते रात बीत गई तो एक सुरक्षित स्थान पर ठहरकर उन दोनों ने विश्राम किया और सवेरा होते ही दोनों मित्र चल पड़े । कई दिन के बाद का कर्नाटक पहुंचे, तब राजकुमार ने चन्द्रदत से पूछा- “हे मित्र ! हम कहां ठहरेगे ?”

“अभी आगे चलो, किसी अच्छी जगह ठहरेगे।” चंद्र दत्त ने उसे धीरज रखने के लिए कहा ।

वह कुछ आगे चले तो उन्हें एक हरा-भरा बाग नजर आया ।

उस बाग के चारों और ऊंची दीवारें थी । जगह-जगह सुंदर फुलवारियां लगी थी और तालाब बने हुए थे जिनमें निर्मल और स्वच्छ जल भरा था । विभिन्न प्रकार के रंग-बिरंगे पक्षी चहचहा रहे थे । इतना सुंदर उद्यान देखकर दोनों मित्र पुलकित हो उठे और वही एक स्थान पर बैठ गए । उस समय शाम हो रही थी । चंपा, चमेली, केशकी, गैंदा, गुलाब आदि के फूल खिल रहे थे ।

स्थान-स्थान पर वृक्षों पर बैठे मोर, चकोर, आदि मीठे स्वर में चेक रहे थे । वे दोनों मित्र एक वृक्ष के नीचे बैठ गए । इतने में उस बाग का मालिक आ गई और दोनों को बैठा देखकर क्रोधित स्वर में बोली- “कौन हो तुम लोग ? जो रानी पद्मिनी के बाग में चले आए । यदि अपनी खेर चाहते हो तो फौरन यहां से चले जाओ, नहीं तो अभी सिपाहियों को बुलाकर गिरफ्तार करवा दूंगी ।”

तब चन्द्रदत ने चार अशर्फियां जेब से निकालकर मालिन की ओर बढ़ा दीं और कहा- “हे मालिन । हम मुसाफिर हे, कोई भी यत्न करके, किसी भी प्रकार तुम हमें कुछ समय इस बाग में ठहरने दो ।”

अशर्फियां देखकर मालिन ने सोचा कि वह अवश्य ही कोई राजकुमार है । किसी विपत्ति में पङकर ही इस स्थान पर आए हैं । उन्हें अपने रहने के स्थान पर ले चलती हूं । यह सोचकर वह उन दोनों को अपने मकान पर ले आई और एक कमरा उनके रहने के लिए दे दिया । उनके घोड़े यथा स्थान बंधवा दिए ।

तोता बोला- है मैना ! इधर तो राजकुमारी पद्मिनी के विरह में दिन-रात व्याकुल हो रहा था । उधर राजकुमारी भी उसके याद कर करके दिन रात रोया करती थी । उसका खाना पीना भी छूट गया था ।”

यह सब देखकर उसकी सखियों ने कहा- “प्रिय सखी ! आपको क्या हो गया ? क्यों दिन-रात रो-रोकर बिताती हो ? एक क्षण को भी हंसी-खुशी की बातें नहीं करती ? देखो ! आज कितना सुहाना मौसम है । इस ऋतु में स्त्रियां राग-रागनियां गाकर बसंत बहार का स्वागत करती हैं और आप ऐसे मौसम में भी रोती है । ऐसा कौन सा दुख है आपको ? आप हमारे कहने से सब दुख भूल कर अच्छे सुंदर वस्त्र धारण करें, जेवर पहने और हमारे साथ मिलकर गाए बजाएं ।

“जिस दिन से जंगल में उस राजकुमार को देखा है मेरा ह्रदय उसके रुप जाल में ऐसा फंसा है कि उसे देखे बिना मुझे कुछ नहीं भाता ।” यह कहकर वह ठंडी सांस लेकर पलंग पर लेट गई तथा आहें भरने लगी ।

राजकुमारी के ऐसे विरह वचन सुनकर सब सखियां उसे समझाने लगी कि- हे प्यारी ! इस प्रकार बिना जाने बुझे एक अनजान परदेसी पर मोहित होना क्या बुद्धिमानी है ? आप हमारा कहां मानो उस जूठे मोह में न पड़ो ।”

सखियों की बातें सुनकर राजकुमारी ने कहा- “जिसके दिल पर चोट लगती है, उसे ही एहसास होता है । अगर मैं अपने प्रियतम से न मिल पाई तो मेरा जीना दूभर हो जाएगा ।

इतना कहकर राजकुमारी बेहोश हो गई । सखियां गुलाब जल छिड़क कर किसी प्रकार उसे होश में लाई । जब सखियों ने यह देख लिया कि राजकुमारी किसी के भी समझाने पर नहीं मानेगी तो उन्होंने आपस में मशवरा किया कि इसकी मां से इसका सारा हाल कह देना चाहिए । कहीं ऐसा ना हो कि हम तो उनसे कहें न और वह किसी दूसरे से सुन ले, तो हम सब पर आफत आ जाएगी ।

यह सलाह करके सब सखियों ने महारानी के पास जाकर कहा- “महारानी जी ! आज कई दिन से राजकुमार का बुरा हाल है ।वह आठों पहर रोया करती हैं । और कभी-कभी विक्षिप्त की भांति बातें किया करती है । उनकी हालत देखकर हम सब परेशान हैं और उन्हें समझा-समझाकर थक चुकने के बाद ही आपके समक्ष हाजिर हुए हैं।”

उनकी बातें सुनकर पद्मिनी की मां घबरा गई और तुरंत महल में स्थित बेटी के कक्ष में आई तथा प्यार से राजकुमारी के सिर पर हाथ रख कर पूछा- “बेटी ! तुझे क्या हो गया जो तू इस प्रकार बेचैन है । तुझे क्या कष्ट है ?”

मां की बात सुनकर पद्मिनी ने कहा- “मेरा सारा शरीर आग की तरह सुलग रहा है । अब मुझ से यह अग्नि सहन नहीं होती माता ।”

राजकुमारी की मां यह सुनकर बोली- “बेटी, तुझे क्या हुआ है जो तू इतनी सयानी होकर भी पागलों जैसी बातें करती है और दिन प्रतिदिन सूखती जाती है । बेटी ! तू अपने मन का सारा हाल हम से कह ।”

इस पर राजकुमारी ने कहा- “मैं किसी के नयनों से घायल हो गई और उस जख्म को कोई वेद्य नहीं भर सकता ।”

यह सुनकर उसकी मां ने कहा- “इसके मस्तिष्क की गर्मी बढ़ गई है, तभी यह ऐसी बेशर्मी की बातें कर रही है । तुम जाकर दरबान से कहो कि वह बहुत जल्द जाकर राजवेद्य को बुला लाए ।”

दासियों ने तुरंत दरबान के द्वारा राजवेद्य को बुलवा लिया । राजवैद्य ने राजकुमारी को देखा, नब्ज टटोली । तब राजकुमारी ने आह भरकर कहा- “तू मेरे जिस्म को छूएगा तो जल जाएगा, राजवेद्य, मुझे राहत तो तभी मिलेगी जब साजन छुएंगे मेरा शरीर ।

राजकुमारी की बात सुनकर वैद्य ने भी जान लिया कि वह राजकुमारी किसी युवक पर मर मिटी है । यह विचार करके वैद्य ने राजकुमारी की माता से कहा-

“जब तक वह युवक जिसकी विरह में यह तड़प रही है, इसको नहीं मिलेगा तब तक इसको आराम मिलना कठिन है ।” यह कहकर वेद्य चला गया और महारानी राजकुमारी की सखियों को उसके पास बैठाकर अपने महल की ओर चली गई । You Read this कातिल पत्नी Hindi Love Story on Lokhindi

सखियों ने सोचा कि इस समय सब मिलकर गाएं, बजाएं तो शायद राजकुमारी का मन बहल जाएगा । यह विचार करके सब ने गाने बजाने का सम्मान एकत्र किया और राजकुमारी से पूछा- “राजकुमारी ! यदि आज्ञा हो तो एक रंगीन बसंत ऋतु के गाने-नग्मे गाए जाए ।

परन्तु राजकुमारी ने मना कर दिया कह दिया कि मुझे बहुत कष्ट होता है । राजकुमारी, राजकुमार रणधीर सिंह की याद में बुरी तरह व्याकुल रहती थी ।

उधर, महाराज के पास जाकर महारानी ने बेटी की सुनाते हुए उसने कहा- हे स्वामी ! अब आपकी बेटी विवाह योग्य हो गई है । उसको किसी साथी की आवश्यकता सताने लगी है, क्योंकि कुछ दिन हुए हैं वह अपनी सखियों के साथ तालाब पर स्नान के लिए गई थी, वहां पर उसने किसी राजकुमार को देखा । वह उस राजकुमार पर इतनी अधिक मोहित हुई कि खाना-पीना, सोना, उठना-बैठना सब कुछ त्याग दिया है । बस दिन-रात उसकी याद में बेचैन रहती है और रोती रहती है । उसका कुछ उपाय करना चाहिए ।”

महारानी की यह बातें सुनकर राजा अत्यधिक गंभीर हो उठे । कुछ देर तक बड़ी ही गंभीरता से वह कुछ सोचने रहे, फिर बोले- “महारानी ! तुम पद्मिनी को समझा दो कि हम उसका विवाह उसी राजकुमार के साथ करेंगे, जिसको वह चाहती है । हमें उसका विवाह तो करना ही है । अंत: उसका विवाह उसकी इच्छा से ही करना उचित रहेगा ।

यह सुनकर राजा दरबार में चले गए ।

रानी पद्मिनी के पास आई और राजकुमारी को दिलासा देते हुए बोली- “बेटी ! मैंने तेरे पिता को सभी बातें साफ-साफ बता दी है और उन्होंने आश्वासन दिया है कि वह तेरा विवाह उसी राजकुमार के साथ करेंगे, जिसे तू चाहती है । तू मुझे उसका पता बता कि वह कौन है ? उसका नाम क्या है ? किस देश का राजा का बेटा है ? ताकि उसके पास राजदूत को भेजा जा सके ।”

यह सुनकर राजकुमारी उदास हो गई और बोली- “माता ! उसके बारे में मैं कुछ भी नहीं जानती । हे माता ! तू यह मत सोच कि उसको देखकर केवल मेरी यह गति हुई है । मुझसे कहीं अधिक खराब हालत उसकी होगी, क्योंकि जिस समय में स्नान करके तलाश से चली थी, तब वह भी मेरे विरह में पागल हो रहा था और पागलों की भांति आहें भर रहा था । अतः यह प्रेम एक तरफा नहीं है । आप यह कातिल पत्नी Hindi Love Story लोकहिंदी पर पढ़ रहे है! 

राजकुमारी की बात सुनकर रानी वहां से चल पड़ी और राजा के पास जाकर सारा हाल उसे कह सुनाया । रानी की बात सुनकर राजा सोचने लगा कि जिसका कुछ अता पता भी नहीं है, उसे कैसे तलाश किया जाए ।

तोता बोला- “हे मैना ! अब यहां का किस्सा समाप्त करके में राजकुमार का हाल बयान करता हूं- जिस बाग में राजकुमार और उसका मित्र चंद्रदत्त रह रहे थे, उस बाग मालिन एक दिन एक सुंदर हार गूंथकर राजकुमारी के लिए लेकर चली ।

“ऐसा सुंदर हार किसके लिए ले जा रही हो ?” चंद्रदत्त ने मालिन से पूछा ।

मालिन ने कहा- हे परदेसी ! इस शहर के राजा की बेटी पद्मिनी किसी राजकुमार पर मोहित हो गई है । वह उसके लिए हर समय व्याकुल रहती है और रोती रहती है । अतः में उसे प्रसन्न करने के लिए यह हार बनाकर ले जा रही हूं।”

यह कहकर मालिन जाने लगी, तभी चंद्रदत्त ने मालिन को रोककर उसे पांच अशर्फियां दीं और कहा- “हे मालिन ! हम एक कागज तुमको देते हैं । यह कागज भी अपनी राजकुमारी को दे देना ।”

“बहुत अच्छा ।” मालिन ने अशर्फियां और वह कागज लिया और राजमहल की ओर बढ़ गई । उस कागज में राजकुमारी के लिए संदेश था ।

मालिन उस कागज को लेकर महल में जा पहुंची और राजकुमारी के कक्ष में जाकर चुपचाप वह पत्र उसे दे दिया । राजकुमारी चौंककर उस पत्र को पडढ़ने लगी । जब उस पत्र में पढ़ लिया तो प्रेम ने और जोश मारा और वह खुशी से पागल हो गई और चहकते हुए अपनी सखियों से बोली- “आज मेरे मन की मुराद पूरी हो गई । मेरे दुःख भरे दिन खत्म हो गए ।”

यह आनंद भरे स्वर सुनकर सखियों ने पूछा- “हे राजकुमारी ! इस पत्र में ऐसा क्या लिखा है, जिसे पढ़कर तुम इतना पसंद हो उठी हों ?”

“हे सखियो ! जिसके कारण मेरी यह गति हुई है, वह मेरी आत्मा के समान आज मेरे बाग में उपस्थित है । यह मेरे प्रियतम का पत्र है ।” राजकुमारी ने कहा ।

राजकुमारी ने खुश होकर मालिन को इनाम दिया तो मालिन ने कहा-

“राजकुमारी जी ! इस पत्र का उत्तर लिखकर दे दीजिए !”

यह सुनकर राजकुमारी ने उत्तर में यह पत्र लिखा- “मेरे प्रियतम ! आज मेरे बेचैन दिल को तुम्हारे पत्र से करार मिला है । अब तो सिर्फ तुमसे मिलन का इंतजार है ।” साथ ही मालिन को यह निर्देश दिया कि जब तक वह वहां रहें, उनका अच्छी तरह से आदर संस्कार करना ।

यह सुनकर मालिन वहां से चल दी और पत्र लाकर राजकुमार को दे दिया । राजकुमार उसे पढ़कर बहुत प्रसन्न हुआ ।

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“हे मैना ! उधर तो राजकुमार अपनी प्यारी के कर कमल के लिखे हुए पत्र को पढ़कर प्रसन्न हो रहा था, उधर राजकुमारी की सहेलियों ने उसकी माता से उसके प्रेमी के आने का समाचार दे दिया । रानी यह बात सुनकर बहुत प्रसन्न हुई और राजा को महल में बुलाकर सारा हाल बयान किया । राजा भी यह सुनकर बहुत खुश हुआ और तुरंत अपना दूत भेजकर राजकुमार को बुलाया । उन्होंने राजकुमार से उसका परिचय जानकर प्रसन्नता जाहिर की, फिर उसे अतिथि ग्रह मैं ठहरा दिया । फिर मंत्रियों व पुजारी-पंडितों से सलाह करके शुभ मुहूर्त में बड़ी धूम-धाम से अपनी बेटी पद्मिनी का विवाह राजकुमार के साथ कर दिया । हे मैना ! जब रणधीर सिंह का विवाह पद्मिनी के साथ हो गया तो उन दोनों का प्रेम एक दूसरे पर न्योछावर होने लगा । उन दोनों का प्रेम इस कदर बढ़ा कि बिना एक दूसरे को देखे उन्हें चैन नहीं पड़ता था । मगर रणधीर सिहं दिन में एक बार अपने मित्र चंद्रदत से मिलने बाग में अवश्य जाता था ।

“प्रियतम प्यारे ! आप मुझे यह भेद बताइए कि आप प्रतिदिन कहां जाते हैं, क्योंकि आपकी जुदाई मुझे एक क्षण भी नहीं भाती ।” एक दिन पद्मिनी ने पूछा ।

यह सुनकर राजकुमार बोला है- “हे प्यारी ! मेरा एक परम मित्र है जिसका नाम चंद्रदत्त मेरे साथ आया हुआ है । ईश्वर की कृपा से मेरा और तुम्हारा मिलाप उसी के प्रयासों से हुआ । परंतु मैं तुम्हारे पास रहता हूं और वह तुम्हारे बाग में रहता है । उसको मुझसे इतना अधिक प्रेम है कि वह मेरे लिए अपना घर बार छोड़कर मेरे साथ साथ मुसीबतें उठा रहा है । इसलिए उसका दिल रखने के लिए मैं एक बार उससे मिलने अवश्य जाता हूं ।”

यह सुनकर पद्मिनी चुप हो गई और सोचने लगी- “उसके यहां रहने से मेरे पति का दिल मुझसे भटक रहा है । अतः कोई ऐसा उपाय करना पड़ेगा, जिससे वह मारा जाए, ताकि मेरा पति मुझे छोड़कर कहीं भी न जा सके ।”

“हे प्रिय ! आपके सम्मान कठोर मनुष्य मैंने आज तक नहीं देखा, क्योंकि आपके मित्र ने आपके साथ कैसा शुभ काम किया है और उनके ही कारण हम दोनों को यह आनंद मिला । वह बेचारा घर छोड़कर यहां पड़ा है । आपने कभी उसका सत्कार नहीं किया । अब आप कल ही उसको भोजन के लिए आमंत्रित करें ताकि आपके मित्र को भी पता चले कि उसका मित्र उसे ह्रदय से चाहता है ।” राजकुमारी के स्वर में रहस्य झलक रहा था, जिसे राजकुमारी का दीवाना राजकुमार रणधीर सिंह नहीं समझ पाया ।

राजकुमारी की बात सुनकर राजकुमार बहुत प्रसन्न हुआ और उसने मित्र के लिए उसका आमंत्रण स्वीकार कर लिया फिर अपने मित्र के पास जाकर बोला- मित्र ! कल तुम्हारी भाभी ने तुम्हें भोजन के लिए आमंत्रित किया है । तुम कल वहीं भोजन करना ।”

चंद्रदत्त ने खुश होकर निमंत्रण स्वीकार कर लिया ।

सवेरा होते ही पद्मिनी ने अनेक प्रकार के अच्छे-अच्छे व्यंजन तैयार करवाए और मौका देखकर उनमें जहर मिला दिया । राजकुमार ने बड़े हित से चंद्रदत को भोजन कराया । भोजन करके चंद्रदत अपने बाग में गया और आराम करने के लिए पलंग पर लेट गया तथा सोई अवस्था में मर गया ।

उधर पद्मिनी ने मालिन को बुलाकर कहा- “मालिन ! मैंने आज चन्द्रदत को विश दे दिया है । जब वह मर जाए तो तो राजकुमार से आकर कहना कि आपके मित्र को सांप ने काट लिया है । सावधान ! विष देने वाला रहस्य किसी को पता नहीं चलना चाहिए ।

“ऐसा ही होगा ।” मालिन ने तनिक भयभीत होते हुए कहा । You Read this कातिल पत्नी Hindi Love Story on Lokhindi

जब मालिनी उसके घर आई तो देखा कि चंद्रदत सचमुच मरा पड़ा है, तब मालिक ने घर जाकर राजकुमार जी उसी प्रकार का जैसा राजकुमारी ने बताया था । मालिन की बात सुनकर राजकुमार घबराया और लगभग दौड़ता हुआ बाग में आया जहां चंद्रदत मरा पड़ा था और उसके मुख से नीले नीले झाग निकल रहे थे ।

अपने मित्र को मृत देखकर राजकुमार रो-रोकर विलाप करने लगा- “है मित्र ! तुम मुझे छोड़ कर कहां चले गए ? मैं किस प्रकार अपने ह्रदय को समझाऊं । अब मैं तुम्हारे परिजनों को क्या उत्तर दूंगा । “हे भगवान ! यह तुमने क्या किया ।”

राजकुमार बहुत देर तक विलाप करता रहा । तब राजकुमारी ने राजकुमार को समझाया- “जो इस संसार में आया है, उसे एक दिन तो अवश्य ही जाना होता है । इसी का नाम जीवन है । इस प्रकार विलाप करके अपने मित्र की आत्मा को कष्ट मत पहुंचाओ ।

राजकुमारी के समझाने पर राजकुमार को जरा ढांढस बंधी । फिर उसने एक डोली मंगाकर उसमें लाश से रखवाई और नौकरों को समझा बुझाकर उसे नदी में प्रवाहित करने के लिए भेज दिया ।

रास्ते में जब जंगल की ठंडी ठंडी हवा लगी तो चंद्र दत्त के ऊपर विष का प्रभाव कम होने लगा, जिससे उसे धीरे-धीरे होश आने लगा ।

जब उसने महसूस किया कि कुछ लोग उसे डोली में डालकर कहीं ले जा रहे हैं तो उठा और डोली से बाहर झांककर कहारों से पूछा- “हे भाइयों ! आप लोग मुझे कहां ले जा रहे हैं ?”

कहारों ने जब उसे जीवित देखा तो वे बड़े आश्चर्यचकित हुए और बोले- “महाराज ! आपको सांप ने काट लिया था, जिसके विष के प्रभाव से आप मर गए थे । राजकुमार आपकी यह हालत देखकर पहले तो बहुत रोये फिर जब लोगों ने उन्हें समझाया तो आपको इस डोली में डालकर गंगा में बहाने को भेजा है । आपकी जुदाई में पता नहीं राजकुमार की क्या दशा हो रही होगी ? यह क्या रहस्य है कि आप जीवित हैं ।”

“भाइयों, मुझे सांप ने नहीं काटा । मेरे साथ धोखा हुआ है । इस धोखे के विषय में मैं किसी को कुछ कह भी नहीं सकता । मेरा मित्र भोला-भाला है । वह औरतों के त्रिया-चरित्र को नहीं जानता । तुम यह हीरे की अंगूठी लो और वापस जाओ, किंतु मेरे जीवित होने के विषय में किसी से कुछ न कहना । अब मैं भी अपने देश को जाता हूं । चंद्रदत्त ने अंतिम शब्दों के साथ उन्हें विदा किया और फिर सोचने लगा- “मैंने राजकुमारी के साथ कैसा सलूक किया था । उसका रंग गम, दुख दर्द दूर किया । इसके बदले में उसने मुझे विष दे दिया । उसके इस दुष्कर्म को देखकर ऐसा लगता है कि वह किसी समय मेरे मित्र को भी धोखा देगी । ऐसी औरतें अपने स्वार्थ के लिए कुछ भी कर सकती हैं । वह उसके प्रेम में अंधा हो रहा है । यदि मैं अपने देश को चला गया तो उसके माता-पिता मुझसे पूछेंगे कि हमारा पुत्र कहां है ? तुम उसको कहां छोड़ कर आए हो, तब मैं उनको क्या उत्तर दूंगा । यदि मैं यह कहूंगा कि मैं उसको उसकी ससुराल छोड़ कर आया हूं तो उन्हें विश्वास नहीं होगा । इसके अतिरिक्त मेरे लिए भी यह उचित नहीं होगा कि मैं अपने मित्र को परदेस में अकेला छोड़ कर अपने घर जाकर चैन की बंसी बजाऊ ।

यह सोचकर चंद्रदत्त साधु का भेष बदलकर कर्नाटक की ओर वापस चल दिया ।

कातिल पत्नी – Wife Cheating Story Hindi

“हे मैना ! इधर तो उन कहारों ने राजकुमार को चंद्रदत्त के गंगा में बहा देने का हाल सुनाया । उधर चंद्रदत साधु का भेष बदलकर पद्मिनी के महल के बाहर धूनी रमाकर बैठ गया ।

अब इधर का किस्सा बंद करके राजकुमार का हाल कहता हूं । जिस दिन से चंद्रदत का देहांत हुआ था, उस दिन से राजकुमार ने खाना-पीना ऐशो आराम सब छोड़ दिया । वह हर समय एकांत में बैठकर अपने मित्र को याद कर करके आंसू बहाया करता था । राजकुमारी ने उसे बहुत समझाया कि मृत्यु के आगे किसी का कोई बस नहीं चलता । आपका और उसका साथ बस इतना ही था । जब सांप निकल गया तो लकीर पीटने से क्या लाभ ? आप अपने मित्र को भूल जाए ।

धीरे-धीरे राजकुमार को सब्र करना पड़ा । मगर राजकुमार ने यह कभी नहीं जाना कि औरत कितनी चालाक होती है । सब किया धरा रानी का ही था । हे मैना ! चंद्रदत्त ने रानी के साथ ऐसा क्या बुरा किया था कि उसने उसकी जान ही ले ली । तू ही यह सोच कर मुझे बता कि दोष किसका है ?

तब मैना बोली- “है तोते ! पहले तू अपनी दास्तान समाप्त कर, फिर मैं इसका उत्तर तुझे अपनी अगली दास्तान से दूंगी ।”

तोता आगे बोला- “है मैना, इसी प्रकार राजकुमार को कुछ दिन बीत गए । वह शाम के समय टहलने के लिए उपवन में जाता था । जब वह महल से निकलता तो महल के बाहर धूनी रमाए बैठे साधु को प्रणाम अवश्य करता था।

साधु उसे आशीर्वाद देता- “बच्चा तेरा भला हो । हर बला से बचता रहे ।”

राजकुमार अपने मित्र की याद में अभी भी दु:खी रहता था । एक दिन जब राजकुमार टहल कर वापस आ रहा था तो उसने सोचा कि साधु के पास बैठकर कुछ बात करें, जिससे जरा मन बहल जाएगा । यह सोचकर वह साधु के पास बैठ गया ।

वह साधु जो वास्तव में उसका मित्र चंद्रदत था, उसने पूछा- “राजकुमार, तुम उदास क्यों रहते हो ? क्या कारण है ?

“महाराज ! मैं आपको अपनी उदासी का क्या कारण बताऊ, क्योंकि यह सब बताने से मेरा ह्रदय फटता है । कलेजा मुंह में आता है । अब जब आपने पूछा है तो बताता हूं, सुनिए, बचपन का मेरा एक मित्र था । वह मुझसे बहुत प्रेम करता था । मुझ पर प्राण न्योछावर करने को तत्पर रहता था । मगर कुछ ही दिन पहले वह एक सांप के काटने से मर गया । उस दिन से मुझे उसका गम सताता रहता है और मैं उसकी याद में उदास रहता हूं । राजकुमार ने काफी दुखी मन से कहा ।

उसकी बात सुनकर साधु बोला- “बालक ! मेरी ज्योतिष विद्या कहती है कि तेरा वह मित्र अभी जीवित है, वह मरा नहीं है और चंद दिनों में ही वह तुझसे आकर मिलेगा । तू मेरी बात पर विश्वास रखना, झूठ मत समझना ।”

यह सुनकर राजकुमार बहुत प्रसन्न हुआ और साधु को दंडवत प्रणाम करके चला गया और उसी दिन से वह चंद्रदत्त से मिलने की आशा में दिन व्यतीत करने लगा । आप यह कातिल पत्नी Hindi Love Story लोकहिंदी पर पढ़ रहे है !

एक दिन रानी पद्मिनी अपनी सखियों के साथ सैर करने निकली । रास्ते में सुंदर बाग था, जिसमें एक सौदागर जिसकी आयु लगभग 24-25 वर्ष होगी, बैठा हुआ था । जैसे पद्मिनी को सौदागर की आंखें चार हुई, वैसे पद्मिनी उस पर आशिक हो गई । रात के समय रानी पद्मिनी ने राजकुमार को पानी की जगह शराब पिलाकर बेहोश कर दिया तथा रुप बदलकर उस व्यापारी के पास जा पहुंची और रात भर उसके साथ भोग विलास का थोड़ी रात रहते अपने महल में पहुंच गई तथा राजकुमार के पास लेटकर सोने का बहाना करने लगी ।

इसी प्रकार कई दिन बीत गए । एक दिन राजकुमार ने अपने ससुर से कहा- “पिताजी ! मुझे घर छोड़े हुए बहुत दिन हो गए हैं, यदि आपकी आज्ञा हो तो अब में अपने देश की ओर प्रस्थान करूं ।”

यह सुनकर राजा ने उसे जाने की आज्ञा दे दी । यह सुनकर राजकुमार पद्मिनी के पास आया और उससे कहा- “हे प्रिय ! सफर की तैयारी करो, हम अपने देश जाएंगे ।”

रात के समय पद्मिनी रूप बदलकर अपने उस व्यापारी प्रेमी से मिलने चली तो उसी समय चंद्रदत्त ने उसे देख लिया और सोचने लगा- यह स्त्री प्रतिदिन कहां जाती है, उसका पता करना चाहिए । मन में यह विचार कर वह एक तलवार लेकर उसके पीछे हो लिया । जब रानी पद्मिनी उस व्यापारी के पास पहुंची और भोग विलास से निवृत्त होकर चलने लगी तो उसने व्यापारी से कहा- “प्रिय ! कल मैं अपने ससुराल जा रही हूं ।”

यह सुनकर सौदागर को बड़ा क्रोध आया और क्रोधित होकर उसने कहा- “हरामजादी ! मैंने तेरे पीछे अपने व्यापारी मित्रों को और अपने माल दौलत से भरे जहाजों को छोड़ा, उसका कोई समाचार नहीं लिया कि उसका क्या हुआ और अब तू कहती है कि मैं ससुराल जा रही हूं ।” यह कहकर वह बहुत क्रोधित हुआ और क्रोधित अवस्था में ही उसके सिर के बाल काट दिए और उसको वहां से निकाल दिया । वह रोती सिसकती अपने महल की ओर चल दी।

चंद्रदत्त तो उसका पीछा कर रहा था, उसे भी क्रोध आ गया और उसने उस व्यापारी की गर्दन उड़ा दी और चुपचाप अपने स्थान पर आकर बैठ गया ।

कातिल पत्नी Hindi Love Story

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उधर रानी पद्मिनी रोती हुई अपने महल में आई और अपनी करतूत का पर्दा डालने के लिए शोर मचा दिया- बचाओ-बचाओ, देखो मेरा पति मुझे मार रहा है, इसने मेरे बाल काट लिए ।”

आवाज सुनकर पहरेदार दौङकर आए और राजकुमारी का हाल देखकर राजा से जाकर बोले- “महाराज ! राजकुमार ने रानी पद्मिनी के बाल काट दिए ।”

राजा को क्रोध आ गया । उसने आज्ञा दी, राजकुमार को फौरन गिरफ्तार करो ।

सिपाहियों ने राजकुमार को गिरफ्तार कर लिया और उसे लेकर दरबार में पहुंचे । जब राजकुमार दरबार में पहुंचा तो राजा ने उसे देखकर आग-बबूला हो गया और आज्ञा दी- “इसे अभी इसी समय सूली पर चढ़ा दिया जाए ।”

जब जल्लाद राजकुमार का हाथ पकड़कर चले तभी दरबार में चंद्रदत्त ने प्रवेश किया और राजा के सम्मुख सिर झुकाकर बोला- “महाराज, निर्दोष को फांसी पर चढ़ाना उचित नहीं ।”

राजा ने कहा कि- “यह मेरी बेटी है, इस नगर की राजकुमारी और यह इसका पति है, जो इसे जान से मार डालना चाहता है । मेरी बेटी ने अपना बचाव करना चाहा तो उस अपराधी ने उसके बाल काट लिए । क्या फिर भी तू यह कहता है कि या निर्दोष है ?”

“हां महाराज, में अभी यही कहूंगा कि राजकुमार निर्दोष है, क्योंकि राजकुमार के बाल राजकुमार ने नहीं काटे । बल्कि आपकी बेटी की मित्रता एक सौढा़गर से हो गई थी । वह रोज भेष बदलकर उसके पास जाया करते थी । अल वह सौदागर से कहने लगी- “कल मैं अपनी ससुराल जा रही हूं ।” यह सुनकर इस व्यापारी को क्रोध आ गया और उसने राजकुमारी के बाल काट लिए । मैं यह सब देख रहा था । मुझे बहुत क्रोध आया और मैंने उस व्यापारी का सिर उड़ा दिया । यदि आपको विश्वास न हो तो उपवन में जाकर उसकी लाश देख लीजिए । उसके हाथ में राजकुमारी के कटे हुए केस भी है ।” चंद्र दत्त ने सच्चाई उगलते हुए कहा । आप यह कातिल पत्नी Hindi Love Story लोकहिंदी पर पढ़ रहे है !

“तुम कौन हो ?” राजा ने पूछा ।

“मैं राजकुमार का मित्र चंद्रदत हूं, मुझे तुम्हारी बेटी ने एक दिन विष दे दिया था । मगर देवयोग से मैं बच गया ।” उसने मुस्कुराते हुए राजकुमारी की ओर देखा ।

यह सुनकर राजा इस स्थान पर गया और देखा कि वास्तव में सौदागर का सिर कटा पड़ा था और रानी पद्मिनी के बाल भी उसके हाथ में थे ।

यह देखकर राजा ने राजकुमार को छोड़ दिया और अपनी बेटी को फांसी दे दी ।

राजकुमार ने चंद्रदत्त को अपने सीने से लगा लिया और कहने लगा- “मित्र ! आज तेरे कारण मेरे प्राण बचे । तूने मुझे बहुत समझाया था, किंतु मैंने तेरी एक ना मानी और आज अपने किए पर इतनी बड़ी सजा पाते पाते रह गया । यह उपकार भी मुझ पर तूने किया है । मैंने रानी से वफा की जिसके बदले में उसने मुझे सूली पर चढ़ाने का इंतजाम कर दिया था ।”

और फिर कुछ दिनों बाद दोनों मित्र अपने देश को रवाना हो गये ।

तोता बोला- “हे मैना ! देख, राजकुमार को रानी पद्मीनी से कितना प्रेम था । राजकुमार ने कैसे-कैसे कष्ट उठाकर उसको प्राप्त किया और उसने उसे क्या सिला दिया । उसके मित्र को विष दे दिया और पति से बेवफाई करके किसी दूसरे से मिलने जाती रही । इसलिए मैं औरतों का विश्वास नहीं करता ।

मैना बोली- “है तोते ! तूने जो कहा ठीक है, परंतु उसका उत्तर में देती हूं ध्यान से सुन–

कातिल पत्नी Hindi Love Story पढ़ने के लिए धन्यवाद!! 

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Written by lokhindi
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