Hindi Stories With Moral – प्रभु भक्ति – Hindi Stories

Hindi Stories With Moral – प्रभु भक्ति

Moral Stories in Hindi / Hindi Moral Stories | Hindi Stories With Moral

बात अति प्राचीन समय की है । चंपापुर के राजा चंदेल के बांझ स्त्री, रानी कमला ने कन्या को जन्म दिया । यह खुशी राजा के घर में शादी के 14 वर्षों के पश्चात आई थी । अंतः पूरे राज्य में खुशियां मनाई गयी । हर ओर खुशी का वातावरण छा गया । कन्या का नाम रखा गया कोमलांगी ।
और फिर !

धीरे-धीरे कन्या बड़ी होने लगी । राजा ने उसकी परवरिश में कोई कमी न छोड़ी ।
कोमलांगी बचपन से ही धार्मिक प्रवृति की थी । जैसे-जैसे वह जवान होती गयी, यह प्रवृत्ति बढ़ती गयी ।
जब कोमलांगी 18 वर्ष की हुई तो उसकी यह प्रवृत्ति और भी बढ़ गयी। वह दिन-रात ईश्वर के ही ध्यान में मग्न रहती।

इधर बेटी की जवानी ने बाप को चिंतित कर दिया । वह अपनी बेटी की शादी उसी के जैसे युवक से करना चाहता था । मगर ऐसा युवक मिलना भूसे में सुई खोजने जैसा था । एक दिन राजा आखेट पर गया हुआ था । जंगल में आखेट करते-करते अचानक उसका काफिला रुक गया ।
राजा ने देखा कि एक नवयुवक भगवान की मूर्ति के सम्मुख आंखें बंद किये बैठा पूजा कर रहा था ।

उसके शरीर पर एक वस्त्र के सिवा कोई कपड़ा, अन्य कोई साधन नहीं था ।
राजा ने उससे पूछा- “तुम कौन हो ?”
वह बोला- “ईश्वर का भक्त !”
“तुम्हारा घर कहां है ? राजा ने पुनः पूछा ।”

“ईश्वर जहां रहता है, वही मेरा घर है ।”  उसने कहा ।
राजा ने अगला प्रश्न पूछा – “तुम्हारे पास कुछ सामान है ?”
“भगवान की कृपा के अलावा मेरे पास कुछ नहीं है ।” युवक ने पहले की तरह नम्रता से उत्तर दिया ।
“तुम्हारी गुजर-बसर कैसे होती है ?”
“सब भगवान करता है ।”

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राजा सोचने लगा कि जैसा वर उसे अपनी बेटी के लिए चाहिए था, वह उसे मिल गया ।
तब,उसने अपनी बेटी का विवाह युवक से कर दिया ।
विवाह के पश्चात उस युवक ने कोमलांगी से पूछा- “मैं जंगल में जा रहा हूं, तुम कहां रहना पसंद करोगी ?”
“जहां आप वहां मैं। अब तो आप ही मेरे प्राण हैं, आप ही मेरी इच्छाएं हैं, अंतः मैं भी जंगल में चलूंगी ।” कोमलांगी ने स्पष्ट व दृढ़स्वर में कहा ।

“वहां पर तुम्हें कष्ट उठाने पड़ेंगे और यहां तुम चैन व आराम से रहोगी-अतः मैं तुमसे मिलने आता रहूंगा ।” युवक ने उसे समझाने की चेष्टा की ।
“गलत कह रहे हैं आप । आपके बिना मुझे स्वर्ग में भी चैन न मिलेगा । यह तो महल है अंतः में आपके साथ चलूंगी, चाहे वह कितने ही दुख उठाने पड़े ।” कोमलांगी ने दृढ़तापूर्वक कहां ।
तब,
वे दोनों जंगल की ओर रवाना हुए।

जंगल में पहुंच कर उन्होंने एक पेड़ के नीचे डेरा डाला । वह रात उन्होंने  मजे से गुजारी ।
अगली सुबह कोमलांगी ने देखा कि पैङ के कोटर में पानी के शकोरे ( मिट्टी से बना कटोरा ) के ऊपर पर रोटी का टुकड़ा रखा है ।
उसने शकोरे को उठाकर पति से पूछा- “यह क्या रखा है ।”

पति ने जवाब दिया- इसे आज के लिए बचा कर रखा था ।”
यह सुनते ही कोमलांगी रोने लगी ।

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पति उसे रोता देखकर हैरान हो उठा । वह कोमलांगी से बोला- “मैं जानता था कि तुम्हारा लालन-पालन महल में हुआ है । मुझ जैसे गरीब के साथ तुम नहीं निभा सकोगी ।”
स्वामी यह बात नहीं है…। कोमलागी  बोली- “मैं गरीबी से नहीं डरती ।”

“फिर क्या बात है ? तुम एकदम से रोने क्यों लगी ?”पति ने हिरानी में डूबते हुए पूछा ।
“मुझे दुख इस बात का है स्वामी कि ईश्वर के प्रति आपका विश्वास दृढ़ व अटल नहीं है ।”
“क्या कह रही हो ?”

“मैं सही कह रही हूं स्वामी !”
“कैसे ?”

“यदि आपका विश्वास ईश्वर के प्रति दृढ़ व अटल होता तो क्या आप रोटी का टुकड़ा बचाकर रखते ? क्या आप यह सोचते कि कल क्या खाएंगे ? नहीं स्वामी, कदापि नहीं ! मैंने विवाह अब तक इसलिए नहीं किया था कि मुझे ऐसा पति मिले, जिसको प्रभु भक्ति में कोई कमी न हो ।

इसी से मेरे पिता ने आपको चुना, और मैंने भी आपको पसंद किया । किंतु आप का तो ईश्वर में ही पूर्ण विश्वास नहीं है स्वामी, मैं आपसे कदाचित् इसकी आशा न करती थी स्वामी ।” कहकर वह पुनः रोने लगी ।
युवक बहुत पछताया ।
तभी ।
कोमलांगी  ने पुनः कहा-  “कान खोल कर सुन लीजिए स्वामी कि आपके साथ यह टुकड़ा रहेगा या में…।”
यह सुनते ही युवक की आंखें खुल गयी ।
उसने रोटी के टुकड़े को फेंक दिया और प्रभु भक्ति परायण स्त्री को सीने से लगा लिया ।
और कोमलांगी !
वह मन-ही-मन मुस्कुरा रही थी कि आज उसके कठोर वचनों ने एक भटकते हुए व्यक्ति को राह पर ला दिया था ।

शिक्षा – “ जो ईश्वर पर विश्वास करता है, वह इस बात की परवाह नहीं करता कि कल आपके भोजन का प्रबंध कहां से होगा । सच्चा ईश्वर भक्त अपनी समस्त इच्छाएं ईश्वर पर छोड़ दिया करता है ।”

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Written by lokhindi
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