गुरु गोविन्दसिंह History – Guru Gobindsingh Biography Hindi

गुरु गोविन्दसिंह History

– गुरु गोविन्दसिंह का इतिहास / Guru Gobindsingh in Hindi। गुरु गोविन्दसिंह का जीवन परिचय – गुरु गोविन्दसिंह की History और कहानी हिंदी में !


गुरु नानकदेव ने हिंदू-मुसलमानों की एकता का उपदेश दिया था। भगवद् भजन ही सिख धर्मको प्रारम्भ में अभीष्ट था। सिख गुरुओं को राजनीति से कोई मतलब नहीं था। अकबर की मृत्यु के बाद शाहजादा खुसरो भागकर गुरु अर्जुनदेव की शरण में गया। गुरु ने शरणागत की रक्षा को धर्म माना।

इससे चिढ़कर जहाँगीर ने उनको मरवा डाला। इसका यह फल हुआ कि अत्याचारी शासन से अपनी रक्षा करने के लिये शस्त्र धारण करना गुरुओं को आवश्यक जान पड़ा। गुरु हरगोविन्दसिंह ने सिखों का सैनिक संगठन किया। सिख उन्हें ‘सच्चा बादशाह’ कहते थे।

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गुरु गोविन्दसिंह History

सिखों के आठवें गुरु हरराय से औरंगजेब रुष्ट था। उनके बाद नौवें गुरु तेगबहादुर को उसने दिल्ली बुलवाया। किंतु उस समय वे आसाम चले गये। वहाँ से लौटने पर गुरु ने काश्मीर में मुसलमान शासकों के अत्याचार का विरोध किया। इस पर उन्हें पकड़कर दिल्ली लाया गया और घोर यन्त्रणा देकर औरंगजेब ने उनका वध करवाया।

गुरु तेगबहादुर के पुत्र गुरु गोविन्दसिंह सिखो के दसवें गुरु थे। वे बचपन से शुरवीर और तेजस्वी थे। पिता की मृत्यु का बदला लेने तथा अत्याचारियों का दमन करने के लिये उन्हाने दैवी शक्ति प्राप्त करने का निश्चय किया। 20 वर्ष तक पर्वतो में रहकर वे कठोर तपस्या करते रहे। इसके बाद उन्होंने सिखों में दीक्षा की प्रथा चलायी। दीक्षा लेने वाले को कड़ा, केश, कंधी, कच्छ और कृपाण धारण करना पड़ता था। इन दीक्षित सिखों का संगठन ‘खालसा’ कहलाया।

सिखों की सेना को साथ लिये गुरु गोविन्दसिंह धर्म की रश्ना के लिये युद्धरत हुए। औरंगजेब ने सरहिन्द और लाहौर के मृवेदारां को उनके विरुद्ध भेज दिया। अपार सेना के बीच मुट्ठीभर सैनिक घिर गये। जब उनकी रसद भी समाप्त हो गयी, तव परिणाम की चिन्ता किये बिना शत्रु के बीच से किसी प्रकार निकल जाने का प्रयत्न करना ही हाथ में था। गुरु गोविन्दसिंह किसी प्रकार उस घेरे से निकल गये; किंतु उनके दो पुत्रों को शत्रुओं ने बंदी कर लिया। उन अबोध बच्चों ने जब किसी प्रकार अपने धर्म का त्याग करके मुसलमान होना स्वीकार नहीं किया, तब अत्याचारी शत्रुओं ने उन्हें जीवित ही दीवाल में चुनवा दिया।

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जीवन के अन्तिम भाग में गुरु गोविन्दसिंह दक्षिण भारत चले गये। उस समय औरंगजेब की मृत्यु हो चुकी थी। गोदावरी के तट पर ‘हुजूर साहब’ में जब गुरु गोविन्दसिंह विश्राम कर रहे थे, एक पठान ने विश्वासघात करके उनके पेट में कटार मार दी। इसी चोट से 1708 ई० में वे इस धरा से उठ गये।

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Written by lokhindi
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