महात्मा गाँधी पर हिंदी निबंध – Essay on Mahatma Gandhi

महात्मा गाँधी पर निबंध

Mahatma Gandhi: Life and Thoughts essay Hindi / महात्मा गाँधी: जीवन और विचार पर आधारित पूरा निबंध 2019 (महात्मा गाँधी पर हिंदी निबंध)


महात्मा गाँधी पर निबंध

विश्व-समाज के स्वप्न-द्रष्टा:

महात्मा गाँधी के बिना आधुनिक भारत के सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती । गाँधी जी ने अफ्रीका से 9 जनवरी 1915 को भारत लौटकर 30 जनवरी, 1948 तक भारतीय समाज को जीवन के सभी क्षेत्रों में जो नेतृत्व प्रदान किया वह भारतीय इतिहास की महत्वपूर्ण घटना है । महात्मा गाँधी ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को तो अहिंसा एवं सत्याग्रह आधारित रूप दिया ही साथ ही व्यक्ति और व्यक्ति के, व्यक्ति और समाज के तथा व्यक्ति और राजनीति के रिश्तों में मानवता को मूल आधार में रखा, उससे न केवल भारतीय उपमहाद्वीप बल्कि तत्कालीन विश्व समाज भी प्रभावित हुआ । व्यक्ति की कथनी और करनी में, व्यक्ति के जीवन के एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में तथा व्यक्ति और समुदाय के संबंधों में किसी प्रकार का भेद नहीं रहना चाहिए, संगति बिठानी चाहिए, यह दुर्लभ पाठ उनके जीवन से सहज ही सीखा जा सकता है। भारतीय इतिहास में वे सत्यनिष्ठ समाज सुधारक, विचारक तथा मुक्त मनुष्य के रूप में स्थापित हुए ।उन्होंने हमारे प्राचीन दर्शन एवं संस्कृति से प्रेरणा प्राप्त की, समकालीन विश्व ज्ञान एवं तकनीक को समझा तथा भावी विश्व की कल्पना भी की। महात्मा गाँधी जी की कल्पना के विश्व में हमारी समकालीन बिडंबनाओं के उत्तर निहित हैं।

संक्षिप्त जीवनी: महात्मा गाँधी

मोहनदास करमचन्द गाँधी गुजरात के काठियावाड़ जिले में पोरबंदर नामक स्थान पर 2 अक्टुबर, 1869 ईस्वी को जन्मे । उनकी प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा राजकोट में हुई और 13 वर्ष की ही आयु में उनका विवाह कस्तूरबा के साथ हो गया । इंग्लैंड में रहकर 1891 में वे बैरिस्टर बनकर लौटे । राजकोट में वकालत असफल रहने के बाद अध्यापन करने लगे । पुनः वकालत शुरू की और दक्षिण अफ्रीका चले गए । वहाँ उन्होंने जाति एवं रंग-भेद का जो नंगा नाच इससे उनके जीवन ने एक नया मोड़ लिया।

1915 में वे भारत लौटे और भारतीय समाज ने उन्हें महात्मा’ बना दिया। अहमदाबाद में साबरमती नदी के किनारे ‘सत्याग्रह आश्रम’ की स्थापना की और फिर वे तत्कालीन राजनीति उतर पड़े, सर्वप्रथम उन्होंने बिहार के चंपारन ज़िले नील की खेती करनेवाले किसानों की समस्या पर आंदोलन छेड़ा ।इसके बाद अहमदाबाद के कपड़ा मिल मजदूरों की हड़ताल का नेतृत्व किया, 1919 के बाद गाँधी जी भारतीय राजनीति के केंद्र में आ गए और उन्होंने अनेक असहयोग आंदोलनों का नेतृत्व किया । अनेक बार अनेक वर्षों तक महात्मा गाँधी जी को कैद की सज़ा दी गई। 1929 ईस्वी में ‘पूर्ण स्वराज्य’ का लक्ष्य घोषित किया, 1942 में ‘भारत छोड़ो’ आंदोलन का बिगुल बजाया और अन्तत: 15 अगस्त, 1947 को देश को स्वतंत्र कराने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की । 30 जनवरी, 1948 को नाथूराम गोडसे ने गोली चलाकर महात्मा जी की हत्या कर दी। इस सदी के महत्वपूर्ण इतिहासकार अरनॉल्ड टॉयनबी ने गाँधी जी के विषय में लिखा है-‘’हमने जिस पीढ़ी में जन्म लिया है, वह न केवल पश्चिम में हिटलर और रूस में स्टालिन की पीढ़ी है, वरन् वह भारत में गाँधी जी की पीढ़ी भी है और यह भविष्यवाणी बड़े विश्वास के साथ की जा सकती है कि मानव इतिहास पर गाँधी का प्रभाव स्टालिन या हिटलर से कहीं ज्यादा और स्थायी होगा।” महात्मा गाँधी को समझने के लिए उनके महत्वपूर्ण विचारों को समझना आवश्यक है । उन्होंने अपने संपूर्ण जीवन को एक प्रयोगशाला की तरह देखा है और एक मौलिक विचारशील व्यक्ति के रूप में अपने विचार प्रकट किए हैं ।

सत्याग्रह और अहिंसा: महात्मा गाँधी

असत्य पर आधारित बुराई को अहिंसा के माध्यम से विरोध करना ही गाँधी जी के अनुसार सत्याग्रह है। वे प्रत्येक व्यक्ति में सत्य का अंश देखते हैं । वे सोचते हैं कि यदि एक व्यक्ति बुरा करता है तो वह भ्रम में पड़कर ही करता हैं। यदि उसे सत्य का एहसास कराया जाए तो वह असत्य’ के मार्ग से अपने-आपको हटा लेगा । वे यह भी सोचते हैं कि असत्य को सत्य से और बुराई को भलाई से जीता जा सकता है । सत्याग्रही के पास पर्याप्त आत्मबल और निस्स्वार्थ भावना होनी चाहिए। दुःख सहकर भी बुराई का विरोध करने का साहस होना चाहिए। सत्याग्रह के लिए उसमें उपवास और धरना, हड़ताल, सविनय अवज्ञा, आर्थिक क्रियाओं का बहिष्कार आदि सम्मिलित हैं । महात्मा गाँधी जी का सत्याग्रह पूर्ण रूप से अहिंसा पर आधारित है । वे सोचते हैं कि अहिंसक हुए बिना तो सत्याग्रही हुआ ही नहीं जा सकता । उनके अनुसार किसी जीव की हत्या करना ही हिंसा नहीं बल्कि अहिंसक होना एक नैतिक सोच है जो हर प्राणी के प्रति संवेदनशीलता पैदा करता है । गाँधी जी के अनुसार विरोधी से डरकर अहिंसक बनना शूरवीरता नहीं बल्कि कायरता है । वे कहते थे कि हमको पाप से लड़ना चाहिए न कि पापी से। पापी में ईश्वर का वास है, उसमें भी सत्य विद्यमान होता है। अतः पापी का भी हृदय-परिवर्तन करके उसे अच्छा बनाया जा सकता है।

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धर्म और राजनीति: महात्मा गाँधी

आधुनिक युग में महात्मा गाँधी जी ऐसे निराले व्यक्ति थे जिन्होंने धर्म को किसी पूजा-पाठ से जुड़े हुए पंथ या संप्रदाय से बाहर निकालकर उसे जीवन के सहज आचरण से जोड़ा । उन्होंने धर्म को मनुष्य में विद्यमान सत्य की अभिव्यक्ति कहा । वे सर्व-धर्म समभाव के पक्षपाती थे । वे कहते थे कि सभी लोग अहिंसा का पालन करते हुए धार्मिक प्रवृत्ति अपनाएँ । उनके अनुसार वास्तव में धर्म का पालन करके ही संप्रदाय निरपेक्ष रहा जा सकता है। गाँधी जी ने धर्म और राजनीति का समन्वय किया, बल्कि वे धर्म से रहित किसी राजनीति की कल्पना भी नहीं करते थे। वे राजनीति को धर्म के आधार पर अर्थात् उत्कृष्ट आचरण के आधार पर चला कर उसे स्वच्छ बनाना चाहते थे। वे आधुनिक युग के उन राजनेताओं से बिल्कुल भिन्न थे जो धर्म को एक व्यक्तिगत क्रिया मानते हैं तथा राजनीति को सार्वजनिक । वे धर्म (आचरण) और व्यवहार को मिलाकर देखते थे ।

अस्पृश्यता-अछूतोद्धार:

महात्मा गाँधी जी भारतीय समाज में व्याप्त छुआछूत को बहुत बड़ा कलंक मानते थे । इस दृष्टि से उनके सोच में जाति एवं वर्ण का कोई स्थान नहीं था । वे सदियों से चली आ रही छुआछूत की भावना को जड़ से समाप्त कर देना चाहते थे। उन्होंने अछूतों का उद्धार करने के लिए उनको न केवल ‘हरिजन’ नाम दिया, बल्कि हरिजन नामक पत्रिका का प्रकाशन भी प्रारंभ किया । उन्होंने हरिजनों को मंदिरों में प्रवेश कराने का अभियान शुरू किया, स्वयं हरिजन बस्ती में रहकर हरिजनों के साथ समीपता, स्थापित की । इस प्रकार गाँधी जी भारतीय जाति एवं वर्ण व्यवस्था के विरुद्ध एक सामाजिक आंदोलन के प्रणेता बने ।

सर्वोदय: महात्मा गाँधी

महात्मा गाँधी जी के सर्वोदय का आशय है-सर्व + उदय, अर्थात् सबका उदय । गाँधी जी का सर्वोदय सिद्धांत समूची मानव जाति के कल्याण की भावना पर आधारित है। यह सिद्धांत प्रजातांत्रिक पद्धति की लीक से हटकर, व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर आधारित है । गाँधी जी के सर्वोदय की प्रकृति आध्यात्मिक है । उनके अनुसार सर्वोदय आधारित समाज में सभी व्यक्ति आध्यात्भिक एवं नैतिक मूल्यों से संचालित होते हैं । इसलिए उनके सर्वोदय सिद्धांत में समाज के सबसे निचले वर्ग के उत्थान की भावना में भी आध्यात्मिकता की भावना निहित है।

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ग्राम स्वराज: महात्मा गाँधी

महात्मा गाँधी जी जिस प्रकार व्यक्तिगत स्वतंत्रता के हिमायती थे उसी तरह सामुदायिक स्तर पर ग्राम की स्वतंत्रता एवं आत्मनिर्भरता के भी । उनका कहना था कि प्रत्येक गाँव ऐसा होना चाहिए जो अपनी किसी भी आवश्यकता की पूर्ति के लिए किसी अन्य पर आश्रित न हो । यथासंभव सभी कार्य सहकारिता आधार पर हो, ग्रामीण प्रशासन एवं व्यवस्था पंचायतों द्वारा होनी चाहिए । वे इस प्रकार के गाँवों द्वारा ही नवभारत का निर्माण देखते थे । वे सादा जीवन, सीमित आवश्यकता एवं हर प्रकार के मद्ध के विरुद्ध थे । उनके अनुसार यदि सर्वोदय के सिद्धांत का पालन किया जाय तो रामराज्य स्वतः स्थापित हो जाएगा । वे सत्ता विकेंद्रीकरण चाहते थे जिसका रूप ग्राम स्वराज्य ही हो सकता था । वे यद्यपि जानते थे कि राज्य से रहित आदर्श समाज की स्थापना नहीं हो सकती, किंतु फिर भी वे राज्य-विहिन समाज की बात कहते थे ताकि राज्य-सत्ता का केंद्रीकरण न हो और एक आदर्श समाज व्यवस्था की ओर समाज चले । गाँधी जी ऐसी समाज व्यवस्था में स्त्री-पुरुष की समानता भी देखते थे और इसलिए उन्होंने स्त्रियों की स्थिति सुधारने के भी अनेक प्रयत्न किए । उनका मत था कि स्त्री भी वह सबकुछ कार्य कर सकती है जो पुरुष कर सकते हैं। वे बाल-विवाह को अनैतिक एवं विधवा-विवाह को नैतिक मानते थे ।

आर्थिक दृष्टि: महात्मा गाँधी

महात्मा गाँधी जी के आर्थिक विचारों का आधार विकेंद्रित, ग्राम-आधारित, स्थानीय तकनीक से परिचालित अर्थव्यवस्था है । पंचायतीराज प्रणाली इसी विचार का रूप है । वे बड़े उद्योग धंधों के एवं अर्थ के विकेंद्रीकरण के पक्ष में नहीं थे तथा मशीनों के भी अधिक प्रयोग के पक्षधर नहीं थे क्योंकि वे सोचते थे कि भारतीय संदर्भ में इससे बेरोज़गारी एवं आर्थिक.शोषण बढ़ेगा । इसलिए गाँधी जी ने भारतीय जनता को खादी का उत्पादन करने एवं पहनने के लिए प्रोत्साहित किया तथा विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार किया । वे कुटीर उद्योगों को पुनः नया जीवन देना चाहते थे ताकि वे व्यक्ति की आत्मनिर्भरता एवं आज़ादी के वाहक बनें। गाँधी जी धनिक वर्ग के द्वारा संचालित उद्योगों को एक सामाजिक सम्पत्ति के रूप में देखते थे। वे सोचते थे कि अमीरों को अपने धन को एक ‘ट्रस्टी’ की तरह ही देखना चाहिए ।

यंत्रीकरण,औद्योगीकरण:

महात्मा गाँधी जी देश-काल-परिस्थिति के अनुसार यंत्रीकरण एवं उत्पादन की तकनीक के पक्षधर थे । भारत की श्रम-बहुल स्थिति में वे अधिक यंत्रीकरण के पक्ष में नहीं थे ।उनका कहना था कि हमारी समस्या देश के करोड़ों लोगों को मशीनें देकर उन्हें अवकाश प्रदान करना नहीं बल्कि उनको काम प्रदान करना है। उनके अनुसार विशाल जनसंख्या को रोज़गार देने के लिए उत्पादन की ऐसी प्रणालियों का उपयोग करना होगा । जिनमें श्रमिक ज़्यादा से ज़्यादा खपें । उनकी नज़र में चर्खा भी एक मशीन था । वे देश में व्यापक पैमाने के औद्योगीकरण के विरुद्घ थे क्योंकि उससे न केवल बेरोज़गारी बल्कि आर्थिक विषमता, शोषण और अंततः हिंसा के बढ़ने की आशंका रहेगी । वे सोचते थे कि गाँवों-शहरो में छोटे-छोटे उद्योग हों, सब लोगों के पास काम हो, श्रमिक उद्योग का स्वामी हो और विकेंद्रीकरण की प्रक्रिया से उत्पादन हो। वे प्रत्येक व्यक्ति को श्रम से भी जोड़ना चाहते थे। उनके अनुसार शारीरिक श्रम एक प्राकृतिक नियम है और जो कोई भी प्राकृतिक नियम का उल्लंघन करता है, वह स्वयं कठिनाइयों को आमंत्रित करता है। उनके लिए श्रम शाप नहीं बल्कि जीवन की खुशी था । इसलिए वे व्यक्ति की दिनचर्या से लेकर शिक्षा-प्रणाली एवं उद्योगों तक शारीरिक श्रम को महत्व देते थे।

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शिक्षा: महात्मा गाँधी

महात्मा गाँधी जी के अनुसार शिक्षा शरीर, मस्तिष्क और आत्मा का विकास करने का माध्यम है, वे ‘बुनियादी शिक्षा’ के पक्षधर थे । उनके अनुसार प्रत्येक बच्चे को अपनी मातृभाव की निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा मिलनी चाहिए जो उसके आसपास की ज़िन्दगी पर आधारित  हो तथा हस्तकला एवं काम के माध्यम से दी जाए; रोज़गार दिलाने के लिए बच्चे को आत्मनिर्भर बनाए तथा नैतिक एवं आध्यात्मिक मूल्यों का विकास करनेवाली हो।

महात्मा गाँधी जी के उक्त विचारों से स्पष्ट है कि वे व्यक्ति और समाज के संपूर्ण जीवन पर अपनी मौलिक दृष्टि रखते थे तथा उन्होंने अपने जीवन में सामाजिक एवं राजनीतिक आंदोलनों में भाग लेकर भारतीय समाज एवं राजनीति में इन मूल्यों को स्थापित करने की कोशिश की । यद्यपि भारतीय समाज गाँधी जी का अनुगामी नहीं बन सका और वह गाँधीवादी मार्ग से भटक गया है । फिर भी गाँधी जी का सारा सोच भारतीय परम्परा का ” सोच है तथा उनके दिखाए गए मार्ग को अपनाकर एक व्यक्ति एवं पूरा देश वास्तविक स्वतंत्रता, सामाजिक सद्भाव एवं सामुदायिक विकास को प्राप्त कर सकता है। भारतीय समाज जब-जब भटकेगा तब-तब गाँधी जी उसे मार्गदर्शन करने में सक्षम रहेंगे।

महात्मा गाँधी: आज के भी और कल के भी:

आज भी महात्मा गाँधी जी के विचार सत्य के अनुभव पर आधारित हैं।वे शुद्ध-बुद्ध आत्मा का दर्शन कराते हैं तथा जीवन में आध्यात्मिकता एवं नैतिकता को प्रमुख स्थान देते हैं । हम यदि यह समझते हैं कि व्यक्तिगत एवं सामाजिक जीवन में प्रेम, निर्भयता, स्वतंत्रता, अपरिग्रह, विश्व-मैत्री आदि उदात्त गुण आवश्यक हैं तो हमारे लिए गाँधीवाद प्रासंगिक हो उठता है। युद्धों से मँडराए हुए विश्व में प्रत्येक देश विश्व-शांति का स्वप्न देखता है । इस स्वप्न को साकार करने का एक ही रास्ता है कि हम अहिंसा को अपनाएँ, हर व्यक्ति और राष्ट्र का सम्मान करें और सबका विकास करें। अहिंसा के द्वारा ही हम आणविक अस्त्रों और उनके आतंक से मुक्त हो सकते हैं । गाँधीवाद जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में हृदय-परिवर्तन द्वारा स्थायी विकास का मार्ग दिखाता है और मानवीय मूल्यों के आधार पर प्रत्येक समस्या का समाधान प्रस्तुत करता है। गाँधीवाद आज के समाज का साथ ही भविष्य के समाज का भी जीवनदर्शन है । गाँधीवादी मार्ग के पुनर्बलन के लिए अन्ना हजारे एवं अरविंद केजरीवाल जैसे सामाजिक कार्यकर्ताओं व्यक्ति और राजनीति को स्वच्छ करने की जो मुहिम उठाई वह महत्वपूर्ण है, स्वागत योग्य है।

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