धिनु जुलाहा – Hindi Moral Stories For Kids – हिंदी कहानी

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Hindi Moral Stories For Kids : वाराणसी नगर के पास एक कस्बे में धिनु नाम का एक जुलाहा रहता था | वह अपने काम में बहुत निपुण था | उसका बनाया कपड़ा बहुत कोमल तथा खूबसूरत होता था | लेकिन उन कपड़ो को बनाने में उसकी इतनी लागत आती थी, कि उन कपड़ो को केवल सेठ साहूकार तथा राजा-महाराजा ही खरीद सकते थे | इस कारण उसके कपड़ों की बिक्री भी कम थी | वह किसी प्रकार अपनी पत्नी तथा अपना गुजारा कर पाता था |

एक दिन धिनु अपनी पत्नी लाजवंती से बोला – ” देख लाजवंती ! हमारे पड़ोसी केवल मोटा खद्दर बनता है | किंतु इसमें भी वह मेरे से दुगुना कमा लेता है | इस गांव में मेरे सुंदर तथा कोमल कपड़े का कोई भी ग्राहक नहीं है | इसलिए मैं सोच रहा हूं, कि क्यों ना एक बार शहर अपना भाग्य अजमा लू |”

लाजवंती पति को प्रदेश भेजने को राजी हो गई | धिनु धन कमाने की इच्छा से शहर आ गया | वहां आकर उसने खूब मेहनत की | इस शहर में उसके कपड़ों की खूब मांग थी | यहां आकर उसका व्यवसाय चमक उठा | तीन वर्ष शहर में रहने के पश्चात उसने सोने के पाच सो सिक्के जमा कर लिए |

वह सोचने लगा कि अब उसे घर वापस जाना चाहिए | वहां जाकर जब वह लाजवंती को यह सिक्के दिखाएगा तो वह बहुत प्रसन्न होगी |

ऐसा विचार करके वह अपने गांव की ओर चल दिया | चलते-चलते रास्ते में रात हो गई | धिनु जंगल से गुजर रहा था | चोर-डाकू तथा जंगली जानवरों के भय से उसने रात पेड़ पर गुजरने का निश्चय किया | वह एक पुराने बरगद के पेड़ पर चढ़ गया | थका हारा तो वह था ही, कुछ ही देर बाद वह पेड़ की डाल का सहारा लेकर सो गया |

सोते-सोते उसे सपने में दो आदमी नजर आए | उसमें से एक कर्म तथा दूसरा भाग्य | भाग्य कर्म से बोला – ” कर्म ! तुम्हें तो पता है, कि इस जुलाहे के भाग्य में केवल रोटी कपड़े का ही सुख लिखा है| फिर भला तुमने इसे 500 सोने की मोहरे कैसे दे दी |”

कर्म बोला – ” देखो भाग्य ! मेरा काम उधमी को उसके परिश्रम का फल देना है | जो कोशिश करेगा उसे तो उसका फल मिलेगा ही, अब आगे जो तुम ठीक समझो |”

कर्म और भाग्य की बातचीत जुलाहे ने सुनी तो वह हड़बड़ाकर कर उठा | उसने जल्दी-जल्दी अपने मोहरों की थैली खोली | वह यह देखकर चकित रह गया की थैली के अंदर से सभी मोहरे गायब थी | यह देख धिनु रोने लगा, कि कितनी मुश्किल से तो उसने धन कमाया था और उसे जाते एक मिनट भी नहीं लगी | वह सोचने लगा कि अब खाली हाथ जाकर में लाजवंती को क्या मुंह दिखाऊंगा |

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यह सोचकर वह फिर से शहर लौट आया | इसके बाद एक ही साल में दोगुनी मेहनत करके उसने एक हज़ार सोने की मोहरे जमा कर ली | इस बार वह फिर अपने गांव चल दिया; किंतु दुर्भाग्य से सूर्यास्त होने पर वह उसी बरगद के पेड़ के नीचे जा पहुंचा | यह देख जुलाहा हैरान रह गया, कि भाग्य ने उसे फिर उसी जगह पर लाकर खड़ा कर दिया | वह फिर से सो गया और इस बार भी उसकी मोहरे गायब हो गई |

दूसरी बार भी अपनी गाढ़ी कमाई को खोकर उसे बड़ी ही निराशा हुई | वह सोचने लगा कि धन के बिना तो अब जीवित रहना ही व्यर्थ है | अतः उसने अपनी पगड़ी का फंदा बनाया और उसका एक छोर पेड़ से बांधकर खुद को फांसी लगाने को तैयार हो गया |

तभी भाग्य उसके सामने प्रकट हुआ और उसे पकड़ते हुए बोला – ” अभी तुम्हारी आयु शेष है | तुम आत्महत्या करने की कोशिश मत करो | जाओ अपने घर जाओ | मैं तुम्हें एक वरदान देना चाहता हूं, बोलो तुम्हें क्या चाहिए |”

धिनु बोला – ” अगर ऐसी ही बात है | तो कृपया आप मुझे धनवान बना दीजिए |”

भाग्य बोला – ” पर तुम धन लेकर क्या करोगे | धन का भोग तो तुम्हारे भाग्य में है, ही नहीं |”

जुलाहा बोला – ” फिर भी मुझे धन चाहिए | इस संसार में कितने ही ऐसे धनी पुरुष है, जो अपनी अव्यवस्था या कंजूसी के कारण संवेदन का भोग करने में असमर्थ हैं; किंतु धनी होने के कारण समाज में उनका मान-सम्मान है |”

भाग्य उसकी बात सुनकर बोला – ” तुम फिर से शहर लौट जाओ | वहां तुम्हें एक व्यापारी के दो पुत्र मिलेंगे | उनमें से एक धन-जोडू तथा दूसरा खर्चीला है | तुम दोनों में से जैसा बनना पसंद करोगे मैं तुम्हें वैसा ही बना दूंगा |”

इतना कहकर भाग्य वहां से अदृश्य हो गया | जुलाहा शहर आकर धन-जोडू का पता पूछता-पूछता एक जगह आया | राह चलने वाले एक आदमी से जब उसने पूछा – ” भाई ! यहां पर कोई धन-जोडू रहता है |” इस पर राहगीर बोला – ” तुम परदेसी मालूम होते हो | सुबह-सुबह उस मनहूस का नाम सुन लिया | ईश्वर जाने आज भाग्य में रोटी भी लिखी है, या नहीं |”

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धिनु ने सोचा लगता है | धन-जोडू ने बड़ी बदनामी कमाई है | चलो मैं खुद ही उसका घर ढूंढने की कोशिश करता हूं |

ढूंढते-ढूंढते जुलाहे को अंत में धन-जोडू का घर मिल ही गया | धन-जोडू के घर पहुंचने पर उसकी स्त्री, बच्चों तथा नौकर-चाकरो ने धिनु को खूब दुत्कारा; किंतु धिनु उनके आंगन में बैठ गया | रात को धन-जोडू की पत्नी ने न चाहते हुए भी उसे भोजन करा दिया |

रात के समय जुलाहा वहीं आंगन में सो गया | उसे सपने में फिर से कर्म तथा भाग्य नजर आए | भाग्य ने कर्म से पूछा – ” कर्म ! इस धन-जोडू के भाग्य में तो पैसा खर्च करना लिखा ही नहीं है | फिर इस जुलाहे को भोजन करवाकर तुमने यह फालतू खर्च क्यों करवाया |”

कर्म बोला – ” भाग्य ! मैंने जो ठीक समझा किया | आगे तुम्हारी मर्जी है, चाहे जैसे इस कमी को पूरा करो |”

अगले दिन भाग्य के वश में होकर धन-जोडू बीमार पड़ गया और इस तरह उसे कई दिन तक फाका करना पड़ा | भूखा-प्यासा जुलाहा भी वहां से धन-खर्चीले के खोज में चल पड़ा | उसके घर के पास पहुंचते ही हर व्यक्ति के मुंह से उसने धन-खर्चीले के दानी स्वभाव की प्रशंसा सुनी | लोग उसे धन खर्चीले के घर तक छोड़ने आए |

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धन-खर्चीले ने धिनु की बड़ी ही आव-भगत की, तथा उसे पेट भर कर भोजन करवाया | उसे पहनने को वस्त्र दिए | तथा उसे आराम से लेटा कर वह सोने चला गया |

रात को सपने में जुलाहे को फिर से भाग्य तथा कर्म नजर आए | भाग्य कर्म से बोला – ” भाई कर्म ! इस धन-खर्चीले ने तो जुलाहे की बड़ी आव-भगत की, तथा इसे पेट भर कर भोजन कराया | वस्त्र पहनने को दिए, इसमें इसने अपनी रही सही पूंजी भी खर्च कर दी | अब कल उसका खाने पीने का क्या होगा |”

कर्म बोला – ” अच्छे कर्म करने की प्रेरणा देना ही मेरा काम है | अब कल क्या होगा, यह तुम्हारे हाथ है | भाग्य का चमत्कार दिखाओ |

अगले दिन सुबह-सुबह राजदरबार का एक कर्मचारी धन-खर्चीले के घर आया और राजा की ओर से रुपयों की एक थैली भेंट कर गया | उसने अकाल पीड़ितों की बहुत सेवा की थी | यह देखकर जुलाहा सोचने लगा कि – ” धन-जोडू के जैसा करोड़पति बनने से धन-खर्चीले के जैसा परोपकार करना और मस्त रहना लाख दर्जे अच्छा है, क्योंकि धन की सार्थकता उसके सदवय में होती है | जिस धनी का धन किसी के काम ना आवे उससे तो निर्धन रहना अच्छा है | धर्म को आचरण करने से ही मनुष्य धर्मात्मा कहलाता है | केवल धर्माप्देश पढ़ लेने मात्र से कोई धर्मात्मा नहीं बन जाता |”

यह विचार करके जुलाहा बोला – ” हे भाग्य देवता ! आप मुझे धन-खर्चीले सदृश धनी बना देते तो अच्छा है | मुझे धन-जोडू के जीवन में कुछ सार्थकता नहीं प्रतीत होती |”

धिनु की मर्जी से भाग्य ने उसे धन-खर्चीले के जैसा बना दिया | जब वह गांव लौट कर आया तो, यहां उसका धंधा खूब चमकने लगा | साथ ही वह जितना कमाता उतना ही परोपकार में उड़ा भी देता था | इस कारण उसने धन तो नहीं बटोरा किंतु यश खूब बटोरा | इसी से धिनु तथा उसकी पत्नी संतुष्ट है |

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Written by lokhindi
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