Inspirational Moral Stories – प्रेरणादायक नैतिक कहानियाँ

सबसे कीमती हीरा 

प्रेरणादायक नैतिक कहानियाँ / Inspirational Moral Stories – Short Moral Story in Hindi । प्रेरणादायक कहानियां हिंदी में_Short Stories in Hindi For Kids |


एक किसान था। वह अपने खेत में हल चला रहा था। उसका बेटा भी वहीं था।

उसको खेत में एक हीरा मिला। वह चम-चम चमक रहा था। चमक उसे बहुत अच्छी लगी।

वह उसे लेकर खेलने लगा।

कुछ देर बाद वह बेटा हीरा लेकर घर पहुंचा। मां को दिखाया। फिर साथियों को दिखाने घर से निकल पड़ा। साथियों ने चमकीले पत्थर को देखा तो वे माँगने लगे।

उसने उन्हें दिया नहीं। You Read These Inspirational Moral Stories on Lokhindi.com

एक लड़के को वह हीरा बहत अच्छा लग रहा था। वह रोते-रोते घर गया। उसने अपने पिताजी से कहा-मुझे हीरा चाहिए।”

उसके पिताजी ने पूछा- “हीरा क्या चीज है?” Inspirational Moral Stories

लड़के ने अपने पिता से कहा-“मैंने एक लड़के के पास देखा है। वह बहुत चमकता है। उसकी चमक बहुत अच्छी लगती है। आप वह किसी तरह उस लड़के से ले लीजिये ।”

उसका पिता हीरे वाले लड़के के पिता के पास पहुँचा और पचास रुपये देकर वह हीरा ले आया। वह लड़का बहुत रोया, लेकिन पैसे के लोभ में उसका पिता हीरा बेचने के लिए मजबूर हो गया था।

कुछ दिनों के बाद उसके पड़ोसी लड़के को वह हीरा पसन्द आ गया। वह हीरे के लिए रोने लगा। उसके माँ-बाप श्रीमान् थे। पाँच सौ रुपये देकर उन्होंने हीरा खरीद लिया।

इस तरह उस हीरे का मूल्य बढ़ता गया। बढ़ते-बढ़ते उस हीरे का मूल्य एक लाख अशरफियाँ हो गया।

लेकिन क्या जिस आदमी ने उस हीरे को एक लाख अशरफियों में खरीद लिया उसका एक समय भी उससे पेट भर सकता है? फिर दुनिया वाले ऐसे पत्थरों के पीछे क्यों पागल बनें?

पेट तो भरता है अनाज से, दूध से, घी से और मक्खन से फिर इन खाने की चीजों से बढ़कर दूसरा कोई हीरा नहीं हो सकता।

शिक्षां – “इस कहानी से हमें यही शिक्षा मिलती है कि संसार में सबसे अच्छी वस्तु भोजन सामग्री है। क्योंकि उससे पेट भरा जा सकता है जबकि हीरा मात्र एक पत्थर, उसे देखकर प्रसन्न तो हुआ जा सकता है लेकिन पेट नहीं भरा जा सकता। अतः हमें यदि पहली आवश्यकता भोजन की है तो हीरे में पैसे न गंवाकर पहले अनाज और भोजन सामग्री उगाने के लिये पेड़-पौधे और फसल उगानी चाहिये।”

Inspirational Moral Stories – पिता की आज्ञा

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बाप और बेटा कहीं जा रहे थे। गरमी के दिन थे। सूरज निकल चुका था। धूप बहुत तेज हो गयी थी। बेटे ने छाता लगा लिया।

बाप ने बेटे से कहा-“बेटा, छाता जरा पूरब की ओर रखा करो ।”

बेटे ने वैसा ही किया। बाप-बेटे दोनों की कड़ी धूप से रक्षा हो गयी। दिन ढलने लगा। शाम हो चली। वह लड़का अकेले ही घूमने निकल पड़ा। साथ में छाता तो था ही, उसने छाता खोल लिया।

लेकिन उस समय पश्चिम की ओर था। तब भी छाता उसने पूरब सूरज की ओर ही रखा। ऐसा उसने इसलिए किया कि पश्चिम की ओर रखने से पिता की आज्ञा भंग होती है।

रास्ते में उसे कई आदमी मिले । सबने कहा कि छाता ठीक से लगा लो, लेकिन वह किसी की बात क्यों मानने लगा।

उसने सबसे यही कहा- “पिताजी का आदेश है। मैं पश्चिम की ओर छाता कैसे कर सकता हूं?”

लोगों ने जाकर ये बात उसके बाप को बतायी। वह अपने अन्धभक्त बेटे को सीख देने के लिए आया। उसने बेटे को समझाया कि मैंने सुबह छाता पूरब की ओर रखने के लिए इसलिए कहा था कि उस समय सूरज पूरब की ओर था। सूरज की किरणें पूरब से आ रही थीं और इस समय सूरज की किरणें पश्चिम से आ रही हैं, इसलिए छाता पश्चिम की ओर ही रखना चाहिए। क्योंकि तुम्हें धूप से बचने के लिए इस बात का हमेशा ध्यान रखना होगा कि सूरज कहाँ है। अगर सूरज बीच आसमान में होता तो तुम्हें सीधा रखना चाहिए।

बाप की सीख बेटे की समझ में आ गयी। वह समझ गया कि आज्ञापालन और अन्धभक्ति दो अलग बाते हैं।

शिक्षा- “इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि मनुष्य को वस्तुस्थिति अनुसार ही कर्म करना चाहिये। अपने मस्तिष्क का प्रयोग करके यह जानना चाहिये कि हमारा और संसार का भला किस कर्म में है। अंधी भक्ति में न डूबकर बड़ों के कथन का अनुसरण सोच-समझकर करना चाहिये।”

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Written by lokhindi
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